महर्षि विश्वामित्र हिन्दू धर्म के सर्वाधिक प्रसिद्ध, प्रभावशाली और शक्तिशाली ऋषियों में से एक हैं। वो हमारे धर्म के उन गिने चुने ऋषियों में से एक हैं जिन्होंने ऋषियों के सर्वोच्च पद, अर्थात ब्रह्मर्षि के पद को प्राप्त किया था। सबसे कमाल की बात ये है कि ब्रह्मर्षि के पद को प्राप्त करने वाले विश्वामित्र वास्तव में ब्राह्मण वर्ण के थे ही नहीं। वे जन्म से एक क्षत्रिय थे और उन्होंने अपने तप के बल पर ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। वे इस बात के ज्वलंत उदाहरण हैं कि हमारा धर्म जन्म नहीं बल्कि कर्म प्रधान है।
वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड (सम्पूर्ण) - मूल श्लोक और हिंदी अर्थ सहित
गच्छता मातुलकुलं भरतेन तदानघः।
शत्रुघ्नो नित्यशत्रुघ्नो नीतः प्रीतिपुरस्कृतः॥१॥
(पहले यह बताया जा चुका है कि) भरत अपने मामा के यहाँ जाते समय काम आदि शत्रुओं को सदा के लिये नष्ट कर देने वाले निष्पाप शत्रुघ्न को भी प्रेमवश अपने साथ लेते गये थे॥१॥
नरसिंह मंदिर (बीदर) - रहस्यलोक सा मंदिर
कुछ समय पहले मुझे अपने परिवार के साथ कर्णाटक में बीदर नामक स्थान पर जाने का अवसर मिला। ये स्थान एक गुरूद्वारे के कारण प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जब गुरु नानक अपनी यात्रा पर निकले थे तो वे यहाँ पर भी रुके थे। मैं उसी गुरूद्वारे में रुका और मुझे पता चला कि लगभग १५ किलोमीटर दूर भगवान नृसिंह का एक प्रसिद्ध मंदिर है। हमने वहां जाने का निश्चय किया।
वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड (सम्पूर्ण) - मूल श्लोक और हिंदी अर्थ सहित
ॐ तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्।
नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुंगवम्॥१॥
तपस्वी वाल्मीकिजी ने तपस्या और स्वाध्याय में लगे हुए विद्वानों में श्रेष्ठ मुनिवर नारदजी से पूछा-
क्या अंगद ने रावण को अपना पैर उखाड़ने की चुनौती दी थी?
रामायण में अंगद द्वारा रावण को अपना पैर हिलाने की चुनौती देने वाला प्रसंग रामायण के सबसे रोचक प्रसंगों में से एक है। संक्षेप में कथा ये है कि जब श्रीराम की सेना ने समुद्र में पुल बना कर लंका में प्रवेश किया तब उस युद्ध को रोकने के अंतिम प्रयास के रूप में श्रीराम ने रावण के पास संधि प्रस्ताव भेजने का विचार किया। हालाँकि सुग्रीव उनकी इस बात से सहमत नहीं थे, फिर भी श्रीराम की आज्ञा मान कर उन्होंने अंगद को अपना दूत बना कर रावण के पास भेजा।
महाराज सगर
राजा सगर भगवान श्रीराम के पूर्वज थे। इन्ही के पुत्रों की गलती के कारण माता गंगा को पृथ्वी पर आना पड़ा था। इनकी कथा हमें रामायण के बालकाण्ड के सर्ग ३८ में मिलती है जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति की कथा सुना रहे होते हैं।
बोनालु और पोथराजू
बोनालु तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जो आषाढ़ महीने में माता काली के एक रूप जिसे स्थानीय भाषा में येल्लम्मा कहा जाता है, उनके सम्मान में मनाया जाता है। विशेषकर इसे हैदराबाद और सिकंदराबाद में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। तीन हफ़्तों तक हर रविवार चलने वाला ये त्यौहार मनुष्यों द्वारा माता की कृपाओं का आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
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