कल से सावन का आरम्भ हुआ तो मैंने सोचा महादेव के १०८ पवित्र नामों से इसकी शुरुआत की जाये। भगवान शिव के इन नामों के विषय में एक कथा है कि जब नारायण क्षीरसागर में निद्रामग्न थे तो उनकी नाभि से एक कमलपुष्प पर परमपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। परमपिता सहस्त्र वर्षों तक भगवान विष्णु की चेतना में आने की प्रतीक्षा करते रहे। एक दिन उनके समक्ष सदाशिव एक अग्निमयी ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए किन्तु परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें नमस्कार नहीं किया।
मंगलवार, जुलाई 31, 2018
रविवार, जुलाई 29, 2018
स्वर्भानु (राहु एवं केतु)
स्वर्भानु का नाम शायद आपने पहली बार सुना हो किन्तु मुझे विश्वास है कि उसका दूसरा नाम आप सभी जानते होंगे। कल ही ही इस सदी का सबसे लम्बा चंद्रग्रहण समाप्त हुआ और स्वर्भानु भी उससे सम्बंधित है। इस नाम को शायद आप ना जानते हों किन्तु उसका दूसरा नाम हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्द पात्रों में से एक है और हम सभी उससे परिचित हैं। हम उसे राहु एवं केतु के नाम से जानते हैं। अधिकतर धर्मग्रंथों में केवल राहु का विवरण ही मिलता है जिससे बाद में केतु अलग होता है किन्तु उसका वास्तविक नाम स्वर्भानु था। स्वर्भानु दैत्यराज बलि का एक महत्वपूर्ण सेनानायक था। समुद्र मंथन के समय जब अंत में अमृत की उत्पत्ति हुई तो देवों और दैत्यों में उसे पाने के लिए प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गयी।
शुक्रवार, जुलाई 27, 2018
महादेव को चिता की भस्म क्यों प्रिय है?
हम सभी ने देखा है कि भोलेनाथ को वैसी चीजें ही पसंद हैं जो अन्य किसी देवता को पसंद नहीं। ये भी कह सकते हैं कि जो समस्त विश्व के द्वारा त्याज्य हो उसे महादेव अपने पास शरण देते हैं। चाहे वो चंद्र हो, वासुकि, हलाहल, भूत-प्रेत, राक्षस, दैत्य, दानव, पिशाच, श्मशान अथवा भस्म। देवों में देव महादेव ही ऐसे हैं जो देव-दानव सभी के द्वारा पूज्य हैं। सभी जानते हैं कि भगवान शिव को चिता की भस्म अत्यंत प्रिय है। उनका श्रृंगार भी भस्म से किया जाता है। शैव पंथ के साधक श्मशान और चिता की राख का प्रयोग अपनी साधना के लिए करते हैं। तो ये जानने की इच्छा होती है कि आखिर महादेव को वो चिता की रख क्यों प्रिय है जिसे कोई अन्य देवता देखना नहीं चाहता? इसे जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा।
बुधवार, जुलाई 25, 2018
परिक्रमा का महत्त्व एवं नियम
परिक्रमा हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नवग्रह सूर्य की और सूर्य भी महासूर्य की परिक्रमा करते हैं। जब कार्तिकेय और गणेश में प्रतिस्पर्धा हुई थी तो कार्तिकेय ने पृथ्वी की और गणेश ने शिव-पार्वती की सात-सात परिक्रमाएँ की थी। कदाचित परिक्रमाओं का चलन उसी समय से प्रारम्भ हुआ। ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों (प्रा + दक्षिणा) में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा। यानी कि ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। सरल शब्दों में कहा जाये तो घडी की सुइयों की दिशा में आगे बढ़ना।
सोमवार, जुलाई 23, 2018
महर्षि जाजलि
