महर्षि अंगिरा (अंगिरस) परमपिता ब्रह्मा के पुत्र एवं प्रथम स्वयंभू मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक हैं। इन्ही के पुत्र देवगुरु बृहस्पति हुए। हालाँकि इनके वंश का बहुत विस्तार से वर्णन हमें महाभारत के वनपर्व में मिलता है जब महर्षि मार्कण्डेय युधिष्ठिर को महर्षि अंगिरा और उनके वंश के विषय में बताते हैं। ये वंश मुख्यतः महर्षि अंगिरा और अग्नि से सम्बंधित है।
आम तौर पर लोगों को लगता है कि पुराणों में सबसे वृहद् वर्णन महर्षि कश्यप के वंश का दिया गया है किन्तु वेदों में जितना विस्तृत वर्णन महर्षि अंगिरा का मिलता है उतना और किसी ऋषि का नहीं मिलता। महाभारत के अतिरिक्त अन्य पुराणों में भी हमें उनके वंश के बारे में पता चलता है। इस लेख में हम सभी स्रोतों को मिलकर महर्षि अंगिरा के वंश के बारे में बात करेंगे।
महाभारत के अनुसार:
- सबसे पहले स्वयंभू ब्रह्मा प्रकट हुए।
- ब्रह्मा के ७ मानस पुत्रों में से तीसरे पुत्र थे महर्षि अंगिरस। इन्हें अंगिरा के नाम से भी जाना जाता है।
- महर्षि अंगिरा के अपनी पत्नी सुभा से ७ पुत्र हुए - बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योति, बृहदब्रह्मा, बृहन्मना, बृहन्मन्त्र, बृहद्भास एवं बृहस्पति। इनके अतिरिक्त उनकी सात पुत्रियां भी हुई - भानुमती, रागा, सिनीवाली, अर्चिष्मती, हविष्मती, महिष्मति, महामती एवं कुहू। इसके अतिरिक्त महाभारत में महर्षि अंगिरा के एक और पुत्र च्यवन का भी वर्णन आता है जो पंच-अग्नियों में से एक थे। ये महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि च्यवन से अलग हैं।
- बृहस्पति का विवाह तारा से हुआ जिनसे उन्हें छः पुत्र - शंयु, निश्च्यवन, विश्वजित, विश्वभुक, ऊर्ध्वभाक एवं स्विष्टकृत, एवं एक कन्या स्वाहा की प्राप्ति हुई। विश्वभुक की पत्नी गोमती नदी थी।
- बृहस्पति के ज्येष्ठ पुत्र शंयु का विवाह धर्म की पुत्री सत्या से हुआ जिनसे उन्हें एक पुत्र और तीन कन्याओं की प्राप्ति हुई। इन दोनों के ज्येष्ठ पुत्र का नाम था भरद्वाज। सत्या के अतिरिक्त शंयु ने एक और स्त्री से विवाह किया और उनसे भी उन्हें १ पुत्र और ३ पुत्रियों की प्राप्ति हुई। उनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम था भरत, जिन्हें ऊर्ज के नाम से भी जाना जाता है। उनकी बड़ी पुत्री का नाम था भारती।
- भरद्वाज का विवाह वीरा नाम की कन्या से हुआ जिनसे उन्हें वीर नाम का पुत्र हुआ। वीर को ही रथप्रभु, रथध्वान और कुम्भरेता कहा जाता है।
- वीर का विवाह सरयू नाम की स्त्री से हुआ जिनसे उन्हें सिद्धि नाम का पुत्र हुआ।
- भरतके पुत्र का नाम था पावक। इनका ही दूसरा नाम था महान।
- बृहस्पति के दूसरे पुत्र निश्च्यवन के पुत्र का नाम था सत्य। इन्हे निष्कृति के नाम से भी जाना जाता है।
- सत्य के पुत्र का नाम था स्ववन।
- बृहस्पति की पुत्री स्वाहा के तीन पुत्र हुए - काम, अमोघ और उक्थ।
- अंगिरा के पुत्र च्यवन अग्नि के पुत्र का नाम था भानु। इन्हे बृहद्भानु और मनु भी कहा जाता है। भानु की तीन पत्नियां थी - सुप्रजा, सूर्यदेव की पुत्री बृहद्भासा और निशा।
- सुप्रजा और बृहद्भासा से भानु के छः पुत्र हुए - बलद, मन्युमान, विष्णु (धृतिमान), आग्रयण, अग्रह एवं स्तुभ।
- निशा से भानु एक कन्या और ७ पुत्रों की प्राप्ति हुई। कन्या का नाम था रोहिणी जिसका विवाह हिरण्यकशिपु से हुआ। निशा के ७ पुत्र थे - अग्नि, सोम, वैश्वानर, विश्वपति, सन्निहित, कपिल और अग्रणी।
पुराणों में हमें थोड़ा अलग वर्णन मिलता है जिसके अनुसार:
- परमपिता ब्रह्मा स्वयंभू हैं।
