क्यों दूर्वा का हर पूजा में इतना महत्त्व है?

क्यों दूर्वा का हर पूजा में इतना महत्त्व है?
दूर्वा, जिसे हम हिंदी में दूब भी कहते हैं, का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। शायद ही ऐसी कोई पूजा हो जो दूर्वा के बिना संपन्न होती हो। आम तौर पर लोग दूर्वा और घास को एक ही समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। दूर्वा घास का ही एक प्रकार है जो हरे रंग की होती है और पृथ्वी पर फ़ैल कर बढ़ती है और कभी ऊपर नहीं उठती।

पुराणों के अनुसार दूर्वा की उत्पत्ति समुद्र मंथन से मानी गयी है। इसे समुद्र मंथन से निकले ८४ अन्य रत्नों में से एक माना जाता है। कथा के अनुसार समुद्र मंथन करते समय जब देव और दैत्य थकने लगे तो उसे जारी रखने के लिए श्रीहरि ने मंदराचल पर्वत को अपनी जंघा पर रख लिया और स्वयं समुद्र मंथन करने लगे। मंदराचल की रगड़ से श्रीहरि की जांघ का एक रोम टूट गया और उसी से दूर्वा का जन्म हुआ। नारायण के शरीर का भाग होने के कारण ये परम पवित्र कहलाई।

जब अमृत प्राप्त होने के बाद समुद्र मंथन का समापन हुआ तो नारायण ने मोहिनी रूप धर कर कुछ समय के लिए अमृत को इसी दूर्वा पर रख दिया। अमृत का स्पर्श होने से इसकी पवित्रता और बढ़ गयी और ये वनस्पति अमर हो गयी। इसीलिए दूर्वा ही एक ऐसी वनस्पति है जो किसी भी परिस्थित में बिना किसी की सहायता के स्वयं बढ़ सकती है। इसे अमृता, अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी इत्यादि नामों से भी जानते हैं।

समुद्र मंथन के सन्दर्भ में ही दूर्वा के लिए हमारे धर्म ग्रंथों में एक श्लोक आता है -

त्वं दूर्वे अमृतनामासि सर्वदेवैस्तु वन्दिता।
वन्दिता दह तत्सर्वं दुरितं यन्मया कृतम॥
विष्णवादिसर्वदेवानां दूर्वे त्वं प्रीतिदा यदा।
क्षीरसागर संभूते वंशवृद्धिकारी भव।।

दूर्वा सदैव भूमि पर ही उगती है और ऊपर नहीं उठती। इसे इसकी नम्रता मान कर गुरु नानक ने कहा था -

नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूब।
बड़े-बड़े बही जात हैं, दूब खूब की खूब।।

अर्थात: झुक कर चलने वालों का कोई कुछ नहीं बिगड़ पाता जैसे सैलाब आने पर दूब लेट जाती है और सैलाब ऊपर से निकल जाता है। जिससे दूब तो और बढ़ जाती है लेकिन न झुकने वाले बड़े-बड़े पेड़ सैलाब में बह जाते हैं।

पूजा में दूर्वा का महत्त्व तो है ही लेकिन कोई भी यज्ञ इसके बिना पूर्ण नहीं होता। ऐसी मान्यता है कि दूर्वा यज्ञ में तीन महान अवगुणों - आणव, कार्मण एवं मायिक का नाश कर देती है। हिन्दू कर्मकांडों एवं सभी १६ संस्कारों में दूर्वा का प्रयोग किया जाता है। कोई भी मांगलिक अवसर दूर्वा की उपस्थिति के बिना अधूरा माना जाता है।

स्त्रियों को विशेष कर दूर्वा का पूजन करने को कहा गया है। ऐसी मान्यता है ऐसा करने से उनका सुहाग अखंड रहता है। महान पतिव्रताओं जैसे माता सीता और दमयन्ती द्वारा भी दूर्वा के पूजन का वणन हमें ग्रंथों में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी स्त्री दूर्वा द्वारा पूजन करती है वो अपने पति के साथ उसी के लोक को प्राप्त करती है।

वैसे तो दूर्वा सभी देवताओं को अत्यंत प्रिय है किन्तु विशेष रूप से श्रीगणेश को ये अति प्रिय है। इसके विषय में एक कथा पुराणों में आती है कि अनलासुर नामक एक असुर था जिसने अग्नि को अपने वश में कर रखा था। उसी के बल पर वो समस्त संसार को प्रताड़ित किया करता था। स्वयं देवराज इंद्र भी उसे परास्त नहीं कर सके। तब सभी देवता महादेव की शरण में गए तो उन्होंने अपने पुत्र श्रीगणेश से पृथ्वी का कल्याण करने को कहा।

अपने पिता की आज्ञा अनुसार श्रीगणेश ने अनलासुर से युद्ध किया और उसे जीवित ही निगल कर देवताओं को भयमुक्त किया। जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उसके ताप से उनके उदर में भयानक पीड़ा होने लगी। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें दूर्वा की २१ गांठें खाने को दी जिसे खाने के बाद उन्हें उस ताप से मुक्ति मिली। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढाने का विशेष विधान है।

श्रीगणेश को आम तौर पर ११ दूर्वा चढ़ाई जाती है और प्रत्येक के साथ उनका एक मन्त्र बोला जाता है। श्रीगणेश के ये ११ मन्त्र हैं - ऊँ गं गणपतेय नम:, ऊँ गणाधिपाय नमः, ऊँ उमापुत्राय नमः, ऊँ विघ्ननाशनाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:, ऊँएकदन्ताय नमः, ऊँ इभवक्त्राय नमः, ऊँ मूषकवाहनाय नमः एवं ऊँ कुमारगुरवे नमः।

जिस दूर्वा ने स्वयं श्रीगणेश के लिए औषधि का प्रयोग किया उसकी महत्ता तो आयुर्वेद में होना निश्चित है। दूर्वा को औषधीय गुणों से परिपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि त्रिफ़ल के अतिरिक्त केवल दूर्वा ही ऐसी वनस्पति है जो तीन मुख्य विकारों - वात, पित्त और कफ का नाश करती है। इसे प्राकृतिक रूप से सबसे प्रभावकारी एंटीबायोटिक माना गया है जिसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

इसके अतिरिक्त दूर्वा अनिद्रा एवं चर्म रोगों से लड़ने में फायदेमंद मानी जाती है। ये रक्त को साफ़ करती है और गले सम्बन्धी रोगों में भी इसे उपयोग में लाया जाता है। दूर्वा का जो सबसे प्रसिद्ध गुण है वो दृष्टि वर्धन का है। कहते हैं सुबह-सुबह नंगे पांव दूर्वा पर चलने से कमजोर आँखों की रौशनी भी वापस आ जाती है। ये एक आजमाया हुआ उपाय है जिसे करोडो लोग उपयोग में लाते हैं।

कुल मिलकर दूर्वा हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण वनस्पतियों में से एक है जिसका उपयोग ना केवल पूजा एवं कर्मकांडों में अपितु चिकित्सा विज्ञान में प्रमुख रूप से किया जाता है। ये इस संसार में प्रकृति प्रदत्त एक वरदान की भांति ही है।

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