द्रौपदी

द्रौपदी
पूर्व काल में एक ऋषि थे मुद्गल। उनका विवाह इन्द्रसेना नामक कन्या से हुआ जो बाद में अपने पति के नाम से मुद्गलनी भी कहलायी। दुर्भाग्य से मुद्गल की मृत्यु विवाह के तुरंत बाद हो गयी। तब इंद्रसेना को अपने पति के जाने का अपार दुःख हुआ किन्तु उसे इस बात का भी दुःख हुआ कि वो अपने वैवाहिक जीवन का भोग नहीं कर सकी। इसी कारण उसने भगवान शंकर की घोर आराधना की। जब महादेव प्रसन्न हुए तो इन्द्रसेना ने उनसे ये वर माँगा कि अगले जन्म में उसे एक ऐसा पति चाहिए जो धर्म का ज्ञाता हो, अपार बलशाली हो, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो, संसार में सर्वाधिक सुन्दर हो एवं जिसके सहनशीलता की कोई सीमा ना हो।

कुंती

कुंती
ये पंचकन्या श्रृंखला का चौथा लेख है। इससे पहले मंदोदरी, अहिल्या एवं तारा पर लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इस लेख में हम चौथी पंचकन्या कुंती के बारे में जानेंगे। यदुकुल में एक प्रतापी राजा हुए शूरसेन। उनकी पत्नी का नाम था मरिषा जो नाग कुल की थी। शूरसेन के एक फुफेरे भाई थे कुन्तिभोज जो कुंती प्रदेश के स्वामी थे। वे निःसंतान थे इसी कारण शूरसेन ने ये प्रतिज्ञा की कि अपनी पहली संतान को वो कुन्तिभोज को प्रदान करेंगे। शूरसेन की पहली संतान एक पुत्री हुए जिनका नाम था "पृथा"। प्रण के अनुसार शूरसेन ने पृथा को कुन्तिभोज को दे दिया। इस प्रकार पृथा कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री कहलाई और आगे चल कर उन्ही के नाम पर उनका नाम "कुंती" पड़ा।

मंदोदरी

मंदोदरी
मंदोदरी मय दानव और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री और रावण की पट्टमहिषी थी। इन्हे पञ्चसतियों में से एक माना जाता है। मय और हेमा के दो पुत्र भी थे - दुदुम्भी और मायावी। मंदोदरी के ये दोनों पुत्र वानरराज बाली के हाथों मारे गए। कई ग्रंथों का कहना है कि मय दानव केवल इनके दत्तक पिता थे और मय और हेमा ने केवल मंदोदरी का पालन पोषण किया। इस विषय में मंदोदरी के पूर्वजन्म की एक बड़ी अनोखी कथा है।

तारा

तारा
ये पञ्चसती श्रृंखला का तीसरा लेख है। इससे पहले हमने मंदोदरी एवं अहिल्या पर लेख प्रकाशित किया था, आशा है आपको पसंद आया होगा। आज इस लेख में हम वानरराज बाली की पत्नी तारा के विषय में जानेंगे। तारा के जन्म के विषय में हमें दो अलग जानकारियां प्राप्त होती है। एक कथा के अनुसार तारा देवगुरु बृहस्पति की पुत्री थी। ये बहुत बड़ा संयोग है कि बृहस्पति की पत्नी का नाम भी तारा ही था। हालाँकि ये मान्यता अधिक प्रसिद्ध नहीं है।

अहिल्या

अहिल्या
देवी अहिल्या हिन्दू धर्म की सर्वाधिक सम्मानित महिलाओं में से एक है जिन्हे पञ्चसतियों में स्थान दिया गया है। अन्य चार हैं - मंदोदरी, तारा, कुंती एवं द्रौपदी। अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी और देवराज इंद्र के छल के कारण उन्होंने सदियों तक पाषाण बने रहने का दुःख भोगा। बहुत काल के बाद जब श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ गौतम ऋषि के आश्रम मे पधारे तब उन्होंने पाषाण रूपी अहिल्या का उद्धार किया।