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नरसिंह मंदिर (बीदर) - रहस्यलोक सा मंदिर

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कुछ समय पहले मुझे अपने परिवार के साथ कर्णाटक में बीदर नामक स्थान पर जाने का अवसर मिला। ये स्थान एक गुरूद्वारे के कारण प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जब गुरु नानक अपनी यात्रा पर निकले थे तो वे यहाँ पर भी रुके थे। मैं उसी गुरूद्वारे में रुका और मुझे पता चला कि लगभग १५ किलोमीटर दूर भगवान नृसिंह का एक प्रसिद्ध मंदिर है। हमने वहां जाने का निश्चय किया।

गरुड़

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ये तो हम सब जानते ही हैं कि महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। उन्ही में से दो कन्याएं थी - कुद्रू और विनता। कुद्रू ने महर्षि कश्यप से १००० और विनता ने केवल २ पराक्रमी पुत्रों का अनुरोध किया। महर्षि की कृपा से ऐसा ही हुआ। कुद्रू ने १००० और विनता ने २ अण्डों का प्रसव किया।

गंगा

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हिन्दू धर्म में गंगाजी का क्या महत्त्व है इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर ग्रन्थ में माता गंगा के विषय में कोई ना कोई वर्णन मिलता है। गंगा जी के बारे में सबसे पहला वर्णन हमें ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के १०वें मंडल के ७५वें सूक्त, जिसे नदीस्तुति सूक्त कहा जाता है, उसमें कई नदियों का वर्णन है और यहीं हमें गंगा का भी वर्णन मिलता है। इसी सूक्त के ५वें श्लोक में हमें गंगा और उनके साथ यहाँ ९ और नदियों का वर्णन है।

संभल के हरिहर मंदिर का पूरा इतिहास

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"पांच सदी से जमा रक्त जब शोले बनकर खौलेगा। कब्र से उठकर बाबर भी तब हरिहर हरिहर बोलेगा।"

जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दिया

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ये तो हम सभी जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र देवर्षि नारद श्रीहरि के सबसे बड़े भक्तों में से एक हैं। किन्तु श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड में हमें एक ऐसा प्रसंग मिलता है जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दे दिया। मानस में ये कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी और तब माता ने बड़े आश्चर्य से पूछा कि नारायण के सबसे बड़े भक्त नारद जी ने अपने ही स्वामी को किस प्रकार श्राप दे दिया।

विश्व का सबसे अमीर और रहस्य्मयी मंदिर - श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर

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आठवीं सदी में एक महान विष्णु भक्त थे जो सदैव श्रीहरि की साधना में लीन रहते थे। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि किसी भी प्रकार उन्हें श्रीहरि के महाविष्णु स्वरुप के दर्शन हो जाएँ। किन्तु हर दिन एक बालक उनकी तपस्या को भंग करने का प्रयास करता था। एक दिन जब वो बालक उन्हें परेशान करने आया तो उन्होंने उसे पकड़ लिया।

जब ब्रह्मदेव और देवर्षि नारद ने एक दूसरे को श्राप दे दिया

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ये तो हम सभी जानते हैं कि देवर्षि नारद परमपिता ब्रह्मा के ही मानस पुत्र हैं। हम ये भी जानते हैं कि देवर्षि नारद भगवान श्रीहरि के अनन्य भक्त हैं। इनके जन्म के विषय में भी आपने कई कथाएं सुनी होगी। किन्तु पुराणों में एक कथा ऐसी आती है कि इन्होने अपने पिता भगवान ब्रह्मा को और ब्रह्मा जी ने इन्हे परस्पर श्राप दे दिया था।

हयग्रीव कौन हैं और हिन्दू धर्म में कितने हयग्रीवों का वर्णन है?

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भगवान हयग्रीव श्रीहरि के २४ अवतारों में से एक हैं। हालाँकि हिन्दू धर्म में उनके अतिरिक्त हयग्रीव नाम के एक दानव, एक दैत्य और एक राक्षस भी हुए हैं, इसीलिए लोगों को ये शंका होती है कि वास्तव में हयग्रीव आखिरकार कितने थे? अलग-अलग पुराणों में भी हयग्रीव के विषय में अलग-अलग कथा दी गयी है जो इसे और भी जटिल बनाती है। तो चलिए इसे समझते हैं।

केवल सुख को ही अपना ध्येय मानने वाले - "चार्वाक"

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काम एवैकः पुरुषार्थः अर्थात: काम (भोग विलास) ही एकमात्र पुरुषार्थ है। इस एक वाक्य से आपको चावार्क दर्शन की मानसिकता समझ में आ जाएगी। हिन्दू धर्म में ९ मुख्य दर्शन बताये गए हैं। उनमें से छः दर्शन आस्तिकवादी हैं और ३ नास्तिकवादी। इन ३ नास्तिकवादी दर्शनों में भी जो चावार्क दर्शन है वो घोर भौतिकवादी है। अर्थात चावार्क दर्शन के अनुसार जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भोग विलास में लिप्त रहना है। किन्तु इससे पहले हम इस दर्शन को समझें, हमें चावार्क क्या है, ये जानना होगा।

क्या भगवान शंकर वास्तव में भस्म हो जाते यदि भस्मासुर उनके सर पर हाथ रख देता?

