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महाराज सगर

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राजा सगर भगवान श्रीराम के पूर्वज थे। इन्ही के पुत्रों की गलती के कारण माता गंगा को पृथ्वी पर आना पड़ा था। इनकी कथा हमें रामायण के बालकाण्ड के सर्ग ३८ में मिलती है जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति की कथा सुना रहे होते हैं।

गंगा

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हिन्दू धर्म में गंगाजी का क्या महत्त्व है इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर ग्रन्थ में माता गंगा के विषय में कोई ना कोई वर्णन मिलता है। गंगा जी के बारे में सबसे पहला वर्णन हमें ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के १०वें मंडल के ७५वें सूक्त, जिसे नदीस्तुति सूक्त कहा जाता है, उसमें कई नदियों का वर्णन है और यहीं हमें गंगा का भी वर्णन मिलता है। इसी सूक्त के ५वें श्लोक में हमें गंगा और उनके साथ यहाँ ९ और नदियों का वर्णन है।

जब भृगु ऋषि के श्राप के कारण अग्निदेव रुष्ट हो गए

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ब्रह्माजी के पुत्र महर्षि भृगु के विषय में तो हम सब जानते ही हैं। उनकी पत्नी का नाम था पुलोमा जो अद्वितीय सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक बार महर्षि भृगु स्नान के लिए आश्रम से बाहर गए हुए थे। उस समय पुलोमा गर्भवती थी। उसी समय एक राक्षस जिसका नाम भी संयोग से पुलोमा ही था, वो आश्रम पर आया। भृगु ऋषि की पत्नी को देखते ही वो सुध-बुध खो बैठा। उसने निश्चय किया कि वो पुलोमा का हरण कर लेगा।

लंकिनी

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रामायण के सुन्दर कांड में हनुमान जी द्वारा लंका में प्रवेश करने का प्रसंग है। इसी प्रसंग में लंका पुरी का विस्तृत वर्णन दिया गया है। रामायण के अनुसार लंका पुरी वास्तव में एक राक्षसी ही थी जो स्वयं और लंकेश की रक्षा करती थी। आम बोल-चाल की भाषा में उसे लंकिनी के नाम से जाना जाता है। लंकिनी का वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड के तीसरे सर्ग में मिलता है।

मूल व्यास महाभारत की संरचना

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अधिकतर लोगों को ये पता है कि महाभारत में कुल १८ पर्व और १००००० श्लोक हैं। जनमानस में भी यही जानकारी उपलब्ध है किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में महर्षि वेदव्यास ने बहुत ही वृहद् महाभारत की रचना की थी। इतना वृहद् जिसकी हम लोग कदाचित कल्पना भी नहीं कर सकते। इसका वर्णन हमें महाभारत के प्रथम और द्वितीय अध्याय में मिलता है।

सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माण्ड से किन-किनकी उत्पत्ति हुई?

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जब हम व्यास महाभारत पढ़ते हैं तो उसके पहले ही पर्व, आदिपर्व के अनुक्रमाणिका पर्व के श्लोक २१ में हमें ब्रह्माण्ड की उत्पति और फिर उस ब्रह्माण्ड से जिन-जिन लोगों की उत्पत्ति हुई, उसका वर्णन मिलता है। इससे हमें सृष्टि के आरम्भ का एक सार मिल जाता है।

वेद, संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद क्या हैं?

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वेदों के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। इसकी मूल संरचना के विषय में भी हम जानते हैं कि वेदों को मूलतः ४ भागों में विभक्त किया गया है - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद । किन्तु इसके अतिरिक्त भी हमें कई और चीजों के बारे में सुनने को मिलता है जैसे संहिता, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ, उपनिषद इत्यादि जिसे अधिकतर लोग ठीक से समझ नहीं पाते हैं। ये हिन्दू धर्म के सबसे जटिल चीजों में से एक हैं।

विश्वकर्मा

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कदाचित ही संसार में कोई ऐसा होगा जो देव विश्वकर्मा के नाम से परिचित नहीं होगा। यदि रचना की बात की जाये तो परमपिता ब्रह्मा के बाद यदि कोई नाम है तो वो विश्वकर्मा ही हैं। अन्य देवताओं से उलट, विश्वकर्मा जी का वर्णन लगभग हर पुराणों में हमें कहीं ना कहीं मिलता है। यहाँ तक कि वैदिक ग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में उनका विस्तृत वर्णन किया गया है।

जब माता पार्वती ने देवताओं को निःसंतान रहने का श्राप दिया

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बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि देवताओं के कोई भी पुत्र अपनी माता के गर्भ से नहीं जन्में हैं। ऐसा इसलिए क्यूंकि देवताओं को ये श्राप स्वयं भगवती पार्वती ने दिया था। इसका वर्णन शिव पुराण के अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ३६वें सर्ग में मिलता है जहाँ महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में ये कथा सुनाते हैं।

ताड़का

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ताड़का रामायण में वर्णित एक राक्षसी थी जिसका वर्णन हमें रामायण के बालकाण्ड के २४वें सर्ग में मिलता है। जब महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से अपने यज्ञ की रक्षा हेतु श्रीराम और लक्ष्मण को मांग कर ले गए, तब मार्ग में यज्ञ से पहले ताड़का राक्षसी का सन्दर्भ आता है। ताड़का वास्तव में एक यक्षिणी थी जिसे राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था।

अद्भुत रामायण - एक अजीब रामायण

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वैसे तो वाल्मीकि रामायण के कई संस्करण हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस। इसके अतिरिक्त भी आनंद रामायण, कम्ब रामायण, अध्यात्म रामायण आदि अनेक संस्करण हैं। इन्ही संस्करणों में से जो सबसे अलग संस्करण है वो है अद्भुत रामायण। जैसा कि इसका नाम है, इस रामायण में ऐसी ऐसी अद्भुत घटनाएं हैं जिसपर विश्वास करना बहुत कठिन है।

क्या होती थी आकाशवाणी और उसे कौन करता था?

