उलूक

उलूक
उलूक महाभारत का एक कम प्रसिद्ध पात्र है। वो गांधार राज शकुनि और रानी आर्शी का ज्येठ पुत्र था। शकुनि के तीनों पुत्रों में केवल वही था जिसने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। यही नहीं, वो महाभारत के उन गिने चुने योद्धाओं में था जो युद्ध के १८वें दिन तक जीवित रहे थे। महाभारत कथा में उलूक का वर्णन युद्ध से ठीक पहले आता है।

उलूक का जन्म गांधार में ही हुआ। उलूक का अर्थ होता है "उल्लू"। जिस प्रकार गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ, उससे शकुनि की अप्रसन्नता के विषय में हम सभी जानते हैं। प्रतिशोध की ज्वाला में जलते हुए गांधारी के साथ जब शकुनि भी हस्तिनापुर पहुँचा तो आर्शी और उलूक भी उसके साथ थे।

महाराज सुबल की मृत्यु के पश्चात शकुनि को गंधार का राजा बनाया गया किन्तु उसके बाद भी वो गांधार में अधिक समय तक नहीं रुका। उसने अपने पुत्र उलूक को गांधार का कार्यकारी राजा बनाया और राजमाता आर्शी के संरक्षण में उसे गांधार में ही छोड़ कर वापस हस्तिनापुर आ गया। तब से महाभारत युद्ध के आरम्भ तक उलूक और आर्शी गांधार में ही रहे।

जब ये सुनिश्चित हो गया कि कौरवों और पांडवों में युद्ध होने वाला है तो युद्ध से कुछ दिन पहले ही उलूक अपने पिता के पास हस्तिनापुर आया। उसने दुर्योधन को ये आश्वासन दिया कि वो और गांधार की सेना उसी की ओर से युद्ध करेंगे। महाभारत में उलूक को रथी स्तर का योद्धा माना गया है।

जिस दिन युद्ध आरम्भ होने वाला था उसके केवल एक दिन पहले पांडवों का अपमान करने के उदेश्य से दुर्योधन ने उलूक को अपना दूत बना कर पांडवों के पास भेजा। ऐसा वर्णन है कि उलूक दुर्योधन का कटु सन्देश लेकर पांडवों के पास तो अवश्य गया किन्तु उसने बहुत ही संकोच से उस सन्देश को पांडवों को सुनाया। इससे एक बात सिद्ध होती है कि उलूक के मन में पांडवों के प्रति यदि अनुराग नहीं था तो द्वेष भी नहीं था।

महाभारत में उलूक द्वारा दुर्योधन का सन्देश सुनाने का बड़ा लम्बा विवरण दिया गया है। उसने दुर्योधन द्वारा पांचों पांडवों के अलग-अलग दिए अपमानजनक सन्देश को उसी भाव एवं वाणी से सुनाया। दुर्योधन का सन्देश इतना अपमानजनक था कि भीम और अर्जुन तो उलूक के वध के लिए तत्पर हो गए किन्तु युधिष्ठिर ने दूत की मर्यादा का ध्यान रखते हुए उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। उसका इतना कटु और अपमानजनक सन्देश सुन कर भी श्रीकृष्ण ने उलूक से केवल इतना कहा कि "हमने तुम्हारा सन्देश सुन लिया है। अब जाओ और दुर्योधन से कहना कि कल युद्ध में हम उससे मिलेंगे।

उलूक द्वारा दुर्योधन के इतने अपमानजनक सन्देश पर श्रीकृष्ण इतनी सामान्य प्रतिक्रिया देख कर भीम को बड़ा क्रोध आया। उसने उलूक को फटकारते हुए दुर्योधन के लिए अपना कठोर सन्देश दिया। उलूक को उस समय ऐसा लगा कि भीम उसका वध कर देंगे किन्तु भीम ने ऐसा नहीं किया। भीम के बाद सहदेव ने भी दुर्योधन और शकुनि के लिए अपना कड़ा सन्देश उलूक को दिया। सहदेव के बाद अर्जुन और फिर नकुल ने भी उलूक द्वारा दुर्योधन को अपने-अपने सन्देश भिजवाए।

सबको ऐसा करते देख कर सदैव शांत रहने वाले युधिष्ठिर ने भी क्रोध में उलूक को अपना सन्देश दुर्योधन को सुनाने को कहा। सब की बात सुन कर श्रीकृष्ण ने भी अंत में दुर्योधन के लिए अपना कठोर सन्देश उलूक को दिया। इसके बाद युधिष्ठिर की आज्ञा लेकर उलूक वापस आया और सबके सन्देश दुर्योधन को सुनाये। उन चेतावनियों से भरे संदेशों को सुन कर भी दुर्योधन ने अहंकार के मद में उसे अनदेखा कर दिया।

इसके बाद युद्ध के वर्णन में इक्का-दुक्का स्थानों पर ही उलूक का विवरण हमें मिलता है। युद्ध में उलूक के दो सबसे प्रमुख कार्य का जो वर्णन हमें मिलता है उनमें से एक उसके और युयुत्सु के मध्य युद्ध का है। महाभारत के कर्ण पर्व में हमें ये वर्णन मिलता है कि युद्ध के १६वें दिन कर्ण के सेनापतित्व में उलूक ने कौरव सेना का संहार करते हुए युयुत्सु को रोकने के लिए उसे युद्ध के लिए ललकारा।

उसकी ललकार सुनकर युयुत्सु ने उस पर आक्रमण किया और दोनों में बहुत भीषण तुमुल युद्ध चला। कई बार युयुत्सु के प्रहारों से उलूक आहत भी हुआ किन्तु फिर उसने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए युयुत्सु के रथ के घोड़ों को मार डाला और उसके सारथि का मस्तक धढ़ से अलग कर दिया। फिर उसने भीषण बाण वर्षा कर युयुत्सु को लगभग मार ही डाला। अंततः उससे परास्त होकर युयत्सु ने रणक्षेत्र छोड़ दिया। उसके बाद उलूक ने अतुल पराक्रम दिखाते हुए पांचाल सेना का भी बड़ा अहित किया।

उलूक के विषय में उसके वध की घटना भी बहुत महत्वपूर्ण है। युद्ध के अंतिम दिन मद्रराज शल्य के नेतृत्व में कौरव सेना जी जान से युद्ध कर रही थी। उसी समय सहदेव ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार शकुनि के वध के लिए उस पर आक्रमण किया। शकुनि और सहदेव में बहुत घोर युद्ध हुआ और उस युद्ध में सहदेव ने शकुनि को बहुत घायल कर दिया। किन्तु इससे पहले सहदेव शकुनि का वध कर पाते, उलूक ने अपने पिता को बचाने के लिए सहदेव पर आक्रमण कर दिया।

युद्ध के अंतिम दिन सहदेव और उलूक में बहुत भीषण युद्ध हुआ। सहदेव ने बड़ा प्रयास किया कि वो शकुनि का वध कर दे किन्तु उलूक ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया और युद्ध कर रोके रखा। अंततः बहुत कठिन युद्ध के बाद सहदेव ने शकुनि के सामने ही उलूक का वध कर दिया। तत्पश्चात सहदेव ने शकुनि का भी वध कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

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