श्रीफल

श्रीफल
नारियल हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र वस्तुओं में से एक माना जाता है। इसे श्रीफल भी कहते हैं, अर्थात समृद्धि देने वाला फल। इसीलिए इसे माता लक्ष्मी से भी जोड कर देखा जाता है। दुनिया में केवल नारियल ही एक ऐसा फल है जो पूर्ण रूप से शुद्ध है और जिसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती। यही नहीं, केवल नारियल ही एक ऐसा वृक्ष है जिससे जुडी हर चीज मनुष्य के काम आती है। इसीलिए भारत, विशेषकर दक्षिण भारत में इसे "कल्पवृक्ष" भी कहा जाता है।

पूजा पाठ में नारियल फोड़ने का विधान है और इसके बिना कोई पूजा संपन्न नहीं होती। कहते हैं कि नारियल फोड़ने से और उसके जल से आचमन करने से सभी अशुद्धियाँ और दोष समाप्त हो जाते हैं हैं। वैसे तो नारियल केवल एक फल है पर पुराणों में उसके जन्म की भी कथा है। कहते हैं इसकी उत्पत्ति राजर्षि विश्वामित्र के द्वारा की गयी थी। 

ऋषि विश्वामित्र जब तपस्या करने निकले तो उन्होंने अपने परिवार को राजा सत्यव्रत के राज्य में छोड़ दिया और स्वयं तप करने अरण्य में चले गए। सत्यव्रत श्रीराम के पूर्वज थे। उनके पिता का नाम पृथु एवं पुत्र का नाम हरिश्चंद्र था। यही हरिश्चंद्र अपनी सत्यता के लिए संसार में प्रसिद्ध हैं। सत्यव्रत एक प्रतापी और प्रजापालक राजा थे। विश्वामित्र की अनुपस्थिति में उनके परिवार को बड़ा कष्ट भोगना पड रहा था। तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार को सहारा दिया और उनकी खूब सेवा की। जब विश्वामित्र राजर्षि बनकर लौटे तब उनके परिवार ने उन्हें बताया कि किस प्रकार सत्यव्रत ने उनकी रक्षा की। 

इससे प्रसन्न होकर विश्वामित्र ने कहा कि वे राजा सत्यव्रत की एक इच्छा पूर्ण कर सकते हैं। तब सत्यव्रत ने कहा कि उनकी केवल एक ही इच्छा है कि वे सशरीर स्वर्गलोक को जाएँ। उनकी ये इच्छा सुनकर विश्वामित्र ने अपने तपोबल से पृथ्वी से स्वर्ग तक एक मार्ग बना दिया जिसपर चलते हुए सत्यव्रत स्वर्गलोक को पहुंचे। किन्तु स्वर्ग में प्रवेश से पहले ही जब देवराज इंद्र ने ये देखा कि एक मानव स्वर्ग की ओर बढ़ा चला आ रहा है तब उन्होंने सत्यव्रत को वहाँ से नीचे पृथ्वी पर धकेल दिया। 

पतन होने के बाद सत्यव्रत विलाप करते हुए विश्वामित्र के पास पहुंचे। जब उन्हें इस बात का पता चला तो वे बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने ये निश्चय किया कि वे पृथ्वी और स्वर्ग के बीच एक नए स्वर्गलोक की रचना करेंगे जिससे सत्यव्रत की इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी और देवताओं को भी कोई कष्ट नहीं होगा। किन्तु उन्हें एक चिंता थी कि बिना आधार वो स्वर्गलोक किस प्रकार टिक पायेगा?

तब विश्वामित्र ने अपने बनाये गए स्वर्ग को आधार देने के लिए एक विशाल तने की रचना की जिससे होकर सत्यव्रत नए स्वर्गलोक तब पहुंचे। कहा जाता है कि कालांतर में वही आधार नारियल के पेड़ का तना बना और स्वयं राजा सत्यव्रत नारियल का फल। इन्ही राजा सत्यव्रत को "त्रिशंकु" भी कहा जाता है जो ना पृथ्वी के हुए और ना ही स्वर्ग के। हरिश्चंद्र के पिता त्रिशंकु के बारे में विस्तृत लेख बाद में प्रकाशित किया जायेगा।

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