क्यों हनुमान ने लिया पंचमुखी अवतार?

सबसे पहले आप सभी को हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ। ११वें रुद्रावतार हनुमान के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है किन्तु उनके पंचमुखी रूप के बारे में लोगों को उतनी जानकारी नहीं है। आप सबने हनुमान के पंचमुखी रूप के कई जगह दर्शन किये होंगे किन्तु क्या आप जानते हैं कि आखिर क्या कारण था कि उन्हें ये रूप धरना पड़ा? अगर नहीं, तो आइये जानते हैं।

उर्मिला

उर्मिला कदाचित रामायण की सर्वाधिक उपेक्षित पात्र है। जब भी रामायण की बात आती है तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम याद आते हैं जो अपने पिता के वचन के लिए १४ वर्षों के वन को चले गए थे। हमें देवी सीता याद आती हैं जो अपने पति के पीछे-पीछे वन की और चल दी। एक आदर्श भाई महापराक्रमी लक्ष्मण याद आते हैं जिन्होंने श्रीराम के लिए अपने जीवन का हर सुख त्याग दिया। भ्रातृ प्रेम की मिसाल भरत याद आते हैं जिन्होंने अयोध्या में एक वनवासी सा जीवन बिताया। महाज्ञानी और विश्वविजेता रावण याद आता है जो पंडित होते हुए भी राक्षस था। महावीर हनुमान, कुम्भकर्ण और मेघनाद याद आते हैं।

क्यों मेघनाद का वध केवल लक्षमण ही कर सकते थे?

लंका के युद्ध के कुछ वर्षों बाद एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए। श्रीराम ने उनकी अभ्यर्थना की और आसन दिया। राजसभा में श्रीराम अपने भ्राता भरत, शत्रुघ्न और देवी सीता के साथ उपस्थित थे। बात करते-करते लंका युद्ध का प्रसंग आया। भरत ने बताया कि उनके भ्राता श्रीराम ने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

जब भीष्म ने पांडवों के वध की प्रतिज्ञा कर ली

महाभारत का युद्ध अपने चरम पर था। कौरवों की ओर से ११ और पांडवों की ओर से ७ अक्षौहिणी सेना आमने सामने थी। पांडवों के सेनापति जहाँ धृष्ट्द्युम्न थे वही कौरवों की सेना का सञ्चालन स्वयं गंगापुत्र भीष्म कर रहे थे। भीष्म कभी भी ये युद्ध नहीं चाहते थे और विवश होकर उन्हें कौरवों की ओर से युद्ध करना पड़ रहा था।

राम नवमी

आप सभी को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें। राम भारत की आत्मा में बसते हैं। उनपर इतना कुछ लिखा जा चुका है कि हम उससे अधिक क्या लिख सकते हैं? संक्षेप में कुछ कहने की कोशिश करते हैं। वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस एवं पुराणों के अनुसार आज के दिन ही अयोध्या में प्रभु श्रीराम ने भगवान विष्णु के सातवें अवतार रूप में इक्षवाकु कुल में राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में रानी कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया। अगस्त्य संहिता के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन, पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न में जब सूर्य एवं पंचग्रह अपनी शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तब उस अतिशुभ लग्न में श्रीराम का जन्म हुआ।

जब हनुमान ने अर्जुन का अभिमान भंग किया

महाभारत का युद्ध आरम्भ होने वाला था। दोनों ओर की सेनाएँ युद्ध की तैयारी में जोर शोर से जुटी थीं। श्रीकृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने देवराज इंद्र से सारे दिव्यास्त्र प्राप्त कर लिए थे। उससे भी ऊपर उन्हें भगवान रूद्र से पाशुपतास्त्र भी मिल चुका था। इतने दिव्यास्त्र प्राप्त करने के कारण अर्जुन में थोड़ा अभिमान आ गया कि अब तो संसार का कोई भी योद्धा उन्हें परास्त नहीं कर सकता।

गणगौर तीज

गणगौर तीज
गुड़ी पाड़वा के अगले दिन गणगौर तीज का पर्व मनाया जाता है जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बहुत प्रसिद्द है। इस दिन कुंवारी कन्याएँ मनचाहे वर के लिए और विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्य की कामना से गुड़ी पड़वा के अगले दिन किसी नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौर को जल पिलाती हैं। दूसरे दिन शाम को बिदा के सुंदर व मार्मिक लोकगीतों के साथ उनका विसर्जन होता है। इसकी पौराणिक कथा भी बड़ी चर्चित है।

जब चौसर ने महादेव का भी अनिष्ट किया

बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि चौसर का निर्माण भी भगवान शिव ने ही किया था। एक दिन महादेव ने देवी पार्वती से कहा कि आज मैंने एक नए खेल का निर्माण किया है। उनके अनुरोध पर दोनों चौसर का खेल खेलने लगे। चूँकि चौसर का निर्माण महादेव ने किया था, वे जीतते जा रहे थे। अंत में माता पार्वती ने कहा कि ये उचित नहीं है। अगर ये एक खेल है तो उसके नियम भी होने चाहिए। उनके ऐसा कहने पर महादेव ने चौसर के नियम बनाये और एक बार फिर चौसर का खेल आरम्भ हो गया।

