"ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी" - तुलसीदास जी के इस दोहे का वास्तविक अर्थ

"ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी" - तुलसीदास जी के इस दोहे का वास्तविक अर्थ
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।

गोस्वामी तुलसीदास रचित महान ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस में वर्णित इस एक दोहे को लेकर बहुत प्रश्न उठाये जाते है। विशेषकर "शूद्र" एवं "नारी" शब्द को लेकर वामपंथियों और छद्म नारीवादियों ने इसे तुलसीदास और मानस के विरुद्ध एक शस्त्र बना रखा है। प्रश्न ये है कि क्या वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास जैसा श्रेष्ठ व्यक्ति शूद्रों एवं नारियों के विषय में ऐसा लिख सकता है? आइये इसे समझते हैं।

एक कहावत है "अर्थ का अनर्थ", अर्थात किसी चीज को यदि ठीक ढंग से ना समझा जाये तो उसका गलत अर्थ निकल जाता है। ठीक ऐसा ही इस दोहे के साथ हुआ है। किन्तु इससे पहले कि हम इसके वास्तविक अर्थ पर आये, हमें पद्य की एक विधा के बारे में जानना आवश्यक है जिसे "बहुअर्थी छंद" कहते हैं। अर्थात ऐसी चीजें जिसके कई अर्थ हो सकते हैं। जैसे तुलसीदास जी ने मानस में ही "कनक" शब्द का उपयोग किया है जिसका अर्थ स्वर्ण भी होता है, गेंहू भी और धतूरा भी। अर्थात इस एक शब्द से उन्होंने तीन अर्थों को साध लिया है। जो श्रेष्ठ रचनाकार होते हैं वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं ताकि रचना अनावश्यक बड़ी ना बनें।

हमारे हिन्दू धर्म के दो सबसे बड़े महाकाव्यों, रामायण और महाभारत में भी महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वेदव्यास द्वारा बहुअर्थी संवाद उपयोग करने का वर्णन है। रामायण का तो आधार ही ऐसा श्लोक है जिसके दो अर्थ थे। महर्षि वाल्मीकि ने क्रौंच पक्षी को देख कर जो श्लोक दुखी होकर कहा, अंततः ब्रह्मा जी ने उसी का दूसरा अर्थ बताया और वही से उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा मिली।

उसी प्रकार जब गणेश जी ने वेदव्यास को बताया कि वो अपनी लेखनी नही रोकेंगे तब महर्षि वेदव्यास ने उनसे प्रार्थना की कि तब वे तभी लिखें जब वे उस श्लोक को पूरी तरह समझ लें। जब गणेशजी की गति बहुत तेज होती थी तब वेदव्यास ऐसे ही बहुअर्थी श्लोक रच देते थे जिससे गणेश जी को उसका सही अर्थ समझने में समय लग जाता था और उतनी देर में महर्षि अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।

