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जन्मेजय के सर्पयज्ञ में मारे गए मुख्य-मुख्य नागों के नाम

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हम सभी परीक्षित पुत्र जन्मेजय द्वारा किये गए सर्पयज्ञ के विषय में जानते ही हैं। सर्पयज्ञ और उसके इतिहास के विषय में विस्तृत लेख हम कभी और प्रकाशित करेंगे। इस लेख में हम उस सर्पयज्ञ में भस्म हुए मुख्य-मुख्य नागों के विषय में जानेंगे। इन सभी नागों का वर्णन महाभारत के आदि पर्व के अंतर्गत सर्पनामकथनविषयक पर्व में दिया गया है।

सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माण्ड से किन-किनकी उत्पत्ति हुई?

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जब हम व्यास महाभारत पढ़ते हैं तो उसके पहले ही पर्व, आदिपर्व के अनुक्रमाणिका पर्व के श्लोक २१ में हमें ब्रह्माण्ड की उत्पति और फिर उस ब्रह्माण्ड से जिन-जिन लोगों की उत्पत्ति हुई, उसका वर्णन मिलता है। इससे हमें सृष्टि के आरम्भ का एक सार मिल जाता है।

विश्वकर्मा

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कदाचित ही संसार में कोई ऐसा होगा जो देव विश्वकर्मा के नाम से परिचित नहीं होगा। यदि रचना की बात की जाये तो परमपिता ब्रह्मा के बाद यदि कोई नाम है तो वो विश्वकर्मा ही हैं। अन्य देवताओं से उलट, विश्वकर्मा जी का वर्णन लगभग हर पुराणों में हमें कहीं ना कहीं मिलता है। यहाँ तक कि वैदिक ग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में उनका विस्तृत वर्णन किया गया है।

जटायु के अनुसार समस्त प्रजापतियों और कश्यप ऋषि से उत्पन्न सभी जातियों का वर्णन

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कुछ समय पहले हमने महर्षि कश्यप द्वारा समस्त जातियों के वर्णन के बारे में एक वीडियो प्रकाशित क्या था। उसमें हमें ज्ञात हुआ कि महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १३ (कहीं-कहीं १७) कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। रामायण में भी हमें सभी प्रजापतियों और जातियों की उत्पत्ति के बारे में विस्तृत सन्दर्भ मिलता है, हालाँकि वहां वर्णन पुराणों से थोड़ा अलग है।

गरुड़ एवं नागों में शत्रुता क्यों थी?

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कुछ समय पहले हमें महर्षि कश्यप और उनकी सभी पत्नियों से मुख्य जातियों की उत्पत्ति के विषय में एक वीडियो बनाया था जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। संक्षेप में महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिनसे १७ प्रमुख जातियों की उत्पति हुई। इसी कारण महर्षि कश्यप प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं। इनकी दो-दो पत्नियों से जो पुत्र हुए उनके बीच की शत्रुता प्रसिद्ध है।

गोत्र क्या होता है? समान गोत्र में विवाह क्यों नहीं होता?

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गोत्र की अवधारणा हिन्दू धर्म में सदा से है। ये हिन्दू धर्म के सबसे जटिल विषयों में से एक है। गोत्र को अति प्राचीन माना गया है। यहाँ तक कि ऐसा कहा गया है कि गोत्र पहले आये और फिर वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ हुई। अर्थात गोत्र की अवधारणा वर्ण व्यवस्था से भी प्राचीन है।

बृहद्बल - श्रीराम के वो वंशज जिन्होंने महाभारत युद्ध में भाग लिया

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महाभारत के सन्दर्भ में एक प्रश्न बहुत प्रमुखता से पूछा जाता है कि क्या महाभारत के समय ऐसा कोई राजा था जो श्रीराम के वंश से सम्बंधित हो। तो इसका उत्तर है हाँ। महाभारत काल में श्रीराम के वंश के एक राजा थे जिन्होंने युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। उनका नाम था बृहद्बल ।

