अहोई अष्टमी

अहोई अष्टमी
आप सभी को अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। ये भारत का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस व्रत को पुत्रवती महिलायें अपने पुत्रों की लम्बी आयु के लिए रखती है। वे दिन भर निर्जल उपवास रखती हैं और शाम को तारे के दर्शन के बाद पूजा के साथ अपना उपवास तोड़ती है।

अहोई एक चित्र होता है जिसे दीवार पर बनाया जाता है अथवा किसी कपडे पर काढ़ कर दीवार पर टाँग दिया जाता है। इसमें आठ खानों की एक पुतली बनाई जाती है जिसके इर्द-गिर्द साही और उसके सात बच्चों की आकृति होती है। इस व्रत को करवा चौथ के चार दिन बाद कार्तिक की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसी कारण इसे अहोई अष्टमी कहते हैं। अहोई माता की पूजा स्त्रियाँ अपने-अपने सामर्थ्य से करती है। कई संपन्न घरों में अहोई का चित्र चाँदी से भी बनाया जाता है।

इस दिन माताएं प्रातः उठ कर अहोई माता के व्रत का संकल्प लेती है और स्नानादि के पश्चात भूमि को गाय के गोबर से लीप कर उसमे कलश की स्थापना की जाती है जिसके चारो ओर बैठ कर सभी स्त्रियाँ इस व्रत की कथा सुनती हैं। प्रसाद के रूप में १४ पूरी और ८ पुओं का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। 

इस पूजा के लिए जल जिस करवे (एक प्रकार का मिटटी का बर्तन) में रखा जाता है वो करवाचौथ में इस्तेमाल किया गया करवा ही होता है। पूजा के बाद इस जल को संभाल कर रखा जाता है और दीवाली के दिन इस करवे के जल का पूरे घर में छिड़काव किया जाता है। इस दिन अहोई माता की व्रत कथा सुनने पर निःसंतान स्त्रिओं को संतान की प्राप्ति होती है और पुत्र/पुत्री प्राप्त महिलाओं की संतानों को दीर्घ आयु प्राप्त होती है।

इस पर्व की व्रत कथा एक साही के बच्चे की मृत्यु से सम्बंधित है जिसकी कहानी करवाचौथ की व्रत कथा से भी मिलती जुलती है। "अहोई" का अर्थ होता है "अनहोनी को होनी में बदल देना" और इस व्रत की कथा भी कुछ ऐसी ही है। प्राचीन काल में एक साहूकार था जिसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। उसके सभी पुत्रों और पुत्री का विवाह हो चुका था और वे प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। 

एक बार दीवाली के दिन उसकी पुत्री भी अपने ससुराल से अपने मैके आई। घर को लीपने के लिए साहूकार की सातों बहुऍं मिटटी लेने जंगल जा रही थी तो उसकी पुत्री भी साथ चली गई। उनकी ननद जहाँ मिट्टी खोद रही थी वहाँ एक स्याह (साही) अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। दुर्भाग्यवश मिट्टी काटते समय उसकी खुरपी से उनमे से एक बच्चा मर गया। 

जब स्याही ने ये देखा तो अत्यंत क्रोध से उसे श्राप देकर उसकी कोख बाँध दी। जब उसने ऐसा सुना तो स्याही से क्षमा याचना की। तब स्याही ने कहा कि तुम अपने स्थान पर किसी और की कोख बँधवा सकती हो। तब ननद ने अपनी सभी भाभियों से प्रार्थना की कि वे उसके स्थान पर अपनी कोख बँधवा लें पर किसी ने उसकी बात नहीं मानी। अंततः उसकी प्रार्थना सुकर सबसे छोटी भाभी राजी हो गयी और उसने अपनी कोख बंधवा ली। इस प्रकार वे सभी मिट्टी लेकर वापस अपने घर आ जाती है किन्तु भय के मारे अपने ससुर या पति को कुछ नहीं बताती। 

कुछ समय बाद सभी बहुओं को पुत्र की प्राप्ति होती है किन्तु छोटी बहु का पुत्र स्याही के श्राप के कारण ७ दिनों में मर जाता है। छोटी बहु सोचती है कि शायद ऐसा साही के श्राप के कारण हुआ है और वो उस दुःख को सह जाती है। किन्तु एक-एक कर के छोटी बहु के ७ पुत्र होते हैं और सभी जन्म से सातवें दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। 

तब छोटी बहु को बड़ी चिंता होती है और वो अपने कुलगुरु से इसका उपाय पूछती है। तब उसके कुलगुरु उसे सुरही गाय की सेवा करने को कहते हैं। उनके कहे अनुसार छोटी बहु १ वर्ष तक पूरे मन से सुरही गाय की सेवा करती है जिससे प्रसन्न होकर उसे स्याही के पास ले जाती है जिससे वो उसका श्राप समाप्त कर सके। मार्ग में विश्राम करते समय छोटी बहु देखती है कि एक साँप पास में सोए गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा है। ये देख कर वो उस साँप को मार देती है।

जब गरुड़ पंखनी वापस आती है तो अपने बच्चे के पास फैला खून देख कर ये समझती है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है। तब वो भी उसे श्राप देने को उद्धत हो जाती है। तब छोटी बहु उससे प्रार्थना करती है और सुरही गाय गरुड़ पंखनी को बताती है कि उसने तो उसके बच्चे को बचाया है। ये सुनकर गरुड़ पंखनी बहुत खुश होती है और उसे ये आशीर्वाद देती है कि उसका श्राप समाप्त हो जाएगा। साथ ही साथ हो उसे और सुरही गाय को उठा कर अतिशीघ्र स्याही के पास ले जाती है और फिर गरुड़ पंखनी और सुरही गाय स्याही से प्रार्थना करते हैं कि वो उसका श्राप वापस ले ले। 

तब छोटी बहु की सेवा और त्याग से प्रसन्न होकर स्याही अपना श्राप वापस ले लेती है और उसे सात पुत्रों का आशीर्वाद देती है। समय आने पर छोटी बहु के सात पुत्र होते हैं और आगे चल कर उनका विवाह सात सुशील कन्याओं से होता है। इस प्रकार साहूकार का घर पुत्र-पुत्रिओं से भर जाता है। 

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