वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में अंतर

वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में अंतर
महर्षि वाल्मीकि ने युगों पहले मूल रामायण की रचना की थी जिसमें भगवान विष्णु के ७वें अवतार श्रीराम की लीलाओं का वर्णन है। कालांतर में वाल्मीकि रामायण के अनेक भाषाओं में कई संस्करणों (३०० से भी अधिक) की रचना की गयी किन्तु जो प्रसिद्धि एवं सम्मान १६ सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस को प्राप्त है, उसकी कोई अन्य तुलना नहीं है। आज भी ९०% घरों में वास्तव में रामचरितमानस ही होता है। मानस की तुलना में मूल वाल्मीकि रामायण का प्रसार उतना नहीं है।

इतनी शताब्दियों से हमारे बीच रहने के कारण रामचरितमानस की कहानियाँ जन-जन में व्याप्त है। उसमें वर्णित सभी घटनाओं से हम आत्मीयता से जुड़े हैं। किन्तु यदि एक ग्रन्थ के रूप में देखा जाये तो मानस में ऐसी कई घटनाएं हैं जो मूल वाल्मीकि रामायण से मेल नहीं खाती। उन सभी घटनाओं की परिकल्पना गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी ओर से की। इसी प्रकार रामायण के अन्य संस्करणों में भी बहुत अंतर पाया जाता है। किन्तु चूंकि महर्षि वाल्मीकि ने ही सर्वप्रथम रामायण की रचना की, उसे सबसे शुद्ध माना जाता है।

जब तुलसीदास जी ने मानस की रचना की उस समय मुग़ल हिन्दू धर्म को मिटाने का पूरा प्रयास कर रहे थे। उन्होने उसकी एक प्रति राजा टोडरमल के पास सुरक्षित रखी। रामचरितमानस लिखने से पहले तुलसीदास ने उत्तर और दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण के कई अन्य संस्कारणों का अध्ययन किया था, विशेष कर अध्यात्म एवं आनंद रामायण का। यही कारण है कि उनकी रचना में ऐसी कई घटनाएं हैं जो मूल वाल्मीकि रामायण में नहीं है।

वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस के घटनाक्रमों में इतना अधिक अंतर है कि उन सभी को समाविष्ट करना तो संभव नहीं है, किन्तु आइये हम कुछ मुख्य अंतरों के विषय में जानते हैं।
  • सबसे पहला अंतर तो इन दोनों के अर्थ में है। रामायण का अर्थ है राम की कथा अथवा मंदिर, वहीं रामचरितमानस का अर्थ है राम चरित्र का सरोवर। मंदिर में जाने के कुछ नियम होते हैं इसी कारण वाल्मीकि रामायण को पढ़ने के भी कुछ नियम हैं, इसे कभी भी कैसे भी नहीं पढ़ा जा सकता। इसके उलट रामचरितमानस को लेकर कोई विशेष नियम नहीं है। इसमें एक सरोवर की भांति स्वयं को पवित्र किया जा सकता है।
  • वाल्मीकि रामायण की भाषा संस्कृत है, वहीं रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की गयी है।
  • रामायण के अनुसार महर्षि वाल्मीकि प्रचेता के १०वें पुत्र थे जबकि गोस्वामी तुलसीदास ने उन्हें रत्नाकर नामक डाकू बताया है जो देवर्षि नारद की प्रेरणा से मरा-मरा कहते हुए रामभक्त बन जाते हैं।
  • इन दोनों के कालखंड में भी बड़ा अंतर है। आधुनिक गणना के अनुसार वाल्मीकि रामायण का कालखंड लगभग १४००० वर्ष पूर्व का बताया गया है। कुछ लोग इसे १०-११००० वर्ष पूर्व की भी रचना मानते हैं। हालांकि यदि पौराणिक गणना की बात की जाये तो द्वापर युग के ८६४००० वर्ष एवं वर्तमान कलियुग के लगभग ५००० वर्ष जोड़ने पर इसका कालखंड करीब ८७०००० वर्षों के आस-पास का बनता है। इससे भी अधिक आगे जाएँ तो कई शंकराचार्यों एवं विद्वानों ने ये बताया है कि राम अवतार २७वें श्वेतवाराह कल्प के ७वें वैवस्वत मनु के २४वें त्रेतायुग में हुआ था। उस हिसाब से देखें तो रामायण का कालखंड करीब १ करोड़, ७५ लाख वर्ष पूर्व का बैठता है। वैदिक काल गणना के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें। दूसरी ओर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना सन १५७४ में राम नवमी के दिन आरम्भ की और एवं २ वर्ष, ७ मास एवं २६ दिनों के पश्चात सन १५७६ ईस्वी में इसे पूरा किया।
