पांडवों का पुनर्जन्म

पांडवों का पुनर्जन्म
महापुराणों के अतिरिक्त अन्य पुराणों की प्रमाणिकता पर यदा-कदा प्रश्न उठते ही रहे हैं। किन्तु उनमें भी जो पुराण सबसे अधिक शंशय का केंद्र रहा है वो है भविष्य पुराण। ऐसी मान्यता है कि समय के साथ इसी पुराण में सबसे अधिक मिलावट की गयी है। यही कारण है कि इस पुराण में लिखा हुआ कितना सत्य है और कितना असत्य, ये ठीक-ठीक किसी को नहीं पता है।

किन्तु इसी भविष्य पुराण के अनुसार एक कथा आती है जो बहुत ही रोचक है। ये कथा है पांडवों के पुनर्जन्म के विषय में। हालाँकि महाभारत के अनुसार युद्ध के ३६ वर्षों के पश्चात पांडव द्रौपदी सहित स्वर्ग चले गए थे किन्तु भविष्य पुराण के अनुसार उनका पुनर्जन्म हुआ था। इसका वर्णन भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तीसरे खंड के पहले अध्याय में दिया गया है। आइये इसके विषय में कुछ जानते हैं।

जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तो श्रीकृष्ण ने भगवान रूद्र की स्तुति की जिस कारण वे अपने एक अंश के रूप में पांडवों के शिविर की रक्षा करने आये। उधर उन्ही के एक अन्य अंश अश्वथामा जब कृपाचार्य और कृतवर्मा के साथ वहां आक्रमण करने पहुंचे तो द्वार पर एक विकराल आकृति को देख कर भय से रुक गए। वे समझ गए कि ये महादेव का ही एक रूप है और उन्होंने स्तुति कर उन्हें प्रसन्न कर लिया।

उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर महादेव के उस अंश ने उन्हें द्वार के अंदर जाने की आज्ञा दे दी। उन्होंने अश्वथामा को एक दिव्य तलवार भी दी जिसका प्रयोग कर उसने कृपाचार्य और कृतवर्मा के साथ मिलकर बची हुई पांडव सेना का नाश कर दिया। यही नहीं उसने पांडवों के भुलावे में पांडवों के सभी पुत्रों का वध कर दिया।

जब पांडवों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने अज्ञानवश महादेव को ही इसका उत्तरदायी ठहराया। क्रोध में वे अपनी मर्यादा भूल गए और अपने दिव्यास्त्रों से महादेव के उसी रूप से युद्ध करने लगे। किन्तु उनके सभी अस्त्र-शस्त्र महादेव के शरीर में समा गए। अंत में पांडव अपने सभी सभी आयुधों को खो कर निःशस्त्र हो पराजित हो लज्जित सर झुका कर खड़े रह गए।

तब रूद्र के उस रूप ने कहा कि "हे पांडवों! तुम सभी श्रीकृष्ण के प्रिय हो और उनकी कृपा भी तुम्हे प्राप्त है इसीलिए मैं तुम्हे क्षमा करता हूँ अन्यथा तुम सभी वध के योग्य हो। इस जन्म में तो तुम्हे वासुदेव ने बचा लिया किन्तु अपने इस अपराध का दंड तुम्हे अगले जन्म में प्राप्त होगा।" ये कहकर रूद्र वहां से अंतर्धान हो गए।

तब सभी पांडव दुखी हो श्रीकृष्ण के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। ये सुन कर श्रीकृष्ण ने महादेव की स्तुति की जिसपर वे वहां प्रकट हुए। तब श्रीकृष्ण ने उनसे प्रार्थना करते हुए कहा कि "हे भोलेनाथ! पांडवों ने अज्ञानता में बहुत बड़ा अपराध किया है किन्तु मेरी प्रार्थना है कि आप पांडवों के अस्त्र-शस्त्र उन्हें लौटा दें और उन्हें अपने श्राप से मुक्त करें।"

यह सुनकर महादेव ने कहा - "हे वासुदेव! आपके ही कारण इन सभी पांडवों की रक्षा हुई है। आपने स्वयं अनुरोध किया है इसी कारण मैं इनके अस्त्र-शस्त्र लौटता हूँ किन्तु मेरा श्राप विफल नहीं हो सकता। किन्तु चूँकि ये सभी आपके भक्त हैं इसीलिए मैं इन्हे वरदान देता हूँ कि अगले जन्म में जन्म लेकर और जीवन के पाप पुण्यों को भोग कर ये मुक्त हो जाएंगे और आपकी इच्छा अनुसार उत्तम लोकों को प्राप्त करेंगे।" ऐसा कह कर उन्होंने पांडवों के सभी आयुध उन्हें लौटा दिए।

ये देख कर श्रीकृष्ण ने पांडवों सहित उन्हें प्रणाम किया। तत्पश्चात महादेव ने परिहास में ही कहा - "हे वासुदेव! इन्हे अगले जन्म को भोगने का श्राप तो मिल गया है किन्तु बिना आपके ये उस जन्म के फलाफल को प्राप्त नहीं कर सकते। अतः मेरी इच्छा है कि आप भी इनके मार्गदर्शन के लिए अगला जन्म लें।" ये सुनकर श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होते हुए कहा "हे महादेव! आपकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। मैं भी इनके साथ अगले जन्म में अपने अंश के रूप में अवतरित होऊंगा।"

इस प्रकार महादेव के श्राप के कारण पांडव अगला जन्म लेकर पुनः पृथ्वी पर आये। अपने वचन के अनुसार श्रीकृष्ण भी मनुष्य के रूप में अपने अंश के रूप में अवतरित हुए।
  • युधिष्ठिर वत्सराज नामक राजा के पुत्र बनकर पैदा हुए और उनका नाम बलखानि (मलखान) हुआ। बाद में वे शिरीष नगर के राजा बनें।
  • भीम अगले जन्म में वाराणसी के राजा वीरण के रूप में जन्मे।
  • अर्जुन परिलोक नामक राजा के पुत्र के रूप में जन्मे जिनका नाम था ब्रह्मानंद
  • नकुल कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के पुत्र के रूप में जन्मे जिनका नाम था लक्ष्मण।
  • सहदेव ने अगले जन्म में भीम सिंह नामक राजा के पुत्र देवी सिंह के रूप में जन्में।
  • श्रीकृष्ण योगमाया द्वारा निर्मित महावती नगर में राजा देशराज के पुत्र के रूप में जन्में। उस जन्म में वे उदल (उदय सिंह) नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी माता भी देवकी के अंश से जन्मी। स्वयं वैकुण्ठ आह्लाद के नाम से अवतरित हुए और श्रीकृष्ण के गुरु बने। उस जन्म में श्रीकृष्ण ने सभी पांडवों की सहायता से अग्निवंश में उत्पन्न आततायी राजाओं का नाश किया।
  • धृतराष्ट्र अजयमेरु (अजमेर) नगर के राजा पृथ्वीराज के रूप में जन्मे।
  • द्रौपदी पृथ्वीराज की पुत्री वेला के नाम से जन्मी।
  • कर्ण ने भी तारक नाम के दानवीर राजा के रूप में जन्म लिया।
इस प्रकार सभी पांडव और श्रीकृष्ण अगले जन्म में अपने कर्मों को भोग कर पुनः अपने लोक लौट गए।

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