श्री दत्तात्रेय के २४ गुरु

श्री दत्तात्रेय के २४ गुरु
भगवान दत्तात्रेय महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के पुत्र थे जो नारायण के अंश से जन्मे थे। उन्हें भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है। श्री दत्तात्रेय ने एक बार देवर्षि नारद से कहा था कि उन्होंने कई लोगों और चीजों से काफी कुछ सीखा है और उन्होंने जिनसे भी सीखा है उन्हें वे अपना गुरु मानते है। यहाँ तक कि उन्होंने पशुओं के भी अपने गुरु का दर्जा दिया। देवर्षि नारद के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ने उन्हें अपने २४ गुरुओं के बारे में बताया। ये गुरु हैं: 

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी एवं भृंगी

मनुस्मृति

मनुस्मृति
'मनुस्मृति नामक धर्मशास्त्र और संविधान के प्रणेता राजर्षि मनु 'स्वायम्भुव' न केवल भारत की, अपितु सम्पूर्ण मानवता की धरोहर हैं। आदिकालीन समाज में मानवता की स्थापना, संस्कृति-सभ्यता का निर्माण और इनके विकास में राजर्षि मनु का उल्लेखनीय योगदान रहा है। यही कारण है कि भारत के विशाल वाङ्मय के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों के साहित्य में मनु और मनुवंश का कृतज्ञतापूर्ण स्मरण तथा उनसे सम्बद्ध घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। यह उल्लेख इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि प्राचीन समाज में मनु और मनुवंश का स्थान महत्वपूर्ण और आदरणीय था।

भगवान शिव के सभी पुत्र एवं पुत्रियाँ

वैसे तो जब शिवपुत्र की बात आती है तो हमारे ध्यान में कार्तिकेय और गणेश ही आते हैं। वैसे तो भगवान शिव के किसी भी पुत्र ने माता पार्वती के गर्भ से जन्म नहीं लिया है किन्तु फिर भी कार्तिकेय और गणेश को शिव-पार्वती का ही पुत्र माना जाता है और इनकी प्रसिद्धि सबसे अधिक है। इन दोनों के अतिरिक्त महादेव की एक कन्या है अशोक सुंदरी। किन्तु कुछ अन्य भी हैं जिन्हे महादेव के पुत्र और पुत्रियाँ होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ हम महादेव के अवतारों को नहीं जोड़ रहे हैं। तो आइये उनके बारे में कुछ जानते हैं:

राक्षस वंश का वर्णन

पुराणों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के शरीर से जल की उत्पत्ति हुई। उसी जल से दो जातियों की उत्पत्ति हुई जिन्होंने ब्रह्मदेव से पूछा कि उनकी उत्पत्ति क्यों हुई है? तब ब्रह्मा ने उनसे पूछा कि तुममे से कौन इस जल की रक्षा करेगा। उनमे से एक ने कहा कि हम इस जल की रक्षा करेंगे, वे "राक्षस" कहलाये। दूसरे ने कहा वे उस जल का यक्षण (पूजा) करेंगे, वे यक्ष कहलाये। तब ब्रह्मदेव ने दो राक्षसों हेति-प्रहेति की उत्त्पति कि जिससे आगे चल कर राक्षस वंश चला। आगे चल कर इस वंश में एक से एक पराक्रमी योद्धाओं ने जन्म लिया जिसमे से सबसे प्रसिद्ध रावण है। आइये राक्षस वंश पर एक दृष्टि डालते हैं:

श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् (हिंदी अर्थ सहित)

श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् (हिंदी अर्थ सहित)
विनियोग
अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारद ऋषि:।
अनुष्टुप् छन्द:, श्रीदत्त: परमात्मा देवता। 
श्रीदत्तप्रीत्यर्थं जपे विनियोग:।

अर्थात: इस दत्तात्रेयस्तोत्ररूपी मन्त्र के ऋषि भगवान नारद हैं, छन्द अनुष्टुप है और परमेश्वर-स्वरूप दत्तात्रेय जी इसके देवता हैं। श्रीदत्तात्रेय जी की प्रसन्नता के लिए पाठ में विनियोग किया जाता है।

काकभुशुण्डि

काकभुशुण्डि का वर्णन वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास के रामचरितमानस में आता है। सबसे पहला वर्णन इनका तब आता है जब देवी पार्वती ने महादेव से श्रीराम की कथा सुनाने का अनुरोध किया था। माता के अनुरोध पर भगवान शिव उन्हें एकांत में ले गए और रामकथा विस्तार से सुनाने लगे। दैववश देवताओं के लिए भी दुर्लभ उस कथा को वहाँ बैठे एक कौवे ने सुन लिया। भगवान शिव द्वारा कथा सुनाये जाने पर उसे श्रीराम के सभी रहस्यों सहित पूर्ण कथा का ज्ञान हो गया। वही कौवा आगे चल कर काकभुशुण्डि के रूप में जन्मा।

पञ्चाक्षरी मन्त्र एवं शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र

वेदों और पुराणों में वर्णित जो सर्वाधिक प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण मन्त्र हैं, उनमे से श्रेष्ठ है भगवान शिव का पञ्चाक्षरी मन्त्र - "ॐ नमः शिवाय"। इसे कई सभ्यताओं में महामंत्र भी माना गया है। ये पंचाक्षरी मन्त्र, जिसमे पाँच अक्षरों का मेल है, संसार के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जिसके बिना जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है।

रामचरित मानस के रोचक तथ्य

रामचरित मानस के रोचक तथ्य
वाल्मीकि रामायण के बाद अगर कोई और राम कथा सबसे प्रसिद्ध है तो वो है तुलसीदास कृत रामचरितमानस। इसे तुलसीदास जी ने १५७४ ईस्वी में लिखना आरम्भ किया था और २ वर्ष ७ मास और २६ दिन के बाद १५७६ ईस्वी को इसे पूर्ण किया। आइये रामचरितमानस के बारे में कुछ अनसुने तथ्य जानते हैं।

हनुमद रामायण - जिसे हनुमान ने स्वयं समुद्र में डुबा दिया

रामायण का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया मूल रामायण ही आता है। आधुनिक युग में उनके बाद सबसे प्रसिद्ध रचना तुलसीदास कृत रामचरितमानस है। इसके अतिरिक्त भी रामायण के कई और महत्वपूर्ण स्वरुप हैं जैसे कम्ब रामायण इत्यादि। ये बात तो निर्विवाद है कि रामायण में अगर कोई श्रीराम के अनन्य भक्त थे तो वो महाबली हनुमान ही थे।

महर्षि लोमश - जिनका वरदान ही उनके लिए श्राप बन गया

लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ यहाँ चिरंजीवी होना नहीं है बल्कि उनकी अत्यधिक लम्बी आयु से है।

धर्मः मम

धर्मः मम
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः !
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय !! - श्रीमद्भगवद्गीता !! १ !! १ !!

हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?

