रामायण के अरण्य कांड के ३३वें सर्ग में हमें शूर्पणखा और रावण के साक्षात्कार का वर्णन आता है और इसी सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने संक्षेप में रावण के बल के विषय में बताया है। जब श्रीराम ने जनस्थान में खर और दूषण का वध कर दिया तब शूर्पणखा रावण से मिलने लंकापुरी में गयी। यहीं पर रावण के व्यक्तित्व और बल का वर्णन है:
- शूर्पणखा ने देखा कि रावण अपने विमान पर बैठा और उसके चारो और उसके मंत्री बैठे हैं। उस समय वो मरुद्गणों से घिरे हुए इंद्र के समान लग रहा था। यहाँ कुछ लोग विमान को पुष्पक विमान मानते हैं जबकि कुछ लोग उसे रावण का सातमंजिला भवन मानते हैं। संस्कृत में बहुत बड़े भवन को भी विमान ही कहा जाता है।
- रावण जिस स्वर्ण सिंहासन पर बैठा था वो अद्वितीय था और सूर्य की भांति जगमगा रहा था। उसपर बैठा हुए वो महाकाल की भांति लग रहा था।
- देवता, गन्धर्व, भूत और महात्मा ऋषि भी रावण को जीतने में असमर्थ थे। युद्ध भूमि में वो साक्षात् यमराज की भांति जान पड़ता था।
- देवताओं के साथ युद्ध में उसके शरीर में देवराज इंद्र ने वज्र और अशनि का प्रहार किया था जिसके चिह्न अभी भी उसके शरीर पर थे।
- उसी युद्ध में ऐरावत ने भी उसके वक्ष पर अपने दांत गड़ाए थे जिसके निशान अब भी उसके वक्षस्थल पर थे।
- उसकी बीस भुजाएं और दस मस्तक थे। उसके छत्र, चंवर, आभूषण इत्यादि देखने योग्य थे। उसने अपने शरीर में एक वैदूर्यमणि (नीलम) पहन रखी थी और उसके शरीर का रंग भी वैसा ही था। उसने तपाये हुए सोने के आभूषण पहन रखे थे। उसका वक्षस्थल विशाल, भुजाएं सुन्दर, दांत सफ़ेद, मुँह बहुत बड़ा और शरीर पर्वत के समान विशाल था।
- देवताओं के साथ युद्ध करते समय उसके शरीर पर सैकड़ों बार भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रहार हुआ था। और भी कई युद्धों में उसके शरीर पर अनेक अस्त्र-शस्त्रों की मार पड़ी थी जिसके चिह्न अभी भी उसके शरीर पर दिखाई देते थे।
- उसका शरीर देवताओं के प्रहारों से भी खंडित नहीं हुआ था। अपने उसी अंगों से वो समुद्र में भी हलचल पैदा कर देता था। किसी भी कार्य को वो बड़ी शीघ्रता से कर देता था।
- वो पर्वत शिखरों को तोड़ कर फेक देता था, देवताओं को भी रौंद डालता था और धर्म की तो वो जड़ ही काट डालता था। वो परायी स्त्रियों के सतीत्व का नाश करने वाला था।
- वो सभी प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने वाला और सदा यज्ञों में विध्न डालने वाला था।
- एक बार उसने पाताल की भोगवती पुरी में जाकर युद्ध में स्वयं नागराज वासुकि को परास्त किया था। इसके बाद उसने नागराज तक्षक को भी परास्त किया और उसकी प्रिय पत्नी को हर लाया।
- इसी प्रकार उसने कैलाश जाकर यक्षराज कुबेर को युद्ध में पराजित किया और उनके इच्छानुसार चलने वाले पुष्पक विमान को अपने अधिकार में ले लिया।
- रावण क्रोधपूर्वक कुबेर के दिव्य चैत्ररथ वन को, सौगंधिक कमलों से युक्त नलिनी नामक पुष्करिणी को, इंद्र के नंदनवन को तथा देवताओं के दूसरे उद्यानों को नष्ट करता रहता था।
- वह इतना शक्तिशाली था कि पर्वत शिखर के समान आकार धारण करके चन्द्रमा और सूर्य को उनके उदयकाल में अपने हाथों से रोक देता था।
- उस धीर स्वाभाव वाले रावण ने पूर्वकाल में एक विशाल वन के भीतर १०००० वर्षों तक घोर तप करके ब्रह्माजी को अपने मस्तकों की बलि दे दी थी।
- उसके प्रभाव से उसे देवता, दानव, गन्धर्व, पिशाच, पक्षी और सर्पों से भी संग्राम में अभय प्राप्त हो गया था। मनुष्य के अतिरिक्त और किसी के हाथ से उसे मृत्यु का भय नहीं था। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि आम तौर पर लोग समझते हैं कि रावण ने वरदान में मनुष्यों के साथ साथ वानरों को भी छोड़ दिया था किन्तु ऐसा नहीं है। रामायण के अनुसार अपने बल के घमंड में रावण ने केवल मनुष्यों का नाम नहीं लिया था।
- वो महाबली राक्षस यज्ञों में वेदमंत्रों द्वारा निकले गए तथा वैदिक मन्त्रों से पवित्र हुए सोमरस को वहां पहुँच कर नष्ट कर देता था।
- जो यज्ञ समाप्ति के निकट होते थे, रावण उसका विध्वंस कर देता था। वो ब्राह्मणों की हत्या और अन्य क्रूर कर्म किया करता था। वो बहुत रूखे और निर्दयी स्वाभाव का था और सदैव अपनी प्रजा के अहित में लगा रहता था।
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