क्या आप शूर्पणखा के पुत्र जम्बुमाली के विषय में जानते हैं?

क्या आप शूर्पणखा के पुत्र जम्बुमाली के विषय में जानते हैं?
लंकाधिपति रावण की बहन सूर्पणखा के विषय में तो हम जानते ही हैं। वो स्वेच्छिचारिणी थी जिसका विवाह विद्युज्जिह्व नामक दैत्य के साथ हुआ था। विद्युज्जिह्व कालकेयों के कुल से संबंधित था, जिसका वध रावण ने ही किया था। अलग-अलग पुराणों में उसके वध की अलग-अलग कथाएं मिलती हैं।

किसी पुराण की कथा के अनुसार कालकेयों से युद्ध के दौरान अनजाने में रावण के द्वारा उसका वध हो गया था तो वहीं एक अन्य पुराण की कथा के अनुसार वह स्वर्ग लोक में आक्रमण के समय विद्युज्जिह्व को अपने साथ स्वर्ग लोक ले गया था जहाँ पर उसका वध हो गया था। रामानंद सागर के रामायण के अनुसार जब शूर्पणखा ने विद्युज्जिह्व से विवाह कर लिया था, तो रावण ने लंका में आने पर उसका वध कर दिया था। 

ओड़िया भाषा में अनूदित रंगनाथ रामायण के अनुसार रावण जब दिग्विजय के लिए जाने लगा तब उसने विद्युज्जिह्व को लंका की रखवाली के लिए नियुक्त किया था। किंतु विद्युज्जिह्व ने ऐसा सोचा कि क्यों ना वह समस्त माया विद्या सीख कर लंका पर आधिपत्य स्थापित कर ले। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह पाताल लोक चला गया और तमाम तंत्र विद्या, माया विद्या, उच्चाटन, त्राटक आदि सीखने लगा। किंतु जब रावण वापस आया और उसको विद्युज्जिह्व के इस विश्वासघात का पता चला, तब वह क्रोध में आग बबूला होकर पाताल लोक गया और खड्ग के द्वारा उसका वध कर दिया। 

विद्युज्जिह्व के वध के उपरांत सूर्पणखा से रावण ने कहा कि तुम स्वेच्छापूर्वक किसी भी पति का वरण करके  विचरण कर सकती हो तथा सुख से निवास कर सकती हो। रंगनाथ रामायण की कथा के अनुसार जब रावण ने अपने बहनोई विद्युज्जिह्व का वध कर दिया, उस समय शूर्पणखा छः महीने की गर्भवती थी। रावण ने शूर्पणखा को अपनी इच्छानुसार पति का वरण करके जीवन व्यतीत करने के लिए आज्ञा दी। 

सूर्पणखा पंचवटी में चली आई और वहां पर ससमय उसने "जम्बुमाली" नामक पुत्र को जन्म दिया। जब जम्बु बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता के बारे में सूर्पणखा से प्रश्न किया। शूर्पणखा से यह जानकर कि उसके पिता का वध रावण ने कर दिया है, वह अत्यधिक क्रोधित हो गया और रावण के वध के निमित्त वह तप करने के लिए जंगल को चला गया।

उसने सोचा कि ब्रह्मा जी तो वर देंगे नहीं और शिवजी रावण के इष्टदेव हैं साथ ही विष्णु भगवान पता नहीं कब प्रसन्न हों। यह सोचकर कि ये सभी देवता सूर्य देव में निवास करते हैं, उसने स्वयं सूर्य देव की आराधना करने का निश्चय करके बन में घनघोर तप किया। चिरकाल तक तपस्या करने के उपरांत उसका शरीर बाँस के झुरमुट से ढक गया। तब सूर्य देवता ने आकाश मार्ग से एक दिव्य खड्ग भेजा। संयोगवश ठीक उसी समय भगवान श्रीराम को वनवास हो चुका था और वे लक्ष्मण और सीताजी के साथ में वन प्रवास के लिए पंचवटी आ चुके थे। 