बिल्वपत्र (बेलपत्र)

एक बार देवर्षि नारद कैलाश पहुँचे, वहाँ उन्हें भगवान शंकर और माता पार्वती के दर्शन हुए। दोनों को प्रणाम करने के पश्चात देवर्षि ने महादेव से पूछा कि "हे प्रभु! पृथ्वी पर मनुष्य अत्यंत दुखी है और उनके दुखों का निवारण आपके द्वारा ही संभव है। अतः आप मुझे वो विधि बताइये जिससे मनुष्य आपको शीघ्र और सरलता से प्रसन्न कर सके। इसे जानकार मानव जाति का कल्याण होगा।"

नागवंश और नागपूजा - आधुनिक दृष्टिकोण

नागवंश और नागपूजा
नागवंश और नागपूजा का इतिहास भारत में बहुत ही पुराना है। नागों को महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री क्रुदु की संतान माना गया है जिनके १००० पुत्र हुए जिनसे १००० नागवंशों की स्थापना हुई, जिनमे से ८ सबसे प्रमुख हैं। नागों के ८ प्रमुख कुलों के विषय में एक लेख पहले ही प्रकाशित हो चुका है, उसके विषय में यहाँ पढ़ें।

रक्त्जा और स्वेदजा - अर्जुन और कर्ण के कई जन्मों की प्रतिस्पर्धा

पिछले लेख में हमने महारथी कर्ण के पिछले जन्म "दंबोधव" के बारे में पढ़ा। इससे हमें ये जानने को मिलता है कि इन दोनों के बीच की प्रतिस्पर्धा कितनी पुरानी है। जिन्हे दंबोधव के बारे में पता नहीं था उसके लिए ये कथा सुनना वास्तव में आश्चर्यजनक है। किन्तु उससे भी अधिक आश्चर्यजनक कथा हमें पद्मपुराण में मिलती है जिसमे इन दोनों की प्रतिदंद्विता का विवरण है जो सीधे त्रिदेवों से सम्बंधित है।

दंबोधव - जिसके पाप का दण्ड कर्ण ने भोगा

महाभारत ऐसी छोटी-छोटी कथाओं का समूह भी है जो हमें आश्चर्यचकित कर देती है। जी सुंदरता के साथ वेदव्यास ने सहस्त्रों छोटी-छोटी घटनाओं को एक साथ पिरोया है वो निश्चय ही अद्वितीय है। ऐसी ही एक कथा दंबोधव दानव की है जो सीधे तौर पर कर्ण से जुडी है और अर्जुन एवं श्रीकृष्ण भी उसका हिस्सा हैं। ये कथा वास्तव में कर्ण के पूर्वजन्म की कथा है जिसके कारण उसे अगले जन्म में भी इतना दुःख भोगना पड़ा।

पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष)

श्राद्ध शब्द का अर्थ:
 श्रद्धा पूर्वक पितरों के लिए विधिपूर्वक जो कर्म किया जाता है उस कर्म को श्राद्ध कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार देश काल में पात्र द्वारा विधि पूर्वक श्रद्धा से पितरों के उद्देश्य से जो कार्य किया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। देश का अर्थ स्थान है काल का अर्थ समय है पात्र का अर्थ वह ब्राह्मण है जिसे हम श्राद्ध की सामग्री दे रहे हैं इन तीनों को भली-भांति समझ लेना चाहिए।

दुर्योधन की तीन गलतियाँ जिसके कारण उसकी पराजय हुई

महाभारत सागर की तरह विशाल है। इसके अंदर कथाओं के ऐसे-ऐसे मोती छिपे हैं जिसे ढूँढना कठिन है। कुछ प्रसंग व्यास रचित महाभारत में है तो कुछ शताब्दियों से लोक कथाओं के रूप में सुनी और सुनाई जाती रही है। ऐसा ही एक प्रसंग हम आज आपके लिए ले कर आए हैं। ये घटना तब की है जब भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ी और वो अपनी अंतिम साँसें ले रहा था।

गौ माता का वैज्ञानिक महत्व

गौ माता का वैज्ञानिक महत्व
गौ की महिमा तो अपरम्पार है किन्तु फिर भी कुछ अनजान वैज्ञानिक तथ्य है जो जानने योग्य हैं। कहते है की गौमाता के खुर से उडी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। पशुओं में बकरी, भेड़, ऊँटनी, भैंस इत्यादि का दूध भी काफी महत्व रखता है।

छठ महापर्व

आप सबों को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। पूर्वी भारत, विशेषकर बिहार, झारखण्ड एवं उत्तर प्रदेश में तो इस पर्व का महत्त्व सर्वाधिक है ही, अब भारत के हर क्षेत्र में इस पर्व को मनाया जाता है। भारत के बाहर, विशेषकर नेपाल, इंडोनेशिया, मॉरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिनाद, अमेरिका, इंग्लैण्ड, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, नूज़ीलैण्ड, मलेशिया एवं जापान में भी इसे  वृहद् रूप से मनाया जाता है। ये पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है इसी कारण इसे "छठ" के नाम से जाना जाता है।

मैसूर का प्रसिद्ध चामुंडेश्वरी मंदिर

मैसूर का प्रसिद्ध चामुंडेश्वरी मंदिर
जब आप कर्नाटक के राजसी नगर मैसूर पहुँचते हैं तो मैसूर पैलेस के साथ-साथ जो स्थान आपको सबसे अधिक आकर्षित करता है वो है १००० मीटर ऊपर चामुंडा पहाड़ी पर स्थित माँ चामुंडेश्वरी का मंदिर। मैसूर शहर से १३ किलोमीटर दूर ये मंदिर समुद्र तल से करीब १०६५ मीटर की उचाई पर है और इतनी उचाई पर मंदिर का निर्माण कर देना ही अपने आप में एक आश्चर्य है।

क्यों कायस्थ २४ घंटे के लिए कलम को नहीं छूते?

आप सभी को चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। चित्रगुप्त जयन्ती कायस्थ समाज के लिए तो सर्वश्रेष्ठ त्यौहार है ही लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य समुदाय के लोग इस बड़ी श्रद्धा से मनाते है। बचपन में हमारे लिए इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण ये होता था कि इस दिन हमें पढाई-लिखाई से छुट्टी मिल जाती थी।

कैसे करें दीपावली पूजन?

कैसे करें दीपावली पूजन?
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ। दीपावली पर श्री गणेश एवं माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनुष्य को समस्त मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। पूरे वर्ष घर में लक्ष्मी का वास रहता है और घर मे लक्ष्मी आने से समस्त समस्याओं का निवारण भी हो जाता है। दीपावली की रात्रि में भगवती लक्ष्मी का स्मरण करते हुए अपने गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का निरंतर जप करने से वह मंत्र सिद्ध हो जाता है।

अशोक सुंदरी

भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्रों श्री कार्तिकेय एवं श्रीगणेश के विषय में तो हम सभी जानते हैं किन्तु उनकी कन्या "अशोकसुन्दरी" के विषय में सबको अधिक जानकारी नहीं है। हालांकि महादेव की और भी पुत्रियां मानी गयी हैं, विशेषकर जिन्हें नागकन्या माना गया - जया, विषहरी, शामिलबारी, देव और दोतलि। किन्तु अशोक सुंदरी को ही महादेव की की पुत्री बताया गया है इसीलिए वही गणेशजी एवं कार्तिकेय की बहन मानी जाती है। कई जगह पर इन्हे गणेश की छोटी बहन भी बताया गया है लेकिन अधिकतर स्थानों पर ये मान्यता है कि ये गणेश की बड़ी बहन थी। पद्मपुराण अनुसार अशोक सुंदरी देवकन्या हैं। 

जब वीरवर लक्ष्मण की रक्षा हेतु माता सीता ने उन्हें निगल लिया

रामायण समुद्र की तरह अथाह है। रामायण और रामचरितमानस के अतिरिक्त भी रामायण के कई क्षेत्रीय प्रारूप हैं जो जनमानस में बहुत प्रसिद्ध हैं। आज जो कथा हम आपको बताने जा रहे हैं वो भी कुछ ऐसी ही है। इसका विवरण हमें रामायण अथवा रामचरितमानस में तो नहीं मिलता किन्तु ये कुछ भारतीय लोककथाओं में चाव से सुनी और सुनाई जाती है।

