जब श्रीहरि ने छल से माता पार्वती से बद्रीनाथ ले लिया

जब श्रीहरि ने छल से माता पार्वती से बद्रीनाथ ले लिया
बद्रीनाथ के धार्मिक महत्त्व के विषय में तो हम सभी जानते हैं। हम ये भी जानते हैं कि बद्रीनाथ भगवान विष्णु का निवास स्थान है। किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि बद्रीनाथ श्रीहरि से पहले महादेव का निवास स्थान हुआ करता था। इस विषय में एक बहुत ही रोचक कथा हमें पुराणों में मिलती है।

इस स्थान पर सतयुग में बद्री (बेर) का वन था जिस कारण इसका नाम बद्रीनाथ पड़ा। इस स्थान भगवान शिव माता पार्वती के साथ रहते थे। ये उन दोनों का विश्राम स्थल था जो उन्हें अत्यंत प्रिय था। एक बार श्रीहरि भगवान शंकर से मिलने बद्रीनाथ आये। ये स्थान उन्हें इतना प्रिय लगा कि उन्होंने इसे महादेव से मांग लिया। महादेव ने हँसते हुए कहा कि आप तो स्वयं त्रिलोक के स्वामी हैं तो ये स्थान भी आपका ही है। किन्तु आपको इसे पार्वती से मांगना होगा।

माता पार्वती से वो स्थान मांगना सहज नहीं था इसीलिए नारायण ने एक युक्ति सोंची। वे एक बालक के रूप में बद्रीनाथ के द्वार पर आये और जोर जोर से रुदन करने लगे। जब माता पार्वती ने एक बालक का रुदन सुना तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने बहार आकर उसे गोद में ले लिया और अंदर आ गयी। उन्हें देखते ही भोलेनाथ समझ गए कि ये श्रीहरि यहीं और अवश्य ही कोई लीला कर रहे हैं।

उन्होंने माता पार्वती से कहा कि इस बालक को द्वार पर ही छोड़ आओ, थोड़ी देर में ये स्वतः ही चला जाएगा। तब माता पार्वती ने कहा कि इतना छोटा बालक अकेला कहाँ जाएगा। इसे यही रहने दीजिये। ये कह कर वे उन्हें भवन के अंदर ले गयी और सुलाने लगी। भगवान शंकर समझ गए कि अब बद्रीनाथ में रहने का उनका समय समाप्त हो गया है। वैसे भी उन्होंने श्रीहरि को वो स्थान पहले ही दे दिया था।

उधर माता की गोद में बालक रुपी श्रीहरि सो गए। उन्हें सुला कर जब माता बाहर आयी तो महादेव ने उनसे कहा कि चलो कहीं भ्रमण कर आएं। माता उनके साथ भ्रमण पर चली गयी। उनके जाते ही श्रीहरि ने बद्रीनाथ का द्वार बंद कर दिया।

उधर जब बहुत देर हो गयी तो माता पार्वती ने भोलेनाथ से वापस चलने को कहा। तब महादेव ने कहा कि अब हमें वापस नहीं जाना चाहिए और किसी और स्थान में जाकर बसना चाहिए। किन्तु माता को वो स्थान अत्यंत प्रिय था इसी कारण वे बार-बार वापस चलने की जिद करने लगी। अंततः भोलेनाथ और माता वापस बद्रीनाथ आ गए।

वहां पहुँच कर माता ने देखा कि द्वार तो बंद है। वे द्वार खटखटाने लगी और तब श्रीहरि ने अंदर से कहा कि हे देवी! ये स्थान मुझे अत्यंत प्रिय प्रतीत हो रहा है इसी कारण अब आप मुझे ही यहाँ रहने दीजिये। आप लोग कृपया कहीं अन्यत्र चले जाएँ। माता ये सुन कर हैरान रह गयी और तब भोलेनाथ ने उन्हें हँसते हुए श्रीहरि की लीला के बारे मे बताया।

ये सुनकर माता पार्वती श्रीहरि की लीला समझ गयी और उन्हें इस बात की प्रसन्नता भी हुई कि कुछ समय के लिए उन्हें भी बालक रुपी श्रीहरि का लाड़ करने का अवसर मिला। तब भोलेनाथ ने कहा कि अब आप ही बताएं कि हम कहाँ जाएँ? ये सुनकर श्रीहरि ने उन्हें वहां से ३ योजन दूर केदार नामक स्थान पर जाकर बसने का सुझाव दिया। तब महादेव माता सहित केदारनाथ चले गए और वहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। 

उस दिन से ही श्रीहरि बद्रीनाथ में और महादेव केदारनाथ में स्थित हो गए। ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इनमें से किसी एक भी तीर्थ पर जाता है उन्हें श्रीहरि और महादेव दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो व्यक्ति इन दोनों तीर्थ के दर्शन करता है उसे अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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