खर-दूषण

खर-दूषण
खर और दूषण रावण के सौतेले भाई और राक्षसों के प्रमुख यूथपति थे जो दण्डक वन में रावण की ओर से शासन करते थे। परमपिता ब्रह्मा से हेति और प्रहेति नामक दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई। ये दोनों ही राक्षसों के आदिपुरुष माने जाते हैं और इन्ही से राक्षस वंश चला। इसी वंश में आगे चल कर सुमाली, माली और माल्यवान नामक राक्षस हुए। सुमाली की पुत्री कैकसी ने विश्रवा से विवाह किया जिससे रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ।

माली की दो और पुत्रियों राका और पुष्पोत्कटा ने भी महर्षि विश्रवा से विवाह करने का अनुरोध किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। तब विश्रवा मुनि को राका से खर और पुष्पोत्कटा से दूषण नामक बलशाली पुत्रों की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि अलग-अलग माता से इन दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ और ये सौतेले होते हुए भी जुड़वाँ भाई हुए। अपने अन्य भाइयों के समान खर और दूषण को भी उत्तम युद्ध शिक्षा मिली। जब रावण अपने दिग्विजय पर निकला तो ये दोनों भाई भी उसके साथ थे और राक्षसों और देवताओं के युद्ध में इन दोनों भाई ने अपनी वीरता का परिचय दिया। उस युद्ध में अंततः देवताओं की पराजय हुई और रावण का अधिकार स्वर्ग पर हो गया। 

रावण की बहन शूर्पणखा ने अपनी जाति से बाहर जाकर एक वीर दैत्य विद्युत्जिह्व से विवाह कर लिया। इससे रावण अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने विद्युत्जिह्व पर आक्रमण कर दिया। दोनों के बीच घोर द्वन्द हुआ और उस युद्ध में रावण के हाथों विद्युत्जिह्व की मृत्यु हो गयी। शूर्पणखा अपने पति की मृत्यु के बाद वही रहना चाहती थी किन्तु रावण ने उसे किसी प्रकार समझा बुझा कर अपने साथ ले गया। 

रावण ने शूर्पणखा को दण्डक वन प्रदान किया जहाँ वो स्वच्छंद विचरण करने लगी। दण्डक वन रावण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था क्यूंकि वहाँ अनेक ऋषि रहते थे जिसे रावण या तो मारना चाहता था अथवा वहां से भगाना चाहता था। इसीलिए उसने दण्डक वन और शूर्पणखा की सुरक्षा का दायित्व खर और दूषण के हाथों में सौंपा। रावण के राज्य में ये दोनों भाई उस दण्डक वन में रहने वाले ऋषियों पर अत्याचार करने लगे।

अधिकतर राक्षस नरभक्षी नहीं होते थे किन्तु खर और दूषण के बारे में कहा जाता है कि ये दोनों राक्षस मनुष्यों को खा जाते थे। इसी कारण दण्डक वन में दोनों का आतंक इतना बढ़ा कि ऋषियों ने उनके डर से वहाँ से पलायन करना आरम्भ कर दिया। इसके अतिरिक्त रावण ने खर और दूषण के नेतृत्व में लंका के १४००० वीर सुभटों की सेना दण्डक वन में रखी थी। उस कारण कोई राजा भी उनपर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। इस प्रकार सब ओर से सुरक्षित और निःशंक हो वो दोनों नरभक्षी राक्षस अपनी बहन शूर्पणखा के साथ उस विशाल दण्डक वन पर राज करने लगे। खर और दूषण के विरोध का साहस कोई नहीं करता था और इसी कारण वे दोनों नरभक्षी भाई उन्मत्त होकर वहाँ रहने वाले ऋषि मुनियों पर अत्याचार करते थे।

उसी समय श्रीराम को भी वनवास प्राप्त हुआ और वे सीता और लक्ष्मण के साथ १४ वर्ष के वनवास को गए। पहले उन्होंने पंचवटी में अपना आश्रम बनाया किन्तु जब उन्हें राक्षसों के उत्पात का पता चला तो वे पंचवटी से दण्डक वन चले गए और वही स्थाई रूप से रहने लगे। आज के महाराष्ट्र का नासिक शहर ही पुरातन काल में दण्डकारण्य कहलाता था। आरम्भ में उनका राक्षसों से कोई विरोध नहीं हुआ और वे निर्विघ्न रूप से वही दण्डकारण्य में निवास करने लगे। वहाँ रहते हुए उनके वनवास के १३ वर्ष समाप्त हो गए।

