जब भी हम द्रौपदी स्वयंवर की बात करते हैं तो हमें एक प्रतियोगिता याद आती है जो द्रौपदी के पिता महाराज द्रुपद ने रखी थी। हममे से अधिकतर लोग यही जानते हैं कि द्रौपदी स्वयंवर में ये शर्त थी कि जो कोई वीर नीचे रखे पात्र, जिसमें तेल भरा था, उसमें ऊपर घूमती हुए मछली की परछाई देख कर उसकी आंख में बाण मार सकेगा, वही द्रौपदी का पति होगा। हालाँकि जब हम व्यास महाभारत पढ़ते हैं तो हमें ऐसा कोई वर्णन नहीं मिलता।
महाभारत के आदिपर्व के स्वयंवर उपपर्व के अध्याय १८४ में हमें इस स्वयंवर की शर्त के बारे में पता चलता है। इसके अनुसार महाराज द्रुपद सदा से यही चाहते थे कि उनकी पुत्री द्रौपदी का विवाह पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ हो। हालाँकि उस समय तक ये बात फ़ैल गयी थी कि पांडव लाक्षागृह में जल कर मर गए हैं किन्तु द्रुपद को ये विश्वास नहीं था कि पांडवों जैसे महावीर इस प्रकार आग में जल कर मर सकते हैं।
इसी लिए अर्जुन को ढूंढ निकालने के लिए महाराज द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर का आयोजन किया। चूँकि वे अर्जुन से अपनी पुत्री का विवाह करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने प्रतियोगिता भी धनुष सञ्चालन की ही रखी। उन्होंने सबसे पहले एक ऐसा कठोर धनुष बनवाया जिसे कोई वीर झुका ना सके। इसके बाद उन्होंने एक कृत्रिम आकाश यंत्र भी बनवाया जो तीव्रगति से आकाश में घूमता रहता था। उस यंत्र में केवल बाण के बराबर ही एक छेद करवाया जिसमें से एक समय में केवल एक बाण ही पार हो सकता था।
उसी यंत्र के पीछे उन्होंने वो लक्ष्य रखवाया जिसे भेदने की शर्त थी। शर्त ये थी कि जो कोई भी योद्धा इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर अपने बाण से उस घूमते हुए यंत्र के छेद के बीच में से उसके पीछे रखे लक्ष्य को भेद देगा, उसे ही द्रौपदी धर्मपत्नी के रूप में प्राप्त होगी। तो यहाँ पर आप देख सकते हैं कि कहीं पर भी मछली का कोई वर्णन नहीं है। ना ही तेल या जल में मछली का प्रतिबिम्ब देख कर निशाना लगाने की बात की गयी है। बजाय इसके शर्त ये थी कि घूमते हुए यंत्र के छिद्र के बीच में से सीधे ही निशाना लगाना था, जो अपने आप में बहुत कठिन था।
इसके बाद देश विदेश से राजा राजकुमार स्वयंवर को पधारने लगे और उनके आने के १६ दिनों बाद स्वयंवर का आयोजन किया गया। इसी अध्याय में एक बार फिर से धृष्टधुयम्न द्वारा स्वयंवर की शर्त बताई जाती है। जब द्रौपदी अपने भाई के साथ स्वयंवर स्थल में पधारती है तब धृष्टधुम्न वहां उपस्थित सभी राजाओं के सामने स्वयंवर की शर्त का एक बार और उल्लेख करते हैं।
वे कहते हैं कि "यहाँ आये सभी लोग मेरी बात ध्यान से सुनें। यह धनुष है, ये बाण हैं और यह निशाना। आपलोग आकाश में छोड़े हुए पांच पैने बाणों द्वारा उस यंत्र के छेद के भीतर से लक्ष्य को बेध कर गिरा दें। मैं सत्य कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता कि जो उत्तम कुल, सुन्दर रूप और श्रेष्ठ बल से संपन्न वीर यह महान कर्म कर दिखायेगा, आज मेरी यह बहन कृष्णा उसी की धर्मपत्नी होगी।"
तो यहाँ हमें कुछ विशेष बातें जानने को मिलती है।
- उस स्वयंवर में कहीं पर भी तेल में मछली की परछाई देख कर उसकी आंख में निशाना लगाने की शर्त नहीं थी, जैसा कि हम आम तौर पर जानते हैं और जैसा टीवी सीरियलों में दिखाया जाता है।
- इसके बजाय सीधे ही ऊपर घूमते हुए आकाश यंत्र के छोटे से छेद के बीच से उसके पीछे रखे लक्ष्य को गिराने की बात थी। हालाँकि तीव्र गति से एक घूमते हुए यंत्र के छोटे से छेद के बीच से सीधे बाण मारना भी अत्यंत ही कठिन था।
- यहाँ पर ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि लक्ष्य वास्तव में क्या है। हर स्थान पर उसे लक्ष्य ही कहा गया है। जब अर्जुन अंत में बाण चलाते हैं तो उस समय भी यही कहा गया है कि उन्होंने लक्ष्य को बेध दिया है। तो ये कहा नहीं जा सकता कि वो लक्ष्य एक मछली थी या कुछ और। शायद इसीलिए बाद में लोगों ने अपने मन से उसे मछली ही मान लिया और बाद में कुछ और बातें भी इसमें जोड़ दी गयी।
- लक्ष्य को बेधने के लिए केवल एक बाण नहीं बल्कि पांच बाण रखे थे। अर्थात यदि कोई वीर उस कठोर और भारी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा लेता तो उसे लक्ष्य को बेधने के अधिकतम पांच अवसर मिलते। हालाँकि अंत में अर्जुन ने पांचों बाणों से एक साथ ही उस लक्ष्य को बेध दिया था।
- आकाश यंत्र के सन्दर्भ में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा कि वो किसी डंडे से जुड़ा था या उसका कोई आधार था। इससे यही पता चलता है कि वो यंत्र स्वतः ही आकाश में तीव्र गति से घूम रहा था। इसे कुछ कुछ आज के हेलीकॉप्टर या ड्रोन का एक रूप समझा जा सकता है। इससे आप ये समझ सकते हैं कि उस समय का विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा।
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