अहोई अष्टमी

अहोई अष्टमी
आप सभी को अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। ये भारत का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस व्रत को पुत्रवती महिलायें अपने पुत्रों की लम्बी आयु के लिए रखती है। वे दिन भर निर्जल उपवास रखती हैं और शाम को तारे के दर्शन के बाद पूजा के साथ अपना उपवास तोड़ती है।

वाल्मीकि रामायण - एक दृष्टिकोण

वाल्मीकि रामायण - एक दृष्टिकोण
तुलसी रामायण की जगह वाल्मिकी रामायण क्यों? वाल्मिकी रामायण में राम पर तंज हैं, प्रश्न है। सीता का वनगमन है। लव-कुश के तीखे प्रश्न बाण हैं। तुलसी रामायण जहां उत्तरकांड पर खत्म हो जाती है, वाल्मिकी रामायण में रावण और हनुमान की जन्म कथा, राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति और रामराज्य में कुत्ते के न्याय की उपकथाएं, सीतावनगमन, लवकुश जन्म, अश्वमेघ यज्ञ, लव-कुश का रामायण गान, सीता का भूमि प्रवेश, लक्ष्मण का परित्याग सबकुछ समाहित है।

श्रीकृष्ण का पूर्वजन्म

जब कंस ने ये सुना कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी तब उसने उसे मारने का निश्चय किया। बाद में इस शर्त पर कि देवकी और वसुदेव अपनी सभी संतानों को जन्म लेते ही उसके हवाले कर देगी, उसने दोनों के प्राण नहीं लिए किन्तु दोनों को कारागार में डाल दिया। एक-एक कर कंस ने दोनों के सात संतानों का वध कर दिया।

करक चतुर्थी (करवा चौथ)

करक चतुर्थी (करवा चौथ)
कल (शनिवार, २७ अक्टूबर) को करक चतुर्थी का पर्व है जिसे आम भाषा में करवा चौथ कहा जाता है। सनातन धर्म में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग को देने वाला माना जाता है। करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के पवित्र प्रेम के रूप में मनाया जाता है जो एक दूसरे के प्रति अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है।

कर्म तथा ज्ञान का अंतर एवं परमात्मा दर्शन

कर्म तथा ज्ञान का अंतर एवं परमात्मा दर्शन
हमारे शास्त्रों में दो भागों का वर्णन बतलाया गया है - एक का नाम प्रवृत्ति धर्म और दूसरे को निवृत्ति धर्म कहा गया है। प्रवृत्ति मार्ग को कर्म और निवृत्ति मार्ग को ज्ञान भी कहते है। कर्म (अविधा से मनुष्य बंधन में पड़ता है और ज्ञान से वह बंधनमुक्त हो जाता है। कर्म से मरने के बाद जन्म लेना पड़ता है और सोलह तत्वों से बने हुए शरीर की प्राप्ति होती है किन्तु ज्ञान से नित्य, अव्यक्त एवं अविनाशी परमात्मा प्राप्त होते है।

माँ दुर्गा

आज नवरात्रि का पर्व समाप्त हो रहा है। आज विजयादशमी के दिन ही देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। आज के दिन ही श्रीराम ने भी रावण का वध किया था। वैसे तो देवी दुर्गा को आदिशक्ति माँ पार्वती का ही एक रूप माना जाता है किन्तु उनका ये रूप इसीलिए विशेष है क्यूँकि देवी दुर्गा की उत्पत्ति मूलतः त्रिदेवों से हुई। इन्हे विजय की देवी माना जाता है जिनकी कृपा से देवताओं ने अत्याचारी असुर से मुक्ति पायी और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया।

दस महाविद्या

नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है जो देवी पार्वती के नौ रूपों को समर्पित है। इनके अतिरिक्त माँ पार्वती का जो मुख्य रूप है वो देवी काली का है जिन्हे महाकाली भी कहते हैं। यद्यपि देवी काली माँ पार्वती का ही एक रूप मानी जाती है किन्तु बहुत कम लोगों को पता है कि देवी काली की उत्पत्ति वास्तव में भगवान शिव की प्रथम पत्नी माँ सती द्वारा हुई थी। इसके विषय में एक बहुत ही रोचक कथा हमें पुराणों में मिलती है। प्रजापति दक्ष परमपिता ब्रह्मा के प्रथम १६ मानस पुत्रों में से एक थे जिनकी पुत्रिओं से ही इस संसार का विस्तार हुआ।

नवरात्रि पूजा विधि

पूरे वर्ष में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है। बुधवार से आरंभ होने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है । "नवरात्र" जगदंबा की नवरात्रि ९ रात्रियों से संबंधित है। ९ दिन तक माँ भगवती की के अलग रूप की पूजा होती है।

यमराज

महर्षि कश्यप एवं अदिति पुत्र सूर्यनारायण का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। उनसे उन्हें वैवस्वत मनु, यम, अश्वनीकुमार, रेवंत नमक पुत्र एवं  यमी (यमुना) नामक पुत्री की प्राप्ति हुई। यमुना ने ही सर्वप्रथम यम को धागा बांध कर रक्षा बंधन का आरम्भ किया था जिसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।

नवरात्रि

आज से भारत में नवरात्रि का आरम्भ हो गया है जो आने वाले दस दिनों तक चलेगा और विजयादशमी (दहशरा) पर समाप्त होगा। ये भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसमें देवी पार्वती (दुर्गा) के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन्हे नवदुर्गा भी कहा जाता है। इन सभी का पूजन बारी-बारी से किया जाता है और सभी का वाहन सिंह कहा जाता है।

जब हनुमान कुम्भकर्ण से शर्त हार गए

लंका में युद्ध अपनी चरम सीमा पर था। श्रीराम की सेना आगे बढ़ती ही जा रही थी और रावण के अनेकानेक महारथी रण में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। अब तक रावण भी समझ गया था कि श्रीराम की सेना से जीतना उतना सरल कार्य नहीं है जितना वो समझ रहा था। तब उसने अपने छोटे भाई कुम्भकर्ण को जगाने का निर्णय लिया जो ब्रह्मदेव के वरदान के कारण ६ महीने तक सोता रहता था। जब कुम्भकर्ण नींद से जागा तो रावण ने उसे स्थिति से अवगत कराया। इसपर कुम्भकर्ण ने रावण को उसके कार्य के लिए खरी-खोटी तो अवश्य सुनाई किन्तु अपने भाई की सहायता से पीछे नहीं हटा।

नंदी

प्राचीन काल में एक ऋषि थे "शिलाद"। उन्होंने ये निश्चय किया कि वे ब्रह्मचारी ही रहेंगे। जब उनके पित्तरों को ये पता कि शिलाद ने ब्रह्मचारी रहने का निश्चय किया है तो वे दुखी हो गए क्यूँकि जबतक शिलाद को पुत्र प्राप्ति ना हो, उनकी मुक्ति नहीं हो सकती थी। उन्होंने शिलाद मुनि के स्वप्न में ये बात उन्हें बताई। शिलाद विवाह करना नहीं चाहते थे किन्तु अपने पित्तरों के उद्धार के लिए पुत्र प्राप्ति की कामना से उन्होंने देवराज इंद्र की तपस्या की।

