- कुल कांड: ७
- कुल मूल सर्ग: ६४२
- कुल प्रक्षिप्त सर्ग: ३
- कुल सर्ग: ६४५
- कुल मूल श्लोक: २३६४४
- कुल प्रक्षिप्त श्लोक: १०६
- कुल पूर्व खंड श्लोक: २९२
- कुल श्लोक: २४०४२
- सबसे बड़ा कांड: युद्ध कांड
- सबसे छोटा कांड:
- सर्ग संख्या के अनुसार: किष्किंधा कांड (६७ सर्ग)
- श्लोक संख्या के अनुसार: बालकाण्ड (२२९३ श्लोक)
- सबसे बड़ा सर्ग: सुन्दर कांड, सर्ग १: २१३ श्लोक
- सबसे छोटा सर्ग: सुन्दर कांड, सर्ग ८ और सुन्दर कांड सर्ग २९: ८-८ श्लोक
- प्रथम अध्याय: कलियुग की स्थिति और रामायण पाठ की महिमा | कुल श्लोक: ४३
- द्वितीय अध्याय: सुदास को राक्षसत्व की प्राप्ति तथा रामायण कथा द्वारा उसका उद्धार | कुल श्लोक: ७३
- तृतीय अध्याय: माघ मास में रामायण श्रवण का फल | कुल श्लोक: ६२
- चतुर्थ अध्याय: चैत्र मास में रामायण श्रवण का फल | कुल श्लोक: ४५
- पंचम अध्याय: रामायण के नवाह श्रवण की विधि | कुल श्लोक: ६९
कुल सर्ग: ७७ | कुल श्लोक: २२९३
सर्ग २: क्रौंचवध से दुखी महर्षि वाल्मीकि द्वारा प्रथम श्लोक का निर्माण | कुल श्लोक: ४३
सर्ग ३: वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण में निबद्ध विषयों का उल्लेख | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ४: महर्षि वाल्मीकि का रामायण का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढ़ाना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ५: अयोध्या पुरी का वर्णन | कुल श्लोक: २३
सर्ग ६: अयोध्या के नागरिकों का वर्णन | कुल श्लोक: २८
सर्ग ७: राजमंत्रियों के गुण और नीति का वर्णन | कुल श्लोक: २४
सर्ग ८: राजा का पुत्र के लिए यज्ञ करने का प्रस्ताव | कुल श्लोक: २४
सर्ग ९: सुमंत्र का राजा दशरथ को ऋष्यश्रृंग ऋषि को बुलाने की सलाह | कुल श्लोक: २०
सर्ग १०: अंगदेश में ऋष्यश्रृंग के आने तथा शांता के साथ विवाह का प्रसंग | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ११: राजा दशरथ का अंगराज के यहाँ जाकर वहां से शांता और ऋष्यश्रृंग को लाना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १२: अश्वमेघ यज्ञ की तैयारी | कुल श्लोक: २२
सर्ग १३: महर्षि वशिष्ठ द्वारा राजा दशरथ का यज्ञ की दीक्षा लेना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग १४: अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान | कुल श्लोक: ६०
सर्ग १५: ऋष्यश्रृंग द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ का आरम्भ | कुल श्लोक: ३४
सर्ग १६: यञकुंड से खीर का प्रकट होना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १७: देवताओं का वानरों के रूप में अवतार लेना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग १८: श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म | कुल श्लोक: ५९
सर्ग १९: महर्षि विश्वामित्र का श्रीराम को महाराज दशरथ से मांगना | कुल श्लोक: २२
सर्ग २०: महाराज दशरथ का श्रीराम को देने से मना करना | कुल श्लोक: २८
सर्ग २१: महर्षि वशिष्ठ का महाराज दशरथ को समझाना | कुल श्लोक: २२
सर्ग २२: श्रीराम और लक्ष्मण का महर्षि विश्वामित्र के साथ जाना | कुल श्लोक: २४
सर्ग २३: महर्षि विश्वामित्र का दोनों भाइयों के साथ पुण्य आश्रम में विश्राम | कुल श्लोक: २२
सर्ग २४: महर्षि विश्वामित्र का गंगा नदी को पार करना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग २५: ताड़का के जन्म की कथा | कुल श्लोक: २२
सर्ग २६: ताड़का वध | कुल श्लोक: ३६
सर्ग २७: महर्षि विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को दिव्यास्त्र प्रदान करना | कुल श्लोक: २८
सर्ग २८: महर्षि विश्वामित्र का श्रीराम को उन अस्त्रों के प्रयोग की विधि बताना | कुल श्लोक: २२
सर्ग २९: महर्षि विश्वामित्र का दोनों भाइयों को लेकर सिद्धाश्रम पहुंचना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ३०: यज्ञ की रक्षा, मारीच का प्रस्थान और सुबाहु का वध | कुल श्लोक: २६
सर्ग ३१: महर्षि विश्वामित्र, श्रीराम और लक्ष्मण का मिथिला को प्रस्थान | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३२: महर्षि विश्वामित्र का दोनों भाइयों को कुशनाभ की कथा बताना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ३३: राजा कुशनाभ की कन्याओं की कथा | कुल श्लोक: २६
सर्ग ३४: महाराज गाधि की कथा | कुल श्लोक: २३
सर्ग ३५: गंगाजी की उत्पत्ति की कथा | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३६: माता पार्वती का देवताओं को श्राप देना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ३७: गंगा से कार्तिकेय की उत्पत्ति की कथा | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ३८: राजा सगर की कथा | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३९: इंद्र द्वारा सगर के अश्व का अपहरण | कुल श्लोक: २६
सर्ग ४०: कपिल मुनि द्वारा सगर के ६०००० पुत्रों का भस्म होना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ४१: अंशुमान का रसातल में जाकर अश्व को प्राप्त करना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ४२: भगीरथ द्वारा ब्रह्माजी और महादेव को प्रसन्न करना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ४३: महादेव का गंगाजी को जटा में धारण करना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ४४: गंगाजी द्वारा भगीरथ के पितरों का उद्धार | कुल श्लोक: २३
सर्ग ४५: समुद्र मंथन की कथा | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ४६: इंद्र का दिति के गर्भ के ७ टुकड़े करना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ४७: मरुद्गणों की उत्पत्ति की कथा | कुल श्लोक: २२
सर्ग ४८: महर्षि विश्वामित्र का दोनों भाइयों के साथ महर्षि गौतम के सूने आश्रम में पहुंचना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ४९: अहिल्या की कथा और उनका उद्धार | कुल श्लोक: २२
सर्ग ५०: महर्षि विश्वामित्र, श्रीराम और लक्ष्मण का मिथिला पहुंचना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ५१: महर्षि विश्वामित्र की कथा | कुल श्लोक: २८
सर्ग ५२: महर्षि वशिष्ठ द्वारा विश्वामित्र और उनकी सेना का स्वागत | कुल श्लोक: २३
सर्ग ५३: विश्वामित्र का महर्षि वशिष्ठ से कामधेनु गाय मांगना और महर्षि वशिष्ठ का मना करना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ५४: विश्वामित्र का कामधेनु को जबरदस्ती ले जाना और कामधेनु द्वारा विश्वामित्र की सेना का संहार | कुल श्लोक: २३
सर्ग ५५: विश्वामित्र की तपस्या और ब्रहास्त्र की प्राप्ति | कुल श्लोक: २८
सर्ग ५६: महर्षि वशिष्ठ का ब्रह्माण्ड अस्त्र द्वारा विश्वामित्र के ब्रह्मास्त्र को पी जाना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ५७: राजा त्रिशंकु का महर्षि वशिष्ठ की शरण में जाना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ५८: राजा त्रिशंकु का महर्षि विश्वामित्र की शरण में जाना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ५९: महर्षि विश्वामित्र द्वारा त्रिशंकु के लिए यज्ञ करना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ६०: महर्षि विश्वामित्र का त्रिशंकु को स्वर्ग भेजना और इंद्र का उसे स्वर्ग से गिरा देना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ६१: राजा अम्बरीष का ऋचीक पुत्र शुनःशेप को यज्ञ पशु के रूप में लाना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ६२: महर्षि विश्वामित्र द्वारा शुनःशेप की रक्षा | कुल श्लोक: २८
सर्ग ६३: मेनका द्वारा महर्षि विश्वामित्र का तप भंग करना और शकुंतला का जन्म | कुल श्लोक: २६
सर्ग ६४: महर्षि विश्वामित्र का रम्भा को श्राप देना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६५: महर्षि विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि पद की प्राप्ति | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ६६: राजा जनक द्वारा शिव धनुष का परिचय देना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ६७: श्रीराम द्वारा धनुष भंग | कुल श्लोक: २७
सर्ग ६८: महाराज दशरथ का मिथिला प्रस्थान | कुल श्लोक: १९
सर्ग ६९: महाराज दशरथ का मिथिला पहुंचा और राजा जनक द्वारा उनका स्वागत | कुल श्लोक: १९
सर्ग ७०: महर्षि वशिष्ठ द्वारा सूर्यवंश का वर्णन | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ७१: राजा जनक का अपने कुल का परिचय देना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ७२: महर्षि विश्वामित्र द्वारा भरत और शत्रुघ्न के लिए कुशध्वज की कन्याओं का वरण: कुल श्लोक: २५
सर्ग ७३: चारो भाइयों का विवाह | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ७४: महाराज दशरथ का वापस लौटना और मार्ग में परशुराम जी का मिलना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ७५: भगवान परशुराम का श्रीराम को धनुष पर प्रत्यंचा चढाने को कहना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ७६: श्रीराम द्वारा परशुराम जी के पुण्य लोकों का नाश | कुल श्लोक: २४
सर्ग ७७: बारात का अयोध्या लौटना और भरत और शत्रुघ्न का अपने ननिहाल जाना | कुल श्लोक: २९
कुल सर्ग: ११९ | कुल श्लोक: ४३०२
सर्ग २: राजा दशरथ द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ३: श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी | कुल श्लोक: ४९
सर्ग ४: श्रीराम का माता कौशल्या को अपने राज्याभिषेक की बात बताना | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ५: श्रीराम और सीता जी का उपवास | कुल श्लोक: २६
सर्ग ६: अयोध्या में प्रजा का एकत्र होना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ७: मंथरा का कैकेयी को उकसाना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ८: कैकेयी द्वारा श्रीराम के राज्याभिषेक का समर्थन | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ९: कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश | कुल श्लोक: ६६
सर्ग १०: राजा दशरथ का कैकेयी को मनाना | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ११: कैकेयी का राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांगना | कुल श्लोक: २९
सर्ग १२: महाराज दशरथ का विलाप | कुल श्लोक: ११२
सर्ग १३: महाराज दशरथ का कैकेयी से अनुनय-विनय करना | कुल श्लोक: २४
सर्ग १४: कैकेयी का महाराज दशरथ को विवश करना और उनका श्रीराम को बुलवाना | कुल श्लोक: ६९
सर्ग १५: सुमंत्र का श्रीराम को बुलाने उनके महल में जाना | कुल श्लोक: ४८
सर्ग १६: श्रीराम का लक्ष्मण के साथ महाराज दशरथ के पास जाना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग १७: श्रीराम और लक्ष्मण का अपने पिता के महल में प्रवेश | कुल श्लोक: २२
सर्ग १८: श्रीराम का कैकेयी से अपने पिता की चिंता का कारण पूछना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग १९: श्रीराम का वनवास को स्वीकार करना | कुल श्लोक: ४०
सर्ग २०: वनवास की बात सुनकर माता कौशल्या का विलाप | कुल श्लोक: ५५
सर्ग २१: लक्ष्मण का रोष | कुल श्लोक: ६४
सर्ग २२: श्रीराम का लक्ष्मण को समझाना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग २३: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग २४: माता कौशल्या का विलाप | कुल श्लोक: ३८
सर्ग २५: श्रीराम का माता कौशल्या को समझाना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग २६: श्रीराम का सीता जी को वनवास के बारे में बताना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग २७: सीता जी का श्रीराम से वन जाने का अनुरोध | कुल श्लोक: २४
सर्ग २८: श्रीराम का सीता जी को समझाना | कुल श्लोक: २६
सर्ग २९: सीता जी का हठ | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३०: श्रीराम का सीता जी को साथ ले जाने की स्वीकृति देना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग ३१: लक्ष्मण का वन जाने को तैयार होना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३२: श्रीराम का सुहृदयों को दान देना | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ३३: श्रीराम, सीता और लक्ष्मण का कैकेयी के महल में जाना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ३४: श्रीराम का महाराज दशरथ से वन जाने की अनुमति मांगना | कुल श्लोक: ६१
सर्ग ३५: सुमंत्र का कैकेयी को फटकारना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३६: कैकेयीद्वारा श्रीराम के साथ सेना और खजाना भेजने का विरोध | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ३७: महर्षि वशिष्ठ का कैकेयी को फटकारना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३८: महाराज दशरथ का कैकेयी को फटकारना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ३९: श्रीराम का माता-पिता से विदा मांगना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ४०: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी का वन की ओर प्रस्थान | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ४१: रनिवास की स्त्रियों का विलाप | कुल श्लोक: २१
सर्ग ४२: महाराज दशरथ का कैकेयी को त्याग देना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ४३: माता कौशल्या का विलाप | कुल श्लोक: २१
सर्ग ४४: माता सुमित्रा का माता कौशल्या को सांत्वना देना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ४५: नगर वासियों का श्रीराम के साथ जाना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ४६: रात में श्रीराम का नगरवासियों को छोड़ कर वन की ओर जाना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ४७: प्रातः उठकर नगरवासियों का निराश होना और वापस नगर को लौटना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ४८: नगर की स्त्रियों का विलाप | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ४९: श्रीराम का आगे बढ़ना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ५०: श्रीराम का निषादराज गुह से मिलना | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ५१: लक्ष्मण का विलाप | कुल श्लोक: २७
सर्ग ५२: सुमंत्र को वापस जाने को कह कर तीनों का गंगा पार करना | कुल श्लोक: १०२
सर्ग ५३: श्रीराम का लक्ष्मण को वापस लौटने को कहना और लक्ष्मण का मना करना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ५४: श्रीराम का भरद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचना | कुल श्लोक: ४३
सर्ग ५५: भरद्वाज मुनि का श्रीराम को चित्रकूट का मार्ग बताना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ५६: श्रीराम का चित्रकूट पहुंचना और वाल्मीकि जी से मिलना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ५७: सुमंत्र का अयोध्या लौटना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ५८: सुमंत्र का महाराज दशरथ को तीनों का समाचार देना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ५९: महाराज दशरथ का विलाप | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ६०: माता कौशल्या का विलाप | कुल श्लोक: २३
सर्ग ६१: माता कौशल्या का महाराज दशरथ को उपालम्भ देना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ६२: महाराज दशरथ का माता कौशल्या को मनाना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६३: महाराज दशरथ द्वारा एक मुनिकुमार के मारे जाने का प्रसंग सुनाना | कुल श्लोक: ५३
