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बभ्रुवाहन - अर्जुन का वध करने वाला उसका अपना पुत्र

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द्रौपदी का विवाह जब पांचों पांडवों से विवाह किया तब देवर्षि नारद के सुझाव पर पांडवों ने एक कड़ा नियम बनाया। उस नियम के अनुसार जब द्रौपदी किसी एक पांडव की पत्नी रहेगी, उस समय यदि कोई दूसरा पांडव उनके कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे १२ वर्षों का वनवास भोगना पड़ेगा। जब द्रौपदी युधिष्ठिर की पत्नी थी उस समय गायों के एक झुण्ड की रक्षा के लिए युधिष्ठिर के कक्ष में अपना गांडीव लेने चले गए जिस कारण उन्हें १२ वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। द्रौपदी के अतिरिक्त अर्जुन के अन्य तीन विवाह इसी वनवास काल में हुए थे।

महाराज दशरथ के कितने मंत्री और पुरोहित थे?

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हमारे धर्मग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंत्री ही किसी राजा के राज्य का आधार होते हैं। मंत्री वे कहलाते हैं जिससे "मंत्रणा" , अर्थात सलाह लेकर कोई राजा अपनी प्रजा के हित में कोई निर्णय लेता है। किसी राजा के कई मंत्री हो सकते थे और उनमें से जो मुख्य होता था उन्हें "महामंत्री" के नाम से जाना जाता था। आगे चल कर आधुनिक काल में इन्ही मंत्रियों को "आमात्य" या "सचिव" कहा जाने लगा।

नल दमयन्ती - विश्व की प्रथम प्रेम कथा

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हिंदु धर्म में प्रेम कथाओं का विशेष उल्लेख किया गया है। आज हम जो कथा आपको बताने जा रहे हैं वो संसार की पहली प्रेम कथा मानी जा सकती है। नल-दमयन्ती की कथा का वर्णन महाभारत के वनपर्व में आता है। जब युधिष्ठिर द्रौपदी को जुए में हार जाते हैं और फिर पांडव द्रौपदी सहित वनवास को जाते हैं, तब युधिष्ठिर की आत्म-ग्लानि को मिटाने के लिए महर्षि बृहदश्व ने उन्हें ये कथा सुनाई थी।

क्यों दूर्वा का हर पूजा में इतना महत्त्व है?

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दूर्वा, जिसे हम हिंदी में दूब भी कहते हैं, का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। शायद ही ऐसी कोई पूजा हो जो दूर्वा के बिना संपन्न होती हो। आम तौर पर लोग दूर्वा और घास को एक ही समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। दूर्वा घास का ही एक प्रकार है जो हरे रंग की होती है और पृथ्वी पर फ़ैल कर बढ़ती है और कभी ऊपर नहीं उठती।

महाराज मोरध्वज - जिन्होंने दानवीरता की सारी सीमाओं को पार कर दिया

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हमारे देश में एक से एक महादानी हुए हैं किन्तु आज हम जिस व्यक्ति की बात करने वाले हैं उसने दानवीरता की सारी सीमाओं को पार कर लिया। ये कथा है महाराज मोरध्वज की। कथा महाभारत की है किन्तु मूल महाभारत का भाग नहीं है। भारतीय दंतकथाओं में इसकी बड़ी प्रसिद्धि है। विशेषकर छत्तीसगढ़ में इसे बड़े चाव से सुना और सुनाया जाता है।

चार वटवृक्ष जो अमर हैं

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हिन्दू धर्म में वटवृक्ष का क्या महत्त्व है इस विषय में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। वैसे तो इस दुनिया में असंख्य वटवृक्ष हैं किन्तु उनमें से ५ ऐसे हैं जो अमर माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि उनका कभी नाश नहीं होता। तीर्थदीपिका में पांच वटवृक्षों का वर्णिन मिलता है:

ऋषि कितने प्रकार के होते हैं?

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कुछ समय पहले हमने ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी, तपस्वी, योगी, संत और महात्मा में क्या अंतर है , उसके बारे में बताया था। आज हम ऋषियों के प्रकार के बारे में जानेंगे। ऋषि वे ज्ञानी पुरुष थे जो शोध करते थे। अंग्रेजी का शब्द "रिसर्च" ऋषि शब्द से ही निकला है। ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इन्हे श्रुति ग्रंथों का अध्ययन एवं स्मृति ग्रंथों की रचना और शोध करने के लिए जाना जाता है।