चिल्कुर बालाजी

चिल्कुर बालाजी
इस देश में कई मंदिर अपनी अलग-अलग विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध हैं। किन्तु हैदराबाद में एक ऐसा मंदिर भी है जिसकी विशेषता जानकर आप हैरान रह जाएंगे। ये मंदिर युवाओं, विशेषकर आईटी इंजीनियर के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। आपने तिरुपति बालाजी का नाम तो अवश्य सुना होगा। ये मंदिर भी वेंकटेश बालाजी को ही समर्पित है और इसका नाम चिल्कुर बालाजी है।

हैदराबाद एयरपोर्ट से करीब ४० किलोमीटर दूर हैदराबाद की सीमा पर रंगारेड्डी जिले में स्थित ये मंदिर बड़ा विशेष है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से माँगने पर आपको किसी भी देश, विशेषकर अमेरिका का वीसा अवश्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस मंदिर को वीसा बालाजी के नाम से भी जाना जाता है। वीसा के अतिरिक्त भी लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करवाने यहाँ आते हैं किन्तु प्रसिद्धि इसे वीसा दिलवाने के लिए ही है।

ये देश के उन गिने चुने मंदिरों में से एक है जहाँ ना कोई हुंडी है और ना ही कोई दानपात्र। यहाँ भक्तों से दान के रूप में धन नहीं लिया जाता। आश्चर्यजनक रूप से भक्त यहाँ दान के रूप में हवाईजहाज के छोटे मॉडल चढ़ाते हैं। यहाँ पार्किंग के रूप में लोगों से १० रूपये लिए जाते हैं और उसी से मंदिर का रख-रखाव होता है। इस मंदिर ने सरकार के अधिपत्य के विरुद्ध कोर्ट में लम्बी लड़ाई लड़ी और उसे जीता। यही कारण है कि इस मंदिर पर केंद्र या राज्य सरकार का कोई दखल नहीं है और इसका अपना प्रबंधन है। 

इस मंदिर में दो वृताकार पथ हैं - आंतरिक पथ और बाहरी पथ। भक्त अपनी कामना लेकर यहाँ आते हैं और आंतरिक पथ की ११ परिक्रमाएँ पूर्ण करते हैं और ये शपथ लेते हैं कि उनकी कामना पूर्ण होगी तो वे फिर यहाँ आएंगे। जब उनकी मनोकामना पूर्ण होती है, जिसमें अधिकतर वीसा का मिलना ही होता है, तब उन्हें पुनः यहाँ आना होता है और बाहरी पथ की १०८ परिक्रमाएँ पूर्ण करनी होती है।

इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। मान्यता के अनुसार एक वृद्ध व्यक्ति था जो चिल्कुर गाँव से प्रतिवर्ष तिरुपति श्री वेंकटेश बालाजी के दर्शन को जाता था। एक बार अत्यंत वृद्ध होने के कारण वो मार्ग में ही अचेत हो गया। तब उसे स्वप्न में तिरुपति बालाजी के दर्शन हुए जिन्होंने उससे कहा कि उसे उनके दर्शनों के लिए उतनी दूर आने की आवश्यकता नहीं क्यूंकि वे उसके अपने गाँव चिल्कुर में ही प्रकट होंगे।

उनके बताये स्थान पर जब उस व्यक्ति ने खुदाई करवाई तो उस भूमि से रक्त निकलने लगा। फिर उसे गोदावरी के जल से धो कर उस व्यक्ति ने उस स्थान पर वेंकटेश बालाजी की प्रतिमा स्थापित करवाई। कई लोग ऐसा भी मानते हैं कि खुदाई पर वो प्रतिमा पृथ्वी से ही निकली। इसी लिए गाँव के लोग इसे स्वयंभू ही मानते हैं। ये घटना करीब ८०० वर्ष पूर्व की है जबकि ये मंदिर ५०० वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है।

मैंने स्वयं अपने कई मित्रों को यहाँ आते और वीसा प्राप्त होते देखा है। सन २०१५ में मैंने भी इस मंदिर में ११ परिक्रमाएं की थी किन्तु मुझे वीसा नहीं मिला। इस मंदिर में वीसा मिलने की मान्यता कब आरम्भ हुई इसका तो पता नहीं किन्तु वर्तमान में तो इसे वीसा दिलाने वाले बालाजी के रूप में विश्व में मान्यता प्राप्त है। किन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर इस मंदिर में ऐसी कोई विशेष शक्ति ना होती तो इसकी इतनी प्रसिद्धि होना भी संभव नहीं था। जय बालाजी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया टिपण्णी में कोई स्पैम लिंक ना डालें एवं भाषा की मर्यादा बनाये रखें।