"ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी" - तुलसीदास जी के इस दोहे का वास्तविक अर्थ

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। गोस्वामी तुलसीदास रचित महान ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस में वर्णित इस एक दोहे को लेकर बहुत प्रश्न उठाये जाते है। विशेषकर "शूद्र" एवं "नारी" शब्द को लेकर वामपंथियों और छद्म नारीवादियों ने इसे तुलसीदास और मानस के विरुद्ध एक शस्त्र बना रखा है। प्रश्न ये है कि क्या वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास जैसा श्रेष्ठ व्यक्ति शूद्रों एवं नारियों के विषय में ऐसा लिख सकता है? आइये इसे समझते हैं।