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बोनालु और पोथराजू

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बोनालु तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जो आषाढ़ महीने में माता काली के एक रूप जिसे स्थानीय भाषा में येल्लम्मा कहा जाता है, उनके सम्मान में मनाया जाता है। विशेषकर इसे हैदराबाद और सिकंदराबाद में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। तीन हफ़्तों तक हर रविवार चलने वाला ये त्यौहार मनुष्यों द्वारा माता की कृपाओं का आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।

शास्त्रों में कितने प्रकार के विवाह बताये गए हैं?

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हिन्दू धर्म में विवाह को १६ संस्कारों में से एक माना गया है। आम और पर लोगों को एक ही प्रकार के विवाह के विषय में पता होता है। कुछ लोग, जिन्होंने अपने धर्म ग्रंथों का थोड़ा अध्ययन किया है, उन्हें गन्धर्व विवाह के बारे में भी थोड़ी जानकारी होती है। किन्तु आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे शास्त्रों में एक दो नहीं बल्कि आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन दिया गया है। महाभारत में भी दुष्यंत और शकुंतला प्रसंग में हमें इन विवाहों के विषय में पता चलता है।

वर्ष में दो बार नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

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आपमें से कई लोगों को ये पता होगा कि नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाई जाती है। हालाँकि बहुत ही कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में वर्ष में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है। अर्थात हर तिमाही में एक बार नवरात्रि मनाई जाती है। आइये पहले इन चारों नवरात्रियों के नाम और समय को जान लेते हैं:

दीपावली क्यों मनाई जाती है?

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आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। हर वर्ष दीपावली हमारे जीवन में हर्षोल्लास लेकर आती है, आशा है इस वर्ष भी ऐसा ही हो। वैसे तो ना केवल भारत में, बल्कि अनेक देशों में भी दिवाली का सांस्कृतिक महत्त्व बहुत अधिक है किन्तु आज हम इस पर्व के धार्मिक महत्त्व को जानेंगे। आइये उन कुछ विशेष कारणों को देखते हैं जिनके कारण दीपावली का पर्व मनाया जाता है।

महालया

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सर्वप्रथम आप सभी महालया पर्व की हार्दिक शुभकामनायें। कल से महालया आरम्भ हो गया है। महालया उत्तर भारत, विशेष कर बंगाल का एक अति महत्वपूर्ण पर्व है। ये एक संस्कृत शब्द है जो "महा+आलय" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है "महान आवास" । ये पर्व हर पितृ पक्ष समाप्त होने के अगली अमास्या को पड़ता है और इसी दिन के साथ दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि का आरम्भ माना जाता है। महालया के अगले दिन ही नवदुर्गा  के पहले रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

महाकुंभ

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हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में हरिद्वार में कुंभ पर्व मनाया जा रहा है।सत्य सनातन धर्म में कुंभ पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। पुराणों के अनुसार हिमालय के उत्तर में क्षीरसागर है, जहां देवासुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। मंथन दंड था- मंदर पर्वत, रज्जु था वासुकि तथा स्वयं विष्णु ने कूर्म रूप में मंदर को पीठ पर धारण किया था। समुद्र मंथन के समय क्रमश: पुष्पक रथ, ऐरावत , परिजात पुष्प, कौस्तुभ, सुरभि, अंत में अमृत कुंभ को लेकर स्वयं धन्वंतरि प्रकट हुए थे।

धनतेरस क्यों मनाया जाता है? कौन हैं देव धन्वन्तरि?

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आप सबको धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें। आज का दिन देवताओं के वैद्य माने जाने वाले श्री धन्वन्तरि को समर्पित है। इसी दिन ये समुद्र मंथन से अपने हाथोँ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। कलश के साथ प्रकट होने के कारण ही आज के दिन धातु (सोना, चाँदी) एवं बर्तनों को खरीदने की परंपरा आरम्भ हुई। देव धन्वन्तरि को भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक माना जाता है।

पुत्रदा एकादशी

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हिन्दू धर्म में एकादशी का बड़ा महत्त्व है। प्रत्येक मास दो बार एकादशी होती है और इस प्रकार वर्ष में कुल २४ एकादशी होती है। मलमास अथवा अधिकमास की अवस्था में दो एकादशी और बढ़ जाती है और कुल २६ एकादशी होती है। पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं और इसका सभी एकादशियों में विशेष स्थान है। इस वर्ष ६ जनवरी को पुत्रदा एकादशी पड़ रही है जिसका मुहूर्त प्रातः ३:०७ से लेकर अगले दिन ७ जनवरी प्रातः ४:०२ तक है।

सबसे पहली छठ पूजा

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आप सभी को खरना की शुभकामनायें। कल से छठ महापर्व का शुभारम्भ हो चुका है। नहाय खाय (कद्दू भात) से आरम्भ होने वाला ये महापर्व खरना, संध्या अर्ग एवं प्रातः अर्ग पर समाप्त होता है। छठ माई की कोई तस्वीर आपको नहीं मिलेगी क्यूंकि ये स्वयं सृष्टि देवी का अवतार मानी जाती है। साथ ही ये पर्व किसी लिंग विशेष के लिए नहीं है अपितु स्त्री और पुरुष दोनों इस व्रत को रख सकते हैं।

यम द्वितीया

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कल आप सबने यम द्वितीया का पर्व मनाया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पड़ने के कारण ही इस पर्व का नाम यम द्वितीया पड़ा है। इस नाम का एक कारण ये भी है कि ये पर्व दीपावली के दो दिनों के बाद आता है। इसी को भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है। भाई दूज का महत्त्व रक्षा बंधन के समान ही है जिसमे बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके वज्र के समान शक्तिशाली होने की कामना करती हैं। बदले में भाई भी अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।