  • सबसे बड़ा अंतर जो दोनों ग्रंथों में है वो ये कि वाल्मीकि रामायण के राम मानवीय हैं जबकि रामचरितमानस के राम अवतारी। चूंकि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे, उन्होंने श्रीराम का चरित्र सहज ही रखा है। वाल्मीकि के लिए राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, अर्थात पुरुषों में श्रेष्ठ। इसके उलट तुलसीदास के लिए श्रीराम ना केवल अवतारी हैं बल्कि उससे भी ऊपर परब्रह्म हैं। इसका वर्णन मानस में इस प्रकार किया गया है कि जब मनु एवं शतरूपा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश से वरदान लेने से मना कर देते हैं तो परब्रह्म श्रीराम उन्हें दर्शन देते हैं। तुलसीदास जी इससे भी आगे बढ़ते हुए कहते हैं - "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, बिधि हरि हर बंदित पद रेनू। सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक।।" अर्थात जिनके चरणों की वन्दना विधि (ब्रह्मा), हरि (विष्णु) और हर (महेश) तीनों ही करते है, तथा जिनके स्वरूप की प्रशंसा सगुण और निर्गुण दोनों करते हैं: उनसे वे क्या वर माँगें? यह इस बात को दर्शाता है कि तुलसीदास के लिए श्रीराम उन नारायण, जिनके वे अवतार थे, उनसे भी ऊपर हैं।
  • महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में सांकेतिक रूप से बताया है कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं जबकि रामचरितमानस में ना केवल स्पष्ट रूप से, बल्कि बार-बार इस बात पर जोर दिया गया है कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं।
  • रामचरितमानस में दशरथ और कौशल्या को मनु एवं शतरूपा एवं कश्यप एवं अदिति का अवतार बताया गया है जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के प्रसंशक थे किन्तु उनके आराध्य भगवान शंकर थे जिनकी सहायता से उन्होंने रामायण की रचना की। तुलसीदास श्रीराम के अनन्य भक्त थे और ऐसी मान्यता है कि उन्होंने रामचरितमानस की रचना स्वप्न में भगवान शिव की आज्ञा के बाद की जिसमें रामभक्त हनुमान ने उनकी सहायता की।
  • वाल्मीकि रामायण में ऐसा वर्णित है कि वनवास के समय श्रीराम की आयु २७ वर्ष की थी, माता सीता उनसे ९ वर्ष छोटी थी। ऐसा कोई वर्णन रामचरितमानस में नहीं है।
  • दोनों ग्रंथों के आकार में भी बहुत बड़ा अंतर है। जहाँ वाल्मीकि रामायण में ६ कांड, ५०० सर्ग एवं २४००० श्लोक हैं, वही रामचरितमानस में ७ कांड एवं १०९०२ दोहे हैं। रामचरितमानस श्लोकों (२७), चौपाईयों (४६०८), दोहों (१०७४), सोरठों (२०७) एवं छंदों (८६) में बंटा है।
  • कई लोग उत्तर कांड को वाल्मीकि रामायण का भाग मानते हैं किन्तु ये सत्य नहीं है। वास्तव में ये रामायण का उपसंहार है जो काकभुशुण्डि एवं गरुड़ के बीच के संवाद के रूप में है। इसे उत्तर रामायण कहा गया है, उत्तर कांड नहीं। निकट अतीत में श्रीराम के चरित्र को कलंकित करने हेतु इसमें भारी मात्रा में मिलावट की गयी है और कई भ्रामक जानकारियों को जोड़ा गया है। इसका पता आपको इसे पढ़ कर चल जाएगा क्यूंकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचे गए पहले ६ कांड एवं आज के उत्तर कांड की भाषा में जमीन आसमान का अंतर है। इसके विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें। रामचरितमानस के उत्तर कांड में भी एक बड़ा खंड (दोहा क्रमांक ९३ से ११५ तक) काकभुशुण्डि एवं गरुड़ के संवाद के रूप में ही लिखा गया है।
  • वालमीकि रामायण एवं मानस, दोनों में पहले ५ कांडों का नाम समान है - बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड एवं सुन्दर कांड। पर छठे कांड को महर्षि वाल्मीकि ने युद्ध कांड कहा है जबकि तुलसीदास ने लंका कांड
  • रामचरितमानस में हर कांड "मंगलचरण" के आह्वान के साथ आरम्भ होता है। उसी प्रकार मानस के हर कांड का अंत भी तुलसीदास संस्कृत के दोहे के साथ करते हैं जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण में देवी सीता का चरित्र अपने पति के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित एक स्पष्टभाषी दृढ स्त्री का है जो अपने पति से किसी भी प्रकार भी कम नहीं है। वे श्रीराम के साथ वन जाने को एक निर्णय की भांति सुनाती है। रामचरितमानस की सीता भी पूर्ण रूपेण पतिव्रता है किन्तु उन्हें मितभाषी और लज्जापूर्ण बताया गया है जो वन जाने के लिए श्रीराम से आज्ञा मांगती है। श्रीराम की भी भांति मानस में देवी सीता को माता लक्ष्मी से भी अधिक दैवीय बताया गया है।