देवगुरु बृहस्पति

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परमपिता ब्रह्मा के १६ मानस पुत्रों और सप्तर्षियों में से एक थे महर्षि अंगिरस । इन्होने महर्षि मरीचि की पुत्री सुरूपा से विवाह किया किन्तु बहुत काल तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई। तब महर्षि अंगिरस ने अपने पिता ब्रह्मा से प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने उन्हें पुंसवन नामक व्रत को करने का निर्देश दिया। सुरूपा ने सनत्कुमारों से इस व्रत की जानकारी ली जिससे उन्हें तीन पुत्र प्राप्त हुए - संवर्त , उतथ्य एवं जीव ।

असुर, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच और बेताल में क्या अंतर है?

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हिन्दू धार्मिक कथाओं को पढ़ते कई बार असुर, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच और बेताल का वर्णन आता है। आम तौर पर हम इन सभी को एक ही मान लेते हैं और इसका उपयोग एक पर्यायवाची शब्द के रूप में करते हैं, किन्तु ये सभी अलग-अलग हैं। आइये इन सभी के बीच के अंतर को जान लेते हैं।

विश्वामित्र और परशुराम में क्या सम्बन्ध था?

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महर्षि विश्वामित्र और भगवान परशुराम के विषय में कौन नहीं जानता? किन्तु क्या आपको पता है कि ये दोनों आपस में सम्बन्धी भी थे? क्या आपको पता है कि इन दोनों में कौन बड़े थे? यदि आपने भगवान परशुराम पर लिखे गए हमारे लेख को पढ़ा होगा तो आपको पता होगा कि इन दोनों में क्या सम्बन्ध था। आइये इस विषय में कुछ जानते हैं।

रावण का परिवार

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रावण के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं, किन्तु रावण के परिवार के विषय में बहुत लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। आज इस लेख में हम संक्षेप में रावण के परिवार के विषय में जानेंगे। ध्यान दें कि यहाँ केवल रावण के व्यक्तिगत परिवार का विवरण दिया जा रहा है। सम्पूर्ण राक्षस वंश के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

कुश का वंश

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श्रीराम के वंश का विस्तृत वर्णन धर्मसंसार पर पहले ही प्रकाशित हो चुका है। श्रीराम के दो पुत्र हुए - लव और कुश । निर्वाण लेते समय श्रीराम ने अपने साम्राज्य को स्वयं और अपने अनुज पुत्रों में समान रूप से बाँट दिया। लव को जो राज्य मिला उसका नाम उन्होंने लव नगर रखा। आज पाकिस्तान का लाहौर ही वो नगर था।

यदुवंश

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इस वेबसाइट का पहला लेख मैंने कुरुवंश  (पुरुवंश) से किया था। श्रीकृष्ण का लेख लिखने में बहुत देर हो गयी। श्रीकृष्ण के वंश की शाखा भी उन्ही चक्रवर्ती सम्राट ययाति से चली जिनसे पुरु का वंश चला। पुरु ययाति के सबसे छोटे पुत्र थे और यदु सबसे बड़े। हालाँकि ययाति के श्राप के कारण सबसे प्रसिद्ध राजवंश पुरु का ही रहा जिसमें दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु और युधिष्ठिर जैसे महान सम्राट हुए। ययाति के अन्य पुत्रों का वंश भी चला किन्तु चक्रवर्ती सम्राट केवल पुरु के वंश में ही हुए।

महाराज जनक का वंश

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सारी सृष्टि परमपिता ब्रह्मा से आरम्भ हुई।  ब्रह्मा के पुत्र सप्तर्षियों में एक महर्षि मरीचि हुए।  मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप हुए जिनसे सभी प्रकार के प्राणियों का जन्म हुआ। 