सर्ग ६४: महाराज दशरथ का निधन | कुल श्लोक: ७८
सर्ग ६५: रानियों का विलाप | कुल श्लोक: २९
सर्ग ६६: महाराज दशरथ के शव को तेल के कड़ाह में रखना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ६७: मार्कण्डेय मुनि का महर्षि वशिष्ठ से किसी को राजा बनाने को कहना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ६८: महर्षि वशिष्ठ का दूतों को कैकेयदेश में भेजना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ६९: भरत का दुःस्वप्न | कुल श्लोक: २१
सर्ग ७०: भरत और शत्रुघ्न का अयोध्या की ओर प्रस्थान | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ७१: भरत और शत्रुघ्न का राजभवन में प्रवेश | कुल श्लोक: ४६
सर्ग ७२: भरत और शत्रुघ्न को अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिलना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ७३: भरत का रोष | कुल श्लोक: २८
सर्ग ७४: भरत का कैकेयी को धिक्कारना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ७५: भरत का माता कौशल्या से मिलना | कुल श्लोक: ६५
सर्ग ७६: महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार | कुल श्लोक: २३
सर्ग ७७: भरत और शत्रुघ्न का विलाप | कुल श्लोक: २६
सर्ग ७८: शत्रुघ्न का मंथरा को घसीटना और भरत द्वारा उसकी रक्षा | कुल श्लोक: २६
सर्ग ७९: भरत का वन जाकर श्रीराम को वापस लाने का निर्णय लेना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ८०: अयोध्या से गंगा तक राजमार्ग का निर्माण | कुल श्लोक: २२
सर्ग ८१: महर्षि वशिष्ठ का मंत्रियों को बुलाना | कुल श्लोक: १६
सर्ग ८२: महर्षि वशिष्ठ का भरत को राजा बनने को कहना और भरत का इंकार करना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ८३: भरत की वनयात्रा | कुल श्लोक: २६
सर्ग ८४: भरत का निषादराज गुह से मिलना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ८५: भरत और गुह की बातचीत | कुल श्लोक: २२
सर्ग ८६: गुह द्वारा लक्ष्मण के विलाप का वर्णन | कुल श्लोक: २५
सर्ग ८७: भरत का मूर्छित होना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ८८: भरत का विलाप | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ८९: भरत का सेना सहित भरद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ९०: भरत का भरद्वाज मुनि के आश्रम में ठहरना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ९१: भरद्वाज मुनि द्वारा भरत की सेना का दिव्य सत्कार | कुल श्लोक: ८३
सर्ग ९२: भरत का चित्रकूट की ओर प्रस्थान | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ९३: चित्रकूट यात्रा का वर्णन | कुल श्लोक: २७
सर्ग ९४: श्रीराम का सीता जी को चित्रकूट की शोभा दिखाना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ९५: मन्दाकिनी नदी की शोभा का वर्णन | कुल श्लोक: १९
सर्ग ९६: लक्ष्मण का भरत की सेना को देखना और उनका रोष | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ९७: श्रीराम का लक्ष्मण को शांत करना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ९८: भरत का श्रीराम के आश्रम को देखना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ९९: भरत मिलाप | कुल श्लोक: ४२
सर्ग १००: श्रीराम का भरत को राजनीति का उपदेश देना | कुल श्लोक: ७६
सर्ग १०१: भरत का श्रीराम को लौटने के लिए कहना और श्रीराम का इंकार करना | कुल श्लोक: २७
सर्ग १०२: भरत का श्रीराम को पिता की मृत्यु का समाचार देना | कुल श्लोक: ९
सर्ग १०३: श्रीराम का पिता को जलांजलि देना | कुल श्लोक: ४९
सर्ग १०४: श्रीराम का माताओं से मिलना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १०५: श्रीराम का सबको वन में रहने का दृढ निश्चय बताना | कुल श्लोक: ४६
सर्ग १०६: भरत का फिर से श्रीराम से प्रार्थना करना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग १०७: श्रीराम का भरत को समझाना | कुल श्लोक: १९
सर्ग १०८: जाबलि ऋषि का श्रीराम को समझाना | कुल श्लोक: १८
सर्ग १०९: श्रीराम द्वारा जाबलि ऋषि के मत का खंडन | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ११०: महर्षि वशिष्ठ द्वारा सूर्यवंश का वर्णन और उनका श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिए कहना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग १११: भरत का अनशन और श्रीराम का उन्हें समझाना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ११२: भरत का श्रीराम की चरणपादुका लेकर लौटना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ११३: भरत का भरद्वाज मुनि से मिलकर अयोध्या लौट आना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ११४: भरत का महल पहुँच कर दुखी होना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ११५: भरत का नंदीग्राम जाना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ११६: तपस्वियों का चित्रकूट छोड़ कर दूसरे आश्रम जाना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ११७: श्रीराम का महर्षि अत्रि और माता अनुसूया से मिलना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ११८: माता अनुसूया का सीता जी को सतीत्व धर्म की शिक्षा देना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ११९: माता अनुसूया की आज्ञा से सीता जी का उनके दिए गए वस्त्र और आभूषणों को धारण करना | कुल श्लोक: २२
कुल सर्ग: ७५ | कुल श्लोक: २५१९
सर्ग २: विराध का आक्रमण | कुल श्लोक: २६
सर्ग ३: विराध का श्रीराम और लक्ष्मण को पकड़ लेना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ४: विराध वध | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ५: श्रीराम का शरभंग मुनि से मिलना | कुल श्लोक: ४३
सर्ग ६: वन के ऋषियों का श्रीराम से सुरक्षा की प्रार्थना करना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ७: श्रीराम की सुतीक्ष्ण मुनि से भेंट | कुल श्लोक: २४
सर्ग ८: श्रीराम का सुतीक्ष्ण मुनि से विदा लेना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ९: माता सीता का श्रीराम से हिंसा ना करने का अनुरोध | कुल श्लोक: ३३
सर्ग १०: श्रीराम का दुष्टों के प्रति हिंसा करने का औचित्य बताना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ११: माण्डकर्णि मुनि की कथा | कुल श्लोक: ९४
सर्ग१२: श्रीराम की महर्षि अगस्त्य से भेंट | कुल श्लोक: ३७
सर्ग १३: महर्षि अगस्त्य का श्रीराम को पंचवटी में बसने की सलाह देना | कुल श्लोक: २५
सर्ग १४: श्रीराम का जटायु से मिलना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग १५: पंचवटी में लक्ष्मण द्वारा पर्णकुटी का निर्माण | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १६: लक्ष्मण द्वारा हेमंत ऋतु का वर्णन | कुल श्लोक: ४३
सर्ग १७: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना | कुल श्लोक: २९
सर्ग १८: लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटना | कुल श्लोक: २६
सर्ग १९: शूर्पणखा का अपने भाई खर को सारी बातें बताना | कुल श्लोक: २६
सर्ग २०: श्रीराम द्वारा १४ राक्षसों का वध | कुल श्लोक: २५
सर्ग २१: शूर्पणखा का खर को राक्षसों के वध का समाचार बताना | कुल श्लोक: २२
सर्ग २२: खर-दूषण का १४००० राक्षसों की सेना के साथ प्रस्थान | कुल श्लोक: २४
सर्ग २३: राक्षसों की सेना का श्रीराम के आश्रम के पास पहुंचना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग २४: श्रीराम का सीता जी और लक्ष्मण को सुरक्षित भेज कर युद्ध के लिए तैयार होना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग २५: श्रीराम और राक्षसों का युद्ध | कुल श्लोक: ४७
