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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड (सम्पूर्ण) - मूल श्लोक और हिंदी अर्थ सहित

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सर्ग १  ॐ तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्। नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुंगवम्॥१॥ तपस्वी वाल्मीकिजी ने तपस्या और स्वाध्याय में लगे हुए विद्वानों में श्रेष्ठ मुनिवर नारदजी से पूछा-

क्या अंगद ने रावण को अपना पैर उखाड़ने की चुनौती दी थी?

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रामायण में अंगद द्वारा रावण को अपना पैर हिलाने की चुनौती देने वाला प्रसंग रामायण के सबसे रोचक प्रसंगों में से एक है। संक्षेप में कथा ये है कि जब श्रीराम की सेना ने समुद्र में पुल बना कर लंका में प्रवेश किया तब उस युद्ध को रोकने के अंतिम प्रयास के रूप में श्रीराम ने रावण के पास संधि प्रस्ताव भेजने का विचार किया। हालाँकि सुग्रीव उनकी इस बात से सहमत नहीं थे, फिर भी श्रीराम की आज्ञा मान कर उन्होंने अंगद को अपना दूत बना कर रावण के पास भेजा।

महाराज सगर

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राजा सगर भगवान श्रीराम के पूर्वज थे। इन्ही के पुत्रों की गलती के कारण माता गंगा को पृथ्वी पर आना पड़ा था। इनकी कथा हमें रामायण के बालकाण्ड के सर्ग ३८ में मिलती है जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति की कथा सुना रहे होते हैं।

क्या हनुमान जी के पास कोई गदा थी?

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कई देवता आपने आयुधों के बिना अधूरे होते हैं। जैसे भगवान विष्णु सुदर्शन, भगवान शंकर त्रिशूल और देवराज इंद्र वज्र के बिना। उसी प्रकार यदि हम पवनपुत्र हनुमान की बात करें तो उनकी गदा उनसे अभिन्न रूप से जुडी हुई है। हमने शायद ही हनुमान जी की ऐसी कोई तस्वीर देखी हो जिसमें वे गदा धारण किये हुए ना हों। लेकिन क्या हो यदि मैं आपको बताऊँ कि रामायण में कहीं भी हनुमान जी के पास किसी गदा के होने का कोई वर्णन नहीं है।

गंगा

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हिन्दू धर्म में गंगाजी का क्या महत्त्व है इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर ग्रन्थ में माता गंगा के विषय में कोई ना कोई वर्णन मिलता है। गंगा जी के बारे में सबसे पहला वर्णन हमें ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के १०वें मंडल के ७५वें सूक्त, जिसे नदीस्तुति सूक्त कहा जाता है, उसमें कई नदियों का वर्णन है और यहीं हमें गंगा का भी वर्णन मिलता है। इसी सूक्त के ५वें श्लोक में हमें गंगा और उनके साथ यहाँ ९ और नदियों का वर्णन है।

श्रीराम कितने सुन्दर थे?

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श्रीराम का रूप कितना मनोहर था उसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता तो नहीं है क्यूंकि हम सभी भक्तों के मन में भी उनके मनोहर रूप की अलग-अलग छवि बसी हुई है। वैसे तो श्रीराम के रूप के विषय में कई ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु उनके रूप का जो सबसे प्रामाणिक वर्णन मिलता है वो हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है। रामायण के सुन्दर कांड के ३५वें सर्ग में हमें इसका वर्णन मिलता है।

कितनी भव्य थी रावण की लंका?

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लंका की भव्यता के विषय में हम सभी ने सुना है। विशेषकर वाल्मीकि रामायण में इसके विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। रामायण के सुन्दर कांड के चौथे सर्ग में हमें लंका के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है जब महाबली हनुमान माता सीता को खोजने के लिए लंकिनी को परास्त कर लंका में प्रवेश करते हैं। वहां हनुमान जी ने लंका को जैसा देखा उससे हमें उसकी भव्यता और रावण के ऐश्वर्य का पता चलता है। उसी का संक्षेप में वर्णन हम इस लेख में करने वाले हैं।

