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क्या हनुमान जी के पास कोई गदा थी?

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कई देवता आपने आयुधों के बिना अधूरे होते हैं। जैसे भगवान विष्णु सुदर्शन, भगवान शंकर त्रिशूल और देवराज इंद्र वज्र के बिना। उसी प्रकार यदि हम पवनपुत्र हनुमान की बात करें तो उनकी गदा उनसे अभिन्न रूप से जुडी हुई है। हमने शायद ही हनुमान जी की ऐसी कोई तस्वीर देखी हो जिसमें वे गदा धारण किये हुए ना हों। लेकिन क्या हो यदि मैं आपको बताऊँ कि रामायण में कहीं भी हनुमान जी के पास किसी गदा के होने का कोई वर्णन नहीं है।

इन्होने भी जुआ खेला पर पत्नी को दांव पर नहीं लगाया

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कुछ समय पहले हमने नल-दमयंती पर एक लेख प्रकाशित किया था। उसी कथा में हमें एक ऐसी घटना का वर्णन मिलता है जो महाभारत के द्युत सभा की कथा से बहुत मिलती जुलती है। ये तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत में द्युत के समय युधिष्ठिर ने अपने चारो भाइयों और फिर स्वयं को तो दांव पर लगाया ही, किन्तु इसके बाद वे रुके नहीं और अपनी पत्नी द्रौपदी को भी उन्होंने दांव पर लगा दिया।

क्या रंगभूमि में कर्ण को अवसर नहीं दिया गया था?

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रंगभूमि में कर्ण और अर्जुन का सामना महाभारत के सबसे रोचक प्रसंगों में से एक है। आम तौर पर हम ये जानते हैं कि जब द्रोणाचार्य ने शिक्षा के बाद सभी राजकुमारों के कला प्रदर्शन हेतु रंगभूमि में समारोह किया तो सभी राजकुमारों ने एक से बढ़कर एक कला का प्रदर्शन किया। उन सब में से सबसे बढ़ चढ़ कर अर्जुन थे जिन्होंने ऐसे ऐसे कौशल दिखाए जिसे देख कर दर्शक हैरान रह गए।

राजा उपरिचर वसु

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महाभारत में सत्यवती के बारे में आप लोगों ने सुना होगा। वे महाराज शांतनु की पत्नी और चित्रांगद और विचित्रवीर्य की माता थी। महर्षि व्यास का जन्म भी उन्ही के गर्भ से हुआ था। हालाँकि उनके जन्म के विषय में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। अधिकांश लोगो को ये पता है कि वो दाशराज की पुत्री थी किन्तु दाशराज केवल उनके पालक पिता थे। महाभारत के आदिपर्व के अंशअवतरणपर्व के ६३वें अध्याय में हमें उनके जन्म के विषय में पता चलता है जिसके अनुसार सत्यवती वास्तव में एक राज कन्या थी।

योगमाया कौन है?

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"मैं सभी के लिये प्रकट नही हूँ क्योंकि में अपनी शक्ति योगमाया द्वारा आच्छादित रहता हूँ।" श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ७, श्लोक २५ जब भी हम भगवान श्रीकृष्ण का जीवन वृतांत पढ़ते हैं तो हमें एक देवी के बारे में बार बार पता चलता है। दुःख की बात ये है कि उनके विषय में हमें बहुत अधिक जानकारी नहीं मिलती। उनका नाम है योगमाया। इनके बारे में सबसे अधिक पूछा जाने वाला प्रश्न है कि आखिर कौन है ये योगमाया? तो आज इस लेख में हम उन्ही के विषय में जानेंगे।

क्या गुरु द्रोण ने वास्तव में कर्ण को शिक्षा देने से मना किया था?