बहुअर्थी शब्दों का सही उपयोग करना हर किसी के बस की बात नहीं होती किन्तु तुलसीदास जी कितने श्रेष्ठ रचनाकार थे इसमें निःसंदेह रूप से किसी को कोई शंका नही होगी। उनके इस दोहे में "ताडन" शब्द भी बहुअर्थी है। अर्थात इस दोहे में ये शब्द तो एक बार आया है किंतु हर किसी के सन्दर्भ में इस शब्द का अर्थ अलग-अलग है। किन्तु हम अज्ञानी लोग ताडन का अर्थ हर किसी के विषय में "मारना" ही समझ लेते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आज के आधुनिक युग में भी लोग कम से कम ये तो जानते ही होंगे कि ताडन शब्द का अर्थ केवल मारना नहीं होता, इसका एक अर्थ परीक्षा करना और निगरानी करना भी होता है। आइये प्रत्येक के विषय मे इस "ताडन" शब्द का सही अर्थ समझ लेते हैं:
  • ढोल: ढोल के विषय में ताडन शब्द का वास्तविक अर्थ मारना या पीटना ही है। ढोल को जब तक पीटा ना जाये, अर्थात जब तक उसपर थाप ना दी जाए, उसमें से ध्वनि नही निकल सकती और उसका कोई उपयोग नही होता। यही नहीं, उसकी ताड़ना भी संगीत सम्मत होनी चाहिए ताकि उसमें से ध्वनि लयबद्ध रूप से निकले अन्यथा उसका स्वर कर्कश हो जाता है। 
  • गंवार: गंवार का अर्थ अज्ञानी होता है और यहां ताड़ना का अर्थ है दृष्टि रखना। अज्ञानी को यदि कोई कार्य दिया जाए और उसपर दृष्टि ना रखी जाए तो वो कार्य कभी भी सही ढंग से नही हो सकता। इसीलिए जब तक किसी को किसी चीज के विषय मे पूर्ण ज्ञान ना हो तब तक उसपर दृष्टि रखनी चाहिए। ऐसा ना करने पर भारी हानि होने की सम्भावना होती है। 
  • शूद्र: सबसे अधिक आपत्ति इसी पर होती है किन्तु सर्वप्रथम तो ये समझ लें कि शुद्र जाति नही बल्कि वर्ण है। दोनों में बहुत अंतर है किन्तु आज कल लोग इन दोनों को एक ही समझ लेते हैं। इस पर एक विस्तृत लेख बाद में धर्म संसार पर प्रकाशित किया जायेगा। किन्तु यहाँ पर जो संवाद है वो शुद्र के वेद पाठन के विषय पर है और यहां ताडन का अर्थ मार्गदर्शन है। हिन्दू धर्म में ब्राह्मण वर्ण को विद्या, क्षत्रिय वर्ण को आयुध, वैश्य वर्ण को वाणिज्य एवं शूद्र वर्ण को भूमि का अधिकारी माना गया है। यदि कोई शूद्र वेद पाठ कर रहा हो तो वो किसी योग्य ब्राह्मण/गुरु के उचित मार्गदर्शन में ही होना चाहिए ताकि उसे सही ज्ञान मिल सके। गुरु के सही ताडन (मार्गदर्शन) के बिना वो गलत ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यहाँ पर ये शूद्र वर्ण के लिए उपयोग किया गया है किन्तु अन्य दो वर्णों - क्षत्रिय एवं वैश्य पर भी ये बात लागू होती है कि उन्हें अपनी शिक्षा योग्य ब्राह्मण/गुरु से लेनी चाहिए। यही हिन्दू धर्म के गुरु-शिष्य परंपरा का वास्तविक मूल है।
  • पशु: पशुओं को हिन्दू धर्म में बहुत मूल्यवान माना गया है इसीलिए उन्हें "पशुधन" कहा जाता है। इनके विषय मे ताडन का अर्थ है देख-रेख करना। पशु बुद्धिहीन है किन्तु मूल्यवान है अतः उसे हर समय सही देख-रेख की आवश्यकता होती है। जब पशु झुंड में चलते हैं तो एक व्यक्ति सदैव देखभाल के लिए उनके साथ होता है ताकि पशु इधर उधर ना भटक जाएं। उसी प्रकार खेत मे हल जोतने वाला बैल केवल कृषक के वाणी मात्र से ये समझ जाता है कि उसे किस दिशा में मुड़ना है। यदि सही ताडन (देख-रेख) ना की जाये तो पशुधन का ह्रास हो सकता है। 
  • नारी: इसपर भी सर्वाधिक आपत्ति होती है किंतु यहां नारी के विषय में ताड़ना का अर्थ है उनका ध्यान रखना एवं रक्षा करना। नारी को हिन्दू धर्म के १४ सर्वोत्तम रत्नों में से एक माना गया है। नारी समुद्र मंथन में निकली लक्ष्मी के समान पवित्र और आदरणीय है और इसीलिए ये आवश्यक है कि उनका सदैव ताडन, अर्थात ध्यान रखा जाए। यहां पर ताडन का एक अर्थ रक्षा करना भी है। स्त्री को कभी अकेला नही छोड़ना चाहिए, उनका सदैव ध्यान रखना चाहिए और एक रत्न की भांति उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। हमारे धर्मग्रंथ और सनातन इतिहास ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं जहां केवल एक नारी की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए सहस्त्रों पुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया। नारी कितनी आदरणीय और मूल्यवान है, अब आप स्वयं विचार कीजिये।
तो यही वास्तव में इस दोहे का अर्थ है जिसे जान-बूझ कर, बिना समझे रामायण और श्रीराम के चरित्र हनन हेतु एवं महान सनातन हिन्दू धर्म में फूटपड़वाने हेतु उपयोग में लाया जाता है। इसका एक कारण ये भी है कि हम लोग इस दोहे के वास्तविक अर्थ से अनभिज्ञ हैं और ऐसे लोग बहुत कम हैं जो इसका वास्तविक अर्थ समझा सकें। अन्यथा क्या कोई ये सोच भी सकता है कि तुलसीदास, जो प्रभु श्रीराम की भक्ति में ऐसे लीन थे कि रामचरितमानस लिखते समय सदैव उनकी आंखों से अश्रुधारा बहती रहती थी, ऐसी आपत्तिजनक बातें लिखेंगे? ऐसा सोचना ही मूर्खता है।

आशा है कि आपको इस सुंदर दोहे का वास्तविक अर्थ समझ में आ गया होगा। यदि आ गया हो तो इसे अन्य लोगों तक भी पहुँचाने का प्रयास करें। ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। अर्थात: ढोल ताडन (लयबद्ध थाप देना), गंवार (अज्ञानी) ताडन (दृष्टि रखना), शुद्र (वर्ण) वेदपाठ में ताडन (मार्गदर्शन), पशु ताडन (देख रेख) एवं नारी ताडन (ध्यान एवं रक्षा) के सकल (सदैव) अधिकारी हैं। जय श्रीराम।

13 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ उपासना पाण्डेयसोमवार, दिसंबर 28, 2020 11:16:00 am

    सटीक, सारगर्भित व शोधपरक जानकारी के लिए साधुवाद

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    1. Aap ki jitni taadna kee jayein uni kam hai! Bhagwan aap ki aur aap k pareevar ki bahot taadna karein! Aapke 24 peedhiya prtaadit rahein aisi shubhkaamnaye aap ke liye! Jindagibhar koi na koi aap ko taadit karta rahe!

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  2. अद्भुत नीलाभ भाई। अतिसुन्दर। बामपंथी विचारधारा वाले, हिंदुओं में कभी एकता न चाहने वाले आदि-आदि जो समाज और हिंदुत्व को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहते हैं। जो व्यक्तिगत लाभ और स्वार्थसिद्धि के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसे कारनामे ऐसे ही धरती पर बोझ और श्वास लेने वाली मृतात्मा तुल्य लोगों का प्रतिफल है।

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    1. आज आपने इस वाक्य का सही उत्तर सबके सामने रखकर सबकी आँखे खोल दी। बहुत बहुत आभार। क्या में आपके लेख को अपने न्यूज़ पोर्टल पर आपके नाम लिंक के साथ पोस्ट कर सकता हु। www.uttarakhandkesari.in पर uttarakhandkesari.in

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  3. बहुत ज्ञावर्धक जानकारी प्राप्त हुई इस लेख के मध्यम से धन्यवाद।

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