ऐरावत

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ऐरावत का वर्णन एक श्वेत गज के रूप में है जो देवराज इंद्र का वाहन है। इसकी भार्या गजा का नाम अभ्रमु कहा गया है। ऐरावत के दस दन्त है जो दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और पाँच सूंड हैं जो पाँच प्रमुख देवताओं (पञ्चदेवता) का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहीं-कहीं उसके चार दन्त होने का भी उल्लेख है जो चार प्रमुख दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

पुराणों में ऐरावत के और भी कई नाम हैं जिनमे से प्रमुख हैं - अभ्रमातंग, ऐरावण, अभ्रभूवल्लभ, श्वेतहस्ति, मल्लनाग, हस्तिमल्ल, सदादान, सुदामा, श्वेतकुंजर, गजाग्रणी तथा नागमल्ल। महर्षि कश्यप और दक्ष पुत्री क्रुदु द्वारा उत्पन्न एक नाग का नाम भी ऐरावत है किन्तु ये लेख इंद्र के वाहन ऐरावत के बारे में है।

"इरा" का एक अर्थ जल भी होता है और ऐरावत का अर्थ होता है जल से उत्पन्न। उसे ऐसा नाम इस कारण मिला क्यूँकि ऐरावत की उत्पत्ति समुद्र-मंथन के कारण समुद्र से हुई थी। ये समुद्र-मंथन में उत्पन्न १४ रत्नों में एक रत्न माना जाता है जिसे इंद्र ने भगवान विष्णु से दैत्यराज बलि की सहमति के पश्चात अपने वाहन के रूप में माँग लिया था। रामायण के अनुसार ऐरावत की माता का नाम इरावती था। 

मतंगलीला के अनुसार एक बार परमपिता ब्रह्मा ने ब्रह्म-अण्ड (इसी से ब्रम्हांड शब्द की रचना हुई) के पास अपनी मधुर स्वर में स्त्रोत्र का गायन किया। इसी के प्रभाव से पहले उस अंडे से पहले गरुड़ और फिर ऐरावत सहित आठ गजों की उत्पत्ति हुई। यही आठ गज आठों दिग्पालों के वाहन माने गए हैं और ऐसी मान्यता है कि इन्ही गजों पर बैठ कर आठों दिग्पाल पृथ्वी को उसकी धुरी पर संभाले रखते हैं। इसी कारण उन्हें दिग्गज (गजों पर विराजित) भी कहते हैं। इनमे से ऐरावत पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र का वाहन और अन्य सात गजों का स्वामी है। 

विष्णु के अंश पृथु ने ऐरावत को गजों का सम्राट घोषित किया। ऐरावत का एक अर्थ बादलों को बांधने वाला भी होता है जो इंद्र के बादलों के देवता की पदवी को पूरा करता है। इंद्र ने वृत्रासुर का वध भी ऐरावत की सहायता से उसपर बैठ कर ही किया था। एक मान्यता के अनुसार जब देवराज इंद्र वर्षा का आह्वाहन करते हैं, ऐरावत अपने शक्तिशाली सूडों से पाताल लोक से जल खींच कर बादलों के द्वारा पृथ्वीलोक पर बरसाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार वो जल भगवान विष्णु के क्षीर-सागर का होता है। 

कहा जाता है कि ऐरावत अपनी शक्ति से पृथ्वी को अपनी धुरी से भटकने नहीं देता। ऐरावत को स्वर्ग लोक में स्थित इंद्रभवन के द्वार का रक्षक भी माना जाता है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि "अश्वों में मैं उच्चैश्रवा और गजों में मैं ऐरावत हूँ।" महाभारत के भीष्म पर्व में आर्यावर्त के उत्तरी भू-भाग को कुरु ना कहकर ऐरावत कहा गया है। भीष्म के पूर्वज महाराज हस्ती के शासनकाल में कुरुराज्य का नाम हस्तिनापुर रखा गया और ऐरावत को इस नगर का अधिष्ठाता माना गया। ऐरावत द्वारा पारिजात की माला तोड़ देने के कारण ही महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को सिंहासन से च्युत होने का श्राप दे दिया था। इसके बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें। 

पुराणों में ऐरावत की शक्ति का भी वर्णन है जिसमे कहा गया है कि ऐरावत की शक्ति विराट है। उसकी चिंघाड़ की तुलना इंद्र के वज्र से उत्पन्न तड़ित (बिजली) से की गयी है। कहा गया है कि शेषनाग के सामान ऐरावत भी पृथ्वी का भार सँभालने में सक्षम है। जब इंद्र ऐरावत पर बैठ कर युद्ध को जाते हैं तो उसके समक्ष शत्रुओं के ह्रदय बैठ जाते हैं। इंद्र पर किया गया हर प्रहार पहले ऐरावत झेलता है, फिर उनका वज्र और फिर वो इंद्र के शरीर तक पहुँचता है। हरिवंश पुराण में वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण पारिजात वृक्ष लाने स्वर्ग पहुँचते हैं तो वहाँ उनका सामना ऐरावत से होता है। जब सामान्य बल से वो ऐरावत को पराजित नहीं कर पाते तब वे सुदर्शन चक्र का प्रयोग उसपर करते हैं तब जाकर वो शांत होता है।

जब गरुड़ अपनी माता विनीता को दासत्व से मुक्त करने के लिए स्वर्ग-लोक में पहुँचते हैं तो वहाँ उनका ऐरावत के साथ भीषण संग्राम होता है। ऐरावत के सूंड से निकली वायु के वेग को स्वयं पवन देव की शक्ति के समकक्ष माना गया है। वृत्रासुर के विरूद्ध युद्ध में इंद्र ऐरावत और वज्र के कारण ही उसपर विजय प्राप्त करने के सक्षम होते हैं। ऐरावत और वज्र की शक्ति को समकक्ष माना गया है। पुराणों में ऐरावत की शक्ति अन्य दिग्पालों के ७ गजों की सम्मलित शक्ति से भी अधिक माना गया है। रामायण में जामवंत ने हनुमान की शक्ति का वर्णन करते हुए उनके पूंछ की शक्ति को ऐरावत के सूंड की शक्ति के सामान बताया है।

तमिलनाडु में तंजौर के निकट दारासुरम के एक मंदिर में ऐरावत भगवान रूद्र के एक लिंग "ऐरावतेश्वर" के रूप में पूजा जाता है जो राजराजा चोला द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। कर्नाटक परिवहन ने भी अपने सर्वश्रेष्ठ बस-सेवा का नाम ऐरावत रखा है। जैन धर्म में भी ये मान्यता है कि जब पहले तीर्थंकर स्वामी ऋषभदेव का जन्म हुआ तो स्वयं देवराज इंद्र ऐरावत पर बैठ कर उस उत्सव में आये। हाथियों के देश माने जाने वाले थाईलैंड में भी ऐरावत का बड़ा महत्त्व है। बैंकाक का वात-अरुण मंदिर ऐरावत को समर्पित है जहाँ उसे तीन सर वाले हाँथी के रूप में दिखाया गया है। थाईलैंड और लाओस देश के ध्वज पर भी ऐरावत का चिह्न बना हुआ है। कर्णाटक राज्य में सर्वश्रेष्ठ बस श्रेणी का नाम भी ऐरावत रखा गया है। 

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