इन्होने भी जुआ खेला पर पत्नी को दांव पर नहीं लगाया

इन्होने भी जुआ खेला पर पत्नी को दांव पर नहीं लगाया
कुछ समय पहले हमने नल-दमयंती पर एक लेख प्रकाशित किया था। उसी कथा में हमें एक ऐसी घटना का वर्णन मिलता है जो महाभारत के द्युत सभा की कथा से बहुत मिलती जुलती है। ये तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत में द्युत के समय युधिष्ठिर ने अपने चारो भाइयों और फिर स्वयं को तो दांव पर लगाया ही, किन्तु इसके बाद वे रुके नहीं और अपनी पत्नी द्रौपदी को भी उन्होंने दांव पर लगा दिया।

आपको जान कर आश्चर्य होगा कि महाभारत से युगों पहले एक ऐसा अवसर आया था जब एक पति को अपनी पत्नी को दांव पर लगाने को बोला गया था किन्तु उन्होंने इस बात से साफ मना कर दिया। ये घटना नल-दमयंती की कथा में ही आती है। कथा के अनुसार जब कलि नल के मस्तक पर बैठ गया तो उस से वशीभूत होकर नल ने अपने भाई पुष्कर से चौसर खेलने को तैयार हो गए।

चूँकि नल चौसर के खेल में निपुण नहीं थे, और उस पर से उनपर कलि का पूरा प्रभाव था, वे बार बार चौसर में हारने लगे। ये देख कर उनकी पत्नी दमयंती और उनके मंत्रियों ने नल को बड़ा समझाया कि वे इस खेल को ना खेलें, लेकिन कलि के वशीभूत नल ने इस से मना कर दिया और चौसर का खेल जारी रहा। वो खेल कई महीनों तक चलता रहा और अंत में नल अपना धन, वैभव, राज-पाठ सब कुछ हार बैठे।

नल के भाई पुष्कर की कुदृष्टि दमयंती पर थी और वो उसे प्राप्त करना चाहता था। इसीलिए उसने नल से कहा कि वो अपनी पत्नी दमयंती को दांव पर लगाए। यदि वो जीत गया तो पुष्कर ने उससे जो कुछ भी जीता है वो उसे लौटा देगा। पुष्कर नल के साथ कई महीनों से चौसर का खेल खेल रहा था और उसे ये भी पता था कि कलि के प्रभाव के कारण ही नल बार-बार दांव हार रहा है लेकिन फिर भी चौसर का खेल छोड़ कर उठ नहीं रहा है। इसी कारण पुष्कर को ये पूरा विश्वास था कि नल दमयंती को भी दांव पर लगाने के लिए राजी हो जाएगा।

किन्तु यहाँ हमें नल का अपनी पत्नी के प्रति अद्भुत प्रेम और समर्पण की भावना देखने को मिलती है। ये सत्य था कि नल उस चौसर के खेल में बुरी तरह उलझ गए थे। ये भी सच था कि कलि उस समय नल के मस्तक पर बैठा था और उन्हें बुरे कर्म करने को प्रेरित कर रहा था। किन्तु जब बात अपनी पत्नी के सम्मान की आयी तो नल ने इससे किसी प्रकार का समझौता नहीं किया और उन्होंने दमयंती को दांव पर लगाने से साफ़ मना कर दिया। वो खेल छोड़ कर उठ गए और दमयंती के साथ उस नगर को छोड़ कर चल दिए।

लेकिन इसी कथा में हमें एक और विचित्र बात देखने को मिलती है कि जो नल कलि के प्रभाव में होने के बाद भी अपनी पत्नी को दांव पर लगाने से मना कर देते हैं, वही नल कलि का प्रभाव समाप्त होने के बाद भी अंत में जाकर अपनी पत्नी को दांव पर लगाते हैं। पर यदि आप पूरी कथा पढ़ेंगे तो आपको ये पता चलेगा कि उन्होंने ऐसा अपनी पत्नी के सम्मान और अपने राज-पाठ को वापस पाने के लिए ही किया और वो भी तब जब उन्हें निश्चित पता था कि विजय उनकी ही होगी।

इस कथा के अनुसार नल ने आगे चलकर महाराज ऋतुपर्ण से, जो उस समय त्रिलोक में द्युत विद्या के सबसे बड़े विद्वान थे, चौसर की सारी विद्या सीख ली थी। वो एक तरह से विद्याओं का आदान-प्रदान था जहाँ ऋतुपर्ण ने नल से उनकी सारथि विद्या सीखी और उसके बदले में नल ने उनसे चौसर की विद्या का ज्ञान प्राप्त किया। उस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद नल त्रिलोक में चौसर विद्या के सबसे बड़े विद्वान बन गए।

इसके बाद उन्होंने वापस अपने राज्य में जाकर पुष्कर को द्युत के लिए ललकारा। उन्होंने कहा कि वे पुष्कर के साथ केवल एक दांव ही खेलना चाहते हैं। पुष्कर उन्हें पहले की भांति ही द्युत विद्या में अनाड़ी समझ रहा था। उसे ये पता नहीं था कि ऋतुपर्ण ने नल को चौसर विद्या का समस्त ज्ञान दे दिया है। इसी कारण उसने एक बार फिर दमयंती को प्राप्त करने के लिए नल से कहा कि वो दमयंती को दांव पर लगाए। यदि वो जीत जाएंगे तो वो उनका सारा राज-पाठ उन्हें लौटा देगा।

हालाँकि नल उस समय भी अपनी पत्नी को दांव पर नहीं लगाना चाहते थे किन्तु अब वे जानते थे कि पुष्कर को चौसर में हराना उनके बाएं हाथ का खेल है। इसीलिए अपनी विजय को सर्वथा निश्चित जान कर नल ने दमयंती को दांव पर लगा दिया। ये देख कर पुष्कर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने समझा कि दमयंती तो अब उसकी हो ही गयी किन्तु उस खेल में नल ने पुष्कर को आसानी से हरा दिया और अपना सारा राज-पाठ पुनः प्राप्त कर लिया।

यहाँ इस कथा और महाभारत में नल और युधिष्ठिर द्वारा अपनी-अपनी पत्नियों को दांव पर लगाने में जमीन आसमान का अंतर है। महाभारत में युधिष्ठिर उस होने वाले दांव का परिणाम नहीं जानते थे। या ये कहा जाये कि वो जानते थे कि वे शकुनि से किसी भी स्थति में जीत नहीं सकते, फिर भी उन्होंने दांव पर अपनी पत्नी द्रौपदी को लगा दिया और उसे हार गए। वो हार द्रौपदी के घोर अपमान का कारण बनी।

किन्तु यदि हम नल की बात करें तो जब उन्हें ये नहीं पता था कि होने वाले दांव को वो जीतेंगे या हारेंगे, अर्थात जब नल होने वाले दांव का परिणाम नहीं जानते थे, उस स्थिति में उन्होंने किसी भी हालत में अपनी पत्नी को दांव पर नहीं लगाया। किन्तु जब उन्हें दांव का परिणाम निश्चित पता था कि वही जीतेंगे, तभी उन्होंने अपनी पत्नी को दांव पर लगाया।

यहाँ हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि द्युत क्रीड़ा के समय युधिष्ठिर पर किसी माया का असर नहीं था। वे स्वेच्छा से और अपनी पूरी कुशलता से वो खेल खेल रहे थे। इसके अतिरिक्त द्रौपदी केवल उनकी पत्नी नहीं थी, फिर भी उन्होंने उसे दांव पर लगा दिया। किन्तु वहीँ नल पूरी तरह से कलि के वश में थे, किन्तु उस स्थिति में भी उन्होंने दमयंती को दांव पर नहीं लगाया। इससे हमें नल का दमयंती के प्रति समर्पण का पता चलता है।

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