गयासुर

पिछले लेख में आपने महर्षि मरीचि की सती पत्नी और धर्मराज की पुत्री धर्मव्रता के बारे में पढ़ा जो उनके श्राप के कारण एक शिला में परिणत हो गयी। बाद में ब्रह्मदेव की आज्ञा के अनुसार धर्मराज ने शिलरूपी अपनी पुत्री को धर्मपुरी में रख दिया। इसी कथा से सम्बद्ध एक और कथा आती है जो गयासुर की है। दैत्यकुल में एक से एक दुर्दांत दैत्य हुए किन्तु जिस प्रकार कीचड में ही कमल खिलता है, उसी प्रकार दैत्य कुल ने महान भगवत भक्त भी इस संसार को दिए। प्रह्लाद, बलि इत्यादि भक्तों के श्रेणी में ही गय नामक दैत्य भी था।