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जब हनुमान जी ने बलराम जी, गरुड़, सुदर्शन एवं देवी सत्यभामा का अभिमान भंग किया

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महाबली हनुमान अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं। उन्हें कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान प्राप्त है। यही कारण है कि रामायण के साथ साथ हनुमान जी का वर्णन महाभारत में भी आता है। महाभारत में उनके द्वारा भीम के अभिमान को भंग करने और अर्जुन के रथ की रक्षा करने के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं किन्तु हरिवंश पुराण में एक वर्णन ऐसा भी आता है जब श्रीकृष्ण ने बजरंगबली के द्वारा बलराम जी, सुदर्शन चक्र , गरुड़ एवं देवी सत्यभामा का अभिमान भंग करवाया था।

भगवान शिव को अपने ही पुत्र श्रीगणेश का मस्तक क्यों काटना पड़ा?

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महादेव द्वारा श्रीगणेश का मस्तक काटने के विषय में तो हम सभी जानते हैं किन्तु इस विषय में एक प्रश्न आता है कि आखिर उन्हें ऐसा करना क्यों पड़ा? महादेव तो त्रिकालदर्शी हैं फिर उन्हें कैसे नहीं पता था कि श्रीगणेश उनके ही पुत्र हैं? वास्तव में महादेव ने श्रीगणेश का मस्तक एक श्राप के कारण काटा था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राक्षसराज सुकेश के पुत्र माली और सुमाली ने महादेव से वरदान प्राप्त किया कि किसी भी विपत्ति में एक बार उन्हें उनकी सहायता के लिए आना होगा। महादेव ने उन्हें ये वरदान दे दिया। उस वरदान से उन्मत्त होकर माली और सुमाली ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। उन्हें रोकने के लिए स्वयं भगवान सूर्यनारायण युद्धक्षेत्र में आये और उनके बीच घोर युद्ध हुआ। माली और सुमाली वीर अवश्य थे किन्तु सूर्यदेव के तेज का सामना नहीं कर पाए। सूर्यदेव ने घोर युद्ध कर उन्हें परास्त किया और फिर वो दोनों भाई सूर्यदेव के तेज से जलने लगे। अपना अंत निश्चित जान कर उन दोनों ने महादेव का समरण किया। वरदान के कारण महादेव स्वयं वहां आये और सूर्यदेव को उनपर प्रहार करने से रोका। किन्तु दोनों असुरों को अकेले परास्त करने के म

शनि देव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है?

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हमारे पौराणिक ग्रंथों में शनिदेव को तेल चढाने के बारे में कहा गया है। शताब्दियों से लोग हर शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाते आ रहे हैं। मान्यता है कि ऐसा करने पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया से मुक्ति मिलती है। किन्तु शनिदेव को तेल चढाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है जो रामायण से सम्बंधित है।

गोत्र क्या होता है? समान गोत्र में विवाह क्यों नहीं होता?

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गोत्र की अवधारणा हिन्दू धर्म में सदा से है। ये हिन्दू धर्म के सबसे जटिल विषयों में से एक है। गोत्र को अति प्राचीन माना गया है। यहाँ तक कि ऐसा कहा गया है कि गोत्र पहले आये और फिर वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ हुई। अर्थात गोत्र की अवधारणा वर्ण व्यवस्था से भी प्राचीन है।

एक ऐसा गाँव जहाँ हनुमान जी की पूजा करना मना है

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महाबली हनुमान हिन्दू धर्म के सर्वाधिक पूज्य देवताओं में से एक हैं। शायद ही इस देश का एक भी ऐसा कोना हो जहाँ हनुमान जी का मंदिर ना हो या उनकी पूजा ना होती हो। लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने वाले हैं जहाँ हनुमान जी की पूजा वर्जित है। ऐसा इसलिए क्यूंकि वहां के लोग सदैव हनुमान जी से नाराज रहते हैं।

बभ्रुवाहन - अर्जुन का वध करने वाला उसका अपना पुत्र

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द्रौपदी का विवाह जब पांचों पांडवों से विवाह किया तब देवर्षि नारद के सुझाव पर पांडवों ने एक कड़ा नियम बनाया। उस नियम के अनुसार जब द्रौपदी किसी एक पांडव की पत्नी रहेगी, उस समय यदि कोई दूसरा पांडव उनके कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे १२ वर्षों का वनवास भोगना पड़ेगा। जब द्रौपदी युधिष्ठिर की पत्नी थी उस समय गायों के एक झुण्ड की रक्षा के लिए युधिष्ठिर के कक्ष में अपना गांडीव लेने चले गए जिस कारण उन्हें १२ वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। द्रौपदी के अतिरिक्त अर्जुन के अन्य तीन विवाह इसी वनवास काल में हुए थे।

महाराज दशरथ के कितने मंत्री और पुरोहित थे?

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हमारे धर्मग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंत्री ही किसी राजा के राज्य का आधार होते हैं। मंत्री वे कहलाते हैं जिससे "मंत्रणा" , अर्थात सलाह लेकर कोई राजा अपनी प्रजा के हित में कोई निर्णय लेता है। किसी राजा के कई मंत्री हो सकते थे और उनमें से जो मुख्य होता था उन्हें "महामंत्री" के नाम से जाना जाता था। आगे चल कर आधुनिक काल में इन्ही मंत्रियों को "आमात्य" या "सचिव" कहा जाने लगा।