जब दो ब्रह्मास्त्रों का सामना हुआ - अर्जुन और अश्वथामा का युद्ध

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे - अश्वत्थमा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा ने पांडवों को छल से मारने की प्रतिज्ञा की। उसने दुर्योधन को मरते हुए वचन दिया था कि जैसे भी हो वो पांचों पांडवों को अवश्य मार डालेगा। कृपाचार्य ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर अंततः उन्होंने भी उसका साथ देने की स्वीकृति भर दी।

युद्ध के समाप्त होने के पश्चात् कृष्ण पाँचों पांडवों को गंगा तट पर जागरण के लिए ले गए थे और उनके शिविर में उनके पाँचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुत्कार्मन, शतानीक एवं श्रुतसेन सोए हुए थे। इसकी जानकारी अश्वत्थामा को नहीं थी। उसे लगा कि पांडव हीं वहां सोए हुए हैं। उन्होंने इस पाँचों को सोते हुए हीं पांडव समझ कर मार डाला और प्रसन्नतापूर्वक लौट गए। उनके साथ साथ उन्होंने वहां विश्राम कर रहे सारे योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया जिसमे धृष्ट्रधुम्न और शिखंडी भी थे। 

जब पांडव और द्रौपदी वापस आए तो उपने पुत्रों को मारा हुआ देख द्रौपदी विलाप करने लगी। उसके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। उसने पांडवों से कहा कि जब तक वो अश्वत्थामा का मारा हुआ मुख नहीं देख लेती वो अन्न जल ग्रहण नहीं करेगी। अश्वत्थामा को पकड़ने के लिए पांडव चल दिए जो भागता हुआ महर्षि व्यास के आश्रम में पहुँच चुका था। वहां पहुंचकर भीम ने उससे युद्ध कर उसे परस्त किया। 

अपने पिता आचार्य द्रोण के वरदान के कारण अश्वत्थामा अमर था। उसे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान भी था। उसने पांडवों को समाप्त करने के लिए उनपर परमपिता का महान अस्त्र चला दिया। पांडवों में ब्रह्मास्त्र का ज्ञान केवल अर्जुन को था। जब कृष्ण ने देखा कि ये ब्रह्मास्त्र पांडवों का नाश कर के ही रहेगा तो उन्होंने विवश होकर अर्जुन से भी ब्रह्मास्त्र चलाने को कहा क्योंकि एक ब्रह्मास्त्र का सामना केवल दूसरा ब्रह्मास्त्र हीं कर सकता था।

लेकिन इससे पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाता। पुराणों में ये लिखा हुआ है कि जहाँ दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकराते हैं वहाँ १२ वर्षों तक वर्षा नहीं होती और भयानक दुर्भिक्ष पड़ता है। जब महर्षि व्यास ने देखा कि दोनों महास्त्र टकराने हीं वाले हैं तो उन्होंने देवर्षि नारद की सहायता से दोनों ब्रह्मास्त्रों को रोक दिया। उन्होंने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया कि इससे पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और उन दोनो को अपने-अपने दिव्यास्त्रों को वापस लेने को कहा। 

उनकी आज्ञा मान कर अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया किन्तु अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र को वापस लेने कि कला नहीं जानता था। महर्षि व्यास ने कहा कि अगर वो अपना ब्रह्मास्त्र वापस नहीं ले सकता तो उसकी दिशा बदल कर उसके प्रभाव को सीमित कर दे। बदले की भावना में जलते अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदल कर उसे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर गिरा दिया जिससे उसके गर्भ से एक मृत शिशु का जन्म हुआ। 

उसके इस कृत्य से पांडव बड़े क्रोधित हुए। वो ब्राम्हण था और अमर भी इस लिए वो उसका वध तो नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने उसके मस्तक की मणि लेकर उसे आजीवन भटकने के लिए छोड़ दिया। कहीं-कहीं ३००० वर्ष तक भटकने का विवरण मिलता है। बाद में कृष्ण की कृपा से उस शिशु को नया जीवनदान मिला जिससे उसका नाम परीक्षित पड़ा। कहते हैं अपने द्वारा किये गए पाप के कारण आज तक अश्वथामा इस पृथ्वी पर भटक रहा है। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. उस सिष्य का नाम जन्मेजय या परीक्षित क्या राखा था कृपया प्रष्ट करें क्युंकि इधर जन्मेजय हें फिर उधर महाभारत के पात्र अग्ला पोष्ट जहाँ परिक्षित हें

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    1. uska name parikshit tha.........parikshit ke ptra ka name janmejay tha

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    2. गुरुंग जी,

      चूँकि अभिमन्यु के पुत्र को श्रीकृष्ण के द्वारा दुबारा जीवनदान मिला था इसीलिए उसका नाम परीक्षित पड़ा। उसके पुत्र का नाम जन्मेजय था जिसने तक्षक से अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए नाग यज्ञ किया था।

      नीलाभ

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  2. उसका नाम जन्मेजय था या परिक्षित ?

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  3. माफ़ कीजिये गुरुंग जी। उसका नाम परीक्षित था। गलती से जन्मेजय का नाम आ गया था। ठीक कर दिया है। आपके सुझाव के लिए धन्यवाद्।

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  4. nilabh ji yadi koi apne mata pita ki jimmedariyan poore man aur sneh se poori karta hai parantu kuch anjani si galtiyon ke liye wo krodhit rahte hain aur putra ko uske bachchon sahit ghar se nikal dete hain aur roz ke unke krodh se bachne ko wo putra alag rahne lagta hai lekin unke bhojan sambandhi jimmedari ka nirvahan karta rahta hai jabki pita sampann hain aur putra vartman me utna relax nahi hai.vedon ke anusar kya putra dand ka bhagi hai?
    kabhi kabhi putra ke man me unke prati krodh jaroor aata hai.

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    1. Santosh Ji,

      Vedon ke anusar to kisi bhi sthiti me apne mata pita ko chhodna dand ka bhagi banna hai lekin aajkal ki paristhitiyon ke anusar ham har cheej vodon ko dhyan me rakh kar nahi kar sakte. Halanki agar aap mujhse vyaktigat roop se baat karen to main iske bare me aapse charcha karna chahunga.

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  5. आधुनिक परमाणु बम ब्रह्मास्त्र का ही रूप है,अत्यंत कम शक्तिशाली परमाणु बम जापान पर अमेरिका ने छोड़ा था और उसका दुष्प्रभाव आज भी हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर देखने को मिलता हा,,बच्चे विकलांग पैदा होते है,भूमि भी कम उपजाऊ हा,,महाभारत कालीन ब्रह्मास्त्र अवश्य ही अत्यंत शक्तिशाली रहा होगा अन्यथा उनके टकराने पर निश्चय ही इस पृथ्वी का विनाश हो जाता,,ॐ नमो नारायणाय...

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