  • रामायण के अनुसार दशरथ की ३५० से भी अधिक पत्नियाँ थी जिनमें कौशल्या, सुमित्रा एवं कैकेयी प्रमुख थी। इसके बारे में श्रीराम के वन गमन के समय कई बार लिखा गया है। अयोध्या कांड के सर्ग ३४, श्लोक १३ में लिखा है - अर्ध सप्त शताः ताः तु प्रमदाः ताम्र लोचनाः। कौसल्याम् परिवार्य अथ शनैः जग्मुर् धृत व्रताः।। अर्थात: देवी कौशल्या के नेतृत्व में महाराज की ३५० रानियाँ अश्रुपूरित नेत्रों के साथ वहाँ पहुंची। इसके उलट रामचरितमानस में दशरथ की केवल तीन ही पत्नियों - कौशल्या, सुमित्रा एवं कैकेयी का ही वर्णन है।
  • पुत्रों की प्राप्ति के लिए विभण्डक पुत्र एवं श्रीराम की बड़ी बहन शांता के पति ऋषि ऋष्यश्रृंग से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में है, रामचरितमानस में नहीं।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के वनगमन के समय दशरथ उनसे कहते हैं वो उन्हें कारागार में डाल दे और फिर राजा बन जाये पर रामचरितमानस में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामायण में वनवास के समय महर्षि वशिष्ठ अत्यंत क्रोधित होकर कैकेयी से कहते हैं कि यदि राम वन जाएँ तो सीता को ही सिंहासन पर बिठाया जाये। स्त्री सशक्तिकरण का ये जीवंत उदाहरण है। रामचरितमानस में ऐसा वर्णन नहीं है।
  • रामायण के अनुसार भरत को पहले ही दशरथ की मृत्यु का आभास हो गया था। उन्होंने स्वप्न देखा कि दशरथ काले वस्त्र पहने हुए हैं जिनपर पीतवर्णीय स्त्रियां प्रहार कर रही हैं और वे गर्दभों के रथ पर सवार तेजी से दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं। रामचरितमानस में दशरथ की मृत्यु के बाद उनका समाचार कैकेय देश में भिजवाया जाता है।
  • विश्वामित्र द्वारा दशरथ से श्रीराम को माँगने का वर्णन भी रामायण एवं मानस में अलग-अलग है। विश्वामित्र द्वारा राम एवं लक्ष्मण को बला-अतिबला नामक विद्या सहित अनेकानेक सिद्धि प्रदान करना भी वाल्मीकि रामायण में विस्तार पूर्वक बताया गया है जो रामचरितमानस में सतही तौर पर बताया गया है।
  • वाल्मीकि रामायण में ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को अदृश्य हो उसी आश्रम में रहने का श्राप मिला था जबकि रामचरितमानस में वे पत्थर की शिला बन जाती हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में श्रीराम अहिल्या का उद्धार उनके पैरों को छू कर करते हैं जबकि रामचरितमानस में श्रीराम अपने पैर को अहिल्या की शिला पर रख कर अपनी चरण धूलि से उसका उद्धार करते हैं।
  • भारत मिलाप के समय राजा जनक का वहाँ आना और भरत को समझाने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में है, रामचरितमानस में नहीं।
  • रामायण के अनुसार राजा जनक ने सीता स्वयंवर नहीं करवाया था। रामायण में शिव धनुष का प्रदर्शन सार्वजानिक था एवं कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति उसे उठाने के लिए स्वतंत्र था। जब महर्षि विश्वामित्र के साथ श्रीराम और लक्ष्मण जनकपुर आये तो राजा जनक ने उन्हें शिव धनुष दिखाया और श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा से वो धनुष उठा लिया। तब राजा जनक ने देवी सीता का विवाह श्रीराम से किया। वहीं रामचरितमानस में राजा जनक ने सीता स्वयंवर का आयोजन किया और जब सभी राजा धनुष को उठाने में विफल रहे तब श्रीराम ने उस धनुष को सहज ही उठा कर तोड़ दिया।
  • वाल्मीकि रामायण में भगवान शंकर के "पिनाक" धनुष का वर्णन है जिसे श्रीराम ने तोडा किन्तु रामचरतिमानस में उसे केवल "शिव धनुष" कहा गया है। 
  • रामचरितमानस में रावण और बाणासुर के स्वयंवर सभा में आने का किन्तु बिना धनुष छुए चले जाने का वर्णन है जबकि रामायण में ऐसा नहीं है।
  • रामचरितमानस में शिव-पार्वती और अन्य देवताओं का रूप बदल कर श्रीराम और सीता के विवाह में आने का वर्णन है जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामचरितमानस के अनुसार धनुष टूटने पर परशुराम स्वयंवर स्थल में आये और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढाने को कही। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्रीराम विवाह के बाद अयोध्या लौट रहे थे तब मार्ग में उन्हें परशुराम मिले और श्रीराम ने उनका क्रोध शांत करने के लिए उनके वैष्णव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई।
  • श्रीराम का सीताजी को वाटिका में देखना और फिर देवी सीता द्वारा माता पार्वती की प्रार्थना करना कि श्रीराम ही उन्हें पति के रूप में प्राप्त हों, ये वर्णन केवल रामचरितमानस में मिलता है वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • वाल्मीकि रामायण में रावण, कुम्भकर्ण एवं विभीषण की ११००० वर्षों की तपस्या और उनके वरदानों का विस्तार से वर्णन है किन्तु रामचरितमानस में इसके विषय में अधिक वर्णन नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण में श्रीराम अपने बल और पराक्रम से खर-दूषण के १४००० योद्धाओं का अंत करते हैं किन्तु रामचरितमानस में वे सम्मोहनास्त्र का प्रयोग करते हैं जिससे वे १४००० सैनिक आपस में युद्ध करते हुए मारे जाते हैं।
  • रामचरितमानस में खर-दूषण के संहार के समय ही रावण समझ जाता है कि श्रीराम नारायण के अवतार हैं किन्तु वाल्मीकि रामायण में युद्धकांड में कुम्भकर्ण एवं मेघनाद की मृत्यु के बाद रावण को समझ आता है कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में रावण मरीच से दो बार सहायता मांगने आता है। पहली बार मारीच उन्हें श्रीराम की महिमा समझा कर वापस भेज देता है। फिर शूर्पणखा के कहने पर वो पुनः मारीच के पास आकर उसे विवश करता है। रामचरितमानस में मारीच एक ही बार में मान जाता है ताकि उसे श्रीराम के हाथों मुक्ति मिल सके।
  • वाल्मीकि रामायण में देवी सीता श्रीराम से उस स्वर्ण मृग को पकड़ कर लाने बोलती हैं ताकि वे उसे अयोध्या ले जा सके, जबकि रामचरितमानस में सीता उन्हें स्वर्ण मृग का चर्म लाने को बोलती है।
  • वाल्मीकि रामायण में मारीच मरते समय लक्ष्मण और सीता दोनों को सहायता के लिए पुकारता है जबकि रामचरितमानस में वो केवल लक्ष्मण को ही पुकारता है।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार लक्ष्मण को पहले ही संदेह हो जाता है कि स्वर्णमृग कोई मायावी राक्षस है जबकि रामचरितमानस में लक्ष्मण केवल इतना कहते हैं कि ये स्वर श्रीराम का नहीं है क्यूंकि उनपर कोई संकट नहीं आ सकता।
  • लक्ष्मण रेखा का प्रसंग कितना प्रसिद्ध है ये हम सभी जानते हैं किन्तु इसका वर्णन केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामायण में देवी सीता का वास्तव में अपहरण हुआ था। रावण ने उन्हें बलपूर्वक अपने रथ में बिठाया और उन्हें अपहृत कर ले गया। वहीं रामचरितमानस में रावण जिस सीता का अपहरण कर ले गया वो वास्तविक सीता की प्रतिछाया थी। असली सीता को श्रीराम ने उनकी सुरक्षा के लिए अग्निदेव को समर्पित कर दिया था।
  • इसी सन्दर्भ में वाल्मीकि रामायण में सीता की अग्नि परीक्षा का कोई प्रसंग नहीं है। उसे बाद में जोड़ा गया था। इसके उलट रामचरितमानस में श्रीराम सीता को अग्नि परीक्षा देने को कहते हैं ताकि उसी अग्नि से वे अपनी असली सीता को प्राप्त कर सकें।
  • रामचरितमानस के अनुसार सीता की अग्नि परीक्षा के बारे में उन्होंने लक्ष्मण को तब बताया जब वे सीता की अग्नि परीक्षा के विषय के बारे में सुनकर श्रीराम का प्रतिकार करते हैं। मूल वाल्मीकि रामायण में ऐसा कुछ नहीं होता।
  • वाल्मीकि रामायण में जटायु ने रावण का रथ तोड़ दिया और तब वो वायु मार्ग से लंका पहुँचता है। रामचरितमानस में ये प्रसंग नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण ने वेदवती नामक स्त्री को देखा जो श्रीहरि की तपस्या कर रही थी और उसका अपहरण करने का प्रयास किया। तब वेदवती ने उसे ये श्राप दिया कि अगले जन्म में वही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी और आत्मदाह कर लिया। तब वेदवती ही सीता के रूप में जन्मी। ऐसा को वर्णन रामचरितमानस में नहीं है।
  • रामायण में कुम्भकर्ण के दो बार जागने का वर्णन है। पहले भी वो एक बार रावण को भरी सभा में सीता हरण पर खरी-खोटी सुनाता है और दूसरी बार वो जगकर युद्ध में जाता है जहाँ उसका वध होता है। रामचरितमानस में कुम्भकर्ण केवल एक ही बार जगा है।
  • रामचरितमानस में लक्ष्मण को अत्यंत क्रोधी एवं उत्तेजी दिखाया गया है। मानस में वे बात-बात पर क्रोधित होते हैं, स्वयंवर में जनक और परशुराम से उलझ जाते हैं। वाल्मीकि रामायण में उन्हें धीर-गंभीर और विवेकी बताया गया है। मूल रामायण में लक्ष्मण केवल तीन समय पर क्रोधित होते हैं - पहला जब उन्हें श्रीराम के वनवास का समाचार मिलता है, दूसरा जब चित्रकूट में भरत श्रीराम से मिलने आते हैं और तीसरा जब वे सुग्रीव को उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाने किष्किंधा पहुँचते हैं।
  • रामचरितमानस के अनुसार जब समुद्र सेना को मार्ग नहीं देता तो लक्ष्मण अत्यंत क्रोधित होते हैं और श्रीराम से समुद्र को सुखा देने को कहते हैं जबकि मूल वाल्मीकि रामायण में बिलकुल इसका उल्टा है। रामायण के अनुसार श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए और उसे सुखा देने को उद्धत हुए और तब लक्ष्मण ने उन्हें समझा-बुझा कर शांत किया।
  • रामचरितमानस में श्रीराम को कई बार भगवान शंकर की पूजा करते दिखाया गया है पर वाल्मीकि रामायण में केवल महादेव को श्रीराम का आराध्य बताया गया है।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम जब रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना करते हैं तो हनुमान उनसे रामेश्वरम की व्याख्या करने को कहते हैं। तब श्रीराम केवल इतना कहते हैं कि "जो राम का ईश्वर है वही रामेश्वर है।" रामचरितमानस में भी श्रीराम यही कहते हैं पर उसमें तुलसीदास ने एक प्रसंग और जोड़ा है कि भगवान शंकर भी माता पार्वती से रामेश्वरम की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "राम जिनके ईश्वर हैं वो रामेश्वरम हैं।"
  • वाल्मीकि रामायण में केवट नामक कोई चरित्र नहीं है, ये केवल रामचरितमानस में है।
  • निषादराज गुह को भी रामचरितमानस में श्रीराम के साथ भरद्वाज ऋषि के आश्रम में जाते हुए दिखाया गया है जबकि वाल्मीकि रामायण में वे तमसा तट पर ही श्रीराम से मिलते हैं जिसके बाद श्रीराम एकाकी ही आगे बढ़ जाते हैं।
  • रामयण में भरद्वाज ऋषि श्रीराम को चित्रकूट में रहने का सुझाव देते हैं जबकि रामचरितमानस में उन्हें ये सुझाव महर्षि वाल्मीकि देते हैं।
  • रामचरितमानस में महर्षि अगस्त्य के शिष्य सुतीक्ष्ण ऋषि श्रीराम से उनका आशीर्वाद मांगते हैं जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण में हनुमान को मनुष्य बताया गया है जो वानर समुदाय के थे और वन में रहते थे। वानर = वन (जंगल) + नर (मनुष्य) जबकि रामचरितमानस में हनुमान को वानर (बन्दर) प्रजाति का बताया गया है।
  • वाल्मीकि रामायण में हनुमान को कहीं भी सीधे तौर पर भगवान शंकर का अवतार नहीं बताया गया है किन्तु रामचरितमानस में उन्हें "शंकर-सुमन" कहा गया है।
  • वाल्मीकि रामायण में ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान को जब श्रीराम अपना परिचय देते हैं तब उन दोनों में मित्रता होती है जबकि रामचरितमानस में हनुमान पहले से ही श्रीराम के अनन्य भक्त हैं।
  • रामायण में जब लक्ष्मण क्रोध में सुग्रीव के महल पहुँच कर उन्हें धिक्कारते हैं तब सुग्रीव वानरों को माता सीता की खोज में भेजते हैं। रामचरितमानस में सुग्रीव बताते हैं कि वे पहले ही वानरों को सीता की खोज में भेज चुके हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में जब हनुमान का दल सीता संधान करते हुए थक जाता है तब अंगद के मन में विद्रोह के भाव आते हैं जिसे हनुमान समझदारी से दबा देते हैं। रामचरितमानस में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है।
