बुद्ध पूर्णिमा

बुद्ध पूर्णिमा
आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज सारा विश्व भगवान गौतम बुद्ध का २५८० वाँ जन्मदिवस मना रहा है। आज के ही दिन पूर्णिमा को ५६३ ईस्वी पूर्व लुम्बिनी (आज का नेपाल) में ये महाराजा शुद्धोधन की पत्नी महामाया के गर्भ से जन्में। आगे चल कर उन्होंने स्वयं का धर्म चलाया किन्तु आज बौद्ध धर्म के अनुयायी और कई हिन्दू धर्म के लोग भी उन्हें भगवान विष्णु के दशावतार में से एक मानते हैं। हालाँकि ये सत्य नहीं है।

नृसिंह अवतार

आप सभी को नृसिँह जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान नृसिंह का स्थान दशावतार में चौथा माना जाता है। आज के दिन ही अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकशिपु के संहार के लिए भगवान विष्णु ने सतयुग में आधे मनुष्य और आधे सिंह के रूप में अवतार लिया था। महर्षि कश्यप और दक्ष की ज्येष्ठ पुत्री दिति के पुत्र के रूप में हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष नामक दो अत्यंत शक्तिशाली दैत्यों का जन्म हुआ। यहीं से दैत्यकुल का आरम्भ हुआ।

मूलकासुर - देवी सीता की अनसुनी वीरगाथा

कुम्भकर्ण के बारे में सब ने सुना है और वो रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक है। कुम्भकर्ण के दो पुत्रों कुम्भ और निकुम्भ के विषय में रामायण में विस्तार से बताया गया है और उसके एक और पुत्र भीम का वर्णन भी शिव पुराण में आता है किन्तु उसका पुत्र मूलकासुर के बारे में कही पढ़ने को नहीं मिलता। इसका कारण ये है कि कुम्भकर्ण ने उसे बचपन में ही त्याग दिया था।

गंगा सप्तमी

आप सभी को गंगा सप्तमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। हर वर्ष वैशाख मास की सप्तमी को इस पर्व को मनाया जाता है। भारत में विशेषकर हरिद्वार एवं वाराणसी में इस दिन बड़ी संख्या में लोग गँगा स्नान के लिए पहुँचते हैं। कहा जाता है कि आज ही के दिन माँ गंगा स्वर्ग से उतर कर महादेव की जटाओं में पहुँची थी। इसके बाद जिस दिन गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी पर पहुँची उस दिन को गंगा दशहरा के रूप में देश भर में मनाया जाता है।

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया
सर्वप्रथम आप सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ। अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है जिस कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।

वो छः श्राप जो रावण के विनाश का कारण बने

रावण के बारे में कौन नहीं जनता, उसकी वीरता सर्व-विख्यात थी। उसे सप्तसिंघुपति कहा जाता था क्यूंकि उसने सातों महाद्वीपों पर विजय पायी यही। उसे परमपिता ब्रम्हा का वरदान प्राप्त था और उसपर महारुद्र की विशेष कृपा थी। यही कारण था कि उससे युद्ध करने का कोई साहस नहीं करता था। यही नहीं, उसने समस्त देवताओं पर विजय पायी थी और नवग्रह उसके वश में थे। सभी ग्रह उसकी इच्छा से चलते थे इसीलिए वो अपनी मृत्यु का योग बदल सकता था। शनि को उसने अपने दरबार में अपने पैरों के नीचे रखता था।

गणेश जी को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती

तुलसी की हिन्दू धर्म में कितनी महत्ता है इसके बारे में बताने की आवश्यकता नहीं है। पीपल, बेलपत्र और तुलसी को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है। प्रत्येक देवता की पूजा में तुलसी को समर्पित करने की प्रथा है विशेषकर भगवान विष्णु को तुलसी समर्पित करने का विशेष पुण्य मिलता है। किन्तु श्री गणेश को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। 