सर्ग २६: श्रीराम द्वारा १४००० राक्षसों का संहार | कुल श्लोक: ३८
सर्ग २७: श्रीराम द्वारा त्रिशिरा का वध | कुल श्लोक: २०
सर्ग २८: श्रीराम और खर का युद्ध | कुल श्लोक: ३३
सर्ग २९: श्रीराम का खर को फटकारना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ३०: श्रीराम द्वारा खर का वध | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ३१: रावण का सीता जी के अपहरण को जाना और मारीच के समझाने पर लौट आना | कुल श्लोक: ५०
सर्ग ३२: शूर्पणखा का रावण से मिलना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ३३: शूर्पणखा का रावण को फटकारना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३४: शूर्पणखा का रावण को सीता जी को अपनी पत्नी बनाने के लिए प्रेरित करना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ३५: रावण का मारीच से मिलना | कुल श्लोक: ४२
सर्ग ३६: रावण का मारीच से सहायता मांगना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३७: मारीच का रावण को समझाना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ३८: मारीच को रावण को श्रीराम की शक्ति के बारे में बताना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ३९: मारीच का रावण को श्रीराम का प्रताप बताना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ४०: रावण का मारीच को फटकारना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ४१: मारीच का रावण को पुनः समझाना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ४२: मारीच का स्वर्ण मृग बन कर श्रीराम के आश्रम पर जाना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ४३: श्रीराम का स्वर्ण मृग को पकड़ने जाना | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ४४: मारीच वध | कुल श्लोक: २७
सर्ग ४५: सीता जी के मार्मिक वचनों को सुनकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ४६: रावण का साधुवेश में सीता जी के पास जाना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ४७: रावण का सीता जी को अपना परिचय देना और सीता जी का उसे फटकारना | कुल श्लोक: ५०
सर्ग ४८: रावण द्वारा अपने पराक्रम का वर्णन | कुल श्लोक: २४
सर्ग ४९: सीता हरण | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ५०: जटायु का रावण को समझाना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ५१: रावण द्वारा जटायु वध | कुल श्लोक: ४६
सर्ग ५२: रावण का सीता जी को लेकर जाना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ५३: सीता जी का रावण को धिक्कारना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ५४: सीता जी का अपने आभूषण नीचे गिराना और रावण का लंका पहुंचना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ५५: रावण का सीता जी को अपना महल दिखाना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ५६: रावण का सीता जी को अशोक वाटिका भेजना | कुल श्लोक: ३६
प्रक्षिप्त सर्ग: देवराज इंद्र का सीता जी को दिव्य खीर देना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ५७: लौटते हुए श्रीराम की लक्ष्मण से भेंट | कुल श्लोक: २३
सर्ग ५८: श्रीराम और लक्ष्मण का आश्रम आना और सीता जी को ना पाना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ५९: श्रीराम और लक्ष्मण का वार्तालाप | कुल श्लोक: २७
सर्ग ६०: श्रीराम का विलाप | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ६१: सीता जी की खोज | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ६२: श्रीराम का विलाप करना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६३: श्रीराम का दुःख और विलाप | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६४: श्रीराम का रोष | कुल श्लोक: ७७
सर्ग ६५: लक्ष्मण का श्रीराम को शांत करना | कुल श्लोक: १६
सर्ग ६६: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ६७: श्रीराम की जटायु से भेंट | कुल श्लोक: २९
सर्ग ६८: जटायु का प्राण त्यागना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ६९: लक्ष्मण का अयोमुखी को दंड देना | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ७०: कबंध वध | कुल श्लोक: १९
सर्ग ७१: कबंध की आत्मकथा | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ७२: कबंध का दाह | कुल श्लोक: २७
सर्ग ७३: दिव्यरूपी कबंध का श्रीराम को ऋष्यमूक पर्वत का रास्ता बताना | कुल श्लोक: ६२
सर्ग ७४: श्रीराम की शबरी से भेंट | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ७५: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर पहुंचना | कुल श्लोक: ३०
कुल सर्ग: ६७ | कुल श्लोक: २४५२
सर्ग २: सुग्रीव का हनुमान जी को श्रीराम के पास भेजना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ३: हनुमान जी का श्रीराम और लक्ष्मण से मिलना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ४: हनुमान जी का श्रीराम और लक्ष्मण को सुग्रीव के पास ले जाना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ५: श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ६: सुग्रीव का श्रीराम को सीता जी के आभूषण दिखाना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ७: सुग्रीव का श्रीराम को समझाना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ८: श्रीराम का सुग्रीव से वाली से वैर का कारण पूछना | कुल श्लोक: ४६
सर्ग ९: सुग्रीव का श्रीराम को वाली से वैर का कारण बताना | कुल श्लोक: २६
सर्ग १०: वाली द्वारा सुग्रीव का निष्कासन | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ११: वाली के पराक्रम का वर्णन | कुल श्लोक: ९३
सर्ग १२: श्रीराम का सालवृक्षों को भेदना | कुल श्लोक: ४२
सर्ग १३: श्रीराम का किष्किन्धापुरी पहुंचना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग १४: सुग्रीव वाली युद्ध | कुल श्लोक: २२
सर्ग १५: तारा का वाली को युद्ध से रोकना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १६: श्रीराम के बाण से वाली का धराशायी होना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग १७: वाली का श्रीराम को फटकारना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग १८: श्रीराम का वाली को उसके दंड का औचित्य बताना | कुल श्लोक: ६६
सर्ग १९: अंगद का वाली के निकट आना | कुल श्लोक: २८
सर्ग २०: तारा का विलाप | कुल श्लोक: २६
सर्ग २१: हनुमान जी का तारा को समझाना | कुल श्लोक: १६
सर्ग २२: वाली का प्राण त्यागना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग २३: तारा का करुण विलाप | कुल श्लोक: ३०
सर्ग २४: श्रीराम का तारा और सुग्रीव को समझाना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग २५: वाली का दाह संस्कार | कुल श्लोक: ५४
सर्ग २६: सुग्रीव का राज्याभिषेक | कुल श्लोक: ४२
सर्ग २७: श्रीराम और लक्ष्मण की बात चीत | कुल श्लोक: ४८
सर्ग २८: श्रीराम द्वारा वर्षा ऋतु का वर्णन | कुल श्लोक: ६५
सर्ग २९: सुग्रीव का नील को वानर सेना को एकत्रित करने को कहना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ३०: श्रीराम का लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजना | कुल श्लोक: ८५
सर्ग ३१: लक्ष्मण का रोष | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ३२: हनुमान जी का सुग्रीव को समझाना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ३३: लक्ष्मण का क्रोध में किष्किन्धापुरी पहुंचना | कुल श्लोक: ६६
सर्ग ३४: लक्ष्मण का सुग्रीव को फटकारना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ३५: तारा का लक्ष्मण को समझा कर शांत करना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ३६: सुग्रीव का लक्ष्मण से क्षमा मांगना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ३७: सुग्रीव का हनुमान जी को सेना एकत्र करने को कहना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३८: सुग्रीव का श्रीराम से मिलकर क्षमायाचना करना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ३९: वानर सेना का आगमन | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ४०: सुग्रीव द्वारा पूर्व दिशा का वर्णन | कुल श्लोक: ७१
सर्ग ४१: सुग्रीव द्वारा दक्षिण दिशा का वर्णन | कुल श्लोक: ४९
सर्ग ४२: सुग्रीव द्वारा पश्चिम दिशा का वर्णन | कुल श्लोक: ५८
सर्ग ४३: सुग्रीव द्वारा उत्तर दिशा का वर्णन | कुल श्लोक: ६२
सर्ग ४४: श्रीराम का हनुमान जी को अंगूठी देना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ४५: वानरों का विभिन्न दिशाओं में जाना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ४६: सुग्रीव का श्रीराम को अपनी यात्रा के बारे में बताना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ४७: पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशाओं के वानरों का निराश होकर लौट आना | कुल श्लोक: १४
सर्ग ४८: दक्षिण दिशा में सीता जी की खोज | कुल श्लोक: २४
सर्ग ४९: अंगद का वानरों को प्रोत्साहित करना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ५०: वानरों का एक गुफा में पहुँच कर एक तपस्विनी से मिलना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ५१: तपस्विनी का उन्हें अपना परिचय देना और वानरों को भोजन देना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ५२: स्वयंप्रभा की कथा | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ५३: अंगद अदि वानरों का अनशन | कुल श्लोक: २७
सर्ग ५४: हनुमान जी का अंगद को समझाना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ५५: अंगद का अन्य वानरों के साथ आमरण अनशन पर बैठ जाना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ५६: सम्पाती का वानरों से मिलना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ५७: वानरों का सम्पाती को जटायु की मृत्यु का समाचार बताना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ५८: सम्पाती के पंख जलने की कथा | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ५९: सम्पाती का माता सीता को देखनी की बात बताना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ६०: सम्पाती की कथा | कुल श्लोक: २१
सर्ग ६१: सम्पाती और निशाकर मुनि की भेंट | कुल श्लोक: १७
सर्ग ६२: निशाकर मुनि का सम्पाती को सांत्वना देना | कुल श्लोक: १५
सर्ग ६३: सम्पाती का पंखयुक्त होकर उड़ जाना | कुल श्लोक: १५
सर्ग ६४: अंगद से वानरों की शक्ति पूछना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ६५: वानरों द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ६६: जामवंत का हनुमान जी को उत्साहित करना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ६७: हनुमान जी का समुद्र को लांघने के लिए महेंद्र पर्वत पर चढ़ना | कुल श्लोक: ४९
कुल सर्ग: ६८ | कुल श्लोक: २८६५
सर्ग २: लंका पुरी का वर्णन | कुल श्लोक: ५८
सर्ग ३: हनुमान जी और लंकिनी का युद्ध | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ४: हनुमान जी का लंका में प्रवेश | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ५: हनुमान जी का रावण के अंतःपुर में सीता जी को खोजना | कुल श्लोक: २७
सर्ग ६: हनुमान जी का अन्य राक्षसों के घरों में सीता जी को खोजना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ७: रावण के भवन और पुष्पक विमान वर्णन | कुल श्लोक: १७
सर्ग ८: हनुमान जी द्वारा पुष्पक विमान का दर्शन | कुल श्लोक: ८
सर्ग ९: हनुमान जी का रावण के अंतःपुर में कई स्त्रियों को देखना | कुल श्लोक: ७३
सर्ग १०: हनुमान जी का मंदोदरी को सीता जी समझना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ११: हनुमान जी का समझना कि ये सीता जी नहीं है | कुल श्लोक: ४८
सर्ग १२: हनुमान जी को सीता जी के मरण की आशंका | कुल श्लोक: २५
सर्ग १३: हनुमान जी का अशोक वाटिका पहुंचना | कुल श्लोक: ६९
सर्ग १४: हनुमान जी का अशोक वाटिका की सुंदरता देखना | कुल श्लोक: ५२
सर्ग १५: हनुमान जी का सीता जी को देखना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग १६: सीता जी की दशा देख कर हनुमान जी का दुखी होना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १७: राक्षसियों के बीच सीता जी को देख कर हनुमान जी का प्रसन्न होना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १८: रावण का अशोक वाटिका में आना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १९: रावण को देख कर सीता जी का भयभीत होना | कुल श्लोक: २२
सर्ग २०: रावण का सीता जी को प्रलोभन देना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग २१: सीता जी का रावण को समझाना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग २२: रावण का सीता जी को दो मास की अवधि देना | कुल श्लोक: ४६
सर्ग २३: राक्षसियों का सीता जी को समझाना | कुल श्लोक: १९
सर्ग २४: सीता जी का राक्षसियों को फटकारना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग २५: सीता जी का विलाप | कुल श्लोक: २०
सर्ग २६: सीता जी का प्राण त्यागने का निश्चय | कुल श्लोक: ४९
सर्ग २७: त्रिजटा का सीता जी को समझाना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग २८: सीता जी का पुनः विलाप | कुल श्लोक: १९
सर्ग २९: सीता जी का शुभ शकुन को देखना | कुल श्लोक: ८
सर्ग ३०: हनुमान जी का सीता जी से बात करने का विचार करना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ३१: हनुमान जी का सीता जी को राम कथा सुनाना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ३२: सीता जी का हनुमान जी पर संदेह करना | कुल श्लोक: १४
सर्ग ३३: हनुमान जी का सीता जी को अपना परिचय देना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ३४: हनुमान जी द्वारा सीता जी के संदेह का समाधान | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ३५: हनुमान जी का श्रीराम के रूप के बारे में बताना | कुल श्लोक: ९०
सर्ग ३६: हनुमान जी का सीता जी को मुद्रिका देना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग ३७: हनुमान जी का सीता जी को साथ ले जाने का आग्रह करना और उनका मना करना | कुल श्लोक: ६८
सर्ग ३८: सीता जी का हनुमान जी को अपनी चूड़ामणि देना | कुल श्लोक: ७०
सर्ग ३९: हनुमान जी का सीता जी को सांत्वना देना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ४०: हनुमान जी का उत्तर दिशा की ओर जाना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ४१: हनुमान जी द्वारा अशोक वाटिका का विध्वंस | कुल श्लोक: २१
सर्ग ४२: हनुमान जी द्वारा किंकरों का विनाश | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ४३: हनुमान जी द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस | कुल श्लोक: २५
सर्ग ४४: हनुमान जी द्वारा प्रहस्त पुत्र जम्बुमाली का वध | कुल श्लोक: २०
सर्ग ४५: हनुमान जी द्वारा मंत्री के साथ पुत्रों का वध | कुल श्लोक: १७
सर्ग ४६: हनुमान जी द्वारा रावण के पांच सेनापतियों का वध | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ४७: हनुमान जी द्वारा रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वध | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ४८: हनुमान जी और मेघनाद का युद्ध | कुल श्लोक: ६१
सर्ग ४९: हनुमान जी का रावण के प्रभवशाली रूप को देखना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ५०: रावण का हनुमान जी से वहां आने का कारण पूछना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ५१: हनुमान जी का रावण को समझाना | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ५२: विभीषण का रावण को हनुमान जी का वध करने से रोकना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ५३: राक्षसों का हनुमान जी की पूंछ में आग लगाना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ५४: लंका दहन | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ५५: सीता जी का हनुमान जी के लिए चिंता करना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ५६: हनुमान जी का सीता जी से पुनः मिलना | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ५७: हनुमान जी का समुद्र पार कर वानरों से मिलना | कुल श्लोक: ५३
सर्ग ५८: हनुमान द्वारा अपनी लंका यात्रा का वर्णन | कुल श्लोक: १६९
सर्ग ५९: वानरों का लंका पर आक्रमण करने का विचार करना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ६०: जामवंत का वानरों को समझाना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६१: वानरों का मधुवन पहुंच कर उसे उजाड़ना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ६२: मधुवन के रक्षक दधिमुख का सुग्रीव से शिकायत करना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ६३: सुग्रीव का हनुमान आदि की सफलता का अनुमान | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ६४: सभी वानरों का सुग्रीव से मिलना | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ६५: हनुमान जी का श्रीराम को सीता जी का समाचार बताना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ६६: सीता जी की चूड़ामणि को देख कर श्रीराम का विलाप | कुल श्लोक: १५
सर्ग ६७: हनुमान जी का श्रीराम को सीता जी का सन्देश सुनाना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ६८: हनुमान जी द्वारा सीता जी के संदेह के निवारण का वृतांत | कुल श्लोक: २९
कुल सर्ग: १२८ | कुल श्लोक: ५७८०
सर्ग २: सुग्रीव का श्रीराम को उत्साहित करना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३: हनुमान जी का लंका के दुर्गों का वर्णन करना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ४: वानर सेना का प्रस्थान | कुल श्लोक: १२१
सर्ग ५: श्रीराम का सीता जी के लिए शोक | कुल श्लोक: २३
सर्ग ६: रावण का मंत्रियों से सलाह करना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ७: राक्षसों का रावण के उत्साह को बढ़ाना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ८: रावण के सेनापतियों का उत्साह | कुल श्लोक: २४
सर्ग ९: विभीषण का रावण को सीता जी को लौटाने को कहना | कुल श्लोक: २३
सर्ग १०: विभीषण का रावण के भवन में जाकर उसे समझाना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ११: रावण का अपने मंत्रियों को बुलाना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १२: कुम्भकर्ण का रावण को फटकारना | कुल श्लोक: ४०
सर्ग १३: महापार्श्व का रावण को सीता जी पर जबरदस्ती करने को उकसाना | कुल श्लोक: २१
सर्ग १४: विभीषण का रावण को फिर समझाना | कुल श्लोक: १४
सर्ग १५: मेघनाद द्वारा विभीषण का उपहास | कुल श्लोक: १४
सर्ग १६: रावण का विभीषण को फटकारना | कुल श्लोक: २६
सर्ग १७: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना | कुल श्लोक: ६८
सर्ग १८: श्रीराम का विभीषण से मिलना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग १९: श्रीराम का विभीषण का राज्याभिषेक करना | कुल श्लोक: ४१
सर्ग २०: रावण का शुक को गुप्तचर बना कर भेजना | कुल श्लोक: ३४
सर्ग २१: श्रीराम का समुद्र पर क्रोध | कुल श्लोक: ३५
सर्ग २२: राम सेतु का निर्माण | कुल श्लोक: ८९
सर्ग २३: श्रीराम और लक्ष्मण का वार्तालाप | कुल श्लोक: १६
सर्ग २४: शुक का रावण को श्रीराम की शक्ति बताना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग २५: रावण का शुक और सारण को श्रीराम की सेना में गुप्तचर बना कर भेजना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग २६: सारण का रावण को वानर सेना के वीरों का परिचय देना | कुल श्लोक: ४७
सर्ग २७: वानर सेना के प्रधान योद्धाओं का वर्णन | कुल श्लोक: ४८
सर्ग २८: वानर सेना की संख्या का वर्णन | कुल श्लोक: ४२
सर्ग २९: रावण का शुक और सारण को निकाल देना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ३०: शार्दुल का रावण को वानर यूथपतियों का वर्णन करना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ३१: रावण का मायारचित श्रीराम का कटा मस्तक सीता जी को दिखाना | कुल श्लोक: ४५
सर्ग ३२: सीता जी का विलाप | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ३३: सरमा का सीता जी को सच बताना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ३४: सरमा का सीता जी को रावण का विचार बताना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ३५: माल्यवान का रावण को समझाना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३६: रावण का माल्यवान पर आक्षेप करना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ३७: विभीषण का श्रीराम से लंका के दुर्गों का वर्णन करना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ३८: श्रीराम का सुवेल पर्वत पर रात्रि निवास करना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ३९: श्रीराम का लंकापुरी का निरीक्षण | कुल श्लोक: २८
सर्ग ४०: सुग्रीव और रावण का युद्ध | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ४१: अंगद का दूत बनकर जाना | कुल श्लोक: ९९
सर्ग ४२: लंका युद्ध का आरम्भ | कुल श्लोक: ४७
सर्ग ४३: वानर सेना द्वारा द्वन्द में राक्षसों को पराजित करना | कुल श्लोक: ४६
सर्ग ४४: मेघनाद का श्रीराम और लक्ष्मण को बांधना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ४५: वानर सेना का शोक | कुल श्लोक: २८
सर्ग ४६: मेघनाद का रावण को श्रीराम और लक्ष्मण के अचेत होने का समाचार देना | कुल श्लोक: ५०
सर्ग ४७: सीता जी को पुष्पक विमान से अचेत श्रीराम और लक्ष्मण के दर्शन कराना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ४८: सीता का विलाप और त्रिजटा का उनको समझाना | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ४९: श्रीराम का सचेत होना और लक्ष्मण के लिए उनका विलाप | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ५०: गरुड़ का श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करवाना | कुल श्लोक: ६५
सर्ग ५१: धूम्राक्ष का युद्ध के लिए आना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ५२: हनुमान जी द्वारा धूम्राक्ष का वध | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ५३: वज्रदंष्ट्र का युद्ध के लिए आना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ५४: अंगद द्वारा वज्रदंष्ट्र का वध | कुल श्लोक: ३७
सर्ग ५५: अकम्पन्न का युद्ध में आना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ५६: हनुमान जी द्वारा अकम्पन्न का वध | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ५७: प्रहस्त का युद्ध के लिए आना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ५८: नील द्वारा प्रहस्त का वध | कुल श्लोक: ६१
सर्ग ५९: रावण का युद्ध के लिए आना और श्रीराम द्वारा उसकी पराजय | कुल श्लोक: १४६
सर्ग ६०: रावण का कुम्भकर्ण को जगाना | कुल श्लोक: ९८
सर्ग ६१: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ६२: रावण का कुम्भकर्ण को युद्ध के लिए प्रेरित करना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ६३: कुम्भकर्ण का रावण को फटकारना | कुल श्लोक: ५८
सर्ग ६४: महोदर का रावण को युद्ध जीतने की युक्ति बताना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ६५: कुम्भकर्ण की रणयात्रा | कुल श्लोक: ५७
सर्ग ६६: कुम्भकर्ण द्वारा वानरों का संहार | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ६७: श्रीराम के हाथों कुम्भकर्ण का वध | कुल श्लोक: १७७
सर्ग ६८: रावण का विलाप | कुल श्लोक: २४
सर्ग ६९: मुख्य राक्षस वीरों का युद्ध के लिए आना और अंगद द्वारा नरान्तक का वध | कुल श्लोक: ९६
सर्ग ७०: हनुमान जी द्वारा देवान्तक और त्रिशिरा और नील द्वारा महोदर का वध | कुल श्लोक: ६७
सर्ग ७१: अतिकाय का युद्ध के लिए आना और लक्ष्मण द्वारा उसका वध | कुल श्लोक: ११६
सर्ग ७२: रावण की चिंता | कुल श्लोक: १९
सर्ग ७३: मेघनाद के ब्रह्मास्त्र से श्रीराम और लक्ष्मण का मूर्छित होना | कुल श्लोक: ७४
सर्ग ७४: हनुमान जी का हिमालय से औषधियों का पर्वत लाना | कुल श्लोक: ७७
सर्ग ७५: राक्षसों और वानरों का घोर युद्ध | कुल श्लोक: ६९
सर्ग ७६: वानरों द्वारा राक्षसों का वध | कुल श्लोक: ९४
सर्ग ७७: हनुमान द्वारा निकुम्भ का वध | कुल श्लोक: २४
सर्ग ७८: मकराक्ष का युद्ध के लिए आना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ७९: श्रीराम द्वारा मकराक्ष का वध | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ८०: मेघनाद का युद्ध और श्रीराम और लक्ष्मण का वार्तालाप | कुल श्लोक: ४३
सर्ग ८१: मेघनाद द्वारा मायामयी सीता का वध | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ८२: मेघनाद का निकुम्भिला मंदिर में जाकर होम करना | कुल श्लोक: २८
सर्ग ८३: श्रीराम का मायामयी सीता के लिए शोक | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ८४: विभीषण का श्रीराम को सत्य से अवगत कराना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ८५: लक्ष्मण का निकुम्भिला मंदिर में पहुंचना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ८६: लक्ष्मण का मेघनाद को युद्ध के लिए ललकारना | कुल श्लोक: ३५
सर्ग ८७: मेघनाद और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ८८: लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध | कुल श्लोक: ७७
सर्ग ८९: लक्ष्मण द्वारा मेघनाद के सारथि का वध | कुल श्लोक: ५३
सर्ग ९०: लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का वध | कुल श्लोक: ९४
सर्ग ९१: श्रीराम का विजयी लक्ष्मण से मिलना | कुल श्लोक: २९
सर्ग ९२: रावण का मेघनाद के लिए विलाप | कुल श्लोक: ६८
सर्ग ९३: श्रीराम द्वारा राक्षसों का संहार | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ९४: राक्षसियों का विलाप | कुल श्लोक: ४१
सर्ग ९५: रावण का रणभूमि में आना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ९६: सुग्रीव द्वारा विरुपाक्ष का वध | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ९७: सुग्रीव द्वारा महोदर का वध | कुल श्लोक: ३८
सर्ग ९८: अंगद द्वारा महापार्श्व का वध | कुल श्लोक: २६
सर्ग ९९: श्रीराम और रावण का युद्ध | कुल श्लोक: ५१
सर्ग १००: रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूर्छित होना | कुल श्लोक: ६२
सर्ग १०१: श्रीराम का विलाप और हनुमान जी का औषधि लाना | कुल श्लोक: ५६
सर्ग १०२: इंद्र के भेजे गए रथ पर बैठकर श्रीराम का रावण से युद्ध करना | कुल श्लोक: ७०
सर्ग १०३: श्रीराम का रावण को फटकारना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १०४: रावण का अपने सारथि को फटकारना और युद्ध में वापस आना | कुल श्लोक: २७
सर्ग १०५: महर्षि अगस्त्य का श्रीराम को आदित्यहृदय पाठ की सम्मति देना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग १०६: श्रीराम के लिए शुभ और रावण के लिए अशुभ शकुनों का होना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग १०७: श्रीराम और रावण का घोर युद्ध | कुल श्लोक: ६७
सर्ग १०८: श्रीराम द्वारा रावण का वध | कुल श्लोक: ३४
सर्ग १०९: विभीषण का विलाप | कुल श्लोक: २५
सर्ग ११०: रावण की पत्नियों का विलाप | कुल श्लोक: २६
सर्ग १११: मंदोदरी का विलाप | कुल श्लोक: १२४
सर्ग ११२: विभीषण का राज्याभिषेक | कुल श्लोक: २६
सर्ग ११३: हनुमान जी का सीता जी से मिलकर श्रीराम से मिलना | कुल श्लोक: ५३
सर्ग ११४: सीता जी का श्रीराम से मिलना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ११५: श्रीराम का सीता जी को ग्रहण करने से मना करना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ११६: सीता जी का अग्नि में प्रवेश करना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ११७: ब्रह्मा जी और देवताओं का श्रीराम के पास आना | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ११८: श्रीराम का सीता जी को स्वीकार करना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ११९: महाराज दशरथ का श्रीराम से मिलने आना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग १२०: इंद्र का मरे हुए वानरों को जीवित करना | कुल श्लोक: २४
सर्ग १२१: श्रीराम की वापस लौटने की इच्छा और विभीषण का पुष्पक विमान को मंगवाना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग १२२: श्रीराम का पुष्पक विमान पर अयोध्या के लिए प्रस्थान करना | कुल श्लोक: २७
सर्ग १२३: श्रीराम का सीता जी को वापसी का मार्ग दिखाना | कुल श्लोक: ५७
सर्ग १२४: श्रीराम का महर्षि भरद्वाज से मिलना | कुल श्लोक: २३
सर्ग १२५: हनुमान जी का भरत को श्रीराम के लौटने की सूचना देना | कुल श्लोक: ४६
सर्ग १२६: हनुमान जी का भरत को सारी कथा बताना | कुल श्लोक: ५५
सर्ग १२७: श्रीराम का आगमन | कुल श्लोक: ६४
सर्ग १२८: श्रीराम का राज्याभिषेक | कुल श्लोक: १२५
कुल सर्ग: १११ | कुल श्लोक: ३५३९
सर्ग २: महर्षि अगस्त्य द्वारा महर्षि विश्रवा की कथा | कुल श्लोक: ३४
सर्ग ३: कुबेर के जन्म की कथा | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ४: राक्षस वंश का वर्णन | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ५: माल्यवान, सुमाली और माली की संतानों का वर्णन | कुल श्लोक: ४७
सर्ग ६: देवताओं का भगवान विष्णु से राक्षसों के संहार की प्रार्थना करना | कुल श्लोक: ७०
सर्ग ७: भगवान विष्णु द्वारा राक्षसों का संहार | कुल श्लोक: ५५
सर्ग ८: राक्षसों का पलायन | कुल श्लोक: २९
सर्ग ९: रावण का जन्म | कुल श्लोक: ४८
सर्ग १०: रावण की तपस्या और वर प्राप्ति | कुल श्लोक: ४९
सर्ग ११: रावण का कुबेर से लंका लेना | कुल श्लोक: ५२
सर्ग १२: रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का विवाह और मेघनाद का जन्म | कुल श्लोक: ३२
सर्ग १३: कुम्भकर्ण की निद्रा और रावण का अत्याचार | कुल श्लोक: ४१
सर्ग १४: रावण का यक्षों पर आक्रमण | कुल श्लोक: ३०
सर्ग १५: रावण का कुबेर को परास्त कर पुष्पक विमान पर अधिकार करना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग १६: भगवान शंकर द्वारा रावण का मानभंग | कुल श्लोक: ४९
सर्ग १७: वेदवती का रावण को श्राप देना | कुल श्लोक: ४४
सर्ग १८: रावण का मरुतों को परास्त करना | कुल श्लोक: ३६
सर्ग १९: रावण द्वारा अनरण्य का वध | कुल श्लोक: ३२
सर्ग २०: रावण का युद्ध के लिए यमलोक जाना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग २१: रावण द्वारा यमदूतों का संहार | कुल श्लोक: ४६
सर्ग २२: रावण और यमराज का युद्ध | कुल श्लोक: ५१
सर्ग २३: रावण द्वारा कालकेयों का वध | कुल श्लोक: ५४
सर्ग २४: रावण का शूर्पणखा को दंडकारण्य भेजना | कुल श्लोक: ४२
सर्ग २५: रावण का देवलोक पर आक्रमण करना | कुल श्लोक: ५२