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महाभारत में जो एक पात्र है जिसके बारे में सबसे अधिक गलत और भ्रामक जानकारी आजकल इंटरनेट और टीवी सीरियलों में फैली है वो है सूर्यपुत्र कर्ण। कर्ण के विषय में जितनी भ्रामक जानकारियाँ आज हमें मिलती है उल्टी शायद और किसी पात्र के बारे में नहीं मिलती। ऐसी ही एक कथा जनमानस में फैली है जो गुरु द्रोणाचार्य द्वारा कर्ण के सूतपुत्र होने के कारण उसे शिक्षा ना दिए जाने के विषय में है।

गंगा

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हिन्दू धर्म में गंगाजी का क्या महत्त्व है इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर ग्रन्थ में माता गंगा के विषय में कोई ना कोई वर्णन मिलता है। गंगा जी के बारे में सबसे पहला वर्णन हमें ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के १०वें मंडल के ७५वें सूक्त, जिसे नदीस्तुति सूक्त कहा जाता है, उसमें कई नदियों का वर्णन है और यहीं हमें गंगा का भी वर्णन मिलता है। इसी सूक्त के ५वें श्लोक में हमें गंगा और उनके साथ यहाँ ९ और नदियों का वर्णन है।

जन्मेजय के सर्पयज्ञ में मारे गए मुख्य-मुख्य नागों के नाम

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हम सभी परीक्षित पुत्र जन्मेजय द्वारा किये गए सर्पयज्ञ के विषय में जानते ही हैं। सर्पयज्ञ और उसके इतिहास के विषय में विस्तृत लेख हम कभी और प्रकाशित करेंगे। इस लेख में हम उस सर्पयज्ञ में भस्म हुए मुख्य-मुख्य नागों के विषय में जानेंगे। इन सभी नागों का वर्णन महाभारत के आदि पर्व के अंतर्गत सर्पनामकथनविषयक पर्व में दिया गया है।

जब तक्षक ने धन देकर काश्यप ऋषि को लौटा दिया

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आपने महाराज परीक्षित वाले लेख में पढ़ा था कि किस प्रकार कलियुग के प्रभाव में आकर उन्होंने ऋषि शमीक के कंधे पर एक मरे हुए सर्प को डाल दिया। इससे क्रोधित होकर उनके पुत्र श्रृंगी ने महाराज परीक्षित को ये श्राप दिया कि आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के डंसने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। ये सुनकर महाराज परीक्षित बड़ा घबराये और अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लिया, किन्तु फिर भी सबको ये विश्वास था कि तक्षक से उन्हें कोई नहीं बचा सकता।

महर्षि उत्तंक

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पिछले लेख में हमने महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्यों - आरुणि, उपमन्यु और वेद के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम महर्षि उत्तंक के विषय में जानेंगे जो महर्षि वेद के ही शिष्य थे। महर्षि उत्तंक की कथा हमें महाभारत के दो पर्वों में मिलती है - आदि पर्व और आश्वमेधिक पर्व। हालाँकि दोनों कथाओं का सार एक ही हैं किन्तु दोनों में महर्षि उत्तंक के गुरु अलग-अलग बताये गए हैं। आदि पर्व के अनुसार उनके गुरु थे महर्षि वेद जबकि आश्वमेधिक पर्व के अनुसार महर्षि उत्तंक के गुरु महर्षि गौतम बताये गए हैं।

आरुणि, उपमन्यु और वेद - एक ही गुरु के तीन अद्भुत शिष्य

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हिन्दू धर्म में सदा से गुरु शिष्य परंपरा रही है। हमारे इतिहास में एक से एक शिष्य हुए हैं जिन्होंने अपने गुरु के लिए बड़ा से बड़ा बलिदान दिया, किन्तु आज हम एक ही गुरु के तीन ऐसे शिष्यों के विषय में बताएँगे जैसे फिर किसी और गुरु को नहीं मिले। इसका वर्णन हमें महाभारत के आदि पर्व के तीसरे अध्याय में मिलता है।

क्या वास्तव में महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला को श्राप दिया था?

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महाराज दुष्यंत और शकुंतला की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। हालाँकि यदि मैं कहूं कि इनकी वास्तविक कथा आज बहुत ही कम लोग जानते होंगे, तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा। वो इसीलिए क्यूंकि ये हिन्दू धर्म की सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। लेकिन मेरा विश्वास कीजिये कि आपमें से बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हे वास्तव में इन दोनों की सही कथा के विषय में पता होगा। तो सबसे पहले जो कथा जनमानस में प्रसिद्ध है उसे संक्षेप में जान लेते हैं।