जाजलि पौराणिक युग के एक महान ऋषि थे। एक बार उन्होंने कठिन तपस्या करने की ठानी। वे एक वन पहुँचे जो जँगली जानवरों से भरा हुआ था। उसी वन में उन्होंने एक जगह अन्न-जल त्याग कर तपस्या प्रारम्भ की। वे तपस्या में ऐसे लीन हुए कि स्तंभित से हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी प्राण-वायु को भी नियंत्रित कर रोक लिया और अविचल भाव से खड़े तपस्या करते रहे। बहुत समय बीत गया और उनकी लम्बी जटाओं ने उनके शरीर को घेर लिया। आस पास की लताएँ भी उनके चारो ओर लिपट गयीं। उनको एक वृक्ष समझ कर कई पक्षियों ने उनके ऊपर अपना घोंसला बना लिया।
बुधवार, जुलाई 18, 2018
लखीसराय का अशोक धाम मंदिर
लखीसराय बिहार का एक महत्वपूर्ण जिला है। इसी जिले में मनकठा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटा सा गाँव है चौकी। इसी गाँव में श्वेत पाषाणों से बना एक अत्यंत मनोहारी मंदिर है जिसका नाम अशोक धाम मंदिर है। यहाँ पर भगवान महादेव का एक विशाल शिवलिंग स्थापित है जिसे इंद्रदमनेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। वैसे तो वर्तमान में चौकी गाँव की इस मंदिर के अतिरिक्त कोई खास महत्ता नहीं है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किसी ज़माने में ये छोटा सा गाँव पाल वंश के अंतिम राजा इन्द्रदमन की राजधानी हुआ करती थी जिन्होंने सबसे पहले यहाँ मंदिर की स्थापना करवाई और उन्ही के नाम पर इस शिवलिंग का नाम पड़ा।
सोमवार, जुलाई 16, 2018
जब दत्तात्रेय ने जीमकेतु का अभिमान भंग किया
प्राचीन काल में एक बड़े सदाचारी राजा थे जीमकेतु। उनके राज्य में सभी बिना किसी चिंता के निवास करते थे तथा पूरी प्रजा सुखी एवं समपन्न थी। जीमकेतु ने अपने सामर्थ्य से अतुल धन संचित किया और उनकी वीरता के कारण आस-पास के राज्य में उसका कोई शत्रु ना रहा। समस्त जगत में उसकी प्रशंसा होने लगी। इतना प्रचुर धन और सम्मान देखकर दुर्भाग्यवश उसके मन में अपनी अथाह संपत्ति का अहंकार पैदा हो गया। राज-काज तो वो पहले जैसा करते थे किन्तु धन के अहंकार के कारण उसके स्वाभाव में परिवर्तन आ गया।
बुधवार, जुलाई 11, 2018
मंगलवार, जुलाई 10, 2018
रहस्यलोक सा भागलपुर का खिरनी घाट
इस बार की भागलपुर यात्रा में ये आखिरी मंदिर है। खिरनी घाट भागलपुर के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है जो बड़ी खंजरपुर के पास स्थित है। बचपन में मैं पता नहीं कितनी बार वहाँ गया हूँ। हालाँकि उस समय शाम के वक्त वहाँ जाने में डर भी लगता था क्यूंकि वो इलाका बीच शहर में होते हुए भी थोड़ा अगल-थलग है और वहाँ का माहौल भी थोड़ा अजीब है। बचपन में गंगा कई बार सीढ़ियों को पर कर मंदिर परिसर में चली आती थी किन्तु अब भागलपुर के अन्य घाटों की तरह यहाँ भी गंगा सूख गयी है। हालाँकि माहौल आज भी यहाँ का वैसा ही शांत है।
बुधवार, जुलाई 04, 2018
२१० वर्ष से भी अधिक प्राचीन भागलपुर का दुग्धेश्वरनाथ महादेव
आप भागलपुर के किसी भी व्यक्ति से अगर ये पूछे कि इस शहर का सबसे व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका कौन सा है तो वो वेराइटी चौक का नाम लेगा। भागलपुर का मुख्य बाजार खुद ही बेहद भीड़ वाला इलाका है और इस बाजार के बीचोंबीच स्थित इस चौक पर तो पैदल चलना भी मुश्किल है। इसी चौंक पर एक शिव मंदिर है जिसपर शायद ही वहाँ से गुजरने वाला कोई व्यक्ति सर ना झुकाता हो।
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