एक बार रावण की बहन शूर्पणखा भ्रमण करती हुई श्रीराम के आश्रम की ओर से गुजरी। वहाँ आश्रम और मनुष्यों को देख वो कौतूहलवश उनके आश्रम पर पहुँची। वहाँ जब उसने श्रीराम को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गयी और उनसे विवाह करने की प्रार्थना की। श्रीराम ने उसे टालते हुए लक्ष्मण के पास भेज दिया। रूप में अपने भाई के समान लक्ष्मण को देख कर उसने उनसे भी विवाह का प्रस्ताव रखा किन्तु लक्ष्मण ने भी उसे टालकर पुनः श्रीराम के पास भेज दिया।

इस प्रकार बड़ी देर तक इधर-उधर भटकने के बाद क्रोधित होकर वो राक्षसी माता सीता को खाने को लपकी। उनके प्राण संकट में देख कर लक्ष्मण ने तत्काल उसका प्रतिकार किया। वे चाहते तो शूर्पणखा का वध भी कर सकते थे किन्तु वे स्त्री थी इसीलिए उन्होंने ऐसा नहीं किया। किन्तु उसके दुःसाहस के दंड स्वरुप लक्ष्मण ने उसकी नाक काट डाली।

वहाँ से अपमानित होकर शूर्पणखा सीधे अपने भाइयों खर और दूषण के पास पहुँची और उन्हें अपना हाल कहा। ये सुनकर खर ने पहले १४ राक्षसों को श्रीराम के आश्रम में उनका वध करने को भेजा। वे राक्षस सीधे श्रीराम के आश्रम में पहुँचे किन्तु श्रीराम ने केवल एक ही बाण से उन १४ राक्षसों का सर धड़ से अलग कर दिया। ये देख कर शूर्पणखा पुनः भयभीत हो अपने भाइयों के पास पहुंची।

इस बार खर और दूषण स्वयं अपनी समस्त सेना लेकर श्रीराम के आश्रम में पहुँचे। इतनी बड़ी सेना वहाँ आया देख कर लक्ष्मण ने श्रीराम से कहा - "भैया! प्रतीत होता है कि आपका पराक्रम देख कर भी राक्षसों चेत नहीं हुए हैं। आप आश्रम में रहकर भाभी की रक्षा करें, मैं अभी इनकी पूरी सेना को यमलोक भेज देता हूँ।" ये सुनकर श्रीराम ने कहा - "लक्ष्मण! तुम अवश्य इन सभी के अकेले ही पराजित कर सकते हो किन्तु जैसे मैंने पहले इन्हे दंड दिया था उसी प्रकार इस बार भी दूंगा। अतः तुम यहीं आश्रम में रहकर सीता की रक्षा करो। मैं इन सभी से निपटता हूँ।" ये कहकर माता सीता को लक्ष्मण की सुरक्षा में छोड़ कर श्रीराम अकेले ही उस विशाल सेना के सामने पहुँच गए।

जब राक्षसों ने श्रीराम को देखा तो एक साथ उनपर टूट पड़े किन्तु श्रीराम की शक्ति से वे कैसे पार पा सकते थे। केवल सवा प्रहार के युद्ध में श्रीराम ने अकेले ही उन १४००० राक्षसों का वध कर डाला। फिर दोनों भाइयों ने श्रीराम के साथ घोर युद्ध किया किन्तु पहले खर और फिर दूषण उनके हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। इतनी विशाल सेना समेत अपने भाइयों का अंत देख कर शूर्पणखा वहाँ से भाग कर सीधे रावण के पास पहुँची।

आगे की कथा हमें पता है कि किस प्रकार रावण ने देवी सीता का हरण किया और फिर लंका युद्ध हुआ। खर का एक पुत्र भी था जिसका नाम मकराक्ष था। वो किसी प्रकार बच कर अपने तात रावण के शरण में पहुँच गया। लंका युद्ध में वो अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए रावण की सेना की ओर से लड़ा और श्रीराम को द्वन्द के लिए ललकारा। तब श्रीराम ने उससे उसका परिचय पूछा और उसका द्वन्द स्वीकार किया। अंततः श्रीराम के हांथों मृत्यु को प्राप्त हो खर का वो पुत्र भी मुक्त हो गया।

4 टिप्‍पणियां:

  1. नीलाभ भाई यदि खर दूषण और अहिरावण तथा महिरावण रावण के सौतेले भाई थे इनके पिता तो विश्रवा ऋषि थे लेकिन इनकी माता कौन थी ?

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    1. खर दूषण की माता का नाम राका था जो कैकसी की छोटी बहन थी। महिरावण का वर्णन वाल्मीकि रामायण में नही है। उसका वर्णन कृतिवास रामायण में दिया गया है।

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