  • रामचरितमानस में जब हनुमान लंका पहुँचते हैं तो वे विभीषण से मिलते हैं और वही उन्हें अशोक वाटिका का मार्ग बताते हैं। वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है। वहाँ हनुमान स्वयं सारी लंका में खोजते हुए अशोक वाटिका पहुँचते हैं।
  • उसी संधान के समय वाल्मीकि रामायण में हनुमान को रावण के महल में मंदोदरी को देख कर उनके सीता होने का भ्रम हो जाता है किन्तु बाद बाद में वे समझ जाते हैं कि ये सीता नहीं है। रामचरितमानस में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है।
  • रामायण में हनुमान सीता के समक्ष आकर अपना परिचय देते हैं और फिर उन्हें मुद्रिका देते हैं। रामचरितमानस में हनुमान वृक्ष पर से मुद्रिका सीता की गोद में गिरा कर ऊपर से ही राम चरित्र सुनाते हैं और फिर उनके सामने आते हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में हनुमान देवी सीता से अपने साथ चलने का निवेदन करते हैं किन्तु सीता ये कहते हुए मना कर देती है कि वो जान-बूझ कर पर पुरुष का स्पर्श नहीं कर सकती। इसके अतिरिक्त वे चाहती हैं कि ये श्रेय श्रीराम को मिले। रामचरितमानस में हनुमान कहते हैं कि वे उन्हें साथ ले जा सकते हैं किन्तु श्रीराम की ऐसी आज्ञा नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता अपनी चूड़ामणि हनुमान को पहले ही दे देती है किन्तु रामचरितमानस में जब हनुमान लंका दहन कर वापस उनके पास आते हैं तब वे उन्हें चूड़ामणि देती है।
  • वाल्मीकि रामायण में सभा में अपना अपमान होने के बाद विभीषण स्वयं लंका का त्याग कर देते हैं जबकि रामचरितमानस के अनुसार रावण विभीषण को लात मार कर लंका से निष्काषित कर देता है।
  • रामायण में शुक एवं सारण को विभीषण पहचानते हैं और फिर जब श्रीराम आज्ञा देते हैं तब उन्हें छोड़ा जाता है। रामचरितमानस में शुक-सारण को वानर पकड़ते हैं और लक्ष्मण ही उन्हें सन्देश देकर वापस भेजते हैं। बाद में शुक अगस्त्य मुनि से दीक्षा लेकर तपस्वी बन जाता है।
  • रामचरितमानस के अनुसार रामसेतु का निर्माण नल एवं नील दोनों ने किया था क्यूंकि उन्हें श्राप मिला था कि उनके हाथ से छुई वस्तु पानी में नहीं डूबेगी। किन्तु वाल्मीकि रामायण में रामसेतु का निर्माण केवल नल ने किया था क्यूंकि वे असाधारण शिल्पी थे और विश्वकर्मा का अंश थे। इसी कारण रामसेतु को "नलसेतु" भी कहा जाता है।
  • रामचरितमानस में श्रीराम अपने एक बाण से विलास भवन में बैठे रावण का मुकुट एवं मंदोदरी का कर्णफूल गिरा देते हैं। वाल्मीकि रामायण में इसका कोई वर्णन नहीं है।
  • रावण के दरबार में अंगद का पैर जमा देना और किसी का उसे ना उठा पाना तथा रावण का मुकुट श्रीराम के पास फेंक देने का वर्णन केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • वाल्मीकि रामयण के अनुसार रावण और श्रीराम का युद्ध दो बार हुआ था। एक बार रावण युद्ध के आरम्भ में आया था और पराजित होकर गया। दूसरी बार वो युद्ध के अंत में आया और श्रीराम के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ। रामचरितमानस के अनुसार रावण युद्ध में केवल एक बार अंत समय में आया और वीरगति को प्राप्त हुआ।
  • रामचरितमानस के अनुसार रावण इंद्र के रथ के घोड़े एवं सारथि को गिरा देता है जबकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामायण में रावण ने जो शक्ति लक्ष्मण पर चलाई वो उसे मयदानव ने दी थी जबकि रामचरितमानस के अनुसार उसे ये शक्ति ब्रह्मा ने दी थी।
  • रामायण में संजीवनी बूटी लाने का दो बार वर्णन है जबकि रामचरितमानस में एक बार।
  • कालनेमि द्वारा संजीवनी बूटी लाते समय हनुमान के वध का प्रयास करना एवं हनुमान द्वारा मारे जाने का वर्णन भी केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • संजीवनी बूटी लाते समय भरत का हनुमान पर बाण चलाना एवं दोनों का संवाद भी केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • रामायण में मेघनाद के यज्ञ का विध्वंस और उसका वध लक्ष्मण अकेले ही करते हैं किन्तु रामचरितमानस में मेघनाद के यज्ञ का विध्वंस वानर करते हैं।