लंकिनी

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रामायण के सुन्दर कांड में हनुमान जी द्वारा लंका में प्रवेश करने का प्रसंग है। इसी प्रसंग में लंका पुरी का विस्तृत वर्णन दिया गया है। रामायण के अनुसार लंका पुरी वास्तव में एक राक्षसी ही थी जो स्वयं और लंकेश की रक्षा करती थी। आम बोल-चाल की भाषा में उसे लंकिनी के नाम से जाना जाता है। लंकिनी का वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण के सुन्दर कांड के तीसरे सर्ग में मिलता है।

वानरराज वाली

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वानरराज वाली रामायण के एक मुख्य पात्र हैं। आज हमें इंटरनेट पर यहाँ-वहाँ वाली के बारे में कई आश्चर्यजनक बातें पता चलती है किन्तु आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि उनमें से अधिकतर चीजों का मूल रामायण से कोई लेना देना नहीं है। पहली बात तो ये कि वानरराज वाली के बारे में कोई भी विस्तृत वर्णन हमें रामायण में मिलता ही नहीं। रामायण में उनका बड़ा संक्षिप्त वर्णन दिया गया है।

जब हनुमान जी ने अपने सामर्थ्य का वर्णन किया

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ये तो हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी को अपनी शक्ति को भूल जाने के श्राप था। इसी कारण जब वानर सेना समुद्र के किनारे खड़ी हो उस पर जाने की योजना बना रही थी तो विभिन्न वानरों ने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार समुद्र पार करने की बात की। उनमें से किसने कितनी दूर जाने की बात की, इसके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

जटायु का पराक्रम

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अरुण के पुत्र और सम्पाती के छोटे भाई जटायु के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। हम ये भी जानते हैं कि किस प्रकार जटायु ने रावण से माता सीता की रक्षा करने का प्रयत्न किया था। अधिकतर लोग बस यही जानते हैं कि माता सीता की रक्षा की प्रक्रिया में रावण द्वारा जटायु का वध हो गया था किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि उस युद्ध में जटायु ने अद्वितीय पराक्रम दिखाया और रावण जैसे महापराक्रमी को भी पृथ्वी पर उतरने के लिए विवश कर दिया था।

रामायण के अनुसार श्रीराम का वंश

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कुछ समय पहले हमने श्रीराम के वंश के बारे में एक वीडियो प्रकाशित किया था। किन्तु यदि आप वाल्मीकि रामायण पढ़ेंगे तो आपको उनके वंश का एक अलग वर्णन मिलता है। ये थोड़ा अजीब इसीलिए है क्यूंकि कुछ चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन भी इसमें किया गया है जबकि श्रीराम सूर्यवंशी थे। साथ ही महाभारत में उन चंद्रवंशी राजाओं का क्रम ब्रह्माजी से नजदीक है जबकि रामायण में ये बहुत बाद का बताया गया है।

क्या रामायण में श्रवण कुमार का कोई वर्णन है?

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श्रवण कुमार की कथा से भला कौन परिचित नहीं है। आधुनिक काल में वो एक कर्तव्यनिष्ठ पुत्र के एक ऐसे उदाहरण हैं जिनके जैसा बनना हर संतान का एक स्वप्न होता है। हम ये भी जानते हैं कि श्रवण कुमार की कथा श्रीराम के पिता महाराज दशरथ से जुडी हुई है। किन्तु क्या वाल्मीकि रामायण में श्रवण कुमार नाम के किसी चरित्र का वर्णन दिया गया है? तो इसका उत्तर है नहीं। रामायण में किसी श्रवण कुमार का वर्णन हमें नहीं मिलता।

समुद्र लंघन के समय किस वानर ने कितनी दूर जाने की बात कही थी?

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माता सीता की खोज में वानरों का समुद्र तट पर पहुंचना और उसके बाद हनुमान जी द्वारा समुद्र लांघने की बात तो हम सभी जानते ही है। पर एक बात जो अधिक लोग नहीं जानते वो ये कि समुद्र लांघने की चर्चा करते हुए कई वानरों ने अपनी शक्ति के अनुसार, कितनी दूर वे जा सकते हैं, इसका उल्लेख किया था। उस चर्चा में तो हनुमान जी ने कुछ कहा ही नहीं था क्यूंकि श्राप के कारण उन्हें अपने बल का ज्ञान नहीं था। बाद में जामवंत जी ने उन्हें प्रेरित किया।

क्या श्रीराम ने कभी माता शबरी के जूठे बेर खाये थे?

