अजामिल - वो पापी जिसने स्वर्ग प्राप्त किया

अजामिल - वो पापी जिसने स्वर्ग प्राप्त किया
प्राचीन काल में अजामिल नामक एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण था। उसके पिता ने उसे बहुत अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए थे और वो भी सदैव अपने पिता की सेवा एवं ईश्वर की साधना में लगा रहता था। उसके पिता ऐसे आदर्श पुत्र को प्राप्त कर अपने आप को धन्य समझते थे। समय आने पर उन्होंने अजामिल का विवाह एक सुन्दर एवं सुशील ब्राह्मण कन्या से कर दिया। एक आदर्श पुत्र की भांति ही अजामिल एक आदर्श पति भी साबित हुआ और दोनों सुख पूर्वक रहने लगे।

एक बार अजामिल पूजा के लिए पुष्प लेने वन को गया। वापस आते समय उसने देखा कि एक व्यक्ति शराब के नशे में धुत्त एक अति सुन्दर वेश्या के साथ रमण कर रहा है। अपने संस्कारों के कारण उसने बहुत प्रयास किया कि उस ओर ना देखे, किन्तु उस वेश्या के रूप ने उस पर ऐसा जादू किया कि वो चाह कर भी स्वयं को उस ओर देखने से रोक ना सका।

थोड़ी देर बाद जब वो घर वापस आया तो उसका मुख मलिन था। अजामिल उस स्त्री को अपने मन से निकाल नहीं पा रहा था। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म इत्यादि में उसकी कोई रूचि ना रही। अंततः एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण का वो पुत्र अपने ह्रदय से हार उस वेश्या के निवास पर जा पहुँचा। बहुत दिनों तक उसने अपने सभी संस्कारों को भुला कर उस स्त्री के साथ भोग-विलास में लिप्त रहा। वो उसके रूप पर ऐसा मोहित हुआ कि उस वेश्या को वो अपने घर पर ले कर आ गया।

उसके पिता और स्त्री को उसके इस बलदे रूप पर विश्वास नहीं हुआ। अजामिल ने धर्म से स्वयं को विमुख कर लिया और उस वेश्या के साथ सदैव भोग-विलास में लिप्त रहने लगा। जब पानी सर से ऊपर चला गया तो उसके पिता ने उसे उसके कृत्य के लिए झिड़का और उसे आज्ञा दी कि वो तत्काल उस स्त्री को घर से निकाल दे। किन्तु अजामिल ने उलट अपने पिता और अपनी नवविवाहिता पत्नी को धक्के दे कर उन्ही के घर से निकाल दिया।

अब तो वो और स्वछन्द रूप से भोग-विलास में रम गया। उसके पास जो धन था वो सारा समाप्त हो गया किन्तु उस वेश्या की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए वो ब्राह्मण पुत्र चोरी, डकैती एवं हत्या जैसा जघन्य अपराध करने से भी ना चूका। धीरे-धीरे वही उसका व्यवसाय बन गया। समय बीता और उस वेश्या से अजामिल को ९ पुत्र प्राप्त हुए और पुनः वो गर्भवती हुई। 

अजामिल उस पूरे प्रदेश में अपने कुकर्मों के कारण कुख्यात हो गया। एक बार ऋषियों का एक समूह उस गांव में आया। मार्ग में उन्होंने वहां के निवासियों से पूछा कि वो कहाँ रात्रि व्यतीत कर सकते हैं। तब लोगों ने मजाक ही मजाक में उन्हें अजामिल के घर ये बोल कर भेज दिया कि वो बड़ा सच्चरित्र व्यक्ति है। उसके वास्तविक कर्मों से अनभिज्ञ जब वे ऋषि अजामिल के घर पहुंचे तो वो लूट-पाट के लिए बाहर गया हुआ था। 

उसकी अनुपस्थिति में उसकी गर्भवती स्त्री ने ऋषियों को भोजन कराया और कहा कि वो जल्द खाकर वहाँ से चले जाएँ अन्यथा यदि अजामिल वापस आ गया तो बहुत बिगड़ेगा। अब ऋषियों को अजामिल की सच्चाई मालूम पड़ी, किन्तु उसका उद्धार करने के लिए उन्होंने कहा कि अब इतनी रात्रि वो कहाँ जायेंगे, इसलिए आज भर उन्हें वही रहने दिया जाये। 

जब अजामिल वापस आया तो अपने घर पर ऋषियों का झुण्ड देख कर बहुत क्रोधित हुआ। उसने उन सभी को मार कर वहां से भगाना चाहा किन्तु उसकी स्त्री ने उसे ये कह कर रोक दिया कि केवल एक ही रात की बात है इसीलिए उन्हें वही रहने दे। उसकी बात मानकर अजामिल ने उन ऋषियों के एक रात अपने घर में रहने की आज्ञा दे दी।