देवकी के आठों पुत्रों के नाम

श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी हम सभी जानते हैं। जब कंस को ये पता चला कि उसकी चचेरी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा तो उसने देवकी को मारने का निश्चय किया। वसुदेव के आग्रह पर वो उन दोनों के प्राण इस शर्त पर छोड़ने को तैयार हुआ कि वे दोनों अपने नवजात शिशु को पैदा होते ही उसके सुपुर्द कर देंगे। दोनों ने उनकी ये शर्त ये सोच कर मान ली कि जब कंस उनके नजात शिशु का मुख देखेगा तो प्रेम के कारण उन्हें मार नहीं पाएगा।

लक्ष्मी एवं अलक्ष्मी का विवाद

दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी एवं श्रीगणेश के साथ कुबेर जी की भी पूजा की जाती है। उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से बताई जाती है जिन्होंने समुद्र से निकलने के पश्चात नारायण को अपना वर चुना। प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी (दरिद्रा) जी का भी उल्लेख मिलता है।

सती देवस्मिता

सती देवस्मिता
एक वैश्य जिसका नाम धर्मगुप्त था देवनगरी में रहता था। उसकी कन्या का नाम देवस्मिता था जो बहुत ही सुशील, सच्चरित्र कन्या थी। साथ ही साथ वो भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। समय के साथ देवस्मिता के रूप और गुण की चर्चा दूर-दूर तक फ़ैल गयी और फिर धर्मगुप्त ने सही समय आने पर उसका विवाह पास ही ताम्रलिपि नगर के एक धार्मिक युवक मणिभद्र से कर दिया।

अनंत चतुर्दशी

आप सभी को अनंत चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ। ये हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो गणेश चतुर्दशी के दसवें दिन मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त जैन धर्म में भी इसका विशेष महत्त्व है। प्रतिवर्ष भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। उनके इस रूप में उनके उस अनंत स्वरुप का वर्णन है जिसे उन्होंने अर्जुन को अपने विराट स्वरुप के रूप में दिखाया था।

विजेता - धार्मिक कहानी प्रतियोगिता १ - "सत्कर्म की महिमा"

विजेता - धार्मिक कहानी प्रतियोगिता १ - "सत्कर्म की महिमा"
"उठिए प्राणनाथ इतनी गहरी निद्रा में सोना सृष्टि के पालनकर्ता के लिए उचित नहीं है। देखिए कितने भक्त आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" शेष शैया पर सोते भगवान विष्णु को चिन्तित लक्ष्मी जी बार-बार जगाने का प्रयत्न कर ही रही थी कि "बहन लक्ष्मी... नारायण... कहाँ है आप लोग?" - ये कहते हुए देवी पार्वती वहाँ उपस्थित हुई।

युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में किसने क्या काम किया?

ये प्रसंग महाभारत के राजसू यज्ञ का है। कृष्ण ने चतुराई से भीम के हांथों जरासंध का वध करवा दिया। एक वही था जो युधिष्ठिर के राजसू यज्ञ के लिए बाधा बन सकता था। उसके बाद पांडवों ने दिग्विजय किया और समस्त आर्यावर्त के राजाओं को अपने ध्वज तले आने को विवश कर दिया। इसके बारे में विस्तार पूर्वक आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

ब्रह्मा विष्णु महेश में से किनके भक्त अधिक संतुष्ट रहते हैं?

देवर्षि नारद को घुमक्कड़ ऋषि भी कहा जाता है क्यूँकि वे सदैव संसार का हाल जानने के लिए इधर-उधर घूमते रहते हैं। एक बार देवर्षि भगवान ब्रह्मा के दर्शनों को ब्रह्मलोक पहुँचे। वहाँ उन्होंने प्रभु को नमस्कार किया और उनसे कहा - "पिताश्री! पृथ्वी पर लोग बड़े सरल है। मैं अनेकानेक स्थानों पर जाता रहता हूँ किन्तु मुझे कभी कोई जटिल समस्या नहीं दिखी। आपने वास्तव में बड़े सरल सृष्टि की रचना की है।

गणेश चतुर्थी

आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ। कल से गणेश पूजा आरम्भ हो गयी है जिसे अगले १० दिनों तक पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जायेगा। वैसे तो गणेश चतुर्थी पूरे देश में मनाई जाती है किन्तु महाराष्ट्र में ये सबसे बड़ा पर्व माना जाता है और वहाँ इसकी छटा देखते ही बनती है।

वैकुण्ठ

वैकुण्ठ अथवा बैकुंठ का वास्तविक अर्थ है वो स्थान जहां कुंठा अर्थात निष्क्रियता, अकर्मण्यता, निराशा, हताशा, आलस्य और दरिद्रता ये कुछ ना हो। अर्थात वैकुण्ठ धाम ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता एवं निष्क्रियता नहीं है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव, कैलाश पर महादेव एवं बैकुंठ में भगवान विष्णु बसते हैं। श्रीकृष्ण के अवतरण के बाद बैकुंठ को गोलोक भी कहा जाता है। इस लोक में लोग अजर एवं अमर होते हैं।

एक श्लोकी महाभारत

एक श्लोकी महाभारत
आदौ देवकीदेवी गर्भजननं गोपीगृहे वर्द्धनम् ।
मायापूतन जीविताप हरणम् गोवर्धनोद्धरणम् ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हननं कुंतीतनुजावनम् ।
एतद् भागवतम् पुराणकथनम् श्रीकृष्णलीलामृतम् ।।

ओणम

ओणम
सर्वप्रथम आप सभी को ओणम की हार्दिक शुभकामनाएँ। ओणम दक्षिण भारत, विशेषकर केरल का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो दशहरे की तरह १० दिनों तक मनाया जाता है। ये त्यौहार सम्राट महाबली के स्वागत के लिए मनाया जाता है। इस पर्व का सम्बन्ध भगवान विष्णु के पाँचवे अवतार श्री वामन एवं प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि से है।

जन्माष्टमी

जन्माष्टमी
आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामाएं। आज इस पर्व को केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को आज ही के दिन भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार ग्रहण किया था। वैसे तो सभी श्रीकृष्ण के अवतरण को कंस के वध हेतु मानते हैं किन्तु उनके इस पृथ्वी पर आने का प्रोयोजन उससे बहुत बड़ा था।

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री घृष्णेश्वर महादेव की पावन कथा के साथ आज द्वादश ज्योतिर्लिंग श्रृंखला समाप्त हो रही है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से लगभग ३५ किलोमीटर दूर, एलोरा की गुफाओं से सिर्फ १ किलोमीटर की दूरी पर भगवान शिव का १२वां ज्योतिर्लिंग श्री घृष्णेश्वर महादेव स्थित है। यहाँ से आठ किलोमीटर दूर दौलताबाद के किले में भी श्री धारेश्वर शिवलिंग स्थित है। औरंगाबाद, जो मुग़ल सल्तनत के क्रूर बादशाह औरंगजेब की राजधानी थी, इस ज्योतिर्लिंग के संघर्ष की साक्षी है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित भगवान शिव के ११वें ज्योतर्लिंग श्री रामेश्वरम की महत्ता अपरम्पार है। उत्तर में जो स्थान श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का है वही दक्षिण में रामेश्वरम महादेव का। ये भारत के चार धामों में से एक माना जाता है। उनमे से तीन धाम बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी एवं पुरी जगन्नाथ जहाँ भगवान विष्णु को समर्पित हैं, रामेश्वरम में हरि एवं हर का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा और भी बड़ी इस लिए हो जाती है क्यूंकि इसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी।

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
"चिताभूमि पर स्थापित बैद्यनाथ ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग है।"
ये कथन शिवपुराण में लिखा है और इसका वर्णन मैं इसी कारण कर रहा हूँ कि महाराष्ट्र में स्थित परली बैद्यनाथ और हिमाचल में स्थित बैद्यनाथ को वहाँ के स्थानीय लोग असली ज्योतिर्लिंग मानते हैं किन्तु चिताभूमि (देवघर) में स्थिति बाबा बैद्यनाथ को ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस स्थान को चिताभूमि इसी कारण कहा जाता है क्यूंकि ये एक शक्तिपीठ भी माना जाता है जहाँ माता सती का ह्रदय गिरा था। इसी कारण इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
गुजरात के द्वारकापुरी से करीब २५ किलोमीटर दूर भगवान शिव का नवां ज्योतिर्लिंग श्री नागेश्वर महादेव स्थित है जिसके दर्शन को दूर-दूर से लोग आते हैं। इसकी एक विशेषता ये भी है कि अन्य ज्योतिर्लिंगों की तरह इस ज्योतिर्लिंग का अभिषेक साधारण जल से नहीं किया जा सकता। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक केवल गंगाजल से किया जाता है जो कि मंदिर प्रशासन की ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। इस मंदिर में महादेव की एक विशाल प्रतिमा है जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है। ये इतनी विशाल है कि मंदिर की ओर जाते हुए ये कई किलोमीटर पहले से ही दिख जाती है।

श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र के नाशिक शहर से करीब ३० किलोमीटर दूर भगवान शिव का अति पावन त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को विशेष इस कारण माना जाता है क्यूंकि यही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु एवं परमपिता ब्रह्मा भी विराजमान है। विशेषकर भगवान ब्रह्मदेव की गिने चुने अवतरणों में से एक ये भी है। इस ज्योतिर्लिंग के तीन मुख हैं जो त्रिदेवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही साथ इनके प्रतीकात्मक तीन पिंड भी हैं जिनमे से एक ब्रह्मा, एक विष्णु एवं एक त्रयंबकेश्वर रुपी भगवान महारुद्र हैं।

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
जो सृष्टि के आरम्भ से पूर्व भी था और सृष्टि के विनाश के बाद भी रहेगा वही काशी है। कहते हैं कि काशी का लोप कभी नहीं होता क्यूंकि ये नगरी स्वयं महादेव के त्रिशूल पर स्थित है। स्कन्द पुराण में शिव यमराज से कहते हैं - "हे धर्मराज! तुम प्राणियों के कर्मों के अनुसार उसकी मृत्यु का प्रावधान करो किन्तु ५ कोस में फैली इस काशी नगरी से दूर ही रहना क्यूंकि ये मुझे अत्यंत प्रिय है।" इस नगरी को स्वयं देवी गंगा का वरदान है कि जो कोई भी इस नगरी में आकर गंगास्नान कर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है वो निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति केवल काशी में अपने प्राण भी त्यागता है तो वो सीधे स्वर्गलोक को जाता है।

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र के पुणे जिले से करीब ११० किलोमीटर दूर रायचूर जिले के सह्याद्रि की मनोरम पहाड़ियों में भीमा नदी के तट पर भगवान शिव का छठा ज्योतिर्लिंग श्री भीमाशंकर महादेव स्थापित है। ये मंदिर समुद्र तल से लगभग ३२५० फ़ीट ऊंचाई पर स्थित है। इसमें स्थापित शिवलिंग आम शिवलिंग से बहुत वृहद् या मोटा है और इसी कारण इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का शिखर १८वीं सदी में नाना फरडावीस ने बनवाया था, जिसमे विशेष रूप से एक विशाल घंटा शामिल है। यही नहीं मराठा शासक छत्रपति शिवाजी ने इस मंदिर को कई तरह की सुविधाएँ दी।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ वैसे ही सुशोभित होते हैं जैसे ग्रहों के बीच में सूर्यनारायण। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय के "केदार" नामक चोटी पर बसे ये स्थान इतना मनोरम है कि यही बस जाने को जी चाहता है। किन्तु ये स्थान मनोरम होने के साथ-साथ दुर्गम भी है। इस ज्योतिर्लिंग का महत्त्व इसी लिए भी अधिक है क्यूंकि ये ज्योतिर्लिंग होने के साथ-साथ चार धामों में से भी एक है। साथ ही साथ ये पञ्च-केदार में से भी एक है। बद्रीनाथ धाम के निकट इस धाम पर आपको हरि (बद्री) और हर (केदार) का अनोखा सानिध्य देखने को मिलता है। कहा गया है:

श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में परम पावन नर्मदा नदी के बीच स्थित शिवपुरी द्वीप पर भगवान महादेव का चौथा ज्योतिर्लिगं श्री ॐकारेश्वर स्थित है। शिवद्वीप, जिसे मान्धाता द्वीप भी कहते हैं, उसकी आकृति भी आश्चर्यजनक रूप से ॐ के समान है। इस ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ नर्मदा नदी का भी बड़ा महत्त्व है। शास्त्र कहते हैं कि जो फल यमुना में १५ स्नान और गंगा में ७ स्नान करने पर मिलता है वो ॐकारेश्वर महादेव की कृपा से नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

अर्थात: आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
हैदराबाद से करीब २०० किलोमीटर दूर आंध्र के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम पहाड़ियों की प्राकृतिक सौंदर्य के बीच महादेव का द्वितीय ज्योतिर्लिंग श्रीमल्लिकार्जुन स्थित है। वैसे तो भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों का अत्यधिक महत्त्व है पर उसपर भी ये ज्योतिर्लिंग अद्वितीय एवं विशेष है। इसका कारण ये है कि यहाँ महादेव के साथ-साथ माता पार्वती भी विराजती है तथा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ शक्तिपीठों में से भी एक है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
गुजरात के सौराष्ट्र में प्रभास तीर्थ पर बना सोमनाथ का मंदिर अपनी अदभुत कलाकृति के साथ-साथ भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग होने के कारण भी प्रसिद्ध है। ये शिवलिंग अत्यंत प्राचीन है क्यूंकि इसकी स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। इसके बारे में एक कथा है कि ब्रह्मपुत्र प्रजापति दक्ष ने चंद्र को अपनी २७ कन्याओं का दान किया। आरम्भ में सभी उनके साथ सुख पूर्वक रह रही थी किन्तु चंद्रदेव का अपनी पत्नी रोहिणी पर अधिक प्रेम था। वो उससे इतना प्रेम करते थे कि उनका ध्यान अन्य पत्निओं की तरफ नहीं जाता था।

द्वादश ज्योतिर्लिंग

कई वर्षों से सोच रहा था कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर एक लेख लिखूं। इस बार श्रावण के इस पवित्र अवसर पर हरेक ज्योतिर्लिंग पर एक लेख प्रकाशित करूँगा। सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग का वर्णन तब आता है जब सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु एवं परमपिता ब्रह्मा के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है। तब उनके बीच अग्नि प्रज्वलित एक ज्योतिर्लिंग उपस्थित होता है।

भगवान शिव के १०८ नाम

भगवान शिव के १०८ नाम
कल से सावन का आरम्भ हुआ तो मैंने सोचा महादेव के १०८ पवित्र नामों से इसकी शुरुआत की जाये। भगवान शिव के इन नामों के विषय में एक कथा है कि जब नारायण क्षीरसागर में निद्रामग्न थे तो उनकी नाभि से एक कमलपुष्प पर परमपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। परमपिता सहस्त्र वर्षों तक भगवान विष्णु की चेतना में आने की प्रतीक्षा करते रहे। एक दिन उनके समक्ष सदाशिव एक अग्निमयी ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए किन्तु परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें नमस्कार नहीं किया।

स्वर्भानु (राहु एवं केतु)

स्वर्भानु का नाम शायद आपने पहली बार सुना हो किन्तु मुझे विश्वास है कि उसका दूसरा नाम आप सभी जानते होंगे। कल ही ही इस सदी का सबसे लम्बा चंद्रग्रहण समाप्त हुआ और स्वर्भानु भी उससे सम्बंधित है। इस नाम को शायद आप ना जानते हों किन्तु उसका दूसरा नाम हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्द पात्रों में से एक है और हम सभी उससे परिचित हैं। हम उसे राहु एवं केतु के नाम से जानते हैं। अधिकतर धर्मग्रंथों में केवल राहु का विवरण ही मिलता है जिससे बाद में केतु अलग होता है किन्तु उसका वास्तविक नाम स्वर्भानु था।

महादेव को चिता की भस्म क्यों प्रिय है?