  • रामायण में मेघनाद का वध लक्ष्मण उसका सर काट कर करते हैं जबकि रामचरितमानस में उसका वध लक्ष्मण उसके वक्ष में बाण मार कर करते हैं।
  • रामायण में सुषेण वैद्य वानर है जो बाली के श्वसुर एवं तारा के पिता हैं जबकि रामचरितमानस में वो राक्षस हैं जो लंका के वैद्य है। 
  • हनुमान द्वारा सुषेण को उसके निवास सहित उठा कर लाने का वर्णन भी केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • वाल्मीकि रामायण में इंद्र के सारथि मातलि श्रीराम को बताते हैं कि रावण का वध कैसे संभव है जबकि रामचरितमानस में ये श्रीराम को ये बात विभीषण बताते हैं।
  • रावण की नाभि में अमृत होना और उसे श्रीराम द्वारा सुखा देने का वर्णन केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामचरितमानस के अनुसार रावण का वध ३१ बाणों द्वारा हुआ जबकि वाल्मीकि रामायण में रावण का वध श्रीराम ने महर्षि अगस्त्य द्वारा प्राप्त ब्रह्मास्त्र से किया।
  • श्रीराम के ह्रदय पर उस समय प्रहार करना जब वो सीता का स्मरण ना कर रहा हो, इसका वर्णन भी केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद हनुमान का अपना ह्रदय चीर कर सीता-राम की छवि दिखाने का वर्णन भी केवल रामचरितमानस में है, वाल्मीकि रामायण में नहीं।
  • वाल्मीकि रामायण के बाद देवराज इंद्र युद्ध के बाद सभी वानरों एवं रीछों को पुनर्जीवित कर देते हैं जबकि रामचरितमानस में इंद्र अमृत की वर्षा करते हैं जिससे वे पुर्नर्जीवित हो जाते हैं।
  • रामचरितमानस में श्रीराम का चमत्कार द्वारा अनेक रूप लेकर अयोध्या वासियों से मिलने का वर्णन है जबकि रामायण में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है।
  • रामायण के अनुसार ११००० वर्षों तक राज्य करने के बाद श्रीराम माता सीता एवं लक्ष्मण के विरह में सरयू में समाधि लेकर अपनी लीला समाप्त करते हैं। लक्ष्मण पहले ही सरयू में ही डूब कर अपना जीवन समाप्त करते हैं और माता सीता पृथ्वी में समाधि लेती हैं। रामचरितमानस का अंत लव एवं कुश के जन्म के साथ ही हो जाता है। इसमें माता सीता के धरती में समाने और लक्ष्मण की मृत्यु का कोई वर्णन नहीं है।
  • रामचरितमानस के बालकाण्ड में सती द्वारा श्रीराम की परीक्षा लेते हुए दिखाया गया है जिस कारण भगवान शंकर उनका त्याग कर देते हैं। इसके विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें। वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
  • रामचरितमानस में भगवान शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन करते समय उन्हें श्रीगणेश की पूजा करते हुए दिखाया गया है जो कि अतार्किक है।
  • रामचरितमानस में कई देवी-देवताओं को महत्त्व नहीं दिया गया है, विशेषकर इंद्र का बहुत चरित्र हनन किया गया है। वाल्मीकि रामायण में इंद्र और अन्य देवताओं का महत्त्व बताया गया है। कई लोगों को मृत्यु पश्चात इंद्रलोक प्राप्त करने का वर्णन भी है। इंद्र ही सीता को अशोक वाटिका में दिव्य खीर प्रदान करते हैं ताकि उन्हें कभी भूख ना लगे। श्रीराम की सहायता हेतु अंतिम युद्ध में रथ और सारथि मातलि को भी इंद्र ही भेजते हैं। हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान भी इंद्र ही उन्हें देते हैं।
इसके अतिरिक्त कई ऐसी चीजें हैं जिनका वर्णन ना ही वाल्मीकि रामायण में और ना ही रामचरितमानस में किया गया है किन्तु फिर भी वे कई लोक कथाओं के रूप में प्रचलित हैं।
  • रामायण या रामचरितमानस में कही भी हनुमान को "रुद्रावतार" नहीं कहा गया है।
  • वास्तव में किसी भी वानर अथवा रीछ के पास कोई गदा अथवा अन्य कोई हथियार नहीं था। लंका युद्ध उन्होंने अपने बाहुबल, दांत, नख, पत्थर, पहाड़, शिला, पेड़ इत्यादि द्वारा ही लड़ी थी। पर क्या आज हनुमान जी की कल्पना बिना गदा के की जा सकती है?