स्तंभेश्वर महादेव - समुद्र स्वयं जिनका अभिषेक करता है

गुजरात में वड़ोदरा के पास, भरुच जिले में अरब सागर के पास स्थित स्तंभेश्वर महादेव का मंदिर अपने आप में एक आश्चर्य है जहाँ वह दिन में एक बार दर्शन देकर समुद्र में गायब हो जाता है। इसमें ४ फुट ऊँचा शिवलिंग स्थित है जिसका जलाभिषेक खुद समुद्र करता है। यह मंदिर समुद्र की तेज लहरों में अपने आप गायब हो जाता है और कुछ देर बार खुद बाहर आ जाता है।

महर्षि शुकदेव

शुकदेव ऋषि का वर्णन महाभारत में आता है। वो महर्षि व्यास के अनियोजित पुत्र एवं उनके पहले शिष्य थे। उन्होंने महर्षि व्यास से महाभारत की पूरी कथा सुनकर कंठस्थ कर लिया था और आगे उस कथा का विस्तार किया। जब परीक्षित को उस श्राप का पता चला कि आज से सातवें दिन तक्षक के दंश से उनकी मृत्यु हो जाएगी तो उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में महाभारत और गीता कथा सुनने की इच्छा प्रकट की।

वीरभद्र - जिस पर स्वयं विष्णु भी अंकुश ना रख सके

शिव और सती के विषय में सब जानते ही हैं। अपने पिता ब्रह्मापुत्र प्रजापति दक्ष के विरूद्ध जाकर सती ने शिव से विवाह किया। दक्ष घोर शिव विरोधी थे क्यूंकि उन्होंने उनके पिता ब्रह्मा का पाँचवा मस्तक काटा था। सती ने विवाह तो कर लिया किन्तु दक्ष उसे कभी स्वीकार नहीं कर सके और शिव और सती का त्याग कर दिया। कई वर्षों के पश्चात दक्ष ने कनखल (आज के हरिद्वार में स्थित) में एक महान वैष्णव यज्ञ का अनुष्ठान किया। भगवान विष्णु उस यज्ञ के अग्रदेवता बने और स्वयं ब्रह्मदेव ने पुरोहित का स्थान सँभाला।

जनेऊ का महत्त्व

जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां मौजूद है। लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ते हैं जबकि सच तो कुछ और ही है। तो आइए इस बारे में कुछ और जानते हैं। 
  • जनेऊ पहनने से आदमी को लकवे से सुरक्षा मिल जाती है: कहा गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है। दरअसल इसके पीछे विज्ञान का गहरा रह्स्य छिपा है क्योंकि दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता। 

कावेरी

कावेरी भारत में बहने वाली प्रमुख नदियों में से एक है। कावेरी परमपिता ब्रह्मा की पुत्री है और इसे देवी गंगा की तरह ही पूजनीय माना गया है। पुराणों के अनुसार जब महर्षि अगस्त्य उत्तर भारत से दक्षिण की ओर आ गए तो उन्हें वहाँ पड़ने वाले सूखे ने चिंतित कर दिया। इसी के निराकरण के लिए वे ब्रह्मलोक पहुँचे।

मेरु पर्वत

मेरु पर्वत, एक ऐसा स्थान है, जिसका उल्लेख आपको लगभग सभी प्रमुख धर्मों में मिल जाएगा, यहाँ तक कि इससे जुड़ी मान्यताएं भी लगभग समान हैं। पौराणिक कहानियों और दस्तावेजों में मेरु पर्वत का जिक्र एक ऐसे पर्वत के तौर पर मिलता है, जो सोने के समान चमकीले सुनहरे रंग का है तथा इसके पाँच मुख्य शिखर हैं। हिमालय की गोद में स्थित मेरु पर्वत की विशेषता यही समाप्त नहीं हो जाती, बल्कि इसे ब्रह्मा का निवास स्थान भी माना जाता है।