हम सभी ने देखा है कि भोलेनाथ को वैसी चीजें ही पसंद हैं जो अन्य किसी देवता को पसंद नहीं। ये भी कह सकते हैं कि जो समस्त विश्व के द्वारा त्याज्य हो उसे महादेव अपने पास शरण देते हैं। चाहे वो चंद्र हो, वासुकि, हलाहल, भूत-प्रेत, राक्षस, दैत्य, दानव, पिशाच, श्मशान अथवा भस्म। देवों में देव महादेव ही ऐसे हैं जो देव-दानव सभी के द्वारा पूज्य हैं।

परिक्रमा का महत्त्व एवं नियम

परिक्रमा हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नवग्रह सूर्य की और सूर्य भी महासूर्य की परिक्रमा करते हैं। जब कार्तिकेय और गणेश में प्रतिस्पर्धा हुई थी तो कार्तिकेय ने पृथ्वी की और गणेश ने शिव-पार्वती की सात-सात परिक्रमाएँ की थी। कदाचित परिक्रमाओं का चलन उसी समय से प्रारम्भ हुआ।

महर्षि जाजलि

जाजलि पौराणिक युग के एक महान ऋषि थे। एक बार उन्होंने कठिन तपस्या करने की ठानी। वे एक वन पहुँचे जो जँगली जानवरों से भरा हुआ था। उसी वन में उन्होंने एक जगह अन्न-जल त्याग कर तपस्या प्रारम्भ की। वे तपस्या में ऐसे लीन हुए कि स्तंभित से हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी प्राण-वायु को भी नियंत्रित कर रोक लिया और अविचल भाव से खड़े तपस्या करते रहे। बहुत समय बीत गया और उनकी लम्बी जटाओं ने उनके शरीर को घेर लिया। आस पास की लताएँ भी उनके चारो ओर लिपट गयीं। उनको एक वृक्ष समझ कर कई पक्षियों ने उनके ऊपर अपना घोंसला बना लिया।

लखीसराय का अशोक धाम मंदिर

अशोक धाम मंदिर
लखीसराय बिहार का एक महत्वपूर्ण जिला है। इसी जिले में मनकठा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटा सा गाँव है चौकी। इसी गाँव में श्वेत पाषाणों से बना एक अत्यंत मनोहारी मंदिर है जिसका नाम अशोक धाम मंदिर है। यहाँ पर भगवान महादेव का एक विशाल शिवलिंग स्थापित है जिसे इंद्रदमनेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

जब दत्तात्रेय ने जीमकेतु का अभिमान भंग किया

जब दत्तात्रेय ने जीमकेतु का अभिमान भंग किया
प्राचीन काल में एक बड़े सदाचारी राजा थे जीमकेतु। उनके राज्य में सभी बिना किसी चिंता के निवास करते थे तथा पूरी प्रजा सुखी एवं समपन्न थी। जीमकेतु ने अपने सामर्थ्य से अतुल धन संचित किया और उनकी वीरता के कारण आस-पास के राज्य में उसका कोई शत्रु ना रहा। समस्त जगत में उसकी प्रशंसा होने लगी। इतना प्रचुर धन और सम्मान देखकर दुर्भाग्यवश उसके मन में अपनी अथाह संपत्ति का अहंकार पैदा हो गया। राज-काज तो वो पहले जैसा करते थे किन्तु धन के अहंकार के कारण उसके स्वाभाव में परिवर्तन आ गया।

रघुपति राघव राजा राम - वास्तविक भजन

महात्मा गांधी गीता का एक श्लोक हमेशा कहा करते थे - अहिंसा परमो धर्मः, जबकि पूर्ण श्लोक इस प्रकार है:

अहिंसा परमो धर्मः। 
धर्म हिंसा तदैव च ।।

अर्थात: अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है।

रहस्यलोक सा भागलपुर का खिरनी घाट

रहस्यलोक सा भागलपुर का खिरनी घाट
इस बार की भागलपुर यात्रा में ये आखिरी मंदिर है। खिरनी घाट भागलपुर के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है जो बड़ी खंजरपुर के पास स्थित है। बचपन में मैं पता नहीं कितनी बार वहाँ गया हूँ। हालाँकि उस समय शाम के वक्त वहाँ जाने में डर भी लगता था क्यूंकि वो इलाका बीच शहर में होते हुए भी थोड़ा अगल-थलग है और वहाँ का माहौल भी थोड़ा अजीब है। बचपन में गंगा कई बार सीढ़ियों को पर कर मंदिर परिसर में चली आती थी किन्तु अब भागलपुर के अन्य घाटों की तरह यहाँ भी गंगा सूख गयी है। हालाँकि माहौल आज भी यहाँ का वैसा ही शांत है।

२१० वर्ष प्राचीन भागलपुर का दुग्धेश्वरनाथ महादेव

२१० वर्ष प्राचीन भागलपुर का दुग्धेश्वरनाथ महादेव
आप भागलपुर के किसी भी व्यक्ति से अगर ये पूछे कि इस शहर का सबसे व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका कौन सा है तो वो वेराइटी चौक का नाम लेगा। भागलपुर का मुख्य बाजार खुद ही बेहद भीड़ वाला इलाका है और इस बाजार के बीचोंबीच स्थित इस चौक पर तो पैदल चलना भी मुश्किल है। इसी चौंक पर एक शिव मंदिर है जिसपर शायद ही वहाँ से गुजरने वाला कोई व्यक्ति सर ना झुकाता हो।

वेदों में प्रतिदिन पृथ्वी से क्षमा माँगने को क्यों कहा गया है?

