तारा

तारा
ये पञ्चसती श्रृंखला का तीसरा लेख है। इससे पहले हमने मंदोदरी एवं अहिल्या पर लेख प्रकाशित किया था, आशा है आपको पसंद आया होगा। आज इस लेख में हम वानरराज बाली की पत्नी तारा के विषय में जानेंगे। तारा के जन्म के विषय में हमें दो अलग जानकारियां प्राप्त होती है। एक कथा के अनुसार तारा देवगुरु बृहस्पति की पुत्री थी। ये बहुत बड़ा संयोग है कि बृहस्पति की पत्नी का नाम भी तारा ही था। हालाँकि ये मान्यता अधिक प्रसिद्ध नहीं है।

तारा के जन्म के विषय में जो कथा सर्वाधिक प्रसिद्ध है वो ये है कि तारा समुद्र मंथन के समय अन्य अप्सराओं के साथ प्रकट हुई थी। वानरराज बाली एवं वानर वैद्य सुषेण दोनों उस मंथन में देवताओं की सहायता कर रहे थे। जब दोनों ने तारा को देखा तो उसके रूप पर मोहित हो गए। सुषेण तारा के वाम (बाएं) भाग में एवं बाली तारा के दक्षिण (दाहिने) भाग में खड़े हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से तारा से विवाह करने की इच्छा जताई। 

तब नारायण ने कहा कि कन्या के वाम भाग में खड़ा होने वाला उसका पिता एवं दक्षिण भाग में खड़ा होने वाला उसका पति होता है। इसी कारण उन्होंने सुषेण को तारा का पिता घोषित किया और तब तारा का विवाह बाली से हुआ। तब से तारा वानर वैद्य सुषेण की पुत्री के रूप में प्रसिद्ध हुई। कई स्थानों पर इन सुषेण को लंका का राजवैद्य भी कहा गया है। 

कुछ ग्रंथों के अनुसार उन्ही अप्सराओं में रुमा भी थी जिसका विवाह बाली के भाई सुग्रीव से हुआ। हालाँकि तारा के विवाह के विषय में भी कई ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन दिया गया है। अधिकतर ग्रंथों में तारा को बाली की ही पत्नी बताया गया है किन्तु रंगनाथ रामायण में ऐसा लिखा है कि समुद्र मंथन के पश्चात तारा बाली एवं सुग्रीव को समान रूप से प्रदान की गयी। ऐसा ही कुछ तमिल रामायण में भी लिखा है। 

महाभारत के कुछ संस्कारों में एक सन्दर्भ आता है जहाँ बाली एवं सुग्रीव को एक स्त्री के कारण लड़ता हुआ बताया गया है। मान्यता है कि वो स्त्री तारा ही थी। नरसिंह उप-पुराण के अनुसार तारा वास्तव में सुग्रीव की पत्नी थी जिसे बाली ने छीन लिया था। इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के पश्चात देवताओं ने बाली को एक दिव्य त्रिशूल एवं सुग्रीव को तारा प्रदान की। किन्तु बाद में बाली ने अपनी शक्ति से त्रिशूल और तारा दोनों पर अधिकार जमा लिया।

हालाँकि रामायण के हर संस्करणों में जो एक बात समान है वो ये कि अंगद बाली और तारा का ही पुत्र था। जब राक्षस दुंदुभि का बाली ने वध किया तो उसका भाई मायावी प्रतिशोध लेने आया। बाली और सुग्रीव दोनों उससे लड़ने गए जिस भय से मायावी एक गुफा में छिप गया। तब बाली सुग्रीव को गुफा के द्वार पर खड़ा कर अंदर युद्ध को गया। 

१ वर्ष तक सुग्रीव उस गुफा के द्वार पर खड़ा रहा किन्तु उसके पश्चात गुफा से रक्त निकलता देख सुग्रीव ने सोचा कि मायावी ने बाली का वध कर दिया है। तब वो उस गुफा के द्वार को एक पाषाण से बंद कर वापस किष्किंधा लौट आया जहाँ उसका राज्याभिषेक कर दिया गया। किन्तु बाली मरा नहीं था और वो लौट आया। सुग्रीव को राजा बने देख उसे लगा सुग्रीव ने उसके साथ छल किया है और इसी कारण उसने सुग्रीव को मारने का प्रयास किया जिससे डर कर सुग्रीव भाग कर ऋष्यमूक पर्वत पर छिप गया।