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रामायण के सन्दर्भ में शबरी और उनके जूठे बेरों के विषय में तो सब जानते हैं। सदियों से हम ये सुनते आ रहे हैं कि जब श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता को ढूंढते हुए माता शबरी के आश्रम में पहुंचे तो उन्हें देख कर शबरी, जो वर्षों से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी बड़ी प्रसन्न हुई। फिर उन्होंने दोनों भाइयों को खाने के लिए बेर दिए। बेर अच्छे हैं या नहीं इसीलिए उन्होंने उसे पहले उसे चखा। बाद में उसी बेर को श्रीराम और लक्ष्मण ने प्रेम से खाया।

अयोमुखी - एक और राक्षसी जिसके नाक-कान लक्ष्मण ने काट डाले

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शूर्पणखा की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। रामायण के अरण्य कांड के १८वें सर्ग में इसका वर्णन है कि जब शूर्पणखा श्रीराम के समझाने पर भी नहीं मानी और माता सीता पर आक्रमण किया, तब लक्ष्मण ने श्रीराम की आज्ञा से उसके नाक और कान काट डाले। किन्तु क्या आपको पता है कि रामायण में ही एक और ऐसी राक्षसी का वर्णन आता है जिसके नाक कान लक्ष्मण ने काट डाले थे?

श्रीराम और माता सीता की आयु कितनी थी?

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कुछ समय पहले हमने रावण की आयु पर एक लेख और वीडियो प्रकाशित किया था। जैसा कि हमने उसमें देखा कि मूल वाल्मीकि रामायण में हमें रावण की आयु के विषय में कुछ स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता। हालाँकि यदि बात श्रीराम और माता सीता की आयु की की जाये तो रामायण में हमें इस विषय में कई सन्दर्भ मिलते हैं।

ऋषि जाबालि

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कुछ समय पहले हमने चार्वाक दर्शन पर एक लेख प्रकाशित किया था जो पूर्ण रूप से नास्तिक विचारधारा पर आधारित है। किन्तु यदि हम रामायण का अध्ययन करते हैं तो हमें पता चलता है कि नास्तिक विचारधारा आज की नहीं अपितु बहुत पहले से चली आ रही है। आधुनिक काल में उसके प्रवर्तक चार्वाक माने जाते हैं किन्तु उनसे बहुत पहले रामायण में भी एक ऋषि थे जिनकी विचारधारा घोर नास्तिक मानी जाती है।

जब माता पार्वती ने देवताओं को निःसंतान रहने का श्राप दिया

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बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि देवताओं के कोई भी पुत्र अपनी माता के गर्भ से नहीं जन्में हैं। ऐसा इसलिए क्यूंकि देवताओं को ये श्राप स्वयं भगवती पार्वती ने दिया था। इसका वर्णन शिव पुराण के अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ३६वें सर्ग में मिलता है जहाँ महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में ये कथा सुनाते हैं।

क्या वास्तव में लक्ष्मण ने लक्ष्मण रेखा खींची थी?

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आप सभी लोग सोच रहे होंगे कि मैं ये कैसी बातें कर रहा हूँ? सदियों से हम लक्ष्मण रेखा के विषय में सुनते आ रहे हैं। सभी लोग ये जानते हैं कि जब श्रीराम स्वर्णमृग रूपी मारीच के पीछे चले गए और उसका वध किया तब उसने श्रीराम के स्वर में माता सीता और लक्ष्मण को पुकारा। तब माता सीता के बहुत कहने पर लक्ष्मण जी श्रीराम की सहायता के लिए गए लेकिन जाने से पहले माता सीता की रक्षा के लिए एक ऐसी रेखा खींच गए जिसे कोई पार ना कर सके। वही रेखा "लक्ष्मण रेखा" के रूप में प्रसिद्ध है।