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हम सब ने भस्मासुर की कथा सुनी या पढ़ी है। उस पर बने कई फिल्म और टीवी सीरियल भी देख चुके हैं। इन आधुनिक कृतियों द्वारा जनमानस में जो सबसे बड़ी भ्रान्ति फैलाई जाती है वो ये है कि त्रिलोक के स्वामी महादेव भी किसी के डर से मारे मारे फिर सकते हैं। ये महादेव का घोर अपमान है। इस बारे में चर्चा करने से पहले भस्मासुर के विषय में जान लेते हैं।

जब श्रीहरि ने छल से माता पार्वती से बद्रीनाथ ले लिया

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बद्रीनाथ के धार्मिक महत्त्व के विषय में तो हम सभी जानते हैं। हम ये भी जानते हैं कि बद्रीनाथ भगवान विष्णु का निवास स्थान है। किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि बद्रीनाथ श्रीहरि से पहले महादेव का निवास स्थान हुआ करता था। इस विषय में एक बहुत ही रोचक कथा हमें पुराणों में मिलती है।

क्या है नौ प्रकार की भक्ति?

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हिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्त्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है।

भगवान विष्णु के 24 अवतार

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जब भी ईश्वर के अवतार की बात आती है तो भगवान विष्णु के अवतार सबसे प्रसिद्ध हैं। श्रीहरि के दशावतार तो खैर जगत विख्यात हैं किन्तु उनके कुल २४ अवतार माने जाते हैं। इन २४ अवतारों में से जो दशावतार हैं वे भगवान विष्णु के साक्षात् रूप ही हैं और अन्य १४ अवतार उनके लीलावतार माने जाते हैं। श्रीहरि के दशावतार का वर्णन विष्णु पुराण में विशेष रूप से दिया गया है। उनके २४ अवतारों का वर्णन श्रीमदभागवत और सुख सागर में दिया है। इस सूची में सभी दशावतार को रेखांकित किया गया है।

वट वृक्ष - वो पेड़ जिसे अमर माना जाता है

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वट वृक्ष हिन्दू धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और पवित्र वनस्पतियों में से एक है। अश्वत्थ (पीपल) एवं तुलसी के साथ वट वृक्ष, अर्थात बरगद के पेड़ की हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्ता है। हिन्दू धर्म के लगभग हर ग्रन्थ में वट वृक्ष के महत्त्व के विषय में लिखा गया है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं अपितु जैन और बौद्ध धर्म में भी वट वृक्ष की अद्भुत महत्ता बताई गयी है।

हिरण्यकशिपु

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परमपिता ब्रह्मा से सर्वप्रथम सात महान ऋषियों ने जन्म लिया जिन्होंने सप्तर्षि और प्रजापति का पद ग्रहण किया। इन्ही में से एक थे महर्षि मरीचि । उनकी पत्नी कला से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुए महर्षि कश्यप। महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उन्ही की संतानों से समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। इनकी ज्येष्ठ पत्नी अदिति से आदित्य और दूसरी पत्नी दिति से दैत्यों का जन्म हुआ।

जय और विजय - जिन्होंने श्रीहरि के भक्त बनने के स्थान पर उनका शत्रु बनना पसंद किया

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वैसे तो भगवान विष्णु के कई पार्षद हैं किन्तु जय-विजय उनमें से प्रमुख हैं। ये दोनों वैकुण्ठ के मुख्य द्वार के रक्षक हैं और श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय हैं। ये दोनों उप-देवता की श्रेणी में आते हैं और इन्हे गुण एवं रूप में श्रीहरि के समान ही बताया गया है। श्रीहरि की भांति ही ये भी अपने तीन हाथों में शंख, चक्र एवं गदा धारण करते हैं, पर इनके चौथे हाथ में तलवार होती है, वहीँ श्रीहरि अपने चौथे हाथ में कमल धारण करते हैं।

अजामिल - वो पापी जिसने स्वर्ग प्राप्त किया

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प्राचीन काल में अजामिल नामक एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण था। उसके पिता ने उसे बहुत अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए थे और वो भी सदैव अपने पिता की सेवा एवं ईश्वर की साधना में लगा रहता था। उसके पिता ऐसे आदर्श पुत्र को प्राप्त कर अपने आप को धन्य समझते थे। समय आने पर उन्होंने अजामिल का विवाह एक सुन्दर एवं सुशील ब्राह्मण कन्या से कर दिया। एक आदर्श पुत्र की भांति ही अजामिल एक आदर्श पति भी साबित हुआ और दोनों सुख पूर्वक रहने लगे।

शिवलिंग में "लिंग" शब्द का वास्तव में क्या अर्थ है?

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विगत कुछ समय से बहुत ही सुनियोजित ढंग से हमारे धर्मग्रंथों में लिखे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर कलुषित करने का प्रयास चल रहा है। कुछ चीजें ऐसी भी होती है जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाते और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आज के समय में शिवलिंग की जो एक अवधारणा है वो भी बहुत ही भ्रामक है। तो आइये इस लेख में हम शिवलिंग का वास्तविक अर्थ समझने का प्रयास करते हैं।

श्रीराम १२ एवं श्रीकृष्ण १६ कलाओं के साथ क्यों अवतरित हुए?

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ये तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी मनुष्य अथवा देवता की कुल १६ कलाएं होती हैं। १६ कलाओं पर एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित कर दिया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। भगवान विष्णु भी इन सभी १६ कलाओं के धारक हैं। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा को भी महादेव की कृपा से १६ कलाएं प्राप्त हैं और माता दुर्गा के पास भी कुल १६ कलाएं हैं। हालाँकि चंद्र एवं माँ दुर्गा की कलाएं श्रीहरि की कलाओं से भिन्न हैं।

सुदर्शन चक्र

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पुराणों में विभिन्न देवताओं के अनेक अस्त्र-शस्त्र का वर्णन दिया गया है। किन्तु जब भी बात दिव्यास्त्रों की आती है तो उसमें सुदर्शन चक्र का वर्णन प्रमुखता से किया जाता है। ये मूल रूप से भगवान विष्णु का अस्त्र है। उनके अतिरिक्त दशावतारों में भी कइयों ने इसे धारण किया, किन्तु उनमें से भी विशेष रूप से ये श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा है।