महात्मा गांधी गीता का एक श्लोक हमेशा कहा करते थे - अहिंसा परमो धर्मः , जबकि पूर्ण श्लोक इस प्रकार है: अहिंसा परमो धर्मः। धर्म हिंसा तदैव च ।। अर्थात: अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है।
पिछले लेख में आपने मृतसञ्जीवनी मन्त्र के विषय में पढ़ा। इस भाग में हम "मृतसंजीवनी स्त्रोत्र" के विषय में आपको बताएँगे। ऐसा माना जाता है कि इस महान स्त्रोत्र को परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने लिखा था। ३० श्लोकों का ये स्त्रोत्र भगवान शिव को समर्पित है और उनके कई अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डालता है। जो कोई भी इस स्त्रोत्र का पूर्ण चित्त से पाठ करता है, उसे जीवन में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। इस लेख में हम आपको पूर्ण मृतसञ्जीवनी मन्त्र से अर्थ सहित परिचित करवाएंगे।
यदि आपने हिन्दू धर्म के किसी भी धर्मग्रन्थ या व्रत कथाओं को पढ़ा है तो आपके सामने पौराणिक "सूत जी" का नाम अवश्य आया होगा। कारण ये है कि सूत जी कदाचित हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्ध वक्ता हैं। कारण ये कि पुराणों की कथा का प्रसार जिस स्तर पर उन्होंने किया है वैसा किसी और ने नहीं किया। किन्तु ये "सूत जी" वास्तव में हैं कौन?