भगवान शिव के सभी पुत्र एवं पुत्रियाँ

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वैसे तो जब शिवपुत्र की बात आती है तो हमारे ध्यान में कार्तिकेय और गणेश ही आते हैं। वैसे तो भगवान शिव के किसी भी पुत्र ने माता पार्वती के गर्भ से जन्म नहीं लिया है किन्तु फिर भी कार्तिकेय और गणेश को शिव-पार्वती का ही पुत्र माना जाता है और इनकी प्रसिद्धि सबसे अधिक है। इन दोनों के अतिरिक्त महादेव की एक कन्या है अशोक सुंदरी। किन्तु कुछ अन्य भी हैं जिन्हे महादेव के पुत्र और पुत्रियाँ होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ हम महादेव के अवतारों को नहीं जोड़ रहे हैं। तो आइये उनके बारे में कुछ जानते हैं:

राक्षस वंश का वर्णन

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पुराणों के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के शरीर से जल की उत्पत्ति हुई। उसी जल से दो जातियों की उत्पत्ति हुई जिन्होंने ब्रह्मदेव से पूछा कि उनकी उत्पत्ति क्यों हुई है? तब ब्रह्मा ने उनसे पूछा कि तुममे से कौन इस जल की रक्षा करेगा। उनमे से एक ने कहा कि हम इस जल की रक्षा करेंगे, वे "राक्षस" कहलाये। दूसरे ने कहा वे उस जल का यक्षण (पूजा) करेंगे, वे यक्ष कहलाये। तब ब्रह्मदेव ने दो राक्षसों हेति-प्रहेति  की उत्त्पति कि जिससे आगे चल कर राक्षस वंश चला। आगे चल कर इस वंश में एक से एक पराक्रमी योद्धाओं ने जन्म लिया जिसमे से सबसे प्रसिद्ध रावण है। आइये राक्षस वंश पर एक दृष्टि डालते हैं:

श्रीकृष्ण का पूर्वजन्म

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जब कंस ने ये सुना कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी तब उसने उसे मारने का निश्चय किया। बाद में इस शर्त पर कि देवकी और वसुदेव अपनी सभी संतानों को जन्म लेते ही उसके हवाले कर देगी, उसने दोनों के प्राण नहीं लिए किन्तु दोनों को कारागार में डाल दिया। एक-एक कर कंस ने दोनों के सात संतानों का वध कर दिया।

देवकी के आठों पुत्रों के नाम

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श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी हम सभी जानते हैं। जब कंस को ये पता चला कि उसकी चचेरी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा तो उसने देवकी को मारने का निश्चय किया। वसुदेव के आग्रह पर वो उन दोनों के प्राण इस शर्त पर छोड़ने को तैयार हुआ कि वे दोनों अपने नवजात शिशु को पैदा होते ही उसके सुपुर्द कर देंगे। दोनों ने उनकी ये शर्त ये सोच कर मान ली कि जब कंस उनके नजात शिशु का मुख देखेगा तो प्रेम के कारण उन्हें मार नहीं पाएगा।

पांडवों की सभी पत्नी और पुत्रों के नाम

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सभी जानते हैं कि द्रौपदी पाँचों पांडवों की पत्नी थी किन्तु उसके अतिरिक्त भी सभी पांडवों ने अन्य विवाह भी किये। हालाँकि द्रौपदी को पांडवों की पटरानी या ज्येष्ठ रानी कहा जाता है किन्तु वो कुरुकुल की पहली पुत्रवधु नहीं थी। पांडवों में सबसे पहले भीम का विवाह हिडिम्बा नमक राक्षसी से हुआ किन्तु राक्षसी होने तथा कुंती को दिए वचन के कारण भीम ने कभी उसे अपने साथ नहीं रखा और ना ही उसकी गणना कभी कुरुकुल की कुलवधू में हुई। द्रौपदी ने पाँचों पांडवों से विवाह किया और वे बारी-बारी एक वर्ष के लिए एक पांडव की पत्नी बनकर रहती थी।

भगवान चित्रगुप्त और कायस्थ वंश

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कायस्थों का स्त्रोत श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने चार वर्णो को बनाया (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र) तब यम जी ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी। फिर ब्रह्माजी ११००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो देखा कि "आजानुभुज करवाल पुस्तक कर कलम मसिभाजनम" अर्थात एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, पुस्तक तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया।