श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित भगवान शिव के ११वें ज्योतर्लिंग श्री रामेश्वरम की महत्ता अपरम्पार है। उत्तर में जो स्थान श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का है वही दक्षिण में रामेश्वरम महादेव का। ये भारत के चार धामों में से एक माना जाता है। उनमे से तीन धाम बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी एवं पुरी जगन्नाथ जहाँ भगवान विष्णु को समर्पित हैं, रामेश्वरम में हरि एवं हर का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा और भी बड़ी इस लिए हो जाती है क्यूंकि इसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी।

इसी ज्योतिर्लिंग के निकट एक और महान शिवलिंग है जिसे हनुमदीश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना रामेश्वरम के ठीक बाद रुद्रावतार हनुमान द्वारा की गयी थी। रामेश्वरम एवं हनुमदीशश्वर महादेव को यमज (जुड़वाँ) शिवलिंग भी कहा जाता है। हनुमदीश्वर महादेव के विषय में आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं।

रामेश्वरम के धनुष्कोटि में स्थित रामसेतु की महिमा किसी से छिपी नहीं है। लंका विजय से वापस लौटने के पश्चात विभीषण के अनुरोध पर श्रीराम ने धनुष्कोटि पर ही उस सेतु को तोड़ दिया था ताकि कोई और लंका पर आक्रमण ना कर सके। चेन्नई से लगभग ६०० किलोमीटर दूर ये तीर्थ हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है और यहीं बंगाल की खाड़ी हिन्द महासागर से मिलती है। रामेश्वरम से कुछ दूर गंधमादन पर्वत स्थित है जहाँ से महाबली हनुमान ने समुद्र पार करने के लिए छलाँग मारी थी। बाद में इसी पर्वत पर श्रीराम की सेना इकठ्ठा हुई थी। इस पर्वत पर आज पदुका मंदिर स्थित है जहाँ लोग श्रीराम के चरणों की पूजा करते हैं।

रामेश्वरम के आस-पास पादुका मंदिर, लक्ष्मण तीर्थ, सीता कुण्ड, सेतु माधव, एकांत राम, बाइस कुण्ड, विल्लीरणि तीर्थ, कोदंड स्वामी मंदिर, आदि सेतु इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं। रामेश्वरम मंदिर में ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त भगवान शिव की दो और माता पार्वती की दो मूर्तियां भी स्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में दो अलग कथाएं हैं। एक तो जब श्रीराम देवी सीता को छुड़ाने के लिए लंका पर आक्रमण करते हैं तो समुद्र के तट पर उन्हें भगवान शिव की पूजा करने की इच्छा होती है। तब वे विजय की कामना से वहीँ बालू का एक शवलिंग बना कर भगवान महारुद्र की पूजा करते हैं और उनसे विजयश्री का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। श्रीराम के अनुरोध पर भगवान शिव उस स्थान रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो जाते हैं। 

एक और कथा के अनुसार जब रावण का वध कर के श्रीराम देवी सीता के साथ वापस लौटे तो गंधमादन पर्वत पर ऋषियों ने श्रीराम से कहा - "हे पुरुषोत्तम! निःसंदेह आपने रावण का नाश कर पृथ्वी को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई है किन्तु रावण को साधारण राक्षस नहीं था। वो महर्षि पुलत्स्य का पौत्र एवं ऋषि विश्रवा का पुत्र था। उसका वध करने के कारण आपको ब्रह्महत्या का पाप लग गया है।" ऐसा सुनकर श्रीराम बड़े दुखी हुए और उन्होंने उन ऋषियों से इस पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा। तब उन्होंने श्रीराम को बताया कि ब्रह्महत्या और गोहत्या महापाप माने गए हैं और इससे केवल भगवान शिव ही मुक्ति दिला सकते हैं। अतः आपको इसके प्रायश्चित हेतु भगवान रूद्र से प्रार्थना करनी चाहिए। तब श्रीराम सागर तट पर पहुँच कर शिव पूजा को तैयार हुए।

ऋषियों ने कहा कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ शिवलिंग काशी में मिलते हैं। तब श्रीराम की आज्ञा से हनुमान शिवलिंग को लेने काशी चले गए। हनुमान के आने में विलम्ब हो रहा था इसी कारण शुभ मुहूर्त बीतते देख देवी सीता ने वहीँ बालू से शिवलिंग की स्थापना कर दी और श्रीराम ने अपनी पूजा संपन्न की। जब हनुमान काशी से शिवलिंग लेकर पहुँचे तो वहाँ एक नया शिवलिंग देखकर उन्होंने श्रीराम से कहा - "हे प्रभु! मैंने इतना श्रम कर इस शिवलिंग को प्राप्त किया किन्तु आपने बालू का शिवलिंग बना कर उसकी पूजा कर ली। मैं जो शिवलिंग ले कर आया हूँ वो पाषाण का है, ये बालू का शिवलिंग कितनी देर टिकेगा?" हनुमान को इस प्रकार बोलते देख श्रीराम ने कहा - "हे महाबली! शुभ मुहूर्त बीतते देख सीता ने इस शिवलिंग की स्थापना कर दी। किन्तु कोई बात नहीं, तुम इस शिवलिंग को हटा कर इसके स्थान पर अपना शिलिंग स्थापित कर दो।"

ये सुनकर हनुमान ने उस शिवलिंग को उखाड़ना चाहा किन्तु बात ही बात में पूरे पर्वत शिखर को उखाड़ देने वाले पवनपुत्र हनुमान उस बालू के शिवलिंग को हिला भी नहीं पाए। उसे उखाड़ने के प्रयत्न ने हनुमान को एक तेज झटका लगा और वो वहाँ से २० योजन दूर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे। जब उनकी चेतना वापस आयी तो उन्हें अपने अभिमान पर बड़ी ग्लानि हुई। वे वापस आये और श्रीराम और भगवान शिव से क्षमा याचना की। तब श्रीराम ने कहा - "हे हनुमान! तुम्हारा श्रम व्यर्थ नहीं जाएगा। आज से तुम्हारे द्वारा लाया ये शिवलिंग तुम्हारे ही नाम से श्री हनुमदीश्वर कहलायेगा।" ये कहकर उन्होंने वहीँ रामेश्वरम शिवलिंग के पास हनुमदीश्वर शिवलिंग की स्थापना की और सबने उसकी विधिवत पूजा की।

रामेश्वरम हरि-हर के अनोखे संगम को दर्शाता है। रामेश्वरम की स्थापना करते हुए जब देवी सीता ने श्रीराम से इसका अर्थ पूछा तब श्रीराम ने कहा - "हे सीते! रामस्य ईश्वरः यस्य सः रामेश्वरम। अर्थात जो राम का ईश्वर है वही रामेश्वर है।" दूसरी ओर जब देवी पार्वती भगवान शिव से रामेश्वर का अर्थ पूछती है तो वे कहते हैं - "प्रिये! रामः ईश्वरः यस्य सा रामेश्वरम। अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर है।" इस प्रकार का अनोखा एवं सुन्दर वर्णन केवल रामेश्वरम के लिए संभव है। रामेश्वरम स्वयं महादेव का ही रूप है और जो भी इसके दर्शन करता है उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है। जय श्री रामेश्वरम। 

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