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हम सबने कभी ना कभी "आकाशवाणी" , इस शब्द को अवश्य सुना है। हमारे धर्मग्रंथों एवं पुराणों में कई प्रसिद्ध आकाशवाणी का वर्णन है। सुनने में तो ये शब्द बड़ा सरल लगता है कि आकाशवाणी अर्थात आकाश की वाणी, किन्तु वास्तव में इसका रहस्य बहुत गूढ़ है।

जब ब्रह्मदेव और देवर्षि नारद ने एक दूसरे को श्राप दे दिया

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ये तो हम सभी जानते हैं कि देवर्षि नारद परमपिता ब्रह्मा के ही मानस पुत्र हैं। हम ये भी जानते हैं कि देवर्षि नारद भगवान श्रीहरि के अनन्य भक्त हैं। इनके जन्म के विषय में भी आपने कई कथाएं सुनी होगी। किन्तु पुराणों में एक कथा ऐसी आती है कि इन्होने अपने पिता भगवान ब्रह्मा को और ब्रह्मा जी ने इन्हे परस्पर श्राप दे दिया था।

हयग्रीव कौन हैं और हिन्दू धर्म में कितने हयग्रीवों का वर्णन है?

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भगवान हयग्रीव श्रीहरि के २४ अवतारों में से एक हैं। हालाँकि हिन्दू धर्म में उनके अतिरिक्त हयग्रीव नाम के एक दानव, एक दैत्य और एक राक्षस भी हुए हैं, इसीलिए लोगों को ये शंका होती है कि वास्तव में हयग्रीव आखिरकार कितने थे? अलग-अलग पुराणों में भी हयग्रीव के विषय में अलग-अलग कथा दी गयी है जो इसे और भी जटिल बनाती है। तो चलिए इसे समझते हैं।

जब अर्जुन को श्रीकृष्ण से युद्ध करना पड़ा

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अर्जुन श्रीकृष्ण के कितने बड़े भक्त थे ये बताने की आवश्यकता नहीं। किन्तु भागवत में हमें एक ऐसी कथा का वर्णन मिलता है जब अर्जुन को श्रीकृष्ण से युद्ध करना पड़ा था। ये कथा महाभारत युद्ध के बाद की है इसीलिए मूल महाभारत में इसका कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु लोक कथाओं में ये बहुत प्रचलित है।

भगवान विष्णु के 24 अवतार

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जब भी ईश्वर के अवतार की बात आती है तो भगवान विष्णु के अवतार सबसे प्रसिद्ध हैं। श्रीहरि के दशावतार तो खैर जगत विख्यात हैं किन्तु उनके कुल २४ अवतार माने जाते हैं। इन २४ अवतारों में से जो दशावतार हैं वे भगवान विष्णु के साक्षात् रूप ही हैं और अन्य १४ अवतार उनके लीलावतार माने जाते हैं। श्रीहरि के दशावतार का वर्णन विष्णु पुराण में विशेष रूप से दिया गया है। उनके २४ अवतारों का वर्णन श्रीमदभागवत और सुख सागर में दिया है। इस सूची में सभी दशावतार को रेखांकित किया गया है।

वट वृक्ष - वो पेड़ जिसे अमर माना जाता है

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वट वृक्ष हिन्दू धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और पवित्र वनस्पतियों में से एक है। अश्वत्थ (पीपल) एवं तुलसी के साथ वट वृक्ष, अर्थात बरगद के पेड़ की हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्ता है। हिन्दू धर्म के लगभग हर ग्रन्थ में वट वृक्ष के महत्त्व के विषय में लिखा गया है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं अपितु जैन और बौद्ध धर्म में भी वट वृक्ष की अद्भुत महत्ता बताई गयी है।

जाम्बवन्त कौन थे और वो कितने शक्तिशाली थे?

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जामवंत रामायण के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक हैं। हालाँकि उनकी गिनती सप्त-चिरंजीवियों में नहीं की जाती, किन्तु वे भी एक चिरंजीवी हीं थे जिन्होंने द्वापरयुग में निर्वाण लिया। उनकी आयु अन्य सातों चिरंजीवियों से भी अधिक मानी जाती है। उनके जन्म के विषय में भी अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं।

हिरण्यकशिपु

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परमपिता ब्रह्मा से सर्वप्रथम सात महान ऋषियों ने जन्म लिया जिन्होंने सप्तर्षि और प्रजापति का पद ग्रहण किया। इन्ही में से एक थे महर्षि मरीचि । उनकी पत्नी कला से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुए महर्षि कश्यप। महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उन्ही की संतानों से समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। इनकी ज्येष्ठ पत्नी अदिति से आदित्य और दूसरी पत्नी दिति से दैत्यों का जन्म हुआ।

जय और विजय - जिन्होंने श्रीहरि के भक्त बनने के स्थान पर उनका शत्रु बनना पसंद किया

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वैसे तो भगवान विष्णु के कई पार्षद हैं किन्तु जय-विजय उनमें से प्रमुख हैं। ये दोनों वैकुण्ठ के मुख्य द्वार के रक्षक हैं और श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय हैं। ये दोनों उप-देवता की श्रेणी में आते हैं और इन्हे गुण एवं रूप में श्रीहरि के समान ही बताया गया है। श्रीहरि की भांति ही ये भी अपने तीन हाथों में शंख, चक्र एवं गदा धारण करते हैं, पर इनके चौथे हाथ में तलवार होती है, वहीँ श्रीहरि अपने चौथे हाथ में कमल धारण करते हैं।