रामायण में तारा के विषय में तीन स्थानों पर प्रमुखता से वर्णन आता है:
  1. बाली को युद्ध में जाने से रोकना: जब श्रीराम ने सुग्रीव को सहायता का वचन दिया तब वो बाली से लड़ने किष्किंधा पहुँचा। तारा बहुत बुद्धिमान एवं विदुषी स्त्री थी। उसने बाली को समझाया कि सुग्रीव बिना किसी कारण इस प्रकार निर्भय होकर आपके समक्ष नहीं आ सकता। उसने बार-बार कहा कि वो सुग्रीव को क्षमा कर दे और उसकी पत्नी रुमा को उसे लौटा दे किन्तु बाली ने उसकी एक ना सुनी। उसे लगा कि तारा अकारण सुग्रीव का पक्ष ले रही है। उसने उसकी बात तो नहीं मानी किन्तु ये कहा कि वो सुग्रीव का वध नहीं करेगा। रामचरितमानस के अनुसार जब बाली से हार कर सुग्रीव पहली बार भागा तो श्रीराम ने उसे समझा बुझा कर वापस युद्ध के लिए भेजा। सुग्रीव को इतनी जल्दी लौटा देख कर तारा समझ गयी कि अवश्य ही सुग्रीव की कोई सहायता कर रहा है। उसने हर संभव प्रयास किया कि बाली युद्ध के लिए ना जाये किन्तु असफल रही। कम्ब रामायण के अनुसार जब दूसरी बार सुग्रीव युद्ध के लिए आया तो तारा ने बाली को कहा कि सुग्रीव की सहायता श्रीराम कर रहे हैं अतः वो युद्ध के लिए ना जाये। तब बाली ने कहा कि श्रीराम धर्मात्मा हैं इसी कारण सुग्रीव से युद्ध करते समय वो उसपर प्रहार नहीं करेंगे। इसके पश्चात बाली युद्ध के लिए गया और अंततः श्रीराम के हाथों मारा गया।
  2. बाली की मृत्यु के पश्चात तारा का विलाप: रामायण में बाली की मृत्यु के पश्चात तारा के विलाप का बहुत करुणाजनक वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि बाली के वध के लिए श्रीराम ने किसी दिव्यास्त्र का प्रयोग नहीं किया था। उन्होंने एक साधारण बाण चलाया था ताकि बाली तुरंत ना मरे और उसे ये ज्ञात हो जाये कि उसका वध क्यों किया गया है। जब बाली को श्रीराम ने उसके पापों के बारे में बताया तब अंत समय में उसके अंतर्मन में ज्ञान का प्रकाश फैला। तब तारा और अंगद वहाँ आये और विलाप करने लगे। तारा को इस प्रकार विलाप करते देख हनुमान ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि वो अपने पुत्र अंगद के भविष्य के विषय में सोचे। इसके पश्चात अंत समय में बाली ने भी तारा को समझाया और कहा कि वो शोक ना करे क्यूंकि वो अपने पापों का ही दंड भोग रहा है। बाली ने सुग्रीव से तारा और अंगद को संरक्षण प्रदान करने को कहा और ये भी कहा कि वो सदैव तारा के परामर्श अनुसार राज्य करे क्यूंकि उसने तारा का परामर्श नहीं माना और इसी कारण उसकी ये गति हुई है। बाली की मृत्यु के पश्चात हनुमान ने अंगद के राज्याभिषेक का प्रस्ताव दिया किन्तु उतने दुःख में भी तारा ने इस अस्वीकार कर दिया। उसने कहा कि चूँकि उसके चाचा सुग्रीव जीवित हैं इसी कारण अंगद को राजा नहीं बनाया जा सकता। वैसी दारुण परिस्थिति में भी इस प्रकार की धर्मयुक्त बातें तारा जैसी विदुषी ही कर सकती थी। रामायण के कुछ संस्करण कहते हैं कि बाली की मृत्यु से क्रोधित हो तारा ने श्रीराम को श्राप दिया कि वे अपनी पत्नी तो प्राप्त कर लेंगे किन्तु उन दोनों का साथ अधिक दिन नहीं रहेगा। जिस प्रकार वो पति के शोक में तड़प रही है ठीक उसी प्रकार श्रीराम भी अपनी पत्नी के शोक में जीवन भर संतप्त रहेंगे। अध्यात्म रामायण के अनुसार तारा ने श्रीराम को श्राप दिया कि अगले जन्म बाली उनकी मृत्यु का कारण बनेगा। जिस प्रकार आज आपके बाण से बाली हताहत है उसी प्रकार अगले जन्म में आप बाली के बाण से हताहत होंगे। इसी कारण जब श्रीहरि का अगला अवतार श्रीकृष्ण के रूप में हुआ तब बाली उसी बहेलिये के रूप में जन्मा जिसका बाण लगने के बाद श्रीकृष्ण ने निर्वाण लिया।
  3. क्रोधित लक्ष्मण को शांत करना: जब राज्य प्राप्त करने के बाद सुग्रीव भोग-विलास में लिप्त हो श्रीराम को दिया वचन भूल गया तब तारा ने कई बार उसे समझाया कि वीर पुरुष को इस प्रकार अपने वचन का अपमान नहीं करना चाहिए। उनके द्वारा समझाए जाने के बाद सुग्रीव समस्त वानर सेना को एकत्रित होने का आदेश देते हैं। जब श्रीराम ने लक्ष्मण को दूत बना कर किष्किंधा भेजा तो लक्ष्मण के क्रोध को देख कर कोई उनके समक्ष आने का साहस नहीं कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि लक्ष्मण क्रोध में समस्त किष्किंधा का नाश कर देंगे। तब हनुमान के अनुरोध पर तारा लक्ष्मण के पास गयी और उन्हें समझा-बुझा कर शांत किया। रामचरितमानस के अनुसार जब हनुमान सुग्रीव को लक्ष्मण के आने की सूचना देते हैं तो सुग्रीव भयभीत हो जाते हैं और तारा से अनुरोध करते हैं कि वो जाकर किसी प्रकार लक्ष्मण को समझाए। तब तारा अपने अद्वितीय बुद्धिमत्ता से लक्ष्मण का क्रोध शांत करती हैं। वे कोमल स्वर में लक्ष्मण से कहती है कि - "हे सौमित्र! सुग्रीव बहुत काल तक अपने राज्य और पत्नी को खोकर वन वन भटकता रहा है और इसी कारण आज सब कुछ पा कर उसे समय का भान नहीं रहा है।" तारा उन्हें महर्षि विश्वामित्र का उदाहरण भी देती हैं कि उन जैसे महर्षि भी काम वश अपनी तपस्या छोड़ कर विषय-वासना में लिप्त हो गए तो सुग्रीव तो केवल एक वानर है। वे लक्ष्मण को ये भी सूचित करती हैं कि सुग्रीव ने माता सीता की खोज के लिया सभी वानर सेना को पहले ही बुलावा भेज दिया है। वे लक्ष्मण को समझाते हुए कहती हैं कि उन जैसे वीर पुरुष को बिना सत्य जाने इस प्रकार क्रोध करना शोभा नहीं देता। वो तारा का ही प्रभाव था कि उनकी बातों से लक्ष्मण का क्रोध शांत हो जाता है और वे अपने क्रोध करने पर क्षमा भी मांगते हैं।
बाली की मृत्यु के बाद तारा ने सुग्रीव से विवाह कर लिया। हालाँकि रामायण में उन दोनों के विवाह का कोई औपचारिक वर्णन नहीं दिया गया किन्तु ऐसा स्पष्ट है कि बाली की मृत्यु के बाद तारा किष्किंधा की राजमाता और सुग्रीव की पत्नी बनी। कुछ ग्रंथों में सुग्रीव को तारा से विवाह का सुझाव श्रीराम ने दिया था वहीं कुछ दक्षिण भारतीय रामायण के संस्करणों में ये वर्णित है कि बाली ने मरते समय सुग्रीव से तारा को अपनाने की आज्ञा दी। कुछ विद्वान मानते हैं कि अपने पुत्र अंगद के जीवन और भविष्य को देखते हुए तारा ने सुग्रीव की पत्नी होना स्वीकार कर लिया। लक्ष्मण के किष्किंधा में प्रवेश के समय रामायण में ये वर्णित है - 