वेदों में प्रतिदिन पृथ्वी से क्षमा माँगने को क्यों कहा गया है?
बहुत काल पहले विद्वानों की एक सभा में शास्त्रार्थ चल रहा था। उसी समय एक प्रश्न उठा कि सृष्टि में वो कौन है जिसकी सहनशीलता अपार है? तब कई विद्वानों ने अलग-अलग तर्क रखे। एक ने कहा कि जल सबसे सहनशील है क्यूंकि उसपर चाहे कितने प्रहार करो वो अंततः शांत हो जाता है। तब दूसरे ने वायु को सहनशील बताया जो जीव मात्र को जीने की शक्ति प्रदान करता है। तीसरे की दृष्टि में अग्नि सर्वाधिक सहनशील थी क्यूंकि वो संसार की समस्त अशुद्धिओं को नष्ट कर देती है। किसी ने आकाश को सहनशील बताया कि कितने आपदाओं से वो हमारी रक्षा करती है और जीवन के लिए जल भी प्रदान करती है।

५१ वर्ष पुराना भागलपुर का "जय हनुमान मंदिर"

५१ वर्ष पुराना भागलपुर का "जय हनुमान मंदिर"
जब आप भागलपुर (बिहार) के खंजरपुर नामक स्थान पहुँचते हैं तो आपको एस.बी.आई. क्षेत्रीय कार्यालय के बाद और एस.एम. कॉलेज से पहले, बिलकुल चौराहे पर एक त्रिकोणीय भूमि पर स्थित एक छोटा किन्तु पुराना और महत्वपूर्ण हनुमान मंदिर दिखता है। इस मंदिर का नाम ही "जय हनुमान मंदिर" है। इस मंदिर की स्थापना आज से ५१ वर्ष पूर्व १९६७ में की गयी थी। इससे पहले उस खाली स्थान पर शहर के रिक्शेवालों का जमावड़ा रहता था जो मंदिर बनने के बाद उसी जगह थोड़ा बाईं ओर चला गया है। पहले वहाँ केवल हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गयी लेकिन बाद में वाहनों की अधिक आवाजाही को देखते हुए एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया।

कालनेमि - जिसने सदैव श्रीहरि से प्रतिशोध लिया

सतयुग में दो महाशक्तिशाली दैत्य हुए - हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष। ये इतने शक्तिशाली थे कि इनका वध करने को स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा। हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी को सागर में डुबो दिया। तब नारायण ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया। उसके दो पुत्र थे - अंधक एवं कालनेमि जो उसके ही समान शक्तिशली थे।

अष्ट मातृका

मातृका हिन्दू धर्म में माताओं का प्रसिद्ध समूह है जिनकी उत्पत्ति आदिशक्ति माँ पार्वती से हुई है। सप्तमातृकाओं में सात देविओं की गिनती की जाती है जिनकी पूजा वृहद् रूप से भारत, विशेषकर दक्षिण में की जाती है। नेपाल में विशेषकर अष्टमातृकाओं की पूजा की जाती है जो आठ देवियों का समूह है। इनमे से हर देवी किसी न किसी देवता/देवी की शक्ति को प्रदर्शित करती है। इनमे से पहली छः मातृका तो पूरे विश्व में एक मत से मान्य हैं किन्तु अंतिम दो के बारे में अलग-अलग जगह कुछ शंशय एवं विरोध है। यहाँ उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है।

जब कर्ण ने स्वर्ण पर्वत का दान दिया

वैसे तो विश्व में अनेकानेक दानवीर हुए हैं किन्तु कर्ण जैसा शायद ही कोई हो। इस लेख में हम दानवीर कर्ण से जुडी एक और कथा के बारे जानेंगे। एक बार कृष्ण पांडवों के साथ भ्रमण पर निकले। चलते-चलते वे चम्पानगरी की सीमा पर पहुँच गए जो कर्ण के अंगदेश की राजधानी थी। तब श्रीकृष्ण ने कहा "आज का दिन वास्तव में शुभ है कि हम महादानी कर्ण के राज्य के समीप आ पहुंचे हैं।" उनके ऐसा कहने पर भीम ने कहा - "हे माधव! कर्ण दानी है इसमें कोई संदेह नहीं किन्तु आप हर बार उसे महादानी क्यों कहते फिरते हैं? वो ऐसा क्या दान कर सकता है जो सम्राट युधिष्ठिर नहीं कर सकते?" 

महाभारत के योद्धाओं के लिए भोजन कौन बनाता था?

महाभारत एक सागर के समान है और इसके अंदर कथा रुपी कितने मोती छिपे हैं ये शायद कोई नहीं जनता। आज मैं आपको जो कथा सुनाने जा रहा हूँ वो कदाचित आपने कभी सुनी नहीं होगी पर ये कथा दक्षिण, विशेषकर तमिलनाडु में बड़ी प्रचलित है। महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध कह सकते हैं क्यूंकि शायद ही कोई ऐसा राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।

कालिया नाग

श्रीकृष्ण और कालिया नाग के विषय में तो हम सभी जानते हैं पर कालिया नाग के वंश के विषय में हमें अधिक जानकारी नहीं है। कालिया नाग की कथा हमें भागवत पुराण, हरिवंश पुराण और महाभारत में मिलती है। आज इस लेख में हम कालिया नाग के विषय में ही जानेंगे।

जब हनुमान ने पूरे पर्वत शिखर को उखाड़ दिया

लंका का युद्ध चल रहा था। लंकापति रावण के अधिकांश महारथी मारे जा चुके थे। अब लंका केवल रावण और उसके पुत्र मेघनाद के भरोसे थी। मेघनाद एक बार श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से बाँध चुका था किन्तु गरुड़ ने दोनों को नागपाश से मुक्त कर दिया। जब रावण को ये सूचना मिली तो उसने एक बार फिर मेघनाद को युद्ध के लिए भेजा। मेघनाद ने घोर युद्ध किया। श्रीराम की ओर से लक्ष्मण उसका प्रतिकार करने आये। तो महारथियों का युद्ध देखने के लिए अन्य योद्धाओं ने अपने हाथ रोक लिए। दोनों के बीच बहुत देर तक युद्ध चलता रहा किन्तु कोई फैसला नहीं हो पाया।

श्रीकृष्ण के अनुसार कलियुग के लक्षण

पांडवों को जुए में छल से हराया जा चुका था और शर्त के अनुसार उन्हें वन में जाना था। जाने से पहले श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। तब सहदेव ने उनसे पूछा - "हे कृष्ण! हमने तो आज तक कोई पाप नहीं किया फिर हमें ये कष्ट क्यों उठाने पड़ रहे हैं?" तब कृष्ण ने कहा - "प्रिय सहदेव! द्वापरयुग अपने अंतिम चरण पर है। ये सब जो हो रहा है वो आने वाले कलियुग का प्रभाव है।"

हनुमदीश्वर शिवलिंग - जहाँ महादेव ने हनुमान का अभिमान भंग किया

रामायण और महाभारत में ऐसी कई कहानियाँ हैं जिसमे महाबली हनुमान ने दूसरों का अभिमान भंग किया। विशेषकर महाभारत में श्रीकृष्ण ने हनुमान जी के द्वारा ही अर्जुन, बलराम, भीम, सुदर्शन चक्र, गरुड़ एवं सत्यभामा के अभिमान को भंग करवाया था।

क्या आप माता सीता के भाई को जानते हैं?

आज मंगलवार है और इस लेख को लिखने के लिए ये दिन सर्वथा उचित है। आज मैं आपको रामायण के उस प्रसंग के बारे में बताऊंगा जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। हममे से किसी ने देवी सीता के भाई के बारे में नहीं सुना है। उनके किसी भाई का उल्लेख रामायण में कहीं आता भी नहीं है। किन्तु रामायण में एक ऐसा भी प्रसंग है जहाँ किसी ने कुछ समय के लिए माता सीता के भाई की भूमिका निभाई थी।

भगवान शिव और जालंधर का युद्ध

बहुत काल पहले एक बार भगवान शिव की देवी पार्वती के साथ रमण करने की इच्छा हुई। उस समय माता पार्वती अनुष्ठान पर बैठी थी इस कारण उन्होंने महादेव से क्षमा मांगते हुए अपनी असमर्थता जाहिर की। महादेव ने उनका मान रखा और अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया। महादेव के तेज को समुद्र संभाल नहीं पाया और तब उससे परम तेजस्वी दैत्य जालंधर की उत्पत्ति हुई।

