गोत्र क्या होता है? समान गोत्र में विवाह क्यों नहीं होता?

गोत्र क्या होता है? समान गोत्र में विवाह क्यों नहीं होता?
गोत्र की अवधारणा हिन्दू धर्म में सदा से है। ये हिन्दू धर्म के सबसे जटिल विषयों में से एक है। गोत्र को अति प्राचीन माना गया है। यहाँ तक कि ऐसा कहा गया है कि गोत्र पहले आये और फिर वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ हुई। अर्थात गोत्र की अवधारणा वर्ण व्यवस्था से भी प्राचीन है।

गोत्र शब्द में "गो" का अर्थ है इन्द्रियाँ और "त्र" का अर्थ है रक्षा करने वाला। अर्थात गोत्र उनके नाम पर होता है जो परिवार और समाज की रक्षा करने वाले हों। प्राचीन काल से ही ऋषियों को समाज का रक्षक माना गया है इसी कारण गोत्र ऋषियों के नाम पर ही रखे जाते हैं। हालाँकि हिन्दू धर्म में वनस्पतियों, पशु-पक्षियों को भी रक्षक माना गया है इसी कारण कई गोत्र उनके नाम पर भी होते हैं जैसे सिंह, मत्स्य, अश्वथ (पीपल) इत्यादि।

पाणिनि ग्रन्थ के श्लोक ४.१.१६२ में गोत्र की परिभाषा दी गयी है - 

"अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्"।

अर्थात: गोत्र शब्द का अर्थ है पुत्र के पुत्र (पौत्र) के साथ आरम्भ होने होने वाली संतान्। इसे दूसरे रूप में समझें तो हर गोत्र अतीत में जाकर अपने एक मूल पुरुष, अर्थात ऋषि से मिलती है। इसे आप अपने पूर्वजों का DNA मान सकते हैं जिससे हमें पता चलता है कि हमारे मूल पूर्व पुरुष कौन थे और आखिरकार हमारे वंश का आरम्भ किस ऋषि से हुआ।

अब एक प्रश्न ये आता है कि गोत्र का आरम्भ किसी ब्राह्मण ऋषि से ही क्यों आरम्भ होता है। तो ये बताना आवश्यक है कि बहुत आरम्भिक काल में, जब गोत्र की अवधारणा का जन्म हुआ, तब गोत्र ब्राह्मण ऋषियों के नाम पर ही रखे गए। कारण ये कि गोत्र का आरम्भ परमपिता ब्रह्मा की प्रथम पीढ़ी के साथ ही हो गया जो ब्राह्मण वर्ण (जाति नहीं) के थे। वर्ण और जाति के अंतर के विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें। 

गोत्र वैसे तो इतना जटिल था नहीं किन्तु आगे चल कर जटिल बन गया। कारण ये कि गोत्र का आरम्भ प्रथम स्वयंभू मनु के मन्वन्तर में ब्रह्मा जी के साथ मानस पुत्रों, जिन्हे सप्तर्षि कहा जाता है, उनसे ही हुई थी। तो यदि प्रथम मन्वन्तर के प्रथम सप्तर्षियों की बात करें तो वे थे - मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य एवं वशिष्ठ

अर्थात प्रथम मन्वन्तर के सात सप्तर्षियों से सात मूल गोत्र चले। हालाँकि आगे के मन्वन्तरों में ये क्रम थोड़ा जटिल हो गया। जैसा कि हम जानते हैं कि ब्रह्मा जी के आधे दिन में १४ मनु शासन करते हैं जिन्हे मन्वन्तर कहा जता है। ब्रह्मा जी की आयु के विषय में विस्तार से यहाँ जानें। हर मन्वन्तर में अलग-अलग सात महर्षि सप्तर्षि का पद सँभालते हैं। किन्तु मूल सप्तर्षि इन सातों महापुरुषों को ही माना जाता है। अब चूँकि हर मन्वन्तर में सप्तर्षि अलग होते हैं, इसी कारण अलग-अलग ग्रंथों में मूल गोत्र भी अलग-अलग बताये गए हैं।

प्रथम स्वयंभू मनु के सप्तर्षियों और उनसे प्रारम्भ होने वाले गोत्र के अतिरिक्त गोत्र के आरम्भ का सबसे प्रामाणिक विवरण हमें महाभारत के शांतिपर्व में मिलता है। महाभारत के अनुसार मूल गोत्र चार ऋषियों से आरम्भ हुए। ये थे - अंगिरस, वशिष्ठ, भृगु एवं कश्यप। इनमें से प्रथम दो तो स्वयंभू मनु के मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं, भृगु और कश्यप ने भी आगे के मन्वन्तरों में सप्तर्षि का पद स्वीकार किया।