तारया सहितः कामी सक्त: कपिवृषस्तदा।
न तेषां कपिसिंहानां शुश्राव वचनं तदा॥

अर्थात: उस समय वानरराज सुग्रीव काम के अधीन थे। वे भोग-विलास में आसक्त होकर तारा के साथ थे, इसलिए उन्होंने उन श्रेष्ठ वानरों की बातें नहीं सुनीं। 

महाभारत के अरण्य पर्व में भी इस बात का वर्णन है - 

हते वालिनि सुग्रीवः किष्किंधां प्रत्यपद्यत।
तां च तारापतिमुखीं तारां निपतितेश्वराम्॥

अर्थात: बाली के मारे जाने के बाद अनाथ हो चुकी किष्किंधा पुरी सुग्रीव को मिल गई। साथ ही अपने पति को खो चुकी, चंद्रमा के समान मुख वाली तारा भी सुग्रीव को प्राप्त हुई।

अन्य पंचकन्याओं के समान तारा भी अक्षतयौवना थी, अर्थात प्रतिदिन वो अपने कौमार्य को प्राप्त कर लेती थी। इन पाँचों सतियों का प्रतिदिन स्मरण करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, ऐसा पुराणों में स्पष्ट लिखा है। अगले लेखों में हम अन्य दो सतियों - कुंती एवं द्रौपदी के विषय में जानेंगे।

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