क्या महाराज दशरथ की ३५० रानियाँ थी?

क्या महाराज दशरथ की ३५० रानियाँ थी?
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के जिस रचना ने सर्वाधिक असर छोड़ा है वो गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस है। हालाँकि तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ मानस में कुछ ऐसी घटनाओं को भी जोड़ा है जो मूल वाल्मीकि रामायण में नहीं है। साथ ही कई अन्य घटनाओं को मानस में स्थान नहीं दिया गया है। ऐसी ही एक जानकारी महाराज दशरथ की पत्नियों के विषय में है।

रामचरितमानस में ये बताया गया है कि महाराज दशरथ की केवल तीन पत्नियाँ थी - कौशल्या, सुमित्रा एवं कैकेयी। हालाँकि यदि आप मूल वाल्मीकि रामायण को पढ़ेंगे तो हमें ये पता चलता है कि महाराज दशरथ की मुख्य एवं गौण मिलाकर कुल रानियों की संख्या ३५० से अधिक थी। उन रानियों के विषय में बहुत ही कम वर्णित है किन्तु फिर भी, विशेष रूप से अयोध्या कांड में उनका वर्णन किया गया है। ये वर्णन तब आता है जब कैकेयी दशरथ से श्रीराम का वनवास मांगती है और दशरथ इस धर्म संकट में हैं कि श्रीराम को इसकी सूचना कैसे दें। 

अयोध्या कांड, सर्ग ३४ के श्लोक १० में लिखा है:

सुमन्त्रानय मे दारान्ये केचिदिह मामकाः।
दारैः परिवृतः सर्वैदृष्टुमिच्छामि राघवम।।

अर्थात: हे सुमंत! इस घर में मेरी जितनी स्त्रियाँ है, उन सभी को बुला लो। मैं उन सबके सहित श्रीरामचन्द्र को देखना चाहता हूँ।

अयोध्या कांड, सर्ग ३४ के श्लोक ११ में लिखा है:

सोSन्तःपुरमतीत्यैव स्त्रियस्ता वाक्यंब्रवीत।
आर्या हयति वो राजाSगम्यतां तत्र मा चिरम।।

अर्थात: ये सुन सुमंत अंतःपुर गए और सभी रानियों से बोले कि, महाराज आपको बुलाते हैं - शीघ्र आइये।

अयोध्या कांड, सर्ग ३४ के श्लोक १२ में लिखा है:

एवमुक्ताः स्त्रियः सर्वाः सुमन्त्रेण नृपाज्ञा।
प्रचक्रमुस्तद्ववनं भर्तुराज्ञाय शासनं।।

अर्थात: जब सुमंत ने उन स्त्रियों को इस प्रकार महाराज की आज्ञा सुनाई, तब अपने पति की आज्ञा से वे महाराज के पास जाने को तैयार हुई।

अयोध्या कांड, सर्ग ३४ के श्लोक १३ में इसे सबसे स्पष्ट रूप से लिखा गया है:

अर्द्धसप्तशतास्तास्तु प्रमदास्ताम्रलोचनाः।
कौशल्यां परिवार्यार्थ शनैर्जग्मुर्धतव्रताः।।

अर्थात: साढ़े तीन सौ स्त्रियाँ, जिनके नेत्र श्रीरामचन्द्र जी के वियोगजन्य दुःख के कारण रोते रोते लाल हो गए थे, कौशल्या को घेर कर धीरे-धीरे महाराज के पास गयीं।

अयोध्या कांड, सर्ग ३४ के श्लोक १४ में लिखा है:

आगतेषु च दारेषु समवेक्ष्य महीपतिः।
उवाच राजां तुं सुतं सुमंत्रानय में सुतं।।

अर्थात: जब महाराज ने देखा कि, सब स्त्रियाँ आ गयी, तब उन्होंने सुमंत को आज्ञा दी कि हे सुमंत! मेरे पुत्र को ले आओ।

अयोध्या कांड, सर्ग ३९ के श्लोक ३६ में लिखा है:

एता वदभिनितार्थमुक्तवासजननींवच:।
त्रय:शतशतर्धा हिददर्शावेक्ष्यमातर:।।

अर्थात: अपनी माता को सांत्वना देने के पश्चात राम ने एक पल सोच कर वहाँ खड़ी अपनी ३५० विमाताओं की ओर देखा।

अयोध्या कांड, सर्ग ३९ के श्लोक ३७ में लिखा है - कौशल्या की ही भांति राम ने अपनी सभी विमाताओं से, जो दुख से विह्लल हो रही थी, करबद्ध हो कहा - "माता! यदि मुझसे अनजाने में कोई अपराध हो गया हो तो मुझे क्षमा करें।"

अयोध्या कांड, सर्ग ३९ के अंतिम श्लोक ४१ में लिखा है:

मुरजपणवमेघघोषव दशरथवेश्म वभूव यत्पुरा।
विलपितपरिदेवनकुलं व्यसंगतं तद्युत्सुदुःखितं।।

अर्थात: हा! महाराज के जिस भवन में पहले मृदंग, ढोल के मेघ-गर्जनवत शब्द हुआ करते थे, वही भवन आज रानियों के करुणापूर्ण आर्तनाद एवं परिताप के अत्यंत दुःख से भर गया है।

तो वाल्मीकि रामायण के इन श्लोकों से पता चलता है कि महाराज दशरथ की कई (कम से कम ३५०) रानियाँ थी। इसके अतिरिक्त महर्षि वाल्मीकि ने ये लिखा है कि महाराज दशरथ अपनी तीनों प्रमुख पत्नियों (कौशल्या, सुमित्रा एवं कैकेयी) से एक सा प्रेम करते थे। 

किन्तु जब गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की तो उन्होंने महाराज दशरथ की केवल इन्ही तीन रानियों का वर्णन किया है। साथ ही उन्होंने ये भी वर्णन किया है कि महाराज दशरथ अपनी तीनों रानियों में से कैकेयी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। हो सकता है कि चूँकि स्वयं महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में महाराज दशरथ की अन्य रानियों का विस्तार पूर्वक वर्णन नहीं किया है इसी कारण तुलसीदास जी ने उन्हें रामचरितमानस में सम्मलित नहीं किया है। 

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