आज की पीढ़ी और शायद पुरानी पीढ़ी भी, जिन्होंने महाभारत को केवल टीवी सीरियलों में देखा है, उनमें से ९९% लोगों की ऐसी मान्यता है कि चूँकि महारथी कर्ण एक सूतपुत्र थे, इसी कारण द्रोपदी ने उनसे विवाह करने से मना कर दिया। लोग ऐसा मानते हैं कि जब महारथी कर्ण ने स्वयंवर में धनुष उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा ली, तब जैसे ही वो मछली को भेदने के लिए आगे बढे, द्रौपदी ने भरी सभा में ये घोषणा कर दी कि मैं एक सूतपुत्र के साथ विवाह नहीं करुँगी। इससे सबके सामने कर्ण का बड़ा अपमान हुआ।
किन्तु जिन्होंने महाभारत के टीवी पर नहीं बल्कि पुस्तकों में पढ़ा है, वे ये जानते हैं कि वास्तव में ऐसा कभी नहीं हुआ था। महाभारत की पुस्तकें जो आज हमारे बीच हैं, उनमें से दो सबसे बड़े पाठ, जिन्होंने मूल महाभारत के संस्कृत श्लोकों को हिंदी या अन्य भारतीय भाषा में अनुवाद किया है, वे हैं - उत्तरपाठ एवं दक्षिणात्य पाठ। दोनों में से दक्षिणात्य पाठ को अधिक वृहद् माना जाता है। इन दोनों के अतिरिक्त कुछ और संस्करण जिन्हे प्रामाणिक माना जाता है वे हैं - बोरी (भंडारकर) महाभारत और नीलकण्ठी पाठ। इनके अतिरिक्त भी हमारे पास और अनुवाद हैं।
अब कर्ण द्वारा धनुष को उठा कर उसपर प्रत्यंचा चढाने और लक्ष्य को भेदने की जो कथा है, वो हमें केवल उत्तरपाठ में, और उसके भी कुछ अप्रमाणिक संस्कारों में मिलती है। इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य महाभारत संस्करण में हमें कर्ण द्वारा धनुष पर प्रत्यंचा चढाने का कोई वर्णन नहीं मिलता। दक्षिणात्य पाठ, भंडारकर प्रति और नीलकण्ठी पाठ के अनुसार स्वयंवर में कर्ण ने धनुष को अवश्य उठा लिया था लेकिन वो उसपर प्रत्यंचा चढाने में सफल ही नहीं हो पाया। तो जब कर्ण धनुष पर प्रत्यंचा ही नहीं चढ़ा सका, तो द्रौपदी उसका अपमान कैसे कर सकती है?
यहाँ पर एक प्रश्न ये आता है कि फिर द्रौपदी के द्वारा कर्ण के अपमान किये जाने का वर्णन पहली बार आया कहाँ से? तो इस भ्रामक जानकारी का स्रोत भी वही पुस्तक है जो आज कल कर्ण के विषय में फैले ९९% गलत जानकारियों का स्रोत है। उसका नाम है श्री शिवजी सावंत द्वारा लिखित प्रसिद्ध उपन्यास मृत्युंजय। ये उपन्यास इतनी बुरी तरह गलत जानकारियों से भरा हुआ है जिसकी कोई और तुलना नहीं है। इस उपन्यास के बारे में हम कभी और विस्तार से चर्चा करेंगे।
इसी उपन्यास के अनुसार कर्ण ने बिना किसी श्रम के धनुष उठा लिया और उसपर प्रत्यंचा चढ़ा कर लक्ष्य भेद को तैयार हुआ। वो बाण चलाने ही वाला था कि बीच में ही द्रौपदी बोल उठी कि वो किसी सूतपुत्र से विवाह नहीं करेगी। तब वहां बड़ा कोलाहल हुआ और श्रीकृष्ण के बीच-बचाव के कारण कर्ण को उस प्रतियोगिता से पीछे हटना पड़ा। तभी से ये बात प्रचलित हो गयी कि द्रौपदी ने स्वयंवर में कर्ण का अपमान किया था।
यहाँ ध्यान दें कि श्री शिवजी सावंत ने ये उपन्यास सन १९६७ में लिखा था, अर्थात आज से लगभग ५८ वर्ष पहले। चूँकि वो उपन्यास बहुत ही अधिक प्रसिद्ध हुआ, तब से लेकर अब तक उस उपन्यास में दिये गए भ्रामक तथ्यों का बहुत ही निर्दयता से दोहन किया गया है, और आज भी किया जा रहा है। उसके ऊपर से आज कल के टीवी सीरियलों के बारे में क्या कहा जाये? उसमें किस प्रकार की घटिया जानकारी लोगों तक पहुंचाई जा रही है, ये हम लोगों से छिपा नहीं है। दुखद बात ये है कि महाभारत पर बनें सर्वश्रेष्ठ सीरियल, १९८८ में बीआर चोपड़ा की महाभारत में भी ऐसा ही दिखाया गया था।
यदि आप गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित छः खण्डों की महाभारत भी पढ़ेंगे, तो आपको द्रौपदी स्वयंवर के समय कर्ण द्वारा धनुष उठाने और द्रौपदी द्वारा विवाह से इंकार करने वाले प्रकरण में दक्षिणात्य पाठ, नीलकण्ठी पाठ और बोरी महाभारत का सन्दर्भ साफ़ साफ़ मिलेगा। इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य चुनिंदा प्रामाणिक संस्कारों में हमें यही वर्णन मिलता है कि स्वयंवर में कर्ण ने धनुष तो उठा लिया था किन्तु वो उसपर प्रत्यंचा चढाने में सफल नहीं हो सका।
तो सदैव ध्यान रखें कि द्रौपदी ने कभी भी स्वयंवर में कर्ण का अपमान नहीं किया था। जिस 'सूत' जाति को अछूत समझा जाता है वो भी गलत है। महाभारत काल में सूत जाति के कई व्यक्ति बड़े साम्राज्यों के बड़े पदों पर थे। इसीलिए ये कोई ऐसा कारण नहीं है जिस कारण द्रौपदी कर्ण से विवाह करने से मना करती। और यदि ये कारण होता भी, तो कर्ण को उस स्वयंवर में भाग लेना का अवसर ही नहीं मिलता। इसीलिए ये जानकारी पूरी तरह भ्रामक है। सत्य यही है कि कर्ण स्वयंवर में लक्ष्यवेध तो छोड़िये, धनुष पर प्रत्यंचा चढाने में ही सफल नहीं हो पाया था।

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