14 नवंबर 2012
1 अक्तूबर 2012
शरभ अवतार द्वारा भगवान नरसिंह का मान मर्दन
भगवान विष्णु के वराह अवतार द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष के वध के पश्चात ब्रह्मा से वरदान पा उसके बड़े भाई हिरण्यकशिपु के अत्याचार हद से अधिक बढ़ गए। सारी सृष्टि त्राहि-त्राहि करने लगी। जहाँ एक ओर हिरण्यकशिपु संसार से धर्म का नाश करने पर तुला हुआ था, वही उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन था। हिरण्यकश्यप जब किसी भी तरह प्रह्लाद को नहीं समझा सका तो उसने उसे कई बार मारने का प्रयत्त्न किया किन्तु प्रह्लाद हर बार भगवान विष्णु की कृपा से बच गया। यहाँ तक कि इस प्रयास में उसकी बहन होलिका भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी। अंत में जब वो स्वयं प्रह्लाद को मारने को तत्पर हुआ तो अपने भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु स्वयं नृसिंह अवतार में प्रकट हुए।
7 सितंबर 2012
प्रमुख नाग कुल
पुराणों के अनुसार महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उनसे ही सभी जातियों की उत्पत्ति हुई। इसके बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें। कश्यप एवं उनकी की पत्नी क्रुदु से नाग जाति (नाग और सर्प जाति अलग-अलग है) की उत्पत्ति हुई जिसमे नागों के आठ प्रमुख कुल चले। इनका वर्णन नीचे दिया गया है:
- अनंत (शेषनाग): कद्रू के पुत्रों में सबसे पराक्रमी। उन्होंने अपनी छली माँ भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। भाइयों तथा क्रुदु का का विमाता विनता तथा सौतेले भाइयों अरुण और गरुड़ के प्रति द्वेष भाव ही उसकी सांसारिक विरक्ति का कारण था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया कि उसकी बुद्धि सदैव धर्म में लगी रहे। साथ ही ब्रह्मा ने उसे आदेश दिया कि वह पृथ्वी को अपने फन पर संभालकर धारण करे, जिससे कि वह हिलना बंद कर दे तथा स्थिर रह सके। शेष नाग ने इस आदेश का पालन किया। उसके पृथ्वी के नीचे जाते ही सर्पों ने उसके छोटे भाई, वासुकि का राज्यतिलक कर दिया। श्रीहरि विष्णु शेषनाग पर ही शयन करते हैं। जब वसुदेव भगवान कृष्ण को नन्द गाँव पहुँचाने के लिए यमुना में उतरे तो इन्होने ही दोनों की रक्षा की थी। श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण और श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम इन्ही के अवतार माने जाते हैं।
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30 जुलाई 2012
25 जुलाई 2012
28 अप्रैल 2012
महाराज युधिष्ठिर से मोहम्मद गोरी तक के वंश का वर्णन
महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की ३० पीढ़ियों ने १७७० वर्ष ११ माह १० दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। युधिष्ठिर से पहले प्रजापति ब्रम्हा तक के वंशों का वर्णन देखने के लिए यहाँ जाएँ।
- युधिष्ठिर: ३६ वर्ष
- परीक्षित: ६० वर्ष
- जनमेजय: ८४ वर्ष
- अश्वमेध: ८२ वर्ष
- द्वैतीयरम: ८८ वर्ष
- क्षत्रमाल: ८१ वर्ष
- चित्ररथ: ७५ वर्ष
- दुष्टशैल्य: ७५ वर्ष
22 अप्रैल 2012
जब दो ब्रह्मास्त्रों का सामना हुआ