इन चार के अतिरिक्त वर्तमान (वैवस्वत) मन्वन्तर के तीन और सप्तर्षियों को भी मूल गोत्र ऋषि के रूप में जोड़ा गया। ये थे - अत्रि, जमदग्नि एवं विश्वामित्र। इस प्रकार मूल गोत्र ऋषि ७ हो गए। बाद में इस सूची में महर्षि पुलत्स्य के पुत्र महर्षि अगस्त्य को भी जोड़ दिया गया, क्यूंकि दक्षिण भारत में संस्कृति का प्रसार इन्होने ही किया था। इससे इनकी संख्या ८ हो गयी। आज भी सभी गोत्रों में इन्ही आठ गोत्र को मूल गोत्र की मान्यता प्राप्त है। हालाँकि कई लोग प्रथम सप्तर्षियों से चले सात गोत्रों को ही मूल मानते हैं।

प्रारम्भ में गोत्र व्यवस्था केवल ब्राह्मणों में थी किन्तु कालांतर में अन्य वर्णों के लोगों ने भी इस व्यवस्था को अपनाया। आगे चल कर जब और कई प्रमुख महर्षियों का उद्भव हुआ तो उनके नाम पर भी अलग गोत्र चले। विशेषकर जब अज्ञानता के कारण वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था मान लिया गया तो सभी लोगों ने अपने कुल के मूल पुरुषों के नाम पर अपने अलग गोत्र रख लिए। आज वैसे तो मुख्य रूप से १०८ और गौण शाखाओं के साथ ११५ गोत्र माने जाते हैं किन्तु छोटे-बड़े सभी गोत्रों को जोड़ें तो इनकी संख्या ५००० से भी पार चली जाती है।

वैसे तो आज भी हम प्राचीन काल से चले आ रहे मूल ऋषियों के गोत्र को अपना गोत्र मानते हैं किन्तु मनुस्मृति के अनुसार सात पीढ़ियों के बाद गोत्र बदल जाता है और फिर पुनः आरम्भ से गोत्र की गणना करनी पड़ती है। यह एक जटिल विज्ञान है जिसे समझना बहुत ही कठिन है। कदाचित इसी कारण आज भी हम प्राचीन काल के ऋषियों पर ही अपना गोत्र आगे बढ़ा रहे हैं।

आधुनिक काल में गोत्र की अवधारणा और संपत्ति का स्वामित्व एवं उत्तराधिकार निर्धारित करने की दो प्रमुख प्रणाली मानी जाती है। पहली है पहली है "दायभाग" जो बंगाल और असम में प्रचलित है और दूसरी है "मिताक्षरा" जो भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है। मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर आधारित है वहीं दायभाग जीमूतवाहन स्मृति पर। दोनों प्रणालियां गोत्र के साथ साथ ये भी बताती है कि पिता के बाद उनका उत्तराधिकारी किस क्रम में कौन होगा। 

दोनों क्रम बहुत हद तक समान हैं बस थोड़ा सा अंतर है। मिताक्षरा और दायभाग, दोनों के अनुसार सपंत्ति के उत्तराधिकारी क्रम से २८ लोग हो सकते हैं। नीचे के चित्र में आपको ये क्रम समझ में आ जाएगा।
मिताक्षरा और दायभाग
सभी गोत्रों में कश्यप गोत्र सबसे वृहद् माना गया है। हेमाद्रि चन्द्रिका में कहा गया है -

गोत्रस्य त्वपरिज्ञाने काश्यपं गोत्रमुच्यते।
यस्मादाह श्रुतिस्सर्वाः प्रजाः कश्यपसंभवाः।।

अर्थात: यदि किसी को अपने गोत्र का ज्ञान ना हो तो उसे कश्यप गोत्र को मानना चाहिए क्यूंकि कश्यप ऋषि ने कई स्त्रियों से विवाह किया जिनसे सभी जातियों का जन्म हुआ।

महर्षि कश्यप की सभी पत्नियों और उनसे उत्पन्न सभी जातियों के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ जाएँ।

हिन्दू धर्म में एक ही गोत्र में विवाह करना निषिद्ध माना गया है। कारण ये है कि एक ही गोत्र के होने के कारण उनके मूल पुरुष एक हो जाते हैं और इस प्रकार उनका सम्बन्ध भाई और बहन का हो जाता है। ये तो सर्वविदित है ही कि हिन्दू धर्म में भाई और बहन के बीच किसी भी स्थिति में विवाह नहीं हो सकता। हालाँकि आज कल कुछ अधिक पढ़े लिखे लोग इसे नहीं मानते किन्तु इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है।

शास्त्रों में ऐसा स्पष्ट रूप से वर्णित है कि एक ही गोत्र में विवाह करने से कई प्रकार के अनुवांशिक रोग होने की सम्भावना है। होने वाली संतान वीर्यहीन, अक्षम और कई रोगों से ग्रसित होने की सम्भावना प्रबल होती है। आज का आधुनिक विज्ञान भी ऐसा ही मानता है।

