ऋषि पुरुष-मृगा

पांडवों ने श्री कृष्ण की मदद से कौरवों पर विजय प्राप्त कर ली थी। अब हस्तिनापुर का राज्य पांडवों के अधीन था। धर्मराज युधिष्ठर राजा बने थे। न्याय और धर्म की प्रतिमूर्ति महाराज युधिष्ठर के राज्य में सब कुशल मंगल था। समस्त हस्तिनापुर आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रहा था। कहीं कोई किसी प्रकार का दुःख ना था।

एक दिन नारद मुनि राजा युधिष्ठर के पास आये और कहा कि महाराज आप यहाँ वैभवशाली जीवन जी रहे हैं लेकिन वहां स्वर्ग में आपके पिता बड़े ही दुखी हैं। युधिष्ठर ने नारद मुनि से पिता के दुखी होने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पाण्डु का सपना था कि वो राज्य में एक राजसू यज्ञ करायें लेकिन वो अपने जीवन काल में नहीं करा पाए बस इसी बात से दुःखी हैं। तब युधिष्ठर ने अपने पिता की शांति के लिए राजसू यज्ञ करने का निर्णय लिया।

इस यज्ञ में वो ऋषि पुरुष-मृगा को बुलाना चाहते थे जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उनका ऊपर का हिस्सा पुरुष का था और नीचे का हिस्सा मृग (हिरण) और इसी कारण उनका नाम पुरुष-मृगा था। युधिष्ठर ने भीम को आज्ञा दी कि वह ऋषि पुरुष मृगा को ढूंढ कर लाएं ताकि यज्ञ संपन्न हो सके। युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर भीम ऋषि पुरुष मृगा को ढूंढने चल दिए। एक जंगल से गुजरते हुए भीम को पवन पुत्र हनुमान दिखाई दिए। भीम ने अपने बड़े भाई को प्रणाम किया। हनुमान के पूछने पर कि वो कहाँ जा रहें हैं, भीम ने बताया कि वे ऋषि पुरुष-मृगा को ढूंढने जा रहे हैं ताकि राजसू यज्ञ पूर्ण हो सके। हनुमान जी ने कुछ सोच कर भीम को अपने शरीर के तीन बाल दिए और कहा ये तुम्हे विपत्ति के समय काम आएंगे।

उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद भीम ऋषि को खोजने आगे चल दिए। काफी दूर भटकने के बाद भीम ने आखिर ऋषि पुरुष-मृगा को ढूंढ ही लिया वो उस समय भगवान शिव का ध्यान लगाए बैठे थे। भीम ने जब उन्हें राजसूर्य यज्ञ में चलने की बात कही तो वो तैयार हो गए लेकिन उन्होंने भीम में सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि भीम को हस्तिनापुर उनसे पहले पहुँचना था। अगर वे भीम से पहले हस्तिनापुर पहुँच गए तो वे भीम को खा जायेंगे। 

भीम सोच में पड़ गए। पुरुष-मृगा का निचला हिस्सा हिरण का था इसी कारण वे बहुत तेज दौड़ते थे। किन्तु युधिष्ठिर की आज्ञा का पालन तो करना ही था। इसके अलावा भीम भी पवनपुत्र थे और उनकी गति भी अत्यंत तीव्र थी। भीम ने साहस करके उनकी यह शर्त स्वीकार कर ली और तुरंत तेजी से हस्तिनापुर की ओर दौड़ना शुरू कर दिया। भीम अपने पूरे वेग से दौड़ रहे थे किन्तु जब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो पाया ऋषि पुरुष-मृगा उनके बिलकुल नजदीक आ चुके हैं। भीम को लगा कि अब उनके प्राण नहीं बचेंगे। 

तभी उन्हें अचानक हनुमान जी द्वारा दिए हुए तीन बालों की याद आयी। वे समझ गए कि इसी विपत्ति से बचने के लिए उनके बड़े भाई ने उन्हें ये तीन बाल दिए थे। भीम ने एक बाल जमीन पर फेंक दिया। तुरंत उस बाल की शक्ति से बहुत सारे शिवलिंग पृथ्वी पर पर उत्पन्न हो गए। ऋषि पुरुष-मृगा भगवान शिव के भक्त थे इसलिए वो हर शिवलिंग की पूजा करते हुए आगे बढ़ने लगे जिससे उनकी चाल धीमी पड़ गयी। सभी शिवलिंग की पूजा समाप्त कर वे फिर तेजी से दौड़ते हुए भीम के निकट आ पहुँचे। अब भीम ने फिर दूसरा बाल फेंका तो फिर से बहुत सारे शिवलिंग उत्पन्न हो गए।

इसी तरह भीम ने ऋषि-पुरुष मृगा को पीछे रखने के लिए एक एक कर तीनों बाल फेंक दिए और राजभवन के बिल्कुल निकट पहुँच गए। लेकिन जैसे ही भीम महल में घुसने ही वाले थे तभी पुरुष मृगा ने उनके पाँव पीछे से खींच लिए और भीम के पाँव महल से बाहर ही रह गए। अब शर्त के अनुसार वे भीम को खाने के लिए जैसे ही आगे बढे तुरंत वहाँ राजा युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण आ गए और उनसे ऐसा ना करने की विनती की। 

तब ऋषि पुरुष-मृगा ने युधिष्ठर को शर्त की बात बताई और कहा कि अब आप ही न्याय करें। युधिष्ठर ने अपना फैसला सुनाया कि जब आपने भीम को पकड़ा तो उसके पाँव ही महल से बाहर रहे थे इसलिए आप भीम के सिर्फ पैर खा सकते हैं। युधिष्ठर के इस न्याय से ऋषि बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने भीम को जीवन दान दिया। फिर मंगलपूर्वक राजसू यज्ञ संपन्न हुआ और ऋषि पुरुष-मृगा सबको आशीर्वाद देकर फिर से अपने आश्रम को लौट गए।

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