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे - अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा ने पांडवों को छल से मारने की प्रतिज्ञा की। उसने दुर्योधन को मरते हुए वचन दिया था कि जैसे भी हो वो पांचों पांडवों को अवश्य मार डालेगा। कृपाचार्य ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर अंततः उन्होंने भी उसका साथ देने की स्वीकृति भर दी।
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10 अप्रैल 2012
जब शिव ने सती का त्याग किया
सभी लोग जानते हैं कि सती ने अपने पिता द्वारा शिव को यज्ञ में आमंत्रित न करने और उनका अपमान करने पर उसी यज्ञशाला में आत्मदाह कर लिया था लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इसकी भूमिका बहुत पहले हीं लिखी जा चुकी थी। बात उन दिनों की है जब रावण ने सीता का हरण कर लिया था और श्रीराम और लक्ष्मण उनकी खोज में दर दर भटक रहे थे। जब सती ने ये देखा कि श्रीराम विष्णु के अवतार होते हुए भी इतना कष्ट उठा रहे हैं तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने भगवान शिव से पूछा कि प्रभु भगवान विष्णु तो आपके परम भक्त हैं फिर किस पाप के कारण वे इतना कष्ट भोग रहे हैं? भगवान शिव ने कहा कि चूँकि श्रीहरि विष्णु मनुष्य रूप में हैं इसलिए एक साधारण मनुष्य की तरह हीं वे भी दुःख भोग रहे हैं। सती ने पूछा कि अगर विष्णु केवल एक मनुष्य के रूप में हैं तो क्या उनमे वो सरे दिव्य गुण हैं जो श्रीहरि विष्णु में हैं? शिव ने जवाब दिया कि हाँ मनुष्य होते हुए भी वे उन सारी कलाओं से युक्त हैं जो श्रीहरि विष्णु में हैं।
23 मार्च 2012
कश्यप ऋषि से सम्पूर्ण जाति की उत्पत्ति
महर्षि कश्यप ब्रम्हा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे। इस प्रकार वे ब्रम्हा के पोते हुए। महर्षि कश्यप ने ब्रम्हा के पुत्र प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया। संसार की सारी जातियां महर्षि कश्यप की इन्ही १७ पत्नियों की संतानें मानी जाति हैं। इसी कारण महर्षि कश्यप की पत्नियों को लोकमाता भी कहा जाता है। उनकी पत्नियों और उनसे उत्पन्न संतानों का वर्णन नीचे है:
- अदिति: आदित्य (देवता)। ये १२ कहलाते हैं. ये हैं अंश, अयारमा, भग, मित्र, वरुण, पूषा, त्वस्त्र, विष्णु, विवस्वत, सावित्री, इन्द्र और धात्रि या त्रिविक्रम (भगवन वामन)।
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6 मार्च 2012
महाभारत में अठारह संख्या का महत्त्व
महाभारत कथा में १८ (अठारह) संख्या का बड़ा महत्त्व है। महाभारत की कई घटनाएँ १८ संख्या से सम्बंधित है। कुछ उदाहरण देखें:
पुराणों में श्लोकों की संख्या
- ब्रह्मपुराण: १४०००
- पद्मपुराण: ५५०००
- विष्णुपुराण: २३०००
- शिवपुराण: २४०००
- श्रीमद्भावतपुराण: १८०००
- नारदपुराण: २५०००
- मार्कण्डेयपुराण: ९०००
- अग्निपुराण: १५०००
- भविष्यपुराण: १४५००
- ब्रह्मवैवर्तपुराण: १८०००
- लिंगपुराण: ११०००
- वाराहपुराण: २४०००
- स्कन्धपुराण: ८११००
- वामनपुराण: १००००
- कूर्मपुराण: १७०००
- मत्सयपुराण: १४०००
- गरुड़पुराण: १९०००
- ब्रह्माण्डपुराण: १२०००
इस प्रकार सारे पुराणों के श्लोकों की कुल संख्या लगभग ४०३६०० (चार लाख तीन हजार छः सौ) है। इसके अलावा रामायण में लगभग २४००० एवं महाभारत में लगभग ११०००० श्लोक हैं।
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