रावण के अनुसार स्त्रियों के ८ अवगुण

रावण के अनुसार स्त्रियों के ८ अवगुण
रामचरितमानस में एक प्रसंग आता है जब रावण द्वारा सीता हरण करने के पश्चात रावण की पटरानी मंदोदरी उसे बार बार देवी सीता को श्रीराम को लौटाने का अनुरोध करती है। पहले तो रावण उसके इस हठ को हंसी में टाल देता था किन्तु मंदोदरी के बार-बार टोकने के कारण रावण क्रोधित हो जाता है और वो बताता है कि स्त्रियों के ८ दुर्गुणों के कारण ही पुरुषों का विनाश होता है।

यहाँ महिलाओं से मेरा अनुरोध है कि वो इस दोहे को व्यक्तिगत एवं अन्यथा ना लें क्यूंकि धर्म की व्याख्या अत्यंत सूक्ष्म होती है। यहाँ तुलसीदास जी ने रावण के मुख से महिलाओं के लिए जो कुछ भी कहलाया है उसके भी दो रूप हैं। उस अवगुण के कारण जो एक बुरा पक्ष प्रकट होता है, वही स्त्रियों का एक बहुत बड़ा गुण भी बन जाता है। कहने का अर्थ है कि एक ही विचार के दो पहलु उजागर होते हैं। दूसरा ये सभी बातें रावण ने कदाचित इसीलिए कही थी क्यूंकि उस समय काल ने उसकी बुद्धि फेर दी थी।

तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस बात का वर्णन एक दोहे में बताया है।

नारि सुभाव सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।
साहस, अनृत, चपलता माया। भय अविवेक, असौच अदाया।।

वे आठ अवगुण हैं:
  • दुस्साहस: यहाँ पर साहस का असली तात्पर्य है अत्यधिक साहस। रावण के अनुसार स्त्रियों को साहसी होना चाहिए किन्तु दुःसाहस कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। तुम मुझे बार-बार सीता को लौटने को कहकर दुःसाहस ही कर रही हो।
  • असत्य: दूसरे अवगुण के रूप में रावण मंदोदरी से कहता है कि स्त्रियाँ झूठ बोलती हैं। उनके ह्रदय में सत्य क्या है वो किसी को ज्ञात नहीं हो सकता। उनका ये व्यहवार एक दिन उनके अपमान का कारण  बनता है क्यूंकि असत्य अंततः बाहर आ ही जाता है। तुम्हारा सीता को लौटने का तर्क भी असत्य है क्यूंकि राम उसके बाद भी मेरा वध करने का प्रयास करेगा। 
  • चंचलता: रावण के अनुसार स्त्रियाँ स्वाभाव से चंचल होती हैं। उनकी इसी प्रकृति के कारण वे अधिक समय तक एक स्थान पर नहीं टिक सकती और उनके विचारों में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। अपनी चंचलता के कारण वे सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाती। ठीक उसी प्रकार तुम भी अपनी चंचलता के कारण सही निर्णय नहीं ले पा रही हो। 
  • माया: यहाँ माया का अर्थ जादू-टोना नहीं है अपितु ऐसा प्रहसन है जिससे स्त्रियाँ पुरुषों को अपने वश में कर लेती है। अगर पुरुष की इच्छाशक्ति प्रबल ना हो तो वो निश्चय ही स्त्रियों द्वारा वशीभूत हो जाता है। तुम भी जो मुझे अति प्रेमपूर्वक सीता को लौटाने को कहती हो वो भी तुम्हारी माया ही है किन्तु मैं तुम्हारी माया में नहीं आऊंगा।
  • भय: स्त्रियाँ अनावश्यक रूप से अधिक भयभीत हो जाती है जिससे उनके काम बिगड़ जाते हैं। स्त्रियां बाहरी रूप से साहसी भले ही दिखती हो किन्तु उनके ह्रदय में भय का वास होता है। तुम भी बाहर से निडर होने का दिखावा करती हो किन्तु तुम्हारे ह्रदय में भी भय है कि अगर युद्ध हुआ तो वो वनवासी राम तुम्हारे पति और पुत्रों का अहित करेगा। 
  • अविवेक: स्त्रियाँ हे परिस्थिति में अपने विवेक का उपयोग नहीं करती। इसके उलट वो अपने ह्रदय की अधिक सुनती है। तुम्हारा सीता को लौटाने का प्रस्ताव भी अविवेक का उदाहरण है। अभी तुम अपने ह्रदय से सोच रही हो इसी कारण मुझे ऐसा सुझाव दे रही हो।
  • अपवित्रता: यहाँ अपवित्रता का अर्थ स्त्रियों के सतीत्व से नहीं है बल्कि देवराज इंद्र द्वारा स्त्रियों को अपने श्राप का भागीदार बनाने से है जिसके कारण स्त्रियाँ रजस्वला होती है। रावण कहता है कि पुरुष भी अपवित्र रहता है किन्तु अगर वो चाहे तो सदा पवित्र रह सकता है किन्तु स्त्रियां चाह कर भी (रजस्वला होने के कारण) पवित्र नहीं रह सकती। ठीक उसी प्रकार तुम्हारे विचार भी (मेरे लिए) अपवित्र हैं।
  • निर्दयता: ईश्वर ने स्त्रियों को दया की मूर्ति बनाया है। सागर में भी इतने रत्न नहीं रहते जितनी दया स्त्रियों के ह्रदय में रहती है किन्तु जब वो कुछ बिगाड़ने पर आती है तो उनका ह्रदय दया से शून्य हो जाता है। इसी प्रकार अभी तुम मेरे प्रति बिना कोई दया दिखाए मुझे सीता को बार-बार लौटने का प्रस्ताव देती हो।

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