शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा
कल शरद पूर्णिमा का पर्व है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। आश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद का एक अर्थ चन्द्रमा भी है और इस दिन चाँद की किरणों का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र की किरणों में स्वयं अमृत समाहित होता है। यही कारण है कि आज के दिन गावों में लोग खुले आकाश एवं चांदनी के नीचे सोते हैं। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रौशनी में रहने से कई प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं। 

इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इस दिन सत्यनारायण की कथा करवाने का विशेष फल मिलता है। प्रसाद के रूप में इस दिन पायस (खीर) बनाई जाती है और उसके बाद उसे तुलसी के समक्ष चन्द्रमा की रौशनी में रख दिया जाता है। फिर उस प्रसाद को वितरित किया जाता है। कहते हैं शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा के प्रकाश में रहने के कारण उस खीर में अमृत और औषधि के गुण आ जाते है जिससे समस्त रोगों का नाश हो जाता है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं:
  • चंद्रदेव ने प्रजापति दक्ष की २७ पुत्रियों से विवाह किया किन्तु उनका अनुराग रोहिणी से सबसे अधिक था। ये अन्याय देख कर अन्य पुत्रियों ने अपने पिता से सहायता मांगी। दक्ष इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने चन्द्रमा को क्षीण होने का श्राप दे दिया जिससे उनकी कांति समाप्त हो गयी। फिर देवर्षि नारद के परामर्श पर चंद्रदेव ने महादेव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। तब महादेव ने चंद्रदेव को वरदान दिया कि जिस प्रकार उनकी कांति समाप्त हुई है उसी प्रकार शनैः शनैः उनकी कांति प्रतिदिन लौटेगी और पूर्णिमा के दिन वे अपने सम्पूर्ण तेज को प्राप्त करेंगे। जिस दिन उन्हें ये वरदान प्राप्त हुआ और महादेव की कृपा से उन्होंने अपने सम्पूर्ण तेज को प्राप्त किया वो दिन ही शरद पूर्णिमा कहलाया। 
  • मनुष्य के विभिन्न गुणों को "कला" कहा जाता है। एक सम्पूर्ण मनुष्य में कुल १६ कलाएं होती है। भगवान विष्णु के अवतारों में भी कलाओं का वर्णन आता है। भगवान श्रीराम श्रीहरि की १२ कलाओं के साथ जन्में थे और श्रीकृष्ण नारायण की पूर्ण १६ कलाओं के साथ। इसी लिए श्रीराम को पुरुषोत्तम एवं श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है। इसी प्रकार चन्द्रमा की कलाएं भी बढ़ती और घटती रहती है। वर्ष में केवल एक दिन शरद पूर्णमा को चन्द्रमा अपनी पूर्ण १६ कलाओं को प्राप्त करता है। चन्द्रमा का यही रूप "शरद" कहलाता है। 
  • मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी अभय मुद्रा में पृथ्वी पर विचरती हैं। जो भी मनुष्य शरद पूर्णिमा के दिन व्रत और जागरण प्रदान करता है वे उसे धन-धान्य से पूर्ण कर देती हैं। जो परिवार प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा का व्रत रखता है उसे कभी भी धन की कमी नहीं होती। 
  • इस दिन रात्रि जागरण के कारण इसे "कोजागरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है। इस दिन ऐरावत पर आरूढ़ देवराज इंद्र की पूजा करने का भी विधान है।
  • श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही गोकुल में गोपियों संग महारास रचाया था। इसीलिए इसका एक नाम "रास पूर्णिमा" भी है।
  • श्रापग्रस्त चंद्रदेव को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर स्थान दिया इसी कारण इस दिन नंदी पर आरूढ़ महादेव एवं माता पार्वती की पूजा का भी विधान है। इस दिन रात्रि में शिवलिंग के समक्ष दीपक जला कर १०८ बार "ॐ नमः शिवाय" का जाप करने से समस्त भयों का नाश होता है। 
  • रोगियों के लिए इस पर्व का बड़ा महत्त्व है। इस दिन रोगियों को चन्द्रमा की किरणों में ले जाने से उनके रोगों का नाश होता है।
  • व्यापारी इस शुभ दिन लेन-देन करते हैं क्यूंकि इससे उनका धन बढ़ता है। इस पर्व का एक नाम "कर्जमुक्ति पूर्णिमा" भी है क्यूंकि इसे रखने से मनुष्य अपने ऋण से जल्दी उऋण होता है।
  • इस व्रत की एक कथा प्रचलित है कि एक व्यापारी की दो पुत्रियां थी और दोनों शरद पूर्णिमा का व्रत करती थी। किन्तु बड़ी पुत्री सदैव व्रत पूरा करती थी किन्तु छोटी पुत्री व्रत अधूरा ही छोड़ देती थी। इसी कारण बड़ी पुत्री का घर पुत्र-पुत्रियों से भरा था किन्तु छोटी पुत्री की संतानें जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त होती थी। तब एक दिन देवर्षि नारद ने साधु का वेश लेकर छोटी पुत्री को बताया कि तुम्हारे व्रत अधूरा छोड़ने के कारण ही तुम पुत्रवती नहीं बन पाती। इस बार व्रत पूरा करो और अपनी बड़ी बहन को भी बुलाओ तो तुम्हारी संतान अवश्य जीवित रहेगी। तब उसने पूर्ण व्रत किया किन्तु फिर भी संतान मृत पैदा हुई। तब उसने उसका शव एक पीढ़ी पर रखा और उसके ऊपर कपडा ओढ़ा कर अपनी बड़ी बहन को बैठने को दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन बैठने को हुई, उनका वस्त्र उसके मृत पुत्र से स्पर्श कर गया। बड़ी बहन द्वारा किये गए शरद पूर्णिमा के व्रत के पुण्यों के प्रभाव से वो बालक तत्काल जीवित हो उठा। तब बड़ी बहन ने छोटी को डांटते हुए कहा कि अगर मैं इसपर बैठ जाती तो ये बालक मर जाता। तब छोटी बहन ने उसे सत्य बताया कि उसका बालक मृत ही था किन्तु शरद पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव और उनके पुण्य के कारण जीवित हो उठा।

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