अचानक एक दिन लक्ष्मण जंगल में लकड़ी काटने के लिए गए और ठीक उसी समय घनघोर शब्द करता हुआ वह खड्ग अचानक हवा में लहराने लगा। और वह खड्ग तपरत जम्बु के पास में जा करके ठहर गया। खड्ग से आवाज निकली कि "हे जम्बु कुमार! आप धन्य हो। आप यह खड्ग स्वीकार करें, श्री सूर्य देव ने मुझे भेजा है।" लेकिन गर्व के वशीभूत हो उस राक्षस कुमार ने उस खड्ग को यह कर करके वापस जाने के लिए कहा कि "यदि साक्षात सूर्यदेव आकर के तुमको मुझे समर्पण करते तब मैं स्वीकार कर लेता किंतु उन्होने स्वयं न आकर हमारा अपमान किया है। इसलिए मैं तुम्हें ग्रहण नहीं कर सकता, तुम कहीं भी जाने के लिये स्वतंत्र हो।"

ठीक उसी समय लक्ष्मण जी वहां पर पहुंचे और इस घटना से अनजान उन्होंने उस दुर्लभ और चमचमाते खड्ग को अनायास ही हाथ में पकड़ लिया। फिर उन्होंने उसकी परीक्षा लेते हुए अचानक ही बांस से बने झुरमुट पर प्रहार कर दिया। तत्काल ही एक मुनिकुमार दो टुकड़े होकर छटपटाता हुआ दिखाई दिया। अब तो लक्ष्मण जी एकदम से कातर स्वर में विलाप करने लगे। उन्होंने कहा कि मैं दशरथ का पुत्र और श्री राम का लघु भ्राता ऐसा जघन्य कृत्य कैसे कर बैठा? अब तो मुझे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। और फिर वह आत्महत्या करने को तत्पर हो उठे। मृत्यु से पहले उन्होंने प्रभु श्री राम के पास चल कर अपना अपराध स्वीकार करने का निश्चय किया। 

वे श्रीराम के पास पहुंचे और सारा वृत्तांत प्रभु को सुनाया। प्रभु भी चिंतित होकर कुछ सोचने लगे। तभी अनायास ही कुछ मुनियों का एक समूह वहां पर उपस्थित हो गया। फिर क्या था मुनियों ने उपर्युक्त पूरी कथा वृतांत के साथ श्री राम को सुनाया। उन्होंने श्रीराम को यह बताया कि वह ब्राह्मण या मुनि कुमार नहीं है अपितु राक्षस कुमार है। वह महान प्रतापी और क्रूर, लंकाधिपति रावण का भांजा तथा सूर्पणखा का पुत्र है। और अगर वह खड्ग खुद उसके हाथ में आ जाता, तो वह सारी मानवता का विनाश कर देता। तो दैव वश जो हुआ वह अच्छा ही हुआ। और इस तरह से आपने मानवता की रक्षा की है। आप शोक त्याग दीजिए। हे राघव! आपके कुल के किसी भी व्यक्ति से भूल से भी किसी निरपराध की अकारण हत्या नहीं हो सकती है। फिर ऋषियों ने श्रीराम से सूर्पणखा के बारे में विस्तार के साथ बताया।

सूर्पणखा अपने तपरत पुत्र की देखभाल बड़े मनोयोग से करती थी। इस घटना से अनजान सूर्पणखा रोज की भांति मिष्ठान्न, फल और अन्य पकवानों को कटोरे में भरकर अपने पुत्र जम्बु के पास गई किंतु वहां पर उसके शरीर को टुकड़ों में देखकर वह आर्तनाद करने लगी। उसने कातर स्वर में पुरानी बातों को याद करते हुए कहा कि यह बात मैंने तुम्हें समझाया था कि रावण जैसे प्रतापी और क्रूर आदमी से मत लड़ो। वह कितनों की निर्मम हत्या कर चुका है। कुबेर उसका कुछ नहीं कर सके। शांडिल्य ऋषि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके और अनरण्य और नलकुबेर का श्राप उसका कुछ नहीं कर सका, इंद्र के साथ अन्य योद्धा भी उसका कुछ नहीं कर सके तो तुम भला उसका क्या कर लोगे? किंतु दैववस तुम माने नहीं और हा पुत्र! मुझको पुत्र विहीन करके इस विधवा नारी को छोड़ कर चले गए।