महाभारत में वर्णित २४ महान राजा

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महाभारत के आदिपर्व के प्रथम अध्याय के अनुक्रमणिकपर्व में हमें महाराज धृतराष्ट्र और संजय का एक प्रसंग मिलता है जिसमें संजय ने इतिहास के २४ महान राजाओं का वर्णन किया है। ये प्रसंग तब का है जब धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के वध से अत्यंत व्याकुल थे। उस समय संजय ने उन्हें महर्षि व्यास और देवर्षि नारद के मुख से कहे गए उन २४ राजाओं के विषय में बताया है जो इतिहास में सबसे उत्कृष्ट राजाओं के रूप में विख्यात हुए। आज हम उन्ही २४ राजाओं के विषय में संक्षेप में जानेगे।

मूल व्यास महाभारत की संरचना

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अधिकतर लोगों को ये पता है कि महाभारत में कुल १८ पर्व और १००००० श्लोक हैं। जनमानस में भी यही जानकारी उपलब्ध है किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में महर्षि वेदव्यास ने बहुत ही वृहद् महाभारत की रचना की थी। इतना वृहद् जिसकी हम लोग कदाचित कल्पना भी नहीं कर सकते। इसका वर्णन हमें महाभारत के प्रथम और द्वितीय अध्याय में मिलता है।

रामायण के अनुसार श्रीराम का वंश

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कुछ समय पहले हमने श्रीराम के वंश के बारे में एक वीडियो प्रकाशित किया था। किन्तु यदि आप वाल्मीकि रामायण पढ़ेंगे तो आपको उनके वंश का एक अलग वर्णन मिलता है। ये थोड़ा अजीब इसीलिए है क्यूंकि कुछ चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन भी इसमें किया गया है जबकि श्रीराम सूर्यवंशी थे। साथ ही महाभारत में उन चंद्रवंशी राजाओं का क्रम ब्रह्माजी से नजदीक है जबकि रामायण में ये बहुत बाद का बताया गया है।

महर्षि रुरु और प्रमद्वरा की कथा

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आज वट सावित्री का पर्व है। सावित्री के पात्रिव्रत के विषय में हमने एक लेख पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप  यहाँ पढ़ सकते हैं। सावित्री और उन जैसे अनेकों पतिव्रताओं की कथा से हमारे ग्रन्थ भरे पड़े हैं पर आज हम आपको एक ऐसे पुरुष की कथा सुनाते हैं जिन्होंने अपने मृत पत्नी के प्राण यमराज की कृपा से वापस प्राप्त किये।

कैसी थी द्वारिका नगरी और क्यों डूब गयी समुद्र में? - द्वारिका नगरी का पूरा इतिहास

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चार धाम और सप्त पुरियों में से एक द्वारिका। जिस प्रकार अयोध्या को श्रीराम ने अपने चरणों से पावन किया ठीक उसी प्रकार द्वारिका श्रीकृष्ण की नगरी होने के कारण धन्य हुई। हालाँकि अयोध्या से उलट द्वारिका नगरी बहुत ही रहस्य्मयी मानी जाती है। कहा जाता है कि हर कल्प में जब भी कृष्णावतार होता है, समुद्र द्वारिका नगरी की भूमि प्रदान करने के लिए पीछे हटता है और उनके निर्वाण के साथ ही समुद्र वो भूमि वापस ले लेता है। यही कारण है कि आज भी द्वारिका जलमग्न है। आज इस लेख में हम श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका के विषय में जानेंगे।

गीता कुल कितनी है?

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जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:

भानुमति

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महाभारत में स्त्री चरित्रों को बहुत प्रमुखता से दिखाया गया है। चाहे वो द्रौपदी हो, कुंती हो अथवा गांधारी, महाभारत स्त्री सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण है। हालाँकि कुछ स्त्री चरित्र ऐसे भी हैं जो गौण हैं किन्तु उससे उनका महत्त्व कम नहीं होता। ऐसा ही एक चरित्र है भानुमति का।

गणेश जी ने भी दिया था गीता ज्ञान - श्री गणेश गीता

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हम सभी महाभारत में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए अद्वितीय ज्ञान, अर्थात श्रीमद्भगवतगीता के विषय में तो जानते ही हैं। महाभारत के भीष्म पर्व के आरम्भ में ज्ञान का ये अथाह सागर वर्णित है जिसमें १८ अध्याय एवं कुल ७०० श्लोक है। किन्तु क्या आप ये जानते हैं कि श्रीगणेश ने भी गीता का ज्ञान दिया था जो गणेश गीता के नाम से प्रसिद्ध है।