सर्ग २६: रावण का रम्भा पर अत्याचार करना और नलकुबेर का उसे श्राप देना | कुल श्लोक: ६०
सर्ग २७: रावण का इंद्र पर आक्रमण | कुल श्लोक: ५२
सर्ग २८: मेघनाद और जयंत का युद्ध | कुल श्लोक: ४९
सर्ग २९: मेघनाद का इंद्र को बंदी बनाना | कुल श्लोक: ४२
सर्ग ३०: ब्रह्माजी का मेघनाद को इंद्र को छोड़ने को कहना | कुल श्लोक: ५४
सर्ग ३१: रावण का महिष्मति पर आक्रमण | कुल श्लोक: ४४
सर्ग ३२: रावण और सहस्त्रार्जुन का युद्ध और रावण की पराजय | कुल श्लोक: ७३
सर्ग ३३: महर्षि पुलस्त्य का रावण को छुड़ाना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ३४: वानरराज वाली और रावण का युद्ध और रावण की पराजय | कुल श्लोक: ४६
सर्ग ३५: हनुमान जी का जन्म | कुल श्लोक: ६५
सर्ग ३६: देवताओं का हनुमान जी को वरदान देना | कुल श्लोक: ६३
सर्ग ३७: श्रीराम का राजसभा में बैठना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ३८: राजा जनक और अन्य राजाओं की विदाई | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ३९: श्रीराम का वानरों को भेंट देना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ४०: वानरों, रीछों और राक्षसों की विदाई | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ४१: श्रीराम का पुष्पक विमान की पूजा करना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ४२: गर्भवती सीता जी का तपोवन देखने की इच्छा | कुल श्लोक: ३६
सर्ग ४३: भद्र के मुख से सीता जी के सामान्य में लोकापवाद | कुल श्लोक: २३
सर्ग ४४: श्रीराम का सभी भाइयों को बुलाना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ४५: श्रीराम का लक्ष्मण को सीता जी को वन में छोड़ देने की आज्ञा देना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ४६: लक्ष्मण का सीता जी को वन ले जाना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ४७: लक्ष्मण का सीता जी को उनके त्याग की बात बताना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ४८: सीता जी का रट हुए श्रीराम के लिए सन्देश देना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ४९: महर्षि वाल्मीकि का सीता जी से मिलकर उन्हें अपने आश्रम ले जाना | कुल श्लोक: २३
सर्ग ५०: लक्ष्मण और सुमंत्र की बात चीत | कुल श्लोक: २०
सर्ग ५१: सुमंत्र का लक्ष्मण को सांत्वना देना | कुल श्लोक: ३०
सर्ग ५२: लक्ष्मण का वापस आकर श्रीराम से मिलना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ५३: श्रीराम द्वारा राजा नृग की कथा | कुल श्लोक: २६
सर्ग ५४: राजा नृग को श्राप मिलना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ५५: राजा निमि और महर्षि वशिष्ठ का एक दूसरे को श्राप देना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ५६: उर्वशी और पुरुरवा की कथा | कुल श्लोक: २९
सर्ग ५७: महर्षि वशिष्ठ का नया शरीर धारण करना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ५८: शुक्राचार्य का ययाति को श्राप देना | कुल श्लोक: २५
सर्ग ५९: पुरु का ययाति को अपनी जवानी देना | कुल श्लोक: २३
प्रक्षिप्त सर्ग १: श्रीराम के द्वार पर एक कुत्ते का आगमन | कुल श्लोक: २८
प्रक्षिप्त सर्ग २: कुत्ते के साथ श्रीराम का न्याय | कुल श्लोक: ५२
सर्ग ६०: महर्षि च्यवन आदि ऋषियों का श्रीराम के दरबार में आना | कुल श्लोक: १८
सर्ग ६१: ऋषियों का लवणासुर से रक्षा के लिए श्रीराम से आग्रह करना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ६२: श्रीराम का शत्रुघ्न को लवणासुर के वध के लिए कहना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ६३: श्रीराम का शत्रुघ्न को लवणासुर से युद्ध के लिए सुझाव देना | कुल श्लोक: ३१
सर्ग ६४: शत्रुघ्न का प्रस्थान | कुल श्लोक: १८
सर्ग ६५: शत्रुघ्न का महर्षि वाल्मीकि से मिलना | कुल श्लोक: ३९
सर्ग ६६: सीता जी के दो पुत्रों का जन्म | कुल श्लोक: १७
सर्ग ६७: महर्षि च्यवन का शत्रुघ्न को लवणासुर के शूल की शक्ति बताना | कुल श्लोक: २६
सर्ग ६८: शत्रुघ्न का लवणासुर को ललकारना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ६९: शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर का वध | कुल श्लोक: ४०
सर्ग ७०: शत्रुघ्न का मधुरपुरी को बसाना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ७१: १२ वर्ष बाद वापसी में शत्रुघ्न का महर्षि वाल्मीकि से मिलना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ७२: शत्रुघ्न का अयोध्या पहुंचना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ७३: एक ब्राह्मण का अपने मृत पुत्र को श्रीराम के पास आना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ७४: नारद जी का श्रीराम से एक शूद्र को कारण बताना | कुल श्लोक: ३३
सर्ग ७५: श्रीराम का शूद्र तपस्वी के पास पहुंचना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ७६: शम्बूक वध | कुल श्लोक: ५१
सर्ग ७७: श्रीराम का महर्षि अगस्त्य से मिलना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ७८: राजा श्वेत की कथा | कुल श्लोक: २९
सर्ग ७९: राजा दंड की कथा | कुल श्लोक: २०
सर्ग ८०: राजा दंड का भार्गव कन्या पर अत्याचार | कुल श्लोक: १८
सर्ग ८१: महर्षि शुक्र का राजा दंड को श्राप देना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ८२: श्रीराम का अयोध्यापुरी लौटना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ८३: श्रीराम के राजसूय यज्ञ करने के विचार को त्यागना | कुल श्लोक: २०
सर्ग ८४: वृत्रासुर की कथा | कुल श्लोक: १८
सर्ग ८५: इंद्र द्वारा वृत्रासुर का वध | कुल श्लोक: २२
सर्ग ८६: इंद्र का ब्रह्महत्या के श्राप से मुक्त होना | कुल श्लोक: २१
सर्ग ८७: राजा इल की कथा | कुल श्लोक: २९
सर्ग ८८: इला और बुध का मिलना | कुल श्लोक: २४
सर्ग ८९: पुरुरवा की उत्पत्ति | कुल श्लोक: २५
सर्ग ९०: इला को पुरुषत्व की प्राप्ति | कुल श्लोक: २४
सर्ग ९१: श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ की तैयारी | कुल श्लोक: २९
सर्ग ९२: अश्वमेघ यज्ञ में दान की महिमा | कुल श्लोक: १९
सर्ग ९३: महर्षि वाल्मीकि का लव-कुश को लेकर यज्ञ में आना | कुल श्लोक: १९
सर्ग ९४: लव-कुश द्वारा रामकथा का गायन | कुल श्लोक: ३२
सर्ग ९५: श्रीराम का सीता जी से उनकी शुद्धता सिद्ध करने को कहना | कुल श्लोक: १७
सर्ग ९६: महर्षि वाल्मीकि द्वारा सीता जी की शुद्धत्ता का समर्थन | कुल श्लोक: २४
सर्ग ९७: सीता जी का रसातल में प्रवेश | कुल श्लोक: २६
सर्ग ९८: श्रीराम का विलाप | कुल श्लोक: २८
सर्ग ९९: श्रीराम की माताओं का स्वर्ग गमन | कुल श्लोक: २०
सर्ग १००: भरत का गंधर्वदेश पर आक्रमण | कुल श्लोक: २५
सर्ग १०१: भरत का गंधर्वों को परास्त कर वहां का राज्य अपने दोनों पुत्रों को देना | कुल श्लोक: १८
सर्ग १०२: लक्ष्मण के दोनों पुत्रों को राज्य की प्राप्ति | कुल श्लोक: १७
सर्ग १०३: श्रीराम के पास काल का आगमन | कुल श्लोक: १७
सर्ग १०४: काल का श्रीराम को ब्रह्माजी का सन्देश सुनाना | कुल श्लोक: १९
सर्ग १०५: दुर्वासा ऋषि के शाप के भय से लक्ष्मण जी का श्रीराम के पास जाना | कुल श्लोक: १८
सर्ग १०६: श्रीराम का लक्ष्मण को त्यागना और उनका स्वर्ग गमन | कुल श्लोक: १८
सर्ग १०७: श्रीराम द्वारा लव-कुश का राज्याभिषेक | कुल श्लोक: २१
सर्ग १०८: श्रीराम का विभीषण, हनुमान जी और जामवंत को पृथ्वी पर रहने की आज्ञा देना | कुल श्लोक: ३८
सर्ग १०९: पारगमन को निकले श्रीराम के पीछे समस्त अयोध्यावासियों का चलना | कुल श्लोक: २२
सर्ग ११०: श्रीराम का विष्णु स्वरुप में प्रवेश | कुल श्लोक: २८
सर्ग १११: रामायण का उपसंहार और महिमा | कुल श्लोक: २५

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