ऐसा विलाप करते हुए वह गुस्से में आग बबूला होकर मुनियों का अनिष्ट करने की इच्छा से उनके पास गई और मुनियों से यह कहा कि तुम लोग अब प्रसन्न हो जाओ क्योंकि मेरा पुत्र तुम लोगों की वजह से मारा गया। लेकिन मैं तुम लोगों का सर्वनाश कर दूँगी। मुनियों ने जब देखा कि उनके ऊपर संकट आ रहा है तब उन्होंने उसके पूछने पर यह बताया कि तुम्हारे पुत्र की हत्या किसने की है। अपने पुत्र के हत्यारे के बारे में जानकर सूर्पणखा क्रोध में पागल हो गई और लक्ष्मण के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए वह श्रीराम के कुटिया की तरफ बढ़ गई। 

वहां पहुंचकर वह श्री राम के रूप लावण्य को देखकर अत्यधिक मुग्ध हो गई। पुत्र शोक को भूलकर कामातुर शूर्पणखा ने श्रीराम से शादी का प्रस्ताव कर दिया। इसके बाद में श्री राम ने कहा कि मैं तो शादीशुदा हूं तुम लक्ष्मण से बात करो। उनका यह विनोद पूर्ण शब्द सुनकर वह लक्ष्मण के पास गई किंतु लक्ष्मण ने कहा कि बड़े भाई के पास तुम पहले गई हो इसके लिए अब मैं तुम्हारा वरण नहीं कर सकता, अतएव तुम उन्हीं के पास जाओ। इस तरह बारी-बारी से श्री राम और लक्ष्मण सूर्पणखा को एक दूसरे के पास भेजते रहे। 

अंत में वह क्रोध में व्याकुल हो करके ऐसा कहा कि तुम जिस सीता की वजह से मुझे ठुकरा रहे हो मैं उसी का भक्षण कर लेती हूं। ऐसा कहकर वह भयानक रूप धारण करके सीता की तरफ झपटी। सीता की तरफ झपटते हुए देखकर श्री राम ने लक्ष्मण को इशारा किया। तत्काल लक्ष्मण जी ने खड्ग निकाल करके सूर्पणखा की नाक और कान काट दिए और इस तरह कुदरूप हो करके सूर्पणखा अपने संरक्षक खर और दूषण के पास चली गई। उसके प्रतिशोध की ज्वाला में अंत में खर- दूषण ही नहीं अपितु रावण का पूरा कुल ही ही नष्ट हो गया।

यह कथा अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। यहां तक कि श्री रामचरित मानस, वाल्मीकि रामायण या किसी अन्य ग्रंथ में भी इसका उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि रामायण में लंका के सेनापति प्रहस्त के एक पुत्र का नाम भी जम्बुमाली बताया गया है जिसका वध हनुमान द्वारा हुआ था। ये ध्यान रखें कि ये दोनों जम्बुमाली अलग हैं। शूर्पणखा के इस पुत्र की कथा केवल रंगनाथ रामायण में उपलब्ध है। दक्षिण भारत के कम्ब रामायण में भी शूर्पणखा के पुत्र के विषय में कुछ ऐसी ही कथा मिलती है किन्तु उस ग्रन्थ में उसका नाम "शम्भू कुमार" बताया गया है। जय श्रीराम।

ये लेख हमें श्री कामता प्रसाद मिश्र के द्वारा प्राप्त हुआ है जो मूल रूप से प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। इन्होने इलाहबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है और वर्तमान में ये गुजरात के वापी नगर में निवास करते हैं। इनका अपना स्वरोजगार है और ये सतत धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और उसके ज्ञान को प्रसारित करते हैं। धर्मसंसार में उनके सहयोग के लिए हम उनके आभारी हैं।

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