अगले दिन सूर्योदय होते ही अजामिल ने सभी ऋषियों को वहां से जाने को कहा। तब ऋषियों ने कहा कि क्या वो उन्हें कुछ दक्षिणा दे सकता है? अब अजामिल तो खुद चोर ठहरा, उन्हें धन कहाँ से देता। उसने सीधे-सीधे बोल दिया कि उसके पास उन्हें दक्षिणा में देने के लिए कुछ नहीं है। तब ऋषियों ने कहा कि दक्षिणा में उन्हें धन नहीं चाहिए, बस वो अपने होने वाले पुत्र का नाम नारायण रख दे। 

अजामिल को लगा वो तो सस्ते में छूटा। उसे अपनी संतान का कुछ तो नाम रखना ही था, अब वो नारायण हो या कुछ और उससे क्या फर्क पड़ता है? उन ऋषियों से छुटकारा पाने के लिए उसने उन्हें वचन दे दिया कि वो अपने होने वाली संतान का नाम नारायण ही रखेगा। समय आने पर उसकी स्त्री ने १०वें पुत्र को जन्म दिया और वचन के अनुसार अजामिल ने उसका नाम नारायण रख दिया। 

अब दैव योग से वो पुत्र अजामिल का सबसे प्रिय हो गया। समय का चक्र यूँ ही चलता रहा और अजामिल अपने पाप कर्म में लिप्त रहा। समय बीता और अजामिल वृद्ध हो गया। जब उसका अंत समय आया तो अजामिल के कर्मों के अनुसार उसे नर्क में ले जाने के लिए भयानक यमदूत उसके सामने उपस्थित हुए। मृत्युशैय्या में पड़ा अजामिल उन भयानक दूतों को देख कर भयभीत हो गया और जोर से अपने पुत्र को नारायण-नारायण कह पुकारने लगा।

जैसे ही यमदूतों ने अजामिल पर अपना पाश फेंका, उसी समय विष्णुदूत वहां पहुँचे और युद्ध कर उन यमदूतों से अजामिल को छुड़ाया। इस पर यमदूतों ने उनसे पूछा कि वो उसे क्यों बचा रहे हैं? अजामिल ने जीवन भर पाप के अतिरिक्त कुछ और किया ही नहीं है और इसके कर्मों के अनुसार यमराज की आज्ञा से वे उसे नर्क ले जाने आये हैं।

तब विष्णुदूतों ने कहा कि भले ही अजामिल ने जीवन भर पाप किया किन्तु अज्ञानतावश ही सही, उसने अपने अंत समय में श्रीहरि के नाम का स्मरण किया है, अतः वे किसी भी मूल्य पर उसे नर्क जाने नहीं दे सकते। अब तो दोनों पक्षों में अपने-अपने तर्कों के आधार पर विवाद हो गया किन्तु विष्णुदूतों ने यमदूतों को उसे नर्क ले जाने नहीं दिया।

थक कर यमदूत यमराज के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। तब यमराज ने हँसते हुए कहा कि विष्णु दूत सही कह रहे हैं। चूंकि अजामिल ने अनजाने में ही सही, किन्तु भगवान विष्णु का नाम लिया है, उसे स्वतः ही एक वर्ष का जीवन और मिल गया है। अब इस एक वर्ष के जीवन में उसके किये कर्म के अनुसार उसे स्वर्ग अथवा नर्क प्राप्त होगा। 

उधर अजामिल ने जब ये देखा तो सोचने लगा कि यदि केवल एक बार श्रीहरि के नाम लेने का ये प्रभाव है तो क्या होता यदि वो जीवन भर उनकी भक्ति में रमा रहता? उसे बहुत पश्चाताप हुआ और उसने अपने बचे हुए १ वर्ष में स्वयं को विष्णु भक्ति में लगा दिया। वो सोते-जागते सदैव नारायण की ही भक्ति में ही डूबा रहता था।

१ वर्ष बाद जब उसकी आयु पूर्ण हुई तो यमदूत पुनः उसे लेने आये किन्तु इस बार उन्होंने बड़ी नम्रता से अजामिल को अपने साथ स्वर्ग चलने को कहा। अंततः जीवन पर्यन्त केवल पाप कर्म करने वाला अजामिल केवल श्रीहरि के नाम का स्मरण करने के कारण स्वर्ग को प्राप्त हुआ। ये कथा भागवत पुराण में दी गयी है जिससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि भगवत भजन का क्या पुण्य प्राप्त होता है। 

जय श्रीहरि।

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