घटोत्कच

घटोत्कच भीम और राक्षस कन्या हिडिम्बा का पुत्र था। पांडवों के वंश का वो सबसे बड़ा पुत्र था और महाभारत के युध्द में उसने अहम भूमिका निभाई। हालाँकि कभी भी उसकी गिनती चंद्रवंशियों में नहीं की गयी (इसका कारण हिडिम्बा का राक्षसी कुल था) लेकिन उसे कभी भी अन्य पुत्रों से कम महत्वपूर्ण नहीं समझा गया। महाभारत के युद्ध में कर्ण से अर्जुन के प्राणों की रक्षा करने हेतु घटोत्कच ने अपने प्राणों की बलि दे दी।

लाक्षाग्रह की घटना के बाद पांडव वनों में भटक रहे थे। चलते चलते कुंती का धैर्य जाता रहा और सब ने विश्राम की इच्छा जाहिर की। कुंती सहित सभी भाई गहरी नींद सो गए और भीम वहां पहरे पर बैठ गए। वही पास में हिडिम्ब नमक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बा के साथ रहता था। जब पांडव वहां विश्राम कर रहे थे तो हिडिम्ब को मानवों की गंध मिल गयी और उसने हिडिम्बा को इसका पता लगाने भेजा। हिडिम्बा हालाँकि राक्षसी थी लेकिन अहिंसा प्रिय थी। केवल अपने भाई के भय से वो उसका साथ देती थी। 

जब हिडिम्बा मनुष्यों को खोजती वहां तक पहुंची तो वहां पर भीम के रूप और बलिष्ठ शरीर को देख कर वो उसपर आसक्त हो गयी। वो एक सुन्दर स्त्री का रूप धर कर भीम के पास गयी और उसे कहा कि वो जल्द से जल्द अपने परिवार के साथ वहां से चला जाए नहीं तो वे सभी उसके भाई के ग्रास बन जाएँगे। भीम कहा कि उसका परिवार दिन भर की थकान के बाद विश्राम कर रहा है इसीलिए वो उन्हें उठा नहीं सकते। भीम ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि उसे किसी से भी घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

उधर जब हिडिम्बा वापस लौट कर नहीं आयी तो हिडिम्ब स्वयं उसे ढूंढ़ता हुआ वहां पर पहुच गया। क्रोध में वो पहले हिडिम्बा को हीं मारना चाहता था पर भीम ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। कोलाहल से उनका परिवार उठ ना जाए इसीलिए भीम उसे घसीटता हुआ वहां से दूर ले गया पर उन दोनो में ऐसा भयानक युद्ध होने लगा कि आसपास के वृक्ष टूट कर गिर पड़े और सभी लोग जाग गए। पहले तो उन्हें कुछ समझ में हीं नहीं आया लेकिन हिडिम्बा ने उन्हें सारी बातें बता दी। भीम को लेकर सभी निश्चिन्त थे क्योंकि विश्व की कोई भी शक्ति उसे परास्त नहीं कर सकती थी। ऐसा हीं हुआ और भीम ने जल्द ही हिडिम्ब का अंत कर दिया। 

उसकी मृत्यु के बाद हिडिम्बा ने कुंती से कहा कि उसकी भाई की मृत्यु के बाद वो बिलकुल असहाय हो गयी है। भीम के प्रति अपनी आसक्ति के बारे में भी उसने सब को बताया और उससे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त की। अब एक अजीब स्थिति पैदा हो गयी। पहली ये कि विपत्ति के इस समय में पांडवों का बल भीम हीं था और दूसरी ये कि अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के अविवाहित रहते भीम विवाह नहीं कर सकता था। 

कुंती ने ये समस्या युधिष्ठिर को बताई तो उसने कहा कि ये तो सत्य है कि उनके अविवाहित रहते भीम रीतिगत तरीके से विवाह नहीं कर सकता किन्तु किसी की रक्षा हेतु धर्म उसे गन्धर्व विवाह करने की छूट देता है। उन्होंने दो शर्तों पर भीम का विवाह हिडिम्बा से करना स्वीकार किया कि एक तो हिडिम्बा प्रत्येक रात्रि उसे उसके परिवार के पास वापस छोड़ आएगी और दूसरे भीम उसके पास केवल एक संतान की उत्पत्ति तक हीं रहेगा। इन शर्तों को हिडिम्बा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। 

कुछ समय के बाद हिडिम्बा ने घटोत्कच को जन्म दिया जो पैदा होते हीं वयस्क हो गया। उसके सर पर एक भी बाल नहीं था इसीलिए भीम ने उसका नाम घटोत्कच रखा जिसका अर्थ होता है घड़े के सामान चिकने सर वाला। शर्त के अनुसार भीम अपने परिवार के पास वापस चला गया। उसका पालन पोषण हिडिम्बा ने ही किया। बड़े होने के बाद जब घटोत्कच को पांडवों के साथ हुए अन्याय का पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो उठा। वह उसी समय कौरवों पर आक्रमण करना चाहता था किन्तु युधिष्ठिर ने उसे समझा बुझा कर शांत किया। घटोत्कच ने पांडवों को वचन दिया कि जब भी संकट के समय वे उसे याद करेंगे, वो उपस्थित हो जाएगा।

