नवरात्रि

आज से भारत में नवरात्रि का आरम्भ हो गया है जो आने वाले दस दिनों तक चलेगा और विजयादशमी (दहशरा) पर समाप्त होगा। ये भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसमें देवी पार्वती (दुर्गा) के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन्हे नवदुर्गा भी कहा जाता है। इन सभी का पूजन बारी-बारी से किया जाता है और सभी का वाहन सिंह कहा जाता है।

नवरात्रि के पहले तीन दिन माँ दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है जहाँ उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। पहले दिन बालिकाओं की, दूसरे दिन युवतियों की और तीसरे दिन परिपक्व महिलाओँ की पूजा करने का विधान है। पर्व के चौथे दिन देवी लक्ष्मी, पाँचवे दिन माँ सरस्वती और छठे दिन शांति देवी की पूजा की जाती है। सातवें दिन पुनः देवी सरस्वती की पूजा होती है और आठवें दिन माँ दुर्गा को बलिदान स्वरुप एक यज्ञ किया जाता है। नौवां दिन अंतिम पूजा का दिन होता है जिसे महानवमी भी कहते हैं। इस दिन नौ देवियों के प्रतीक स्वरुप नौ किशोरी कन्याओं की पूजा की जाती है। उनके चरण धोने के बाद उन्हें मिष्ठान एवं वस्त्र उपहार स्वरुप दिए जाते हैं। ये नौ देवियां हैं:
  1. शैलपुत्री: पर्वतपुत्री अर्थात देवी पार्वती का एक रूप
  2. ब्रह्मचारिणी: ब्रह्मचर्य की शिक्षा देने वाली
  3. चंद्रघंटा: चंद्र की तरह प्रकाशमान
  4. कूष्माण्डा: सम्पूर्ण जगत जिसके चरणों में हो 
  5. स्कंदमाता: कार्तिकेय की माता 
  6. कात्यायनी: जिनका जन्म कात्यायन आश्रम में हुआ हो
  7. कालरात्रि: काल का नाश करने वाली 
  8. महागौरी: श्वेतवर्णीय माता 
  9. सिद्धिदात्री: सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली 
इसका एक प्रकरण रामायण में मिलता है जब लंका युद्ध के समय ब्रह्मदेव श्रीराम को युद्ध जीतने के लिए देवी की १०८ कमल के पुष्पों से पूजा करने को कहते हैं। ब्रह्मदेव की आज्ञानुसार श्रीराम देवराज इंद्र द्वारा भेंट किये गए १०८ दिव्य नीलकमल के पुष्पों से देवी की पूजा आरम्भ करते हैं। जब रावण को ये पता चलता है तो वो अपनी  माया से एक कमलपुष्प चुरा लेता है। 

तब भगवान विष्णु की भांति श्रीराम भी कमलस्वरूप अपने एक आँख को देवी पर अर्पित करने को उद्धत होते हैं किन्तु तब माँ दुर्गा स्वयं प्रकट हो उन्हें ऐसा करने से रोकती है और उन्हें विजयश्री का आश्रीवाद देती है। इस प्रकार श्रीराम की पूजा संपन्न होती है। इसका समाचार मिलने पर रावण भी चंडीपाठ करना आरम्भ करता है जिसकी सूचना पवनदेव श्रीराम को देते है और उन्हें कहते हैं कि किसी भी प्रकार रावण के इस अनुष्ठान को भंग करें अन्यथा उसे पराजित करना असंभव हो जाएगा।

तब हनुमान रावण के यज्ञस्थल पर पहुंचकर एक बालक के रूप में सभी ब्राह्मणों की खूब सेवा करते हैं। तब उनकी सेवा से प्रसन्न होकर अधिष्ठाता ऋषि उनसे वरदान मांगने को कहते हैं। इसपर हनुमान कहते हैं कि "अगर आप मुझपर प्रसन्न हैं तो आप जिस मन्त्र से यज्ञ कर रहे हैं उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिये।" 

ऋषि हनुमान की योजना समझ नहीं पते हैं और उनके कहने पर "ह" अक्षर की जगह "क" अक्षर से मन्त्र बदल देते हैं। ऐसा करने पर उनका मन्त्र "भूर्तिहरिणी" (पीड़ा हरने वाली) से "भूर्तिकरिणी" (पीड़ा देने वाली) हो जाता है। इससे देवी अप्रसन्न हो जाती हैं और रावण के सर्वनाश का श्राप दे देती हैं। इसी के कारण विजयादशमी के दिन ही श्रीराम ने रावण का वध किया और वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे। 

इस सन्दर्भ में सबसे प्रसिद्ध कथा एक दैत्य महिषासुर की है जिसे ब्रह्माजी ने वरदान दिया और उसने अपनी शक्ति से नर्क का द्वार स्वर्गलोक की ओर खोल दिया। उसने सभी देवताओं को स्वर्ग से च्युत कर स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया। तब ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ने अपनी सम्मलित शक्ति से एक देवी की स्थापना की और सभी देवताओं ने उन्हें अपनी-अपनी शक्ति का अंश एवं अपने-अपने शस्त्र दिए। 

सभी देवताओं की सम्मलित शक्ति और त्रिदेवों के आशीर्वाद से वो देवी अजेय हो गयी। तब ब्रह्मदेव ने उन्हें "दुर्गा" नाम दिया जिसका अर्थ होता है सबके दुखों को हरने वाली। देवताओं के कष्टों को हरने के लिए देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया। तब से नवरात्री एवं विजयादशमी का पर्व मनाया जाने लगा। 

नवरात्रि अधर्म पर धर्म के विजय का प्रतीक है और इन नौ दिनों में हर मनुष्य भी अपने अंदर छिपे दुर्गुण रुपी राक्षस का वध करने का प्रयत्न करता है। दस दिन की पूजा के बाद ११वें दिन देवी की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है जिसके साथ हमारे सारे पापों का भी विसर्जन हो जाता है। 

या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 

अर्थात जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।

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