क्या शकुनि ने जुए में छल किया था?

क्या शकुनि ने जुए में छल किया था?
द्यूत क्रीड़ा महाभारत के सबसे दारुण घटनाओं में से एक है। इसी सभा में द्रौपदी का अपमान किया गया था और यही वो घटना थी जिसने महाभारत के युद्ध को निश्चित कर दिया था। जब भी द्यूत क्रीड़ा की बात होती है तो शकुनि का नाम सबसे पहले आता है। ये बात जनमानस में प्रसिद्ध है कि उस खेल को जीतने के लिए शकुनि ने छल किया था। किन्तु क्या ये बात सही है? आइये जानते हैं।

वास्तव में शकुनि ने द्यूत के खेल में कोई छल नहीं किया था। उस खेल के शुरू होने से पहले ही ये तय था कि शकुनि उस खेल में विजयी होने वाले हैं क्यूंकि उस समय पूरे संसार में कोई भी द्यूत के खेल की कुशलता में शकुनि के आस पास भी नहीं था। इसका वर्णन हमें महाभारत के सभा पर्व के अंतर्गत द्यूत पर्व के दुर्योधनसंतापविषयक अध्याय के श्लोक २० में मिलता है। यहाँ पर जब दुर्योधन युधिष्ठिर के इंद्रप्रस्थ की उन्नति देख कर दुखी होता है तब शकुनि उसे समझाता है कि सीधे युद्ध में पांडवों पर विजय पाना असंभव है।

आगे शकुनि जो कहता है वो उसकी द्यूत के खेल पर पकड़ को दर्शाता है। शकुनि ने कहा - "मैं वो उपाय बताता हूँ जिससे पांडव स्वयं ही अपना सब कुछ हार जाएंगे। युधिष्ठिर को जुए का खेल बहुत पसंद है और यदि उसे इस खेल के लिए बुलाया जाये तो वो मना नहीं कर सकता। मैं जुआ खेलने में निपुण हूँ और इसमें मेरी समानता करने वाला इस पृथ्वी पर और कोई नहीं है। केवल यही नहीं, तीनों लोकों में मेरे जाइये द्यूत विद्या का जानकर और कोई नहीं है।" तो महाभारत में स्पष्ट रूप से ये लिखा है कि शकुनि की भांति द्यूत क्रीड़ा का खिलाडी इस पृथ्वी पर तो क्या तीनों लोकों में और कोई नहीं था।

इससे आगे जब विदुर महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा से युधिष्ठिर को द्यूत का निमंत्रण देने गए तो उन्होंने भी उनसे कहा - "राजन! गांधार राज शकुनि जुए का बहुत सिद्धहस्त खिलाडी है और वह अपनी इच्छा अनुसार पांसे फेंकने में निपुण है।" इसपर युधिष्ठिर भी विदुर से कहते हैं कि वो शकुनि की जुए में कुशलता के विषय में जानते हैं और यदि उन्हें राजा धृतराष्ट्र स्वयं ना बुलाते तो वे कभी भी शकुनि के साथ जुआ ना खेलते। यही नहीं जब युधिष्ठिर द्यूत सभा पहुंचे तो वहां पर भी उन्होंने शकुनि को द्यूत की बुराई के बारे में बताया था।

इसके बाद द्यूत सभा में शकुनि और युधिष्ठिर के बीच जो बातें हुई, उससे ये साफ़ पता चलता है कि युधिष्ठिर शकुनि के साथ जुआ नहीं खेलना चाहते थे। किन्तु जब द्यूत का खेल आरम्भ हुआ तो दुर्योधन ने दांव लगाया किन्तु पांसा फेकने के लिए उसने शकुनि को ही चुना। इससे युधिष्ठिर सहमत तो नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने उसकी बात मान ली।

महाभारत में ये स्पष्ट लिखा हुआ है कि दांव लगने के बाद शकुनि पांसों को हाथ में लेते ही बोल देता था कि ये दांव मैंने जीत लिया। मतलब कि वो द्यूत कला में इतना माहिर था कि उसे ये साफ़ तौर पर पता होता था कि उसे पांसों में कौन सी संख्या लानी है। अंततः परिणाम वही हुआ जो सभी को पता था। शकुनि ने बड़ी ही सरलता से सारे दांव जीत लिए और युधिष्ठिर अपना सब कुछ हार गए। तो लोगों की ये जो मान्यता है कि शकुनि ने जुए में किसी माया या छल का प्रयोग किया ये गलत है। वो जुए के खेल में इतना सिद्धहस्त था कि उसे किसी माया या छल की आवश्यकता ही नहीं थी।

इसके अतिरिक्त एक और कथा हमें सुनने को मिलती है कि शकुनि के पिता सुबल ने अपनी मृत्यु की बाद उससे अपनी रीढ़ की हड्डी से अपने पांसों को बनाने की आज्ञा दी थी। शकुनि ने ऐसा ही किया और इसी कारण उसके पिता की हड्डी से बनें वे पांसे हमेशा उसका कहा मानते थे। ये लोक कथा भी बिलकुल गलत है। मूल महाभारत में हमें ऐसा कोई वर्णन नहीं मिलता। महाभारत में तो महाराज सुबल का केवल एक-आध जगह ही वर्णन है।

अपने पिता की हड्डी से पांसे बनाने की लोक कथा महाभारत के कुछ दक्षिण भारतीय संस्करणों से आरम्भ हुई किन्तु मूल महाभारत में ऐसा कोई भी वर्णन नहीं मिलता। तो द्यूत के खेल में शकुनि ने कभी भी कोई छल नहीं किया था, किन्तु वो इस खेल में इतना निपुण था कि खेल के शुरू होने से पहले ही सबको, यहाँ तक कि युधिष्ठिर को भी ये पता था कि वे इस खेल में हारने वाले हैं।

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