श्रीकृष्ण ने राक्षसराज मुर का वध किया था और उसकी पुत्री मौर्वी को अभय प्रदान किया। उन्होंने मौर्वी को ये वरदान दिया कि उसे उसकी पसंद का वर प्राप्त होगा। मौर्वी बड़ी विदुषी और शक्तिशाली थी और उसने अपने विवाह के लिए एक शर्त रखी थी कि जो कोई भी उसे बुद्धि एवं बल में परास्त करेगा वो उसी से विवाह करेगी। मौर्वी का असाधारण सौंदर्य देख कई राजकुमार उससे विवाह करने के लिए आये किन्तु उससे बुद्धि एवं बल में परास्त होने के बाद उसके हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। 

श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को मौर्वी से विवाह करने की सलाह दी। उनकी आज्ञा अनुसार घटोत्कच मौर्वी के पास पहुँचा और उसे बुद्धि एवं बल में पराजित कर उससे विवाह किया। उन दोनों के तीन पुत्र हुए - बर्बरीक, अंजनपर्वा एवं मेघवर्ण। बर्बरीक बहुत शक्तिशाली था किन्तु श्रीकृष्ण ने उससे उसका उसका सर माँग लिया। अंजनपर्वा महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ा था किन्तु उसका वध अश्वथामा ने कर दिया। मेघवर्ण ने महाभारत युद्ध में हिस्सा नहीं लिया और वो युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ में उपस्थित था। वो कर्ण के पुत्र वृषकेतु का मित्र था।

एक कथा ऐसी भी आती है कि अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु अपने काका बलराम और रेवती की पुत्री वत्सला से प्रेम करता था किन्तु बलराम ने इस विवाह से इंकार कर दिया। इससे अभिमन्यु बहुत निराश हो गया। तब अपने भाई की ख़ुशी के लिए घटोत्कच ने अपनी माया से वत्सला का अपहरण कर लिया और उसका विवाह अभिमन्यु से करवा दिया। 

महाभारत के युध्द में घटोत्कच ने कौरव सेना का बड़ा विनाश किया। कौरव की तरफ से अलम्बुष राक्षस ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की परन्तु अंत में वो घटोत्कच के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ। भीष्म के सेनापति रहते तो भीष्म ने घटोत्कच को जैसे तैसे रोके रखा किन्तु भीष्म के धराशायी होने के बाद तो उसने कौरव सेना की बड़ी बुरी गत की। महाभारत में कहा गया है कि भीष्म के पतन के बाद घटोत्कच ने कौरवों की सेना में ऐसा उत्पात मचाया कि दुर्योधन ने बांकी सभी को छोड़ कर केवल उसे मारने का आदेश दिया। 

घटोत्कच ने ऐसा हाहाकार मचाया कि अंत में दुर्योधन ने कर्ण से उसे मारने का अनुरोध किया। कर्ण ने दुर्योधन को वचन दिया कि वो आज घटोत्कच को अवश्य मार गिरायेगा लेकिन कर्ण को ये जल्द हीं पता चल गया कि घटोत्कच को मारना उसके लिए भी सहज नहीं है। कर्ण ने साधारण बाणों से घटोत्कच को मारने का बड़ा प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाया। अंत में दुर्योधन के बार बार उपालंभ देने पर और अपने वचन की रक्षा के लिए उसने घटोत्कच पर इन्द्र के द्वारा दी गयी अमोघ शक्ति का प्रयोग किया जिससे आखिरकार घटोत्कच की मृत्यु हो गयी। 

ऐसा कहा जाता है कि अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को कौरव सेना में हाहाकार मचाने के लिए उत्साहित किया। उन्हें पता था कि जबतक कर्ण के पास इंद्र की दी गयी शक्ति थी, अर्जुन उसे कभी परास्त नहीं कर सकता था। उस शक्ति से कर्ण अर्जुन के प्राण कभी भी ले सकता था। यही कारण था कि जब तक कर्ण की वो शक्ति घटोत्कच पर व्यर्थ ना हुई तब तक श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्ण के सामने नहीं लाये। जब कर्ण ने घटोत्कच का वध किया तो कौरव सेना में सभी हर्षित थे केवल कर्ण को छोड़ कर क्योंकि उसे पता था कि अब अर्जुन की निश्चित मृत्यु उसके हाथ से निकल चुकी है। वही पांडव सेना में सभी दुखी थे केवल श्रीकृष्ण को छोड़ कर क्योंकि उन्हें पता था कि घटोत्कच ने अर्जुन को निश्चित मृत्यु से बचा लिया है। 

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