  • श्रवण कुमार का अपने माता-पिता को कांवड़ में उठा कर यात्रा करने का कोई वर्णन नहीं है। वो अपने पिता के आश्रम में सपरिवार तपस्या करते थे। इसी प्रकार श्रवण कुमार द्वारा कुरुक्षेत्र में अपने माता पिता को पालकी से उतार देने का कोई वर्णन नहीं है। इसके बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
  • सीता हरण में पुष्पक विमान का प्रयोग नहीं किया गया था।
  • शबरी का वर्णन दोनों ग्रंथों में है किन्तु उनके जूठे बेर का वर्णन कही नहीं है।
  • बाली के साथ युद्ध करते हुए प्रतिद्वंदी का आधा बल उसमें आ जाने का कोई वर्णन नहीं है।
  • रामसेतु के निर्माण के समय किसी गिलहरी का कोई वर्णन नहीं है।
  • लक्ष्मण को शक्ति रावण ने मारी थी, मेघनाद ने नहीं।
  • अहिरावण, महिरावण, पंचमुखी हनुमानमकरध्वज का कोई वर्णन दोनों ग्रंथों में नहीं है।
  • मृत्यु के समय लक्ष्मण द्वारा रावण से शिक्षा लेने का कोई प्रसंग नहीं है।
  • वाल्मीकि रामायण में रावण के मरने का प्रसंग साधारण है जबकि रामचरितमानस में रावण मरते समय श्रीराम का उद्घोष करता है।
  • मंदोदरी का विभीषण से विवाह का प्रसंग भी कही नहीं है।
  • सुलोचना के पास मेघनाद का सर गिरना और उसे लक्ष्मण का माहात्म्य बताने का कोई वर्णन नहीं है।
  • अयोध्या में कर प्राप्त करने के लिए धर्म कांटे के निर्माण का कोई वर्णन नहीं है।
  • श्रीराम द्वारा पतंग उड़ाना, उसके सहारे हनुमान का स्वर्गलोग तक चले जाने का कोई वर्णन दोनों ग्रंथों में नहीं है।
  • श्रीराम की मुद्रिका छिद्र में गिर जाना और हनुमान का उसे ढूंढते हुए पाताल में पहुँच जाने का कोई वर्णन नहीं है।
  • युद्ध से पहले रावण का स्वयं श्रीराम के राजपुरोहित बनने का भी वर्णन किसी ग्रंथ में नही है।
  • लव-कुश द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को पकड़ने और फिर शत्रुघ्न, लक्ष्मण, हनुमान इत्यादि के साथ उनके युद्ध का कोई वर्णन नहीं है।
हालाँकि गोस्वामी तुलसीदास एवं रामचरतिमानस का स्थान अद्वितीय है किन्तु वाल्मीकि रामायण तो फिर भी रामायण ही है। चूँकि ये मूल ग्रन्थ है इसी कारण सबसे अधिक प्रामाणिक है। रामायण में एक और बात भी है जो इसे अद्भुत बनाती है। क्या आपको पता है कि इसके २४००० श्लोकों में हर १००० श्लोक के पहले अक्षर को मिलाएं तो इससे गायत्री मन्त्र का निर्माण होता है। है ना आश्चर्यजनक।

जय श्रीराम।

4 टिप्‍पणियां:

  1. श्री नीलाभ जी!
    आपने बहुत ही तथ्य परक विवेचना लिखी है। श्री रामचरितमानस की कथा 27 कल्प के पूर्व की कथा है। वस्तुतः इसमें माता पार्वती द्वारा पूछे गये 14 प्रश्नों के शिवजी द्वारा दिये गये जवाब से सम्बंधित विषय ही शामिल किये गये हैं। वहीं रामायण सर्वथा नवीन कल्प की प्रामाणिक और विस्तृत रचना है। आपने अत्यंत गूढ़ विषय की सराहनीय समीक्षात्मक विवेचना की है। आपने जो रामायण और रामचरितमानस के इतर कथानक दिये हैं, वे भी विभिन्न पुराणों में बिखरे हुए हैं। पद्मपुराण, मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण सहित अन्य अनेक पुराणों में अवतार कथाओं का सम्यक् विवेचन उपलब्ध है। निःसंदेह आप बधाई के पात्र हैं। आपकी समीक्षा ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया है। आभार।

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