गोवर्धन पूजा

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गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो दीपावली के दो दिन के बाद मनाया जाता है। उत्तरप्रदेश के ब्रज, गोकुल और वृन्दावन में तो दीवाली के अगले दिन से ही गोवर्धन पूजा का आरम्भ हो जाता है। उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और मध्यप्रदेश में इस पूजा को धूम धाम से मनाया जाता है। इसका एक नाम अनंतकूट भी है और बिहार में इस पर्व को भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा के साथ ही मनाया जाता है। बिहार में इसे अपभ्रंश रूप से "गोधन पूजा" भी कहा जाता है।

नरक चतुर्दशी

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आज नरक चतुर्दशी का त्यौहार है, जिसे  नरक चौदस भी कहा जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को, दीवाली से एक दिन पहले ये त्यौहार आता है और इसी कारण इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं। इसके कई और नाम हैं - काली चौदस, रूप चौदस, नर्क निवारण चतुर्दशी, भूत चतुर्दशी, नर्का पूजा इत्यादि। कहते हैं कि इस दिन प्रातः काल तेल की मालिश कर के स्नान करने पर नर्क की यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीप दान किया जाता है जिससे यमराज प्रसन्न होते हैं। 

शरद पूर्णिमा

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कल शरद पूर्णिमा का पर्व है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। आश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद का एक अर्थ चन्द्रमा भी है और इस दिन चाँद की किरणों का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र की किरणों में स्वयं अमृत समाहित होता है। यही कारण है कि आज के दिन गावों में लोग खुले आकाश एवं चांदनी के नीचे सोते हैं। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रौशनी में रहने से कई प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं। 

रक्षा बंधन

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आप सभी को रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें। रक्षाबंधन एक अति प्राचीन पर्व है जो हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के हाथ में रेशम के धागों का एक सूत्र बाँधती है और उसकी रक्षा की कामना करती है। बदले में भाई भी सदैव अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। ये साधारण सा बंधन भाई एवं बहन की रक्षा की कड़ी है और इसी कारण इसे रक्षा बंधन के नाम से जाना जाता है। सांस्कृतिक रूप से तो इसका बहुत महत्त्व है पर आज हम इसके धार्मिक महत्त्व को जानेंगे।

सोलह संस्कार

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शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हमारे लिए आवश्यक माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन में हर व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सोलह संस्कारों का पालन करना चाहिए। यह संस्कार व्यक्ति के जन्म से आरम्भ होते हैं और मृत्यु तक अलग-अलग समय पर किए जाते हैं। इन संस्कारों की व्याख्या प्राचीन काल से अलग-अलग काल में कई महर्षियों ने की थी पर वर्तमान समय में जो हम १६ संस्कार की बात करते हैं तो महाभारत काल में महर्षि वेदव्यास द्वारा प्रतिपादित है। 

संध्यावंदन एवं उपचार

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हिन्दू धर्म में पूजा एवं संध्यावंदन का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रतिदिन संध्यावंदन करने से मनुष्य को इष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है और साथ ही ये हमें शांति भी प्रदान करती है। हिन्दू धर्म में सन्ध्योपासना के ५ प्रकार बताये गए हैं जो इस प्रकार हैं: संध्या वंदन प्रार्थना  ध्यान  कीर्तन  आरती

पूजा सम्बंधित १० महत्वपूर्ण जानकारियाँ

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पूजागृह में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र या दो शालिग्राम का पूजन नहीं करना चाहिए।  घर में ९ इंच (२२ सेंटीमीटर) या उससे छोटी प्रतिमा होनी चाहिए। इससे बड़ी प्रतिमा घर के लिए शुभ नहीं होती है। उसे मंदिर में ही स्थापित करना चाहिए।

मौनी अमावस्या

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मौनी अमावस्या का वर्णन कुम्भ के सन्दर्भ में मिलता है। जब अमृत को बचाने के लिए जब धन्वन्तरि कलश लेकर भागे, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर ४ स्थानों पर गिरी जहाँ आज कुम्भ का आयोजन किया जाता है। वे हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। मौनी अमावस्या को अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मौन रहकर स्नान करने की प्रथा बहुत पुरानी है।

शाकम्भरी जयंती

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दुर्गम नाम का एक दैत्य था। हिरण्याक्ष के वंश में वह पैदा हुआ था और उसके पिता का नाम रुरु था। वो देवताओं से शत्रुता रखता था और देवताओं को कष्ट देने के लिए उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप आरम्भ कर दिया। तपस्या का फल देने आए ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस दैत्य ने ब्रह्मा जी से कहा सारे वेद मंत्र मेरे आधीन हो जाए। ब्रह्मा जी उसे तपस्या का वरदान देते हुए अंतर्ध्यान हो गए।

नागवंश और नागपूजा - आधुनिक दृष्टिकोण

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नागवंश और नागपूजा का इतिहास भारत में बहुत ही पुराना है। नागों को महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री क्रुदु की संतान माना गया है जिनके १००० पुत्र हुए जिनसे १००० नागवंशों की स्थापना हुई, जिनमे से ८ सबसे प्रमुख हैं। नागों के ८ प्रमुख कुलों के विषय में एक लेख पहले ही प्रकाशित हो चुका है, उसके विषय में  यहाँ पढ़ें।