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गरुड़ एवं नागों में शत्रुता क्यों थी?

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कुछ समय पहले हमें महर्षि कश्यप और उनकी सभी पत्नियों से मुख्य जातियों की उत्पत्ति के विषय में एक वीडियो बनाया था जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। संक्षेप में महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिनसे १७ प्रमुख जातियों की उत्पति हुई। इसी कारण महर्षि कश्यप प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं। इनकी दो-दो पत्नियों से जो पुत्र हुए उनके बीच की शत्रुता प्रसिद्ध है।

केवल सुख को ही अपना ध्येय मानने वाले - "चार्वाक"

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काम एवैकः पुरुषार्थः अर्थात: काम (भोग विलास) ही एकमात्र पुरुषार्थ है। इस एक वाक्य से आपको चावार्क दर्शन की मानसिकता समझ में आ जाएगी। हिन्दू धर्म में ९ मुख्य दर्शन बताये गए हैं। उनमें से छः दर्शन आस्तिकवादी हैं और ३ नास्तिकवादी। इन ३ नास्तिकवादी दर्शनों में भी जो चावार्क दर्शन है वो घोर भौतिकवादी है। अर्थात चावार्क दर्शन के अनुसार जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भोग विलास में लिप्त रहना है। किन्तु इससे पहले हम इस दर्शन को समझें, हमें चावार्क क्या है, ये जानना होगा।

भोलेनाथ को मांस अर्पण करने वाला महान भक्त - कन्नप्पा नयनार

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हिन्दू धर्म में महादेव के एक से बढ़कर एक भक्तों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें से एक भक्त ऐसे भी थे जो किसी भी पूजा विधि को नहीं जानते थे। उन्होंने हर वो चीज की जो शास्त्र विरुद्ध है और जिसे पाप माना जाता है, किन्तु फिर भी महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। वे इस बात को सिद्ध करते हैं कि महादेव केवल अपने भक्त के भाव देखते हैं, पद्धति नहीं। उनका नाम था कन्नप्पा।

समुद्र मंथन

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समुद्र मंथन हिन्दू धर्म की सबसे रोचक कथाओं में से एक है। इसका विस्तृत वर्णन विष्णु पुराण में दिया गया है। समुद्र मंथन क्यों करना पड़ा इसके ऊपर हम पहले ही एक लेख लिख चुके हैं और वीडियो बना चुके हैं। उसे आप यहाँ देख सकते हैं। समुद्र मंथन कहाँ हुआ उसके विषय में भी एक वीडियो बनाया जा चुका है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। संक्षेप में कथा ये है कि महर्षि दुर्वासा ने इंद्र देव के अभिमान के कारण उन्हें श्राप दिया जिससे सारी पृथ्वी श्रीहीन हो गयी। जब असुरों को इसका पता चला तो उन्होंने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया और वहां अपना आदिपत्य जमा लिया। देवता विश्रांत हो परमपिता ब्रह्मा की शरण में आये। ब्रह्मदेव सबको लेकर श्रीहरि विष्णु के पास गए। जब श्रीहरि ने ये सुना तो उन्होंने कहा कि दैवयोग से इस समय दैत्यों का बल प्रबल है अतः उनसे युद्ध कर स्वर्ग को प्राप्त करना कठिन होगा। इसी कारण आप सभी उन्हें समुद्र मंथन करने के लिए मनाइये। मंथन से अनेकानेक रत्न प्राप्त होंगे जिन्हे देव और दैत्य आपस में बाँट सकते हैं। इससे पृथ्वी पुनः श्रीयुक्त हो जाएगी। आप सबकी सहायता के लिए त्रिदेव तत्पर रहेंगे। श्रीहरि की ऐसी ब