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जब ब्रह्मदेव और देवर्षि नारद ने एक दूसरे को श्राप दे दिया

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ये तो हम सभी जानते हैं कि देवर्षि नारद परमपिता ब्रह्मा के ही मानस पुत्र हैं। हम ये भी जानते हैं कि देवर्षि नारद भगवान श्रीहरि के अनन्य भक्त हैं। इनके जन्म के विषय में भी आपने कई कथाएं सुनी होगी। किन्तु पुराणों में एक कथा ऐसी आती है कि इन्होने अपने पिता भगवान ब्रह्मा को और ब्रह्मा जी ने इन्हे परस्पर श्राप दे दिया था।

कृपाचार्य

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महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। इनका वर्णन मुख्य रूप से रामायण में किया गया है। रामायण के साथ साथ महाभारत में भी इनका वर्णन आता है। हालाँकि इन दोनों ग्रंथों में इनके अलग-अलग पुत्रों का वर्णन है। रामायण के अनुसार महर्षि गौतम के पुत्र ऋषि शतानन्द थे जो महाराज जनक के कुलगुरु थे। जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण के साथ जनकपुरी पहुंचे तो वहां शतानन्द जी का विस्तृत वर्णन है।

महर्षि दुर्वासा तक को विवश करने वाले - महाराज अम्बरीष

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कुछ समय पहले हमने श्रीराम के पूर्वज महाराज युवनाश्व के विषय में लेख प्रकाशित किया था जिन्होंने गर्भ धारण किया था। उन्होंने ने ही मान्धाता नामक महान पुत्र को जन्म दिया। मान्धाता ने सौ राजसूय यज्ञ किये। साथ ही यही वो पहले सूर्यवंशी सम्राट थे जिन्होंने चंद्रवंशियों से सम्बन्ध बनाये। इनके विषय में हम किसी और लेख में विस्तार से जानेंगे।

हयग्रीव कौन हैं और हिन्दू धर्म में कितने हयग्रीवों का वर्णन है?

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भगवान हयग्रीव श्रीहरि के २४ अवतारों में से एक हैं। हालाँकि हिन्दू धर्म में उनके अतिरिक्त हयग्रीव नाम के एक दानव, एक दैत्य और एक राक्षस भी हुए हैं, इसीलिए लोगों को ये शंका होती है कि वास्तव में हयग्रीव आखिरकार कितने थे? अलग-अलग पुराणों में भी हयग्रीव के विषय में अलग-अलग कथा दी गयी है जो इसे और भी जटिल बनाती है। तो चलिए इसे समझते हैं।

गरुड़ एवं नागों में शत्रुता क्यों थी?

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कुछ समय पहले हमें महर्षि कश्यप और उनकी सभी पत्नियों से मुख्य जातियों की उत्पत्ति के विषय में एक वीडियो बनाया था जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। संक्षेप में महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिनसे १७ प्रमुख जातियों की उत्पति हुई। इसी कारण महर्षि कश्यप प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं। इनकी दो-दो पत्नियों से जो पुत्र हुए उनके बीच की शत्रुता प्रसिद्ध है।

केवल सुख को ही अपना ध्येय मानने वाले - "चार्वाक"

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काम एवैकः पुरुषार्थः अर्थात: काम (भोग विलास) ही एकमात्र पुरुषार्थ है। इस एक वाक्य से आपको चावार्क दर्शन की मानसिकता समझ में आ जाएगी। हिन्दू धर्म में ९ मुख्य दर्शन बताये गए हैं। उनमें से छः दर्शन आस्तिकवादी हैं और ३ नास्तिकवादी। इन ३ नास्तिकवादी दर्शनों में भी जो चावार्क दर्शन है वो घोर भौतिकवादी है। अर्थात चावार्क दर्शन के अनुसार जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भोग विलास में लिप्त रहना है। किन्तु इससे पहले हम इस दर्शन को समझें, हमें चावार्क क्या है, ये जानना होगा।

भोलेनाथ को मांस अर्पण करने वाला महान भक्त - कन्नप्पा नयनार

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हिन्दू धर्म में महादेव के एक से बढ़कर एक भक्तों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें से एक भक्त ऐसे भी थे जो किसी भी पूजा विधि को नहीं जानते थे। उन्होंने हर वो चीज की जो शास्त्र विरुद्ध है और जिसे पाप माना जाता है, किन्तु फिर भी महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। वे इस बात को सिद्ध करते हैं कि महादेव केवल अपने भक्त के भाव देखते हैं, पद्धति नहीं। उनका नाम था कन्नप्पा।