- उनके मानस पुत्रों में से एक थे महर्षि अंगिरा। उनकी चार पत्नियां थी - महर्षि मरीचि की पुत्री सुरूपा, कर्दम ऋषि की पुत्री स्वराट, स्वयंभू मनु की पुत्री पथ्या एवं श्रद्धा (स्मृति)।
- सुरूपा से इन्हे देवगुरु बृहस्पति और एक पुत्री भुवना की प्राप्ति हुई।
- बृहस्पति के पुत्र कच एवं भारद्वाज हुए। कुछ स्थानों पर केसरी को भी बृहस्पति का ही पुत्र माना जाता है। कच ने ही दैत्यगुरु शुक्राचार्य से मृतसञ्जीविनी विद्या प्राप्त की थी किन्तु शुक्र की पुत्री देवयानी के श्राप के कारण वो विद्या उनके किसी काम ना आयी।
- केसरी के अंजना से मारुति नाम के पुत्र हुए जो हनुमान के नाम से प्रसिद्ध हुए।
- भारद्वाज के तीन प्रमुख पुत्र हुए। - भवमन्यु, गर्ग और द्रोण। इसके अतिरिक्त उनकी एक पुत्री हुई - इडविला। इनके अतिरिक्त भारद्वाज गोत्र के सन्दर्भ में इनके नौ अन्य पुत्र और दो पुत्रियों का वर्णन भी मिलता है। पुत्रों के नाम थे - ऋजिष्वा, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी पुत्रियां थी - रात्रि और कशिपा।
- भवमन्यु के महावीर्य, नर और गर्भ - ये तीन पुत्र हुए।
- महावीर्य के पुत्र थे उरुक्षय।
- उरुक्षय के कवि आदि अनेक पुत्र हुए।
- नर के पुत्र का नाम था संकृति।
- संकृति के गुरु, वीति और रन्तिदेव आदि पुत्र हुए।
- गर्भ के सिनि नाम के पुत्र हुए।
- सिनि के सैन्य आदि पुत्र हुए।
- गर्ग के पुत्र हुए शिनी।
- द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ जिनसे इन्हे अश्वथामा नाम का एक पुत्र हुआ।
- इडविला का विवाह महर्षि विश्रवा से हुआ जिनसे उनके एक पुत्र हुए कुबेर।
- कुबेर ने भद्रा नाम की स्त्री विवाह किया जिनसे उन्हें तीन पुत्र और एक पुत्री हुई। पुत्रों के नाम थे - नलकुबेर, मणिभद्र एवं मायुराज। कुबेर की पुत्री का नाम था मीनाक्षी।
- नलकुबेर की दो पत्नियां थी - सोमप्रभा और रत्नमाला। इसके अतिरिक्त रम्भा और प्रीति अप्सराओं को भी उनकी पत्नी माना जाता है। रम्भा से नलकुबेर को सुमित तथा प्रीती से उन्हें चित्रांगदाता नाम के पुत्रों की प्राप्ति हुई।
- महर्षि अंगिरा और सुरूपा की पुत्री भुवना उस काल में एक मात्र ऐसी स्त्री थी जिसे ब्रह्मविद्या का ज्ञान था। भुवना का विवाह आठवें वसु प्रभास के साथ हुआ जिससे उन्हें पुत्र के रूप में महान विश्वकर्मा की प्राप्ति हुई जो आगे चल कर देव शिल्पी बनें। प्रभास ने ही महर्षि वशिष्ठ की प्रसिद्ध गाय 'नंदनी' का हरण किया था जिसके कारण उन्हें श्राप मिला और वो महारथी भीष्म के रूप में गंगा के गर्भ से जन्में।
- स्वराट से महर्षि अंगिरा को गौतम नाम के पुत्र हुए जिनका विवाह अहिल्या से हुआ।
- गौतम और अहिल्या के पुत्र हुए शतानन्द।
- शतानन्द के पुत्र हुए सत्यधृति।
- पथ्या से महर्षि अंगिरा को अबन्ध्य, वामदेव, उशिज, उतथ्य तथा धिष्णु - ये पाँच पुत्र उत्पन्न हुए।
- वामदेव के पुत्र हुए वृहदुत्थ।
- उशिज के पुत्र थे दीर्घतमा।
- धिष्णु के पुत्र सुधन्वा हुए।
- सुधन्वा के पुत्र का नाम था ऋषभ।
- ऋषभ के दो पुत्र हुए - रथकार एवं संझक। इनके अतिरिक्त आत्मा, आयु, ऋतु, गविष्ठ, दक्ष, दमन, प्राण, सद, सत्य तथा हविष्मान् को भी इन्ही का पुत्र माना जाता है और इन्हे सामूहिक रूप से देवगण कहा जाता है।
- श्रद्धा (स्मृति) से महर्षि अंगिरा की सिनीबाली, कुहू, राका, अनुमति, भानुमति, हविष्मति एवं महिष्मति नामक ७ पुत्रियाँ एवं भरताग्नि एवं कीर्तिमन्त नाम के दो पुत्र हुए।
- भरतग्नि का विवाह संहति नाम की कन्या से हुआ जिनसे उन्हें पर्जन्य नाम के पुत्र हुए।
- पर्जन्य के पुत्र का नाम था कीर्तिमान।
- कीर्तिमान ने धेनुका नाम की कन्या से विवाह किया जिनसे उन्हें वरिष्ठ और छतिमन्त नाम के पुत्र हुए।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें