रामायण के सन्दर्भ में हमें एक कथा का वर्णन मिलता है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में जाते हैं तो लंका में बहुत खोजने के बाद भी उन्हें माता सीता के दर्शन नहीं होते। तब उनकी भेंट महात्मा विभीषण से होती है और उन्ही के द्वारा उन्हें माता सीता के अशोक वाटिका में होने की बात पता चलती है। ये कथा सदियों से हमारे बीच प्रचलित है किन्तु क्या आपको ये पता है कि वास्तव में हनुमान जी कभी लंका में विभीषण से मिले ही नहीं थे।
वाल्मीकि रामायण में माता सीता के संधान के समय महाबली हनुमान और विभीषण के लंका में मिलने का कोई प्रसंग नहीं है। हनुमान जी और विभीषण के भेंट की जो भी कथा हमें पता है उसका वर्णन केवल रामचरितमानस में किया गया है। मानस के सुंदरकांड में ऐसा वर्णित है कि जब हनुमान जी लंका पहुंचे तो उन्हें माता सीता को बहुत अधिक ढूँढना नहीं पड़ा और उसी समय उनकी भेंट विभीषण से हुई।
संक्षेप में मानस के अनुसार जब हनुमान जी ने लंकिनी का वध कर लंका में प्रवेश किया तो उन्हें समझ नहीं आया कि माता सीता को इतनी बड़ी लंका में कहाँ ढूंढे? तब उनके कानों में राम-राम की ध्वनि सुनाई दी जिसे सुनकर वे आश्चर्य में पड़ गए कि आखिर लंका में ऐसा कौन है जो राम नाम की रट लगा रहा है? वास्तव में विभीषण ही रात्रि में राम नाम ले रहे थे। तब हनुमान जी एक ब्राह्मण का वेश बना कर उनसे मिलने गए।
उसी समय हनुमान और विभीषण के मिलने का प्रसंग है। उसी समय विभीषण उन्हें बताते हैं कि वे रावण के भाई विभीषण हैं। उन्हें महान राम भक्त जान कर हनुमान जी भी उन्हें अपना परिचय देते हैं और उन्हें बताते हैं कि वे लंका में माता सीता को खोजने आये हैं। तब विभीषण हनुमान को बताते हैं कि रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका में कड़े पहरे में रखा है और फिर हनुमान जी उनसे विदा लेकर माता सीता से मिलते हैं।
किन्तु यदि आप वाल्मीकि रामायण पढ़ेंगे तो आपको ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलेगा। वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी बहुत समय तक माता सीता को लंका में अलग-अलग स्थानों पर ढूंढते रहे। उन्होंने रावण के महल में भी माता सीता को ढूंढा जहाँ मंदोदरी को देख कर हनुमान जी को ये भ्रम हो गया कि यही माता सीता हैं। किन्तु फिर ये जान कर कि वे कभी रावण के महल में इतने आराम से सो नहीं सकती, वे अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करते हैं।
उन्हें माता सीता को लेकर कई संदेह भी होते हैं। वे ये भी सोचते हैं कि शायद रावण ने माता सीता का वध कर दिया है और ये सोच कर वे बड़े दुखी भी होते हैं, किन्तु फिर भी वे उन्हें अलग-अलग जगहों पर ढूंढते रहते हैं और फिर अंततः अशोक वाटिका में उन्हें माता सीता दिखती हैं। रामायण में इस सारे प्रसंग में कहीं भी कभी भी विभीषण का कोई वर्णन है। रामायण के अनुसार हनुमान जी माता सीता को अपने श्रम से ही ढूंढ निकालते हैं।
वाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड में केवल एक ही स्थान पर हुनुमान जी और विभीषण का एक साथ वर्णन मिलता है। सुन्दर कांड के सर्ग ५२ में जब मेघनाद उन्हें ब्रह्मास्त्र से बांध कर रावण के सामने लाता है और रावण क्रोध वश उन्हें मारने का निश्चय करता है तब विभीषण रोकते हैं और कहते हैं कि रावण को एक दूत को प्राणदंड नहीं देना चाहिए। उनकी बात मानकर रावण हनुमान जी के अंगभंग का आदेश देता है और फिर हनुमान जी द्वारा लंका का दहन होता है।
विभीषण द्वारा रावण को हनुमान जी के वध से रोकने का ये प्रसंग रामचरितमानस के सुन्दर कांड में भी है किन्तु विभीषण द्वारा हनुमान जी को माता सीता का पता बताने का कोई प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं है। यहाँ तक कि सर्ग ५२ से पहले वाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड में विभीषण का नाम तक नहीं आया है। तो सत्य यही है कि हनुमान जी कभी भी लंका में विभीषण से नहीं मिले थे।
इसके अतिरिक्त एक और वर्णन हमें रामचरितमानस में मिलता है कि जब हनुमान जी ने लंका दहन किया तो सारी लंका जल कर राख हो गयी किन्तु विभीषण के भवन को कोई हानि नहीं पहुंची। इसका भी कोई वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता। रामायण के अनुसार हनुमान जी ने लगभग पूरी लंका जला दी थी। विभीषण के भवन का क्या हुआ, इसका भी कोई विशेष वर्णन हमें रामायण में नहीं मिलता।
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