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा
आप सबों को गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें। कुछ दिनों पहले मैंने "गंगा सप्तमी" पर एक लेख लिखा था। कई लोग इन दो पर्वों को एक ही समझ लेते हैं किन्तु ये सही नहीं है। गंगा सप्तमी या गंगा जयंती के दिन महादेव ने देवी गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था किन्तु आज, गंगा दशहरा के दिन देवी गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी पर पहुँची थी। अर्थात आज का दिन देवी गंगा का पृथ्वी पर अवतार लेने का दिन है। अतः ये दो पर्व भी अलग है और इनका महत्त्व भी।

अपरा एकादशी

अपरा एकादशी
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, भद्रकाली तथा अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु और उनके पाँचवें अवतार भगवान वामन की पूजा की जाती है।

दान के नियम

दान के नियम
हिन्दू धर्म में दान की बड़ी महत्ता बताई गयी है। शास्त्रों में दान को मोक्ष की प्राप्ति का एक साधन भी कहा गया है। ये भी कहा गया है कि दान गृहस्थ आश्रम का आधार है। जिस घर में प्रतिदिन सुपात्र को दान दिया जाता है वही सफल गृहस्थ माना जाता है। आजकल केवल किसी को कुछ दे देना ही दान कहलाता है किन्तु प्राचीन समय में इसके कुछ विशेष नियम थे इनमे से १० महत्वपूर्ण कहे गए हैं। आइये इन महत्वपूर्ण नियम के बारे में कुछ जानते हैं:

पांडवों की सभी पत्नी और पुत्रों के नाम

सभी जानते हैं कि द्रौपदी पाँचों पांडवों की पत्नी थी किन्तु उसके अतिरिक्त भी सभी पांडवों ने अन्य विवाह भी किये। हालाँकि द्रौपदी को पांडवों की पटरानी या ज्येष्ठ रानी कहा जाता है किन्तु वो कुरुकुल की पहली पुत्रवधु नहीं थी। पांडवों में सबसे पहले भीम का विवाह हिडिम्बा नमक राक्षसी से हुआ किन्तु राक्षसी होने तथा कुंती को दिए वचन के कारण भीम ने कभी उसे अपने साथ नहीं रखा और ना ही उसकी गणना कभी कुरुकुल की कुलवधू में हुई। द्रौपदी ने पाँचों पांडवों से विवाह किया और वे बारी-बारी एक वर्ष के लिए एक पांडव की पत्नी बनकर रहती थी।

वट सावित्री

वट सावित्री
आप सबों को वट सावित्री की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज का दिन विवाहिता स्त्री के लिए बड़े महत्त्व का दिन होता है। वट सावित्री का व्रत भारत के प्रमुख व्रतों में से एक है और ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने पर ईश्वर स्त्रिओं के सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देते हैं और उनके पति और पुत्र पर किसी प्रकार की आपदा नहीं आती। ये व्रत पौराणिक काल की सतिओं में श्रेष्ठ "सावित्री" से जुड़ा है जिसने अपने पति सत्यवान को स्वयं मृत्यु के मुख से बचा लिया था।

कृष्ण और कर्ण का संवाद

ये कथा तब की है जब कृष्ण शांतिदूत बन कर हस्तिनापुर गए थे। जब उनका प्रयास असफल हो गया तो युद्ध भी अवश्यम्भावी हो गया। उस स्थिति में ये आवश्यक था कि वे पाण्डवों की शक्ति जितनी बढ़ा सकते थे उतनी बढ़ाएं। इसी कारण उन्होंने वापस लौटते समय कर्ण से मिलने का निश्चय किया। जब कर्ण ने देखा कि श्रीकृष्ण स्वयं उनके घर आये हैं तो उन्होंने उनका स्वागत सत्कार किया। फिर कृष्ण ने कर्ण को अपने रथ पर बिठाया और उन्हें गंगा तट पर ले गए। सात्यिकी को रथ पर ही छोड़ दोनों एकांत में वार्तालाप हेतु चले गए।

अष्टांग योग

अष्टांग योग
पौराणिक काल में महर्षि पतंजलि ने योग को चित्तवृत्तिनिरोधः के रूप में परिभाषित किया है तथा उन्होंने "योगसूत्र" नाम से योगसूत्रों का एक संकलन किया है, जिसमें उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाले योग का एक मार्ग विस्तार से बताया है।

हिन्दू धर्म क्या है?

आज हम सभी लोग धर्म, उपनिषद, वेद, न्याय और अन्य भी कई विषयों पर बातें करते रहते हैं। परंतु हिंदू धर्म और सनातन धर्म कहां से आरंभ होता है और कहां तक जाता है इसके बारे में संपूर्ण जानकारी इस लेख में प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। हर चीज के बारे में गहनता से बताया गया है ताकि कोई भी पहलू अछूता न रहे। लेकिन आपको यह जानकारी होना चाहिए कि पुराण, रामायण और महाभारत हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं है, धर्मग्रंथ तो वेद ही है।

ब्रह्मा

ब्रह्मा हिन्दू धर्म के त्रिदेवों में से एक हैं। ये सृष्टिकर्ता हैं जो पालनहार नारायण एवं संहारक शिव के साथ त्रिमूर्ति को पूर्ण करते हैं। इन्हे हिरण्यगर्भ कहा जाता है क्यूँकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्म-अण्ड (ब्रम्हांड) से मानी जाती है। समस्त सृष्टि का सृजन करने के लिए इन्हे परमपिता भी कहा जाता है। हालाँकि ये त्रिदेवों में एक हैं लेकिन आधुनिक युग में इन्हे अन्य दो देवों विष्णु एवं शिव के जितना महत्त्व और सम्मान नहीं दिया जाता जो कि बिलकुल भी सही नहीं है। रही सही कसर आज कल के फालतू धार्मिक टीवी शोज ने पूरी कर दी है।

बुद्ध पूर्णिमा

बुद्ध पूर्णिमा
आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज सारा विश्व भगवान गौतम बुद्ध का २५८० वाँ जन्मदिवस मना रहा है। आज के ही दिन पूर्णिमा को ५६३ ईस्वी पूर्व लुम्बिनी (आज का नेपाल) में ये महाराजा शुद्धोधन की पत्नी महामाया के गर्भ से जन्में। आगे चल कर उन्होंने स्वयं का धर्म चलाया किन्तु आज बौद्ध धर्म के अनुयायी और कई हिन्दू धर्म के लोग भी उन्हें भगवान विष्णु के दशावतार में से एक मानते हैं। हालाँकि ये सत्य नहीं है।

नृसिंह अवतार

आप सभी को नृसिँह जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान नृसिंह का स्थान दशावतार में चौथा माना जाता है। आज के दिन ही अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकशिपु के संहार के लिए भगवान विष्णु ने सतयुग में आधे मनुष्य और आधे सिंह के रूप में अवतार लिया था। महर्षि कश्यप और दक्ष की ज्येष्ठ पुत्री दिति के पुत्र के रूप में हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष नामक दो अत्यंत शक्तिशाली दैत्यों का जन्म हुआ। यहीं से दैत्यकुल का आरम्भ हुआ।

मूलकासुर - देवी सीता की अनसुनी वीरगाथा

कुम्भकर्ण के बारे में सब ने सुना है और वो रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक है। कुम्भकर्ण के दो पुत्रों कुम्भ और निकुम्भ के विषय में रामायण में विस्तार से बताया गया है और उसके एक और पुत्र भीम का वर्णन भी शिव पुराण में आता है किन्तु उसका पुत्र मूलकासुर के बारे में कही पढ़ने को नहीं मिलता। इसका कारण ये है कि कुम्भकर्ण ने उसे बचपन में ही त्याग दिया था।