महर्षि उत्तंक

महर्षि उत्तंक
पिछले लेख
में हमने महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्यों - आरुणि, उपमन्यु और वेद के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम महर्षि उत्तंक के विषय में जानेंगे जो महर्षि वेद के ही शिष्य थे। महर्षि उत्तंक की कथा हमें महाभारत के दो पर्वों में मिलती है - आदि पर्व और आश्वमेधिक पर्व। हालाँकि दोनों कथाओं का सार एक ही हैं किन्तु दोनों में महर्षि उत्तंक के गुरु अलग-अलग बताये गए हैं। आदि पर्व के अनुसार उनके गुरु थे महर्षि वेद जबकि आश्वमेधिक पर्व के अनुसार महर्षि उत्तंक के गुरु महर्षि गौतम बताये गए हैं।

आरुणि, उपमन्यु और वेद - एक ही गुरु के तीन अद्भुत शिष्य

आरुणि, उपमन्यु और वेद - एक ही गुरु के तीन अद्भुत शिष्य
हिन्दू धर्म में सदा से गुरु शिष्य परंपरा रही है। हमारे इतिहास में एक से एक शिष्य हुए हैं जिन्होंने अपने गुरु के लिए बड़ा से बड़ा बलिदान दिया, किन्तु आज हम एक ही गुरु के तीन ऐसे शिष्यों के विषय में बताएँगे जैसे फिर किसी और गुरु को नहीं मिले। इसका वर्णन हमें महाभारत के आदि पर्व के तीसरे अध्याय में मिलता है।

कितनी भव्य थी रावण की लंका?

कितनी भव्य थी रावण की लंका?
लंका की भव्यता के विषय में हम सभी ने सुना है। विशेषकर वाल्मीकि रामायण में इसके विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। रामायण के सुन्दर कांड के चौथे सर्ग में हमें लंका के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है जब महाबली हनुमान माता सीता को खोजने के लिए लंकिनी को परास्त कर लंका में प्रवेश करते हैं। वहां हनुमान जी ने लंका को जैसा देखा उससे हमें उसकी भव्यता और रावण के ऐश्वर्य का पता चलता है। उसी का संक्षेप में वर्णन हम इस लेख में करने वाले हैं।

क्या वास्तव में महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला को श्राप दिया था?

क्या वास्तव में महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला को श्राप दिया था?
महाराज दुष्यंत और शकुंतला की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। हालाँकि यदि मैं कहूं कि इनकी वास्तविक कथा आज बहुत ही कम लोग जानते होंगे, तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा। वो इसीलिए क्यूंकि ये हिन्दू धर्म की सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। लेकिन मेरा विश्वास कीजिये कि आपमें से बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हे वास्तव में इन दोनों की सही कथा के विषय में पता होगा। तो सबसे पहले जो कथा जनमानस में प्रसिद्ध है उसे संक्षेप में जान लेते हैं।

महाभारत में वर्णित २४ महान राजा

महाभारत में वर्णित २४ महान राजा
महाभारत के आदिपर्व के प्रथम अध्याय के अनुक्रमणिकपर्व में हमें महाराज धृतराष्ट्र और संजय का एक प्रसंग मिलता है जिसमें संजय ने इतिहास के २४ महान राजाओं का वर्णन किया है। ये प्रसंग तब का है जब धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के वध से अत्यंत व्याकुल थे। उस समय संजय ने उन्हें महर्षि व्यास और देवर्षि नारद के मुख से कहे गए उन २४ राजाओं के विषय में बताया है जो इतिहास में सबसे उत्कृष्ट राजाओं के रूप में विख्यात हुए। आज हम उन्ही २४ राजाओं के विषय में संक्षेप में जानेगे।

लंकिनी

लंकिनी
रामायण के सुन्दर कांड में हनुमान जी द्वारा लंका में प्रवेश करने का प्रसंग है। इसी प्रसंग में लंका पुरी का विस्तृत वर्णन दिया गया है। रामायण के अनुसार लंका पुरी वास्तव में एक राक्षसी ही थी जो स्वयं और लंकेश की रक्षा करती थी। आम बोल-चाल की भाषा में उसे लंकिनी के नाम से जाना जाता है। लंकिनी का वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड के तीसरे सर्ग में मिलता है।