अष्ट भैरव

भैरव या काल भैरव भगवान शिव के रूद्र-रूप है तथा उनके गणो में से एक है। उन्हें भगवान रूद्र के समकक्ष ही माना गया है तथा वे माता भवानी के अनुचार भी है। भैरव देवता को रात्रि का देवता भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथो में भगवान शिव के दो रूपों का वर्णन मिलता है जिसमे भगवान शिव का एक स्वरूप जगत के रक्षक व् भक्तो को अभ्य देने वाले विश्वेशर के रूप में जाना जाता है तो दूसरा स्वरूप ठीक उसके विपरीत है।

ऋषि पुरुष-मृगा

पांडवों ने श्री कृष्ण की मदद से कौरवों पर विजय प्राप्त कर ली थी। अब हस्तिनापुर का राज्य पांडवों के अधीन था। धर्मराज युधिष्ठर राजा बने थे। न्याय और धर्म की प्रतिमूर्ति महाराज युधिष्ठर के राज्य में सब कुशल मंगल था। समस्त हस्तिनापुर आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रहा था। कहीं कोई किसी प्रकार का दुःख ना था।

एक प्रश्न जिसका उत्तर देने में ८ पीढ़ियाँ असफल रही

पौराणिक काल में एक विद्वान ऋषि कक्षीवान हुए जो हर प्रकार के शास्त्र और वेद में निपुर्ण थे। एक बार वे ऋषि प्रियमेध से मिलने गए जो उनके सामान ही विद्वान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। दोनों सहपाठी भी थे और जब भी वे दोनों मिलते तो दोनों के बीच एक लम्बा शास्त्रात होता था जिसमे कभी कक्षीवान तो कभी प्रियमेघ विजय होते थे।

जब भगवान शिव ने शुक्राचार्य को निगल लिया

शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र थे तथा बृहस्पति महर्षि अंगिरस के। जब दोनों युवा हुए तो साथ ही सहपाठी के रूप में बृहस्पति के पिता महर्षि अंगिरस के पास शिक्षा प्राप्त करने लगे। थोड़ा समय बीतने पर शुक्राचार्य को लगा कि महर्षि अंगिरस अपने पुत्र बृहस्पति पर अधिक कृपालु हैं। इसी कारण उन्होंने महर्षि अंगिरस का आश्रम छोड़ दिया और महर्षि गौतम को अपना नया गुरु बनाया। गौतम ऋषि ने शुक्राचार्य को बताया कि इस संसार की समस्त विद्या और उससे भी श्रेष्ठ मृतसंजीवनी का ज्ञान तुम्हे केवल महादेव से प्राप्त हो सकता है।

जब शिव सेवक बने - उगना महादेव की कथा

बिहार पौराणिक कथाओं का एक केंद्र रहा है। आप जब बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर कस्बे में प्रवेश करते हैं तो वहाँ आपको दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम सुनने को मिलते हैं। पहला है मैथली भाषा के महान कवि विद्यापति और दूसरा है महादेव का उगना शिवलिंग मंदिर। ये दोनों एक दूसरे से सम्बंधित हैं जिनकी कथा मधुबनी की लोक कथाओं में हमें मिलती है। लोक कथाओं के अनुसार विद्यापति भगवान् शिव के अनन्य भक्त थे और वे प्रतिदिन प्रातः और सायं भगवान शिव का भजन किया करते थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। अपने पति का मन इस प्रकार वैराग्य की ओर झुका देख वे उतनी प्रसन्न नहीं थी।

पुराणों में वर्णित विभिन्न विष

वैसे तो विष या जहर एक आम शब्द है किन्तु हिन्दू पुराणों में कई प्रकार के विष का वर्णन है। आम तौर पर हमने कदाचित केवल कालकूट एवं हलाहल के बारे में सुना है। कई लोगों को ये भी लगता है कि कालकूट और हलाहल एक ही हैं लेकिन ये भी सत्य नहीं है। पुराणों में ९ प्रकार के विष का वर्णन किया गया है जिन्हे "नवविष" कहा जाता है। इनकी तीव्रता अलग अलग होती है। समुन्द्र मंथन के समय सर्व प्रथम सर्वाधिक जहरीला हलाहल ही निकला था जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। यहाँ पर उन विषों को उनकी तीव्रता के आधार पर श्रेणीबद्ध किया गया है। ये विष हैं:

ऐरावत

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ऐरावत का वर्णन एक श्वेत गज के रूप में है जो देवराज इंद्र का वाहन है। इसकी भार्या गजा का नाम अभ्रमु कहा गया है। ऐरावत के दस दन्त है जो दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और पाँच सूंड हैं जो पाँच प्रमुख देवताओं (पञ्चदेवता) का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहीं-कहीं उसके चार दन्त होने का भी उल्लेख है जो चार प्रमुख दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

होलिका दहन

सबसे पहले आप सभी को होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं। होलिका दहन सामान्यतः होली से एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व है जिसे हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे छोटी होली या धुड़खेली भी कहते हैं। आज के दिन "गोधूलि" स्नान या होली का बड़ा महत्त्व है।