आइये अब चलते चलते मुख्य गोत्रों के नाम जान लेते हैं।
  1. वशिष्ठ गोत्र - इसकी पांच शाखाएं हैं। 
    1. पर वशिष्ठ गोत्र
    2. अपर वशिष्ठ गोत्र
    3. उत्तर वशिष्ठ गोत्र
    4. पूर्व वशिष्ठ गोत्र
    5. दिवा वशिष्ठ गोत्र
  2. आंगिरस गोत्र
  3. भृगु गोत्र
  4. कश्यप गोत्र
  5. अत्रि गोत्र
  6. जमदग्नि गोत्र
  7. विश्वामित्र गोत्र
  8. अगस्त्य गोत्र
  9. मुद्गल गोत्र
  10. पातंजलि गोत्र
  11. कौशिक गोत्र
  12. मरीच गोत्र
  13. च्यवन गोत्र
  14. पुलह गोत्र
  15. आष्टिषेण गोत्र
  16. उत्पत्ति शाखा
  17. गौतम गोत्र
  18. वात्स्यायन गोत्र
  19. बुधायन गोत्र
  20. माध्यन्दिनी गोत्र
  21. अज गोत्र
  22. वामदेव गोत्र
  23. शांकृत्य गोत्र
  24. आप्लवान गोत्र
  25. सौकालीन गोत्र
  26. सोपायन गोत्र
  27. गर्ग गोत्र
  28. सोपर्णि गोत्र
  29. मैत्रेय गोत्र
  30. पराशर गोत्र
  31. अंगिरा गोत्र
  32. क्रतु गोत्र
  33. अधमर्षण गोत्र
  34. बुधायन गोत्र
  35. आष्टायन कौशिक गोत्र
  36. अग्निवेष भारद्वाज गोत्र
  37. कौण्डिन्य गोत्र
  38. मित्रवरुण गोत्र
  39. कपिल गोत्र
  40. शक्ति गोत्र
  41. पौलस्त्य गोत्र
  42. दक्ष गोत्र
  43. सांख्यायन कौशिक गोत्र
  44. कृष्णात्रेय गोत्र
  45. भार्गव गोत्र
  46. हारीत गोत्र
  47. धनञ्जय गोत्र
  48. पाराशर गोत्र
  49. आत्रेय गोत्र
  50. पुलस्त्य गोत्र
  51. भारद्वाज गोत्र
  52. कुत्स गोत्र
  53. शांडिल्य गोत्र
  54. भरद्वाज गोत्र
  55. कौत्स गोत्र
  56. कर्दम गोत्र
  57. पाणिनि गोत्र
  58. वत्स गोत्र
  59. कुश गोत्र
  60. जमदग्नि कौशिक गोत्र
  61. कुशिक गोत्र
  62. देवराज गोत्र
  63. धृत कौशिक गोत्र
  64. किंडव गोत्र
  65. कर्ण गोत्र
  66. जातुकर्ण गोत्र
  67. काश्यप गोत्र
  68. गोभिल गोत्र
  69. सुनक गोत्र
  70. शाखाएं गोत्र
  71. कल्पिष गोत्र
  72. मनु गोत्र
  73. माण्डब्य गोत्र
  74. अम्बरीष गोत्र
  75. उपलभ्य गोत्र
  76. व्याघ्रपाद गोत्र
  77. जावाल गोत्र
  78. धौम्य गोत्र
  79. यागवल्क्य गोत्र
  80. और्व गोत्र
  81. दृढ़ गोत्र
  82. उद्वाह गोत्र
  83. रोहित गोत्र
  84. सुपर्ण गोत्र
  85. गालिब गोत्र
  86. वशिष्ठ गोत्र
  87. मार्कण्डेय गोत्र
  88. अनावृक गोत्र
  89. आपस्तम्ब गोत्र
  90. उत्पत्ति शाखा गोत्र
  91. यास्क गोत्र
  92. वीतहब्य गोत्र
  93. वासुकि गोत्र
  94. दालभ्य गोत्र
  95. आयास्य गोत्र
  96. लौंगाक्षि गोत्र
  97. चित्र गोत्र
  98. विष्णु गोत्र
  99. शौनक गोत्र
  100. पंचशाखा गोत्र
  101. सावर्णि गोत्र
  102. कात्यायन गोत्र
  103. कंचन गोत्र
  104. अलम्पायन गोत्र
  105. अव्यय गोत्र
  106. विल्च गोत्र
  107. शांकल्य गोत्र
  108. उद्दालक गोत्र
  109. जैमिनी गोत्र
  110. उपमन्यु गोत्र
  111. उतथ्य गोत्र
  112. आसुरि गोत्र
  113. अनूप गोत्र
  114. आश्वलायन गोत्र
  115. संतान गोत्र
आज हम सब धर्म से कट चुके हैं और बहुत कम लोगों को अपने गोत्र के विषय में पता होता है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले कुछ शताब्दियों में ये महान गोत्र प्रणाली लुप्त हो जाएगी। इसीलिए आज के समय में हमें अपने बच्चों को अपने गोत्र के विषय में अवश्य बताना चाहिए।

मेरा गोत्र "पराशर" है। यदि आपको अपना गोत्र पता हो तो कमेंट कर जरूर बताएं। यदि ना पता हो तो अपने बुजुर्गों से अवश्य पूछें। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. Mera gotra voseta